जो लोग यह कहते हैं कि अनपढ़ या कम पढ़े लिखे लोग ही घर में मारपीट करते हैं, वह पूर्णत: सही नहीं हैं। क्योंकि बदलते समय में घरेलू हिंसा के क्ष...
जो लोग यह कहते हैं कि अनपढ़ या कम पढ़े लिखे लोग ही घर में मारपीट करते हैं, वह पूर्णत: सही नहीं हैं। क्योंकि बदलते समय में घरेलू हिंसा के क्षेत्र में भी व्यापक बदलाव आया है। न सिर्फ हमारे आसपास घटित होने वाली घटनाएँ वरन मनोवैज्ञानिक कारण भी इस बात की तस्दीक करते हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर इस हिंसा के पीछे क्या मनोविज्ञान होता है, जो व्यक्ति के सोचने-समझने की शक्ति को भी धता बता देता है?
हिंसा के प्रमुख कारण:
ज्यादातर मामलों में यह देखने में आता है कि हिंसा करने वाले युवक किसी न किसी काम्प्लेक्स के शिकार होते हैं और अपनी झूठ अहमियत/शान दिखाने तथा अपनी कमी को छिपाने के लिए हिंसा का सहारा लेते हैं।
इस हिंसा के बड़े कारणों में से एक परिवार की रूढ़िवादी पालन व्यवस्था भी है, जिसमें लड़कों को कुछ भी करने की छूट प्रदान की जाती है और लड़कियों को बर्दाश्त करने के लिए प्रेरित किया जाता है। इसके साथ ही साथ बचपन में हुआ दुर्व्यवहार या फिर कोई मानसिक विकृति भी इसके लिए जिम्मेदार होती है।
माँ अथवा बहन के साथ होने वाला दुर्व्यवहार अथवा पति पत्नी के बीच किसी तीसरे के आने की वजह भी इसके लिए अक्सर जिम्मेदार होती है।
समाज में जैसे-जैसे नशाखोरी की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे घरेलू हिंसा भी बढ़ रही है।
समाज में जैसे-जैसे स्त्री स्वतंत्रता बढ़ रही है, वैसे-वैसे स्त्री-पुरूष के अहम भी बढ़ रहे हैं, इसके कारण अक्सर जरा सी बात से शुरू हुई बात काफी हद तक बढ़ जाती है।
अगर सम्भव हो तो हिंसा का मुख्य कारण पता करने की कोशिश करें और सम्भव हो तो उसे दूर करने का प्रयत्न करें।
यदि पति/पत्नी में से कोई भी व्यक्ति चिडचिड़ा हो गया है और हर बात में झगडे पर उतारू हो जाता है, तो किसी मानसिक चिकित्सक से परामर्श लें और तदुपरांत कार्यवाही करें।
यदि सम्भव हो तो उन कारणों की पड़ताल करें, जिनसे अक्सर स्थिति बिगड़ जाती हो। ऐसे व्यवहार/परिस्थितियों से बचने का प्रयत्न करें।
यदि बात हद से ज्यादा बढ़ गयी हो, तो उसे अपने तक सीमित रहना उचित नहीं है। ऐसे में उचित है कि नजदीकी सम्बंधियों के साथ बैठकर समस्या के बारे में विचार करें और उसे ईमानदारीपूर्वक दूर करने का प्रयत्न करें।
हिंसा के प्रमुख कारण:
ज्यादातर मामलों में यह देखने में आता है कि हिंसा करने वाले युवक किसी न किसी काम्प्लेक्स के शिकार होते हैं और अपनी झूठ अहमियत/शान दिखाने तथा अपनी कमी को छिपाने के लिए हिंसा का सहारा लेते हैं।
इस हिंसा के बड़े कारणों में से एक परिवार की रूढ़िवादी पालन व्यवस्था भी है, जिसमें लड़कों को कुछ भी करने की छूट प्रदान की जाती है और लड़कियों को बर्दाश्त करने के लिए प्रेरित किया जाता है। इसके साथ ही साथ बचपन में हुआ दुर्व्यवहार या फिर कोई मानसिक विकृति भी इसके लिए जिम्मेदार होती है।
माँ अथवा बहन के साथ होने वाला दुर्व्यवहार अथवा पति पत्नी के बीच किसी तीसरे के आने की वजह भी इसके लिए अक्सर जिम्मेदार होती है।
समाज में जैसे-जैसे नशाखोरी की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे घरेलू हिंसा भी बढ़ रही है।
समाज में जैसे-जैसे स्त्री स्वतंत्रता बढ़ रही है, वैसे-वैसे स्त्री-पुरूष के अहम भी बढ़ रहे हैं, इसके कारण अक्सर जरा सी बात से शुरू हुई बात काफी हद तक बढ़ जाती है।
कैसे मिल सकती है निजात?
