ज्योतिष को लेकर ब्लॉग जगत में अक्सर उठापटक चलती रहती है। ज्योतिष के बारे में जो भी प्रश्न उठाए जाते हैं, उसपर तथाकथित ज्योतिषी सबसे पहले ...
ज्योतिष को लेकर ब्लॉग जगत में अक्सर उठापटक चलती रहती है। ज्योतिष के बारे में जो भी प्रश्न उठाए जाते हैं, उसपर तथाकथित ज्योतिषी सबसे पहले यही सवाल दागते हैं कि आपने कितना ज्योतिष पढ़ा है। इसके आगे सारे सवाल, सरे तर्क अनदेखे/बेमानी कर दिये जाते हैं और जनता उस भेड़चाल में शामिल हो जाती है।
कल सहसा डा0 जगदीश्वर चतुर्वेदी के ब्लॉग 'नया ज़माना' पर उनके ताजे आलेख 'ज्योतिषी के तर्क और अविवेकवाद' पर नजर पड़ी। डा0 चतुर्वेदी ने सम्पूर्णानन्द सं.वि.वि. से सिद्धान्त ज्योतिषाचार्य की डिग्री प्राप्त की। उनके ताज़े लेख पर बहस चल रही है। ज्योतिष की इस चर्चा को आगे बढ़ाने के लिए उनके एक अन्य आलेख 'ज्योतिषी के फलादेश की कला और राजनीति' लेख को यहाँ पर पुन: साभार प्रस्तुत किया जा रहा है।

सतह पर सबका दिखने वाले इस विषय का समाज के सबसे कमजोर लोगों से कम और समर्थ या ताकतवर लोगों की सत्ता को बनाए रखने से ज्यादा संबंध है। यह स्वभावत: समानता, बंधुत्व और जनतंत्र का विरोधी है। फलत: हमेशा से अधिनायकवाद का प्रभावशाली औजार रहा है।इ सका सामाजिक आधार अर्ध्द-शिक्षित और शिक्षितवर्ग है। यही सामाजिक वर्ग फासीवादी और अधिनायकवादी ताकतों का भी सामाजिक आधार है।
फ्रैंकफुर्ट स्कूल के समाजशास्त्री एडोर्नो के मुताबिक समाज में भाग्य और फलित ज्योतिष के प्रति जितना आकर्षण बढ़ेगा प्रतिक्रियावादी और फासीवादी ताकतों का उतनी ही तेजी से वर्चस्व बढ़ेगा। अविवेकवादी परंपरा में एक ओर झाड़-फूंक करके जीने वालों का समूह है, कर्मकाण्ड, पौरोहित्य आदि की तर्कहीन परंपराएं हैं, दूसरी ओर व्यक्ति के निजी हितों की रक्षा के नाम पर प्रचलित फलित ज्योतिषशास्त्र भी है।
निजी हितों की रक्षा कैसे करें? इसका चरमोत्कर्ष हिटलर के उत्थान में देखा जा सकता है। हिटलर ने निजी हितों को चरमोत्कर्ष पर पहुँचाकर समूची मानवता को विनाश के कगार पर पहुँचा दिया था। निजी हितों पर जोर देने के कारण हम निजी हितों के परे देखने में असमर्थ होते हैं। और अंतत: अपने ही हितों के खिलाफ काम करने लगते हैं। अविवेकवाद जरूरी नहीं है कि विवेकवाद की सीमारेखा के बाहर मिले बल्कि यह भी संभव है कि वह स्व को संरक्षित करने की विवेकवादी प्रक्रिया में ही मौजूद हो।
फलित ज्योतिष में कर्मकाण्ड प्रमुख नहीं है। कर्मकाण्ड हाशिए पर है। भाग्य की धारणा में जिनका विश्वास है वे ज्योतिषशास्त्र के बहाने कही गई बातों को आंख मींचकर मानते हैं। उसका तर्क है कि ज्योतिषी की बातों का अस्तित्व है,फलितज्योतिष का अस्तित्व है,वह प्रचलन में है। लाखों लोगों का उस पर विश्वास है इसलिए हमें भी सहज ही विश्वास हो जाता है।
फलित ज्योतिषशास्त्र अपने तर्क का उन क्षेत्रों में इस्तेमाल करता है जहां व्यक्ति की बुध्दि प्रवेश नहीं करती। अथवा अखबारों में छपने वाले राशिफल हमेशा उन बातों पर रोशनी डालते हैं जहां पाठक सक्रिय रूप से भाग नहीं लेता। पाठक का इस तरह अनुभव से अलगाव सामने आता है। अनुभव से अलगाव के कारण पाठक अविश्वास और पलायनबोध में जीता है।
भविष्यफल में रोचक और विलक्षण भविष्यवाणियां होती हैं जिन पर पाठक संदेह करता है। यही संदेह आधुनिक अविवेकवाद की सबसे बड़ी पूंजी है। इसके ऐतिहासिक कारण हैं। इनमें सबसे प्रमुख कारण समाज में गंभीरता का अभाव। गंभीरता के अभाव के कारण ज्योतिष, तंत्र-मंत्र, कर्मकाण्ड आदि की तरफ ध्यान जाता है। फलित ज्योतिष आम तौर पर व्यक्ति के आलोचनात्मक विवेक के बाहर सक्रिय होता है और प्रामाणिक होने का दावा करता है। वह वास्तव जरूरतों के आधार पर कार्य करता है।
