'तस्लीम' पर 30 अप्रैल को प्रकाशित पोस्ट ' ज्योतिष: विज्ञान या बकवास ? इंडिया टीवी पर हुआ दूध का दूध , पानी का पानी ' पर मै...
'तस्लीम' पर 30 अप्रैल को प्रकाशित पोस्ट 'ज्योतिष: विज्ञान या बकवास? इंडिया टीवी पर हुआ दूध का दूध, पानी का पानी' पर मैंने इंडिया टीवी द्वारा दिखाये गये एक कार्यक्रम का जिक्र किया था, जिसमें ज्योतिषियों की सामुहिक परीक्षा दिखाई गयी थी। और यह कोई पहली बार नहीं हुआ था कि ज्योतिषी हमेशा की तरह वहाँ भी विफल रहे। इस पर तमाम लोगों ने प्रतिक्रिया व्यक्त की और संगीता जी ने अपने ब्लॉग पर एक पोस्ट भी लिखी।
मैंने समय निकालकर पूरे मन से संगीता जी की पोस्ट को पढ़ा। उस लेख में उन्होंने ज्योतिष की उपेक्षा को लेकर तमाम बातें कही हैं। लेकिन उन बातों को पढ़कर ज्योतिष की तार्किकता सम्बंधी कोई बात पता नहीं चलती, हाँ उसकी दयनीय दशा पर अफसोस जरूर करने का मन करता है। उस पोस्ट को पढ़ने के बाद मेरे मन में जो बातें आईं, उन्हें ही इस पोस्ट का विषय बनाया गया है।
keywords: Reality of Astrology, Jyotish ki sachchaai
अब आते हैं असली बात पर। पर इस बारे में मैं यह बात साफ कर देना चाहूँगा कि ज्योतिष के बारे में मेरा ज्ञान 'न' के बराबर ही है। पर उसकी मोटी-मोटी बातों को अवश्य समझता हूँ। यहाँ पर मैं अपने उसी अल्प-ज्ञान के आधार पर इस सम्बंध में कुछ बातें कहना चहूँगा कि ज्योतिष विधा विज्ञान से अलग क्यों है?
हम सभी जानते हैं कि सूर्य (तारा) या किसी अन्य तारे के चारों ओर परिक्रमा करने वाले खगोल पिण्डों को 'ग्रह' कहते हैं। वैज्ञानिकों ने जाँच परख कर बताया है कि हमारे सौरमण्डल में आठ ग्रह हैं- बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, युरेनस और नेप्चून। इनके अतिरिक्त तीन बौने ग्रह भी पाये जाते हैं- सीरिस, प्लूटो और एरीस। (कुछ समय पहले तक प्लूटो को भी ग्रह माना जाता रहा है, लेकिन बाद में उसे छुद्रग्रह मान लिया गया।)
जबकि ज्योतिष शास्त्र विज्ञान द्वारा प्रमाणित ग्रहों को ग्रह मानता ही नहीं है। अपनी गणना के अनुसार ज्योतिष ने नौ ग्रह मान रखे हैं- सूर्य, चन्द्रमा, बुध, शुक्र, मंगल, गुरु, शनि, राहु और केतु। जबकि यह सभी को मालूम है कि सूर्य एक तारा है और चंद्रमा उपग्रह। और आश्चर्य का विषय यह है कि इसमें पृथ्वी को शामिल ही नहीं किया है, जबकि उसके द्वारा उत्सर्जित होने वाले चुम्बकीय किरणों के आधार पर पूरा वास्तुशास्त्र विकसित हो गया है।
इसके अतिरिक्त विज्ञान ने प्रमाणित कर दिया है कि राहु और केतु नामक कोई भौतिक वस्तु इस ब्रम्हांड में नहीं है। बावजूद ज्योतिष इन्हें ग्रह का दर्जा देता है। ज्योतिषियों द्वारा इन ग्रहों को मानने का मुख्य कारण यह है कि बिना किसी दूरदर्शी के नंगी आँखों से केवल सूर्य, चंद्रमा, बुद्ध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति और शनि ही दिखाई देते हैं। लेकिन इसके अतिरिक्त ज्योतिषियों को यह एहसास था कि इनके अलावा भी कुछ अन्य ग्रह होते हैं, इसलिए राहु और केतु को काल्पनिक ग्रह मान लिया गया।