पुरूष के उग्र होने पर समझदारी इसी में है कि वहाँ से हट लिया जाए और मामले को शान्त हो जाने दें। मामला शान्त होने के बाद उस मसले पर बात करें, लेकिन बात कर करते समय इस बात का ध्यान रखें कि सामने वाले को ही पूरी तरह से गलत न ठहराएँ। यदि उस सम्बंध में आपकी भी कुछ गल्ती हो, तो ईमानदारी से स्वीकार करें। अगर सम्भव हो तो हिंसा का मुख्य कारण पता करने की कोशिश करें और सम्भव हो तो उसे दूर करने का प्रयत्न करें।
यदि पति/पत्नी में से कोई भी व्यक्ति चिडचिड़ा हो गया है और हर बात में झगडे पर उतारू हो जाता है, तो किसी मानसिक चिकित्सक से परामर्श लें और तदुपरांत कार्यवाही करें।
यदि सम्भव हो तो उन कारणों की पड़ताल करें, जिनसे अक्सर स्थिति बिगड़ जाती हो। ऐसे व्यवहार/परिस्थितियों से बचने का प्रयत्न करें।
यदि बात हद से ज्यादा बढ़ गयी हो, तो उसे अपने तक सीमित रहना उचित नहीं है। ऐसे में उचित है कि नजदीकी सम्बंधियों के साथ बैठकर समस्या के बारे में विचार करें और उसे ईमानदारीपूर्वक दूर करने का प्रयत्न करें।
अगर आपको 'तस्लीम' का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ। |
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Nice Post..
जवाब देंहटाएंएक सुलझी हुई पोस्ट.
जवाब देंहटाएंसार्थक बातें।
जवाब देंहटाएंसुन्दर एवं विचारणीय प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसही सुझाव दिये हैं आपने, आभार।
जवाब देंहटाएंकई बार हम सब ने देखा होगा की लोग बड़े आराम से अपने बच्चो पर हाथ उठते है वो सामान्य लोग होते है आपकी बताई कोई समस्या उनके साथ नहीं होती है उनका सोचना होता है की ये उनका हक़ है ,वो ये बच्चो की भलाई के लिए कर रहे है ,बच्चा उनको परेशान कर रहा था हमारे लिए भी ये एक सामान्य सी बात है उतनी बुरी नहीं लगाती है पर वास्तव में ये गलत है और इसी तरह वो सामान्य लोग महिलाओ को मारना उनके साथ गाली गौज करना अपना हक़ मानते है एक सामान्य बात मानते है कोई ऐसी बात नहीं जो उनको नहीं करनी चाहिए | दूसरी बात बार बार ये क्यों कहा जाता है की महिलाओ की भी गलती होगी क्या वास्तव में किसी महिला से इतनी बड़ी गलती हो जाती है की उसे पिट दिया जाये या उसके पिटे जाने को किसी भी करना जायज ठहराया जाये क्या आप महिला को भी इस बात का हक़ देते है की पुरुष भी कोई उसी तरह की गलती करे तो महिला को भी उसे पिट देना चाहिए क्या तब भी आप उसे जायज मानेगे | कोई किसी को भी पिटे ये कही से भी जायज नहीं है किसी को भी ये हक़ नहीं है की वो दुसरे को किसी भी कारण से पिटे या गाली गलौज करे या सरेआम बेज्जत करे | कई बार बुढा बाप भी गुसैल बेटे के साथ झगडा करता रहता है नालायक बेटा उसे पिट दे क्या तब भी आप यही कहेंगे की गलती पिता की है जब बेटा गुस्से में था तो उसे वहा से हट जाना चाहिए था ये ऐसे बेटे के तो मुह ही नहीं लगना चाहिए था तब शायद आप ऐसा नहीं कहेंगे | तब पूरी गलती बेटे की निकली जाएगी पर महिलाओ के मामले में ये विचार बदल क्यों जाते है क्योकि कही ना कही हम सभी ये मान कर चलते है की घर चला रहे बेटे की माँ या बहन को या पत्नी को उससे थोडा दब के ही रहना चाहिए और यही सोच उनको हाथ उठा देने की हिम्मत दे देता है |
जवाब देंहटाएंबढ़िया आलेख , समाज के हित में ,
जवाब देंहटाएंSahi kaha aapne.