आम तौर पर ज्योतिषी के पास जब कोई व्यक्ति प्रश्न पूछने जाता है तो वास्तव समस्या के बारे में पूछता है कि क्या होगा या क्या करें ? वह यह मानकर चलता है कि उसके जीवन को ग्रहों ने घेरा हुआ है और ग्रहों की चाल के बारे में ज्योतिषी अच्छी तरह से जानता है। इसके कारण अति-वास्तविकता पैदा हो जाती है। यह अति-वास्तविकता स्वयं में अविवेकपूर्ण है।ऐतिहासिक विकास क्रम में इसका अत्यधिक विकास हुआ है। यह स्व के हितों को नष्ट करती है।
जनमाध्यमों में व्यक्त फलादेश इस शैली में होता है जिससे यह आभास मिलता है कि ज्योतिष ही दैनन्दिन समस्याओं के समाधान का एकमात्र प्रामाणिक रास्ता है। साथ ही यह भी अर्थ व्यक्त होता है कि व्यक्ति के भविष्य के बारे में कोई अदृश्य शक्ति है जो जानती है। अर्थात् स्वयं के बारे में अन्य ज्यादा जानता है। राशिफल में ज्यादातर बातें सामाजिक मनोदशा को व्यक्त करती हैं। अमूमन फलादेश में जिज्ञासु की दिशाहीनता और अनिश्चियता का इस्तेमाल किया जाता है।
साधारण आदमी एक घड़ी के लिए धार्मिक होने से इंकार कर सकता है किन्तु भाग्य को लेकर ज्योतिषी के कहे हुए को अस्वीकार करने में उसे असुविधा होती है क्योंकि वह मानता है कि फलादेश का ग्रहों से संबंध है। फिर भी फलित ज्योतिष को अंधविश्वास की मनोवैज्ञानिक संरचना कहना मुश्किल है। फलित ज्योतिष पर विचार करते समय ध्यान रहे कि इसका समाज के बृहत्तम हिस्से से संबंध है अत: किसी भी किस्म का सरलीकरण असुविधा पैदा कर सकता है। इसका व्यक्ति के अहं(इगो) और सामाजिक हैसियत से गहरा संबंध है। इससे लोगों में आत्मविश्वास पैदा होता है।
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ज्योतिषी के फलादेश की कला और राजनीति
-डा0 जगदीश्वर चतुर्वेदी
फलित ज्योतिष मासकल्चर का अंग है। देखने में अहिंसक किन्तु वैचारिक रूप से हिंसक विषय है। सामाजिक वैषम्य, उत्पीडन, लिंगभेद,स्त्री उत्पीडन और वर्णाश्रम व्यवस्था को बनाए रखने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। ग्रह और भाग्य के बहाने सामाजिक ग्रहों की सृष्टि में अग्रणी है। फलित ज्योतिष स्वभावत: लचीला एवं उदार है। 'जो मांगोगे वही मिलेगा' के जनप्रिय नारे के तहत प्रत्येक समस्या का समाधान सुझाने के नाम पर व्यापक पैमाने पर जनप्रियता हासिल करने में इसे सफलता मिली है।सतह पर सबका दिखने वाले इस विषय का समाज के सबसे कमजोर लोगों से कम और समर्थ या ताकतवर लोगों की सत्ता को बनाए रखने से ज्यादा संबंध है। यह स्वभावत: समानता, बंधुत्व और जनतंत्र का विरोधी है। फलत: हमेशा से अधिनायकवाद का प्रभावशाली औजार रहा है।इ सका सामाजिक आधार अर्ध्द-शिक्षित और शिक्षितवर्ग है। यही सामाजिक वर्ग फासीवादी और अधिनायकवादी ताकतों का भी सामाजिक आधार है।
फ्रैंकफुर्ट स्कूल के समाजशास्त्री एडोर्नो के मुताबिक समाज में भाग्य और फलित ज्योतिष के प्रति जितना आकर्षण बढ़ेगा प्रतिक्रियावादी और फासीवादी ताकतों का उतनी ही तेजी से वर्चस्व बढ़ेगा। अविवेकवादी परंपरा में एक ओर झाड़-फूंक करके जीने वालों का समूह है, कर्मकाण्ड, पौरोहित्य आदि की तर्कहीन परंपराएं हैं, दूसरी ओर व्यक्ति के निजी हितों की रक्षा के नाम पर प्रचलित फलित ज्योतिषशास्त्र भी है।