ज्योतिषियों ने आकाश में तारों की तरह-तरह की आकृतियों को देखकर उन्हें बारह राशियों में बाँटा है। ये राशियाँ हैं- मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकन, कुम्भ और मीन। ज्योतिषियों के अनुसार किसी बच्चे के जन्म के समय पूर्वी क्षितिज में जो राशि अवस्थित होती है, उसे ही लग्न अर्थात लग्न राशि कहा जाता है। इसके अतिरिक्त ज्योतिषियों ने अपने हिसाब से अलग-अलग ग्रहों को अलग-अलग चीजों का प्रतीक माना है। जैसे मंगल ग्रह का रंग लाल है, तो उसे वीरता और पराक्रम का प्रतीक मान लिया गया। यानी यदि किसी की कुंडी में लग्न राशि में मंगल है, तो ज्योतिषी उसे वीर, पराक्रमी और लड़ाकू प्रवृत्ति का बताने लगते हैं। इसी तरह बुध या बृहस्पति विद्या और बुद्धि के धनी माने गये हैं। ज्योतिष के अनुसार यदि ये लग्न राशि में हैं, तो जातक यानि जन्म लेने वाला विद्या और बुद्धि का धनी होगा।
ज्योतिष में ग्रहों के अतिरिक्त राशियों के भी कुछ गुण स्वभाव माने गये हैं, जोकि पूर्व से ही निश्चित हैं। इन्हीं राशियों/ग्रहों की स्थिति और गुण स्वभाव को ध्यान में रखकर ही ज्योतिष सम्बंध भविष्यवाणियाँ की जाती हैं। अब चूँकि ज्योतिष के ये नियम और धारणाएँ निश्चित हैं, तो फिर किसी निश्चित तिथि एवं स्थान पर जन्मे व्यक्ति की कुण्डली को देखकर बताई जाने वाली बातें भी एक सी होनी चाहिए।
लेकिन सब जानते हैं कि किसी भी कुण्डली को आप दस ज्योतिषियों को दिखाइए, वे सभी अलग-अलग रास्ता पकड़ लेते हैं। और ऐसा ही इंडिया टीवी के उस कार्यक्रम में भी हुआ। अब आप ही बताएँ कि जिस विधा का आधार (ग्रहों की संख्या) प्रामाणिक रूप से अवैज्ञानिक है, जिसके नियम और सिद्धान्त कभी भी किसी कसौटी पर खरे नहीं उतरते हैं, उसे वैज्ञानिक पद्धतिवाला अर्थात विज्ञान कैसे माना जा सकता है? हाँ यदि ज्योतिषी इस बात के लिए प्रयत्नशील हों कि वे ज्योतिष शास्त्र को भी विज्ञान की मान्यताओं के अनुसार संशोधित और परिवर्द्धित करें और उसके सिद्धांतों को प्रामाणिक बनाने की कोशिश करें, तभी उसे विज्ञान माना जा सकता है। और जाहिर सी बात है कि यह काम तो ज्योतिषियों को ही करना होगा। क्योंकि अपनी विधा की सत्यता पर विश्वास भी तो उन्हें ही है।
मेरा ज्योतिष के बारे में मेरा ज्ञान ठीक ठाक हो गया है वह भी भाई प्रवीण जाखड जी की मदद से लेकिन फिर भी में यह नहीं बता सकता वह इस पोस्ट पर कमेंट करने आयेंगे या नहीं?
जवाब देंहटाएंकोई मेरे अधिक ज्योतिष जानता हो तो बताये
Ispe to Sangita ji hi kuchh bol sakti hai.
जवाब देंहटाएंज्योतिष, पराविज्ञान और इस तरह के अन्य विषय मात्र तर्क से डील नहीं हो पाते। इन पर विश्वास भी नहीं हुआ और अश्रद्धा भी नहीं हुई।
जवाब देंहटाएंकुछ विषय ओपन एण्डेड भी रहते हैं जीवन में! :)
Moodh magaj hum kya nolen?
जवाब देंहटाएंज्योतिष विज्ञानं में अपनी श्रधा ज़रा कम ही है .. पर इसके मायने ये बिलकुल नहीं कि हम नास्तिक हैं ..