जवाब देंहटाएंयदि सम्भव हो तो उन कारणों की पड़ताल करें, जिनसे अक्सर स्थिति बिगड़ जाती हो। ऐसे व्यवहार/परिस्थितियों से बचने का प्रयत्न करें।
जवाब देंहटाएंनाईस।
जवाब देंहटाएंएक सुलझी हुई पोस्ट
जवाब देंहटाएंजी बुरा वक़्त पड़ा तो नसीहतें याद रखी जायेंगी !
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएं@महिलाओ के मामले में ये विचार बदल क्यों जाते है क्योकि कही ना कही हम सभी ये मान कर चलते है की घर चला रहे बेटे की माँ या बहन को या पत्नी को उससे थोडा दब के ही रहना चाहिए और यही सोच उनको हाथ उठा देने की हिम्मत दे देता है
जवाब देंहटाएं@अंशुमाला जी
गाली गलौच ही सबकुछ नहीं होता " अंधे का पुत्र अँधा " ये गाली नहीं थी, लेकिन पुरुष ने अपने आत्म सम्मान पर ले ली और मामला उलझता चला गया
[खुद को केवल स्त्री मानना या केवल एक पुरुष मानना भी एक समस्या हो सकता है , इसीलिए रिश्ते होते हैं ]
एक छोटा सा बच्चा है , एक दम प्यारा सा........ मम्मी जब गुस्से में होती है तो वो घर से भाग जाता है , पडोसी या रिश्तेदार के यहाँ चला जाता है, ढूँढने के बाद में माँ खुद उसे गोदी में उठाती है और उसकी आँखों में वात्सल्य से भरे आंसू होते हैं ..जिन्हें देख कर बच्चा भी रो देता है , और बस स्नेह ही स्नेह फ़ैल जाता है हवाओं में
भगवान् श्री कृष्ण [पुरुष होते हुए भे ] कईं बार अपने जीवन में रण छोड़ चुके हैं
कभी कभी शांति बनाए रखेने के लिए पलायन करना होता क्योंकि घर घर है युद्द का मैदान नहीं है
पलायन ना करने और बेवजह बस डटें रहने में शायद क्षणिक जीत मिल जाये पर कभी न कभी अंत दुखद हो सकता है
सोचने वाली बात है .. बेहतरीन पोस्ट.... लिखते रहिये
[सुधार]
जवाब देंहटाएं*कभी कभी शांति बनाए रखने के लिए पलायन करना होता है क्योंकि घर घर है... युद्द का मैदान नहीं है
@रचना जी
जवाब देंहटाएंये तो एक अच्छा प्रयास होगा
ये किस तरह मदद करते हैं? कृपया थोडा और बताएं तो सबकी जानकारी बढ़ेगी :)
क्या ये एक राष्ट्रीय हेल्प लाइन है ? :)
बढ़िया आलेख , समाज के हित में ,
जवाब देंहटाएं@गौरव जी
जवाब देंहटाएंमाँ भूल जाती है क्योकि वो माँ है नारी है उसमे अपने बच्चे के लिए ममता है | महिलाओ को पीटने वाले पुरुष में ये नहीं होता है वो ना तो भूलता है ना ही माफ़ करता है | पीटने वाला किसी भी बात पर पिटना शुरू कर देता है
१ - यदि महिला चुप है तो क्या घुईस ( एक जानवर का नाम ) की तरह चुप है कोई जवाब क्यों नहीं देती और पिटना शुरू
२- यदि महिला जवाब देती है तो बहुत जबान चलने लगी है तेरी मुझे उलटा जवाब देती है और पिटना शुरू
३- यदि महिला वहा से चली जाती है तो मै तुमसे बात कर रहा हु कुछ पूछ रहा हु और तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहाँ से जाने की तुम्हारी इतनी हिम्मत की मेरी बातो को अनसुना करके यहाँ से चली गई और पिटना शुरू |