निजी हितों की रक्षा कैसे करें? इसका चरमोत्कर्ष हिटलर के उत्थान में देखा जा सकता है। हिटलर ने निजी हितों को चरमोत्कर्ष पर पहुँचाकर समूची मानवता को विनाश के कगार पर पहुँचा दिया था। निजी हितों पर जोर देने के कारण हम निजी हितों के परे देखने में असमर्थ होते हैं। और अंतत: अपने ही हितों के खिलाफ काम करने लगते हैं। अविवेकवाद जरूरी नहीं है कि विवेकवाद की सीमारेखा के बाहर मिले बल्कि यह भी संभव है कि वह स्व को संरक्षित करने की विवेकवादी प्रक्रिया में ही मौजूद हो।
फलित ज्योतिष में कर्मकाण्ड प्रमुख नहीं है। कर्मकाण्ड हाशिए पर है। भाग्य की धारणा में जिनका विश्वास है वे ज्योतिषशास्त्र के बहाने कही गई बातों को आंख मींचकर मानते हैं। उसका तर्क है कि ज्योतिषी की बातों का अस्तित्व है,फलितज्योतिष का अस्तित्व है,वह प्रचलन में है। लाखों लोगों का उस पर विश्वास है इसलिए हमें भी सहज ही विश्वास हो जाता है।
फलित ज्योतिषशास्त्र अपने तर्क का उन क्षेत्रों में इस्तेमाल करता है जहां व्यक्ति की बुध्दि प्रवेश नहीं करती। अथवा अखबारों में छपने वाले राशिफल हमेशा उन बातों पर रोशनी डालते हैं जहां पाठक सक्रिय रूप से भाग नहीं लेता। पाठक का इस तरह अनुभव से अलगाव सामने आता है। अनुभव से अलगाव के कारण पाठक अविश्वास और पलायनबोध में जीता है।
भविष्यफल में रोचक और विलक्षण भविष्यवाणियां होती हैं जिन पर पाठक संदेह करता है। यही संदेह आधुनिक अविवेकवाद की सबसे बड़ी पूंजी है। इसके ऐतिहासिक कारण हैं। इनमें सबसे प्रमुख कारण समाज में गंभीरता का अभाव। गंभीरता के अभाव के कारण ज्योतिष, तंत्र-मंत्र, कर्मकाण्ड आदि की तरफ ध्यान जाता है। फलित ज्योतिष आम तौर पर व्यक्ति के आलोचनात्मक विवेक के बाहर सक्रिय होता है और प्रामाणिक होने का दावा करता है। वह वास्तव जरूरतों के आधार पर कार्य करता है।
आम तौर पर ज्योतिषी के पास जब कोई व्यक्ति प्रश्न पूछने जाता है तो वास्तव समस्या के बारे में पूछता है कि क्या होगा या क्या करें ? वह यह मानकर चलता है कि उसके जीवन को ग्रहों ने घेरा हुआ है और ग्रहों की चाल के बारे में ज्योतिषी अच्छी तरह से जानता है। इसके कारण अति-वास्तविकता पैदा हो जाती है। यह अति-वास्तविकता स्वयं में अविवेकपूर्ण है।ऐतिहासिक विकास क्रम में इसका अत्यधिक विकास हुआ है। यह स्व के हितों को नष्ट करती है।
जनमाध्यमों में व्यक्त फलादेश इस शैली में होता है जिससे यह आभास मिलता है कि ज्योतिष ही दैनन्दिन समस्याओं के समाधान का एकमात्र प्रामाणिक रास्ता है। साथ ही यह भी अर्थ व्यक्त होता है कि व्यक्ति के भविष्य के बारे में कोई अदृश्य शक्ति है जो जानती है। अर्थात् स्वयं के बारे में अन्य ज्यादा जानता है। राशिफल में ज्यादातर बातें सामाजिक मनोदशा को व्यक्त करती हैं। अमूमन फलादेश में जिज्ञासु की दिशाहीनता और अनिश्चियता का इस्तेमाल किया जाता है।
साधारण आदमी एक घड़ी के लिए धार्मिक होने से इंकार कर सकता है किन्तु भाग्य को लेकर ज्योतिषी के कहे हुए को अस्वीकार करने में उसे असुविधा होती है क्योंकि वह मानता है कि फलादेश का ग्रहों से संबंध है। फिर भी फलित ज्योतिष को अंधविश्वास की मनोवैज्ञानिक संरचना कहना मुश्किल है। फलित ज्योतिष पर विचार करते समय ध्यान रहे कि इसका समाज के बृहत्तम हिस्से से संबंध है अत: किसी भी किस्म का सरलीकरण असुविधा पैदा कर सकता है। इसका व्यक्ति के अहं(इगो) और सामाजिक हैसियत से गहरा संबंध है। इससे लोगों में आत्मविश्वास पैदा होता है।
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ज्योतिष के सच को समझने के लिए कृपया ये निम्न आलेख अवश्य पढ़ें-
चुटकुले व भविष्यफल पढ़ना अच्छा लगता है.
जवाब देंहटाएंChaturvedi ji jaise jaankar log hi Jyotish