जवाब देंहटाएंज्योतिष न तो आधार रूप में विज्ञान हो सकता है और न परिणाम रूप में।
जवाब देंहटाएंजहाँ तक आस्था का प्रश्न है तो लोग किसी पर भी आस्था रख सकते हैं।
इस बारे में मैं यह बात साफ कर देना चाहूँगा कि ज्योतिष के बारे में मेरा ज्ञान 'न' के बराबर ही है।
जवाब देंहटाएंभई जाकिर जी, तो क्या किसी हकीम नें बोला है कि इस विषय पर फालतू की बहस की जाए....जिस विषय का क,ख,ग, भी नहीं जानते..उसी का विश्लेषण करने चले हैं....खैर दुकानदारी जमाए रहिए...ओर नहीं तो कम से कम बुद्धिजीवी कहलाने का सर्टिफिकेट तो मिल ही जाएगा :-)
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जवाब देंहटाएंजहाँ तक आँखों से ना दिखने वाले ग्रहों का प्रश्न है तो कई बातें गणनाओं की सहायता से भी बताई जा सकती हैं क्यों की किसी भी आकाशीय पिंड( चाहें वो तारा हो ,ग्रह हो, उपग्रह या कोई और ) की गति अन्य सभी आकाशीय पिन्दूं के द्रव्यमान और गति पर निर्भर करती है |
जवाब देंहटाएंजाकिर जी ,
जवाब देंहटाएंमेरा ज्ञान भी ना के बराबर है परन्तु एक बात तो अत्यंत साधारण है जिसके लिए ज्योतिष ज्ञान की आवश्यकता ही नहीं है | ज्योतिषियों ने सूर्य को ग्रह कहना पहले प्रारंभ किया था और आपकी कथित ग्रहों की आधुनिक परिभाषा बाद में आई है इसलिए आपका तर्क तो उचित नहीं | अगर अभी मैं कंप्यूटर की कोई नई परिभाषा दे दूँ और वो सर्व मान्य भी हो जाये तो अभी तक जिन भी पोस्टों में कंप्यूटर का नाम आया है वो अवैज्ञानिक हो जाएँगी
यहाँ पर मैं अपने उसी अल्प-ज्ञान के आधार पर इस सम्बंध में कुछ बातें कहना चहूँगा कि ज्योतिष विधा विज्ञान से अलग क्यों है?
जवाब देंहटाएंIf is it fair to say something without knowledge of a subject?
I think it is called "Adh jal gagri chhalkat jay"
दिनेश द्विवेदी जी की टिपण्णी के पहले वाक्य से पूर्णतया सहमत !!!
जवाब देंहटाएंअंकित अभी दरवाज़े के अन्दर से बोल रहे हैं शायद उन्हें बाहर निकलने की महती आवश्यकता है... वह शयेद वैज्ञानिक विचारधारा के लेख भी लिखते हैं!?
जवाब देंहटाएंइसे विज्ञान साबित करने की पूरी-पूरी संभावना है क्योंकि ऐसे फ़ैसले लेने वाले ही तो इनके यहां नाक रगड़ते हैं.
जवाब देंहटाएंसलीम जी आप क्या कह रहे हैं ? कृपया पुनः साफ़ साफ़ बताएं की आप कहना क्या चाहते हैं ?
जवाब देंहटाएंजीवन तर्क से ऊपर है. ये बहस क्यों जब हम जानते ही नहीं.
जवाब देंहटाएंमेरे पिताजी दर्शन शास्त्र और संस्कृत के प्रकांड विद्वान हैं, और कंप्युटर नही जानते.मगर वही कंप्युटर वाले कहते हैं कि संस्कृत ही वही भाषा है, जो कंप्युटर से कंपेटिबल है.
ज्योतिष भी भाषा या गणित की तरह विषय है, और विग्यान में प्रयुक्त होता है, भले ही विग्यान ना हो. एक मरीज को दस डाक्टर देखें तो अलग अलग निदान कर सकते हैं. इसका ये मतलब तो नही निकल सकता कि मेडिकल सायंस ही गलत है.
बहस का ये मुद्दा ज़रूर हो सकता है कि ज्योतिष का हमें या समाज को क्या फ़ायदा हो सकता है. शायद सिर्फ़ मनोवैग्यानिक धरातल पर.
Rochak Mamla.
जवाब देंहटाएंजाकिर अली साहब , अपने अपने चश्मे से देखोगे तो जहिर है कि नजरिया अलग अलग होगा . आपके नजरिये में तथ्यों का अभाव है.
जवाब देंहटाएंज्योतिष के डो आयाम है -- गंडित एवं फलित -- सुर्यसिधांत के पहले अध्याय (जी से "अधिकार" कहा गया ही)-- स्पष्टआधिकार -- उसकी सटीकता नापने कि क्षमता अत्याधुनिक उपकरणों में भी नहीं हैं -- फिर भी उसमें पृथ्वी को अचल , ब्रह्माण्ड का केंद्र मान कर किये गए है...सूर्य को भी एक सामान्य पृथ्वी का परिक्रमी पिंड माना गया है.. इस तरह ज्योतिषीय भाषा में भी सूर्य एक गृह है..रहू और केतु दोनों सूर्य परिक्रमा चक्र तथा चन्द्रमा परिक्रमा चक्र को काटने वाले ऊपर और नीचे डो बिंदु हैं..विज्ञानं से सिद्ध है कि ये दोनों बिंदु मैग्नेटिक डॉट हैं...अतः उनके प्रभाव का उल्लेख भी संगत है...शेष फलित ज्योतिष वाले जाने....लेकिन ज़नाब बात तो है कुछ...खोजिये खोजिये...अवश्य मिलेगा...प्राचीन विद्याओं के बारे में हमें एकतरफा राय नहीं बनानी चाहिए...ये तो दुराग्रह होगा !
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