गौरव जी लगता है की आप ने कभी किसी पुरुष को किसी महिला को पिटते नहीं देखा है या इस तरह की लड़ाई नहीं देखी है बहुत अच्छी बात है हम सब भी ऐसे ही समाज की कमाना करते है जहा ये सब वास्तव में ना हो और हम में से किसी को भी इस तरह की कोई पोस्ट ना लिखनी पड़े |
वो कहते हैं ना "भावनाओं को समझो"
जवाब देंहटाएंमैं बस पलायन वादिता के पोजिटिव इफेक्ट बारे में समझा रहा था
@गौरव जी लगता है की आप ने कभी किसी पुरुष को किसी महिला को पिटते नहीं देखा है या इस तरह की लड़ाई नहीं देखी है
आप तो बस .. बार बार उसी पॉइंट पर या कहूँ गलत अंदाजे पर आ जाती हैं की मैं या तो गाँव में रहता हूँ , या मेरा आस पास का माहौल बहुत ही ज्यादा अच्छा है ... ब्ला ब्ला ब्ला
क्या ये जरूरी है की हर किसी के लेखन में गुस्सा या कड़वाहट झलके ही ??
अब दुनिया तो देखी ही होगी मैंने भी एक कमरे या घर में तो बड़ा नहीं हो गया ना मैं भी .. मेरा मानना है... अगर कोई लेखक/ लेखिका बुरा घटता देखता है और वही कडवाहट उसके लेख में झलक रही है तो उसने कन्वर्ट तो कुछ किया ही नहीं ...... फिर क्या फायदा हुआ आपके लेखन का ???
जैसा था वैसा रख दिया ... ये कोई बड़ा काम तो नहीं लगता .. आसान ही है ... और मैं आसान काम नहीं करता
हम क्यों ना रखें भगत सिंह सी सोच........ जिसने सारे बचपन तरह तरह के अन्याय होते देखे
जितना अन्याय देखा उनता ही वो सकारात्मक होता चला गया और मजबूत भी, स्वभाव से नरम भी , दोस्ताना भी
आप ने जिस तरह के इन्सान की कल्पना की है [या शायद देखा हो ] उसके लिए तो ये लेख लगता नहीं है
अगर यही क्रांतिकारी रवैया रहा तो साधारण घरों में भी छोटी छोटी बात पर लड़ाई होगी
ये इस पर निर्भर है की आप अंतर मन में किस पुरुष की छवि बसाए बैठे हैं
और हाँ ये लेख बेहतरीन है ..अपने आप में सम्पूर्ण है
जवाब देंहटाएंफिर से आभार
बिना किसी पूर्वाग्रह के.... किसी के भी बारे में [पुरुष हो या स्त्री ] स्वविवेक से फैसले किये जाये तो बेहतर है
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत में [हर वर्ग में ] सब क्रांतिकारी टाइप के लोग मिलते हैं पर मैं इसे लेकर किसी भी पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं होता
जैसा घटता है वैसा निर्णय लेता हूँ , वही निर्णय उत्तम है
मैं औरतों पर हाथ उठाना पौरुष की सबसे बड़े तौहीन समझता हं -ज सचमुच का मर्द है वह कभी औरत पर हतः उठा ही नहीं सकता औरतों पर हाथ उठाने वाले पूर्ण पुरुष नहीं होते -अधूरे अधकचरे लोग होते हैं और उनकी खुद की कमियों की वजह से ही असहज स्थितियां उत्पन्न होती हैं -मैं औरत पर हाथ उठाने से बेहतर समझता हूँ आपसी असहमतियों का कोई स्थायी हल जैसे तलाक इत्यादि का विकल्प चुन लिया जाय ....औरत पर हाथ उठाना पुरुषत्व की तौहीन है ...
जवाब देंहटाएंहाँ १६ वर्ष तक बच्चों को उनकी गलतियों पर दंड देते रहना चाहिए ताकि वे अनुचित प्रवृत्तियों के प्रति हत्त्साहित हों ....
यही तो समस्या का मूल है
जवाब देंहटाएंजो [हाथ उठाने वाला] पुरुष ही नहीं माना जाता है
वही व्यक्ति समाज में पुरुष [की इमेज] का प्रतिनिधित्व कर रहा है
वाह क्या झन्नाटेदार तमाचा .ओह सारी फौरी जवाब है -तू सी ग्रेट हो !
जवाब देंहटाएंना ना ..इस बार आपसे असहमत हूँ ...मैंने सिर्फ सामाजिक सार बताया है
जवाब देंहटाएंकुल मिला कर आपके कमेन्ट का पहला हिस्सा मुझे कुछ उचित नहीं लगा
जवाब देंहटाएंकृपया उचित समाधान करें
@आपका आशय यह है गौरव कि क्या औरतों पर हाथ उठाकर मर्दानगी साबित की जा सकती है ?
जवाब देंहटाएंमर्द की मर्दानगी मर्द पर हाथ उठाने से ही साबित होगी :)
मर्द की परिभाषा -जो मर्यादित आचरण करे !
जवाब देंहटाएं@आपका आशय यह है गौरव कि........
जवाब देंहटाएंहे इश्वर ..... :))
@मिश्र जी
:)) ये क्या कह रहे हैं आप :))
चलिए .... मुझे कमेन्ट के पहले हिस्से पर आपत्ति क्यों है.... ये बताता हूँ
कोई भी "स्त्री पर हाथ उठाने वाले पुरुष" को "पुरुष" नहीं मान सकता [ये कंसेप्ट तो क्लीयर है ]
अब ये भी एक सिमित परिभाषा हो गयी, ये भी व्यापक नहीं है ...इसके आगे बढ़ते हैं ..इसे मानवता ओरिएंटेड बनाते हैं
मैं तो पुरुषों पर [जब तक आवश्यकता ना पड़े ]हाथ उठाने के भी हमेशा खिलाफ रहा हूँ क्योंकि ये तो पशुता हो जाएगी
अब दोबारा कमेन्ट के पहले हिस्से पर आते हैं
इस शब्द "झन्नाटेदार तमाचा" के द्वारा हिंसा का प्रदर्शन सा प्रतीत हुआ जो आपके कमेन्ट के पहले हिस्से में प्रयुक्त हुआ है ... पर मैंने जवाब से किसी को [स्त्री वर्ग या पुरुष वर्ग ]आघात करने का प्रयास नहीं किया है
बस इतना ही :))
वैसे आज गांधी जयंती भी है मिश्र जी :))
@मर्द की परिभाषा -जो मर्यादित आचरण करे !
हाँ इससे समाधान हुआ
आभार :))
आप तो बस डरा [चौंका ] देते हैं मुझ बच्चे को :))
जवाब देंहटाएंplease read the given links gaurav
जवाब देंहटाएंहाँ ... पोस्ट काफी जानकारी से भरी लगती है
जवाब देंहटाएंइसे थोडा समय देकर आराम से पढ़ना होगा
नया ज्ञान या जानकारी लेने से कोई परहेज नहीं
अवश्य पढूंगा :)
आभार
रचना जी ,
जवाब देंहटाएंमैं ये नहीं कहता की लेख इस समाज की छिपी हुयी सच्चाई का एक हिस्सा नहीं दिखता लेकिन लेख में पुरुष के दर्द या भय का उल्लेख नहीं किया है, पुरुष सिर्फ दोषी नजर आता है , पर क्या वो है ?? , जानते हैं एक उदाहरण से
एक छोटा सा उदाहरण
आने जाने के लिए टोकना एक प्रतिक्रिया है ....इसे क्रिया समझा जाता है और प्रतिक्रिया दी जाती है की "पुरुष असभ्य है" , लेकिन टोकना एक प्रतिक्रिया है अपने आप में , जो पुरुष[पिता / भाई/पति ] करता नजर आता है , पर सच में वो भी सिर्फ साधन ही है "समाज के दबाव से दबा हुआ सबल जीव" या कहें "असुरक्षा के भय से मानसिक रूप से सख्त हुआ सबल जीव" हमें इंडायरेक्ट फ़ोर्स को ढूंढना होगा ये विषय बेहद आसान नहीं है , ये सुरक्षा का भय स्त्री के कथित भोलेपन के प्रति भी हो सकता है
लोग हर मामले में पश्चिम बनना चाहते हैं पर वो[पश्चिमी ] भी अपराधी की साइकोलोजी पर विशेष ध्यान देते हैं जिससे ऐसे अपराध भविष्य में न हो और हम मॉडर्न भारतीय अब भी बस जिस जेंडर , धर्म , जाती , पेशे का है उस पर सारा आरोप थोप देते हैं इसे आधुनिक रूदिवादिता कहा जा सकता है इसमें किसी का फायदा नहीं हो सकता .. मेरी नजरों में अपराध सिर्फ अपराध है स्त्री अपराध या पुरुष अपराध नहीं [वो तो बाद में किया जानेवाला वर्गीकरण है ]
अब विषय से ऊपर उठाते हैं और सोचते हैं :
पुरुष नैसर्गिक रूप से कोमल नहीं है इसलिए जरूरी नहीं है की वो शोषित और पीड़ित नहीं है , शोषण एक बेहद बड़ा कंसेप्ट है ये शारीरिक जितना ही मानसिक क्षमता से जुड़ा होता है , दर असल बुद्दिजीवी का आसानी से शोषित नहीं होता श्रमजीवी हमेशा शोषित होता है [स्त्री हो या पुरुष इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ]
हम हमेशा देखते हैं की दो पक्ष लड़ते हैं और फायदा कोई तीसरा उठाता है कभी मुगलों ने , कभी अंग्रेजों ने, अब फिर से पश्चिम ही उठा रहा है , वो दोनों पक्षों [यहाँ " स्त्री पुरुष" ] को स्वतन्त्रता का सपना दिखा कर दोनों पक्षों का नियंत्रण करने में सफल है ..क्योंकि मानव हमेशा सुख की खोज में रहा है.... सही ज्ञान के आभाव में या कहें सांस्कृतिक प्रदूषण के धुएं से उसकी दूर द्रष्टि धुंधली हो जाती है ....वो ये नहीं देखता की क्षणिक सुखों के परिणाम हमेशा बुरे रहे हैं अतः अब स्त्री और पुरुष के लिए एक दुसरे को समझना एक दुसरे पर नियंत्रण करने से बेहतर है , आज हम एकल परिवारों में रहते हैं [ताकि पूर्ण स्वतंत्रता[?] से जीयें ] माता पिता दोनों ही ऑफिस में हैं तो सिर्फ इडियट बोक्स [टी वी ] ही है जो बच्चे को जीवन के हर पहलु को दिखा रहा है , और क्या दिखाता है सब जानते हैं , आप उससे नैतिक आचरण की उम्मीद नहीं रख सकते, क्योंकि अब वो किसी दूसरी शक्ति के नियंत्रण में है उसके हावभाव, चाल चलन उसके स्वयं के बेसिक स्वभाव से जुड़े हुए नहीं है
जवाब देंहटाएंअतः अभियान उस इनडायरेक्ट फ़ोर्स के खिलाफ हो जो हम सभी पर कंट्रोल कर रहा है
Adhiktar hinsa par baate hooti hee . Par hinsase pahle asntohs,asanti ka mahol pedaa hota hee Jo Kai bar gharke bahar se aatia hee jese samajik ,sanskrutik,arthik, aouer parivarik rajneti jo aksahr rishtedaro ke aham igo aour swarthse samashya khdi kar ke sabhya bane chup chap Sandhya ko aage badhatee rhatehee
हटाएंरचना जी,
जवाब देंहटाएंसंभव है मेरे विचारों से आप असहमत हों तो इसमें कोई बड़ी बात नहीं है ये सिर्फ एक द्रष्टिकोण है बस
अगर कोई अज्ञानता मेरे विचारों में झलकती हो तो मुझे अज्ञानी अपरिपक्व बालक समझ कर क्षमा कर दीजियेगा
रचना जी,
जवाब देंहटाएंसंभव है मेरे विचारों से आप असहमत हों तो इसमें कोई बड़ी बात नहीं है ये सिर्फ एक द्रष्टिकोण है बस
अगर कोई अज्ञानता मेरे विचारों में झलकती हो तो मुझे अज्ञानी अपरिपक्व बालक समझ कर क्षमा कर दीजियेगा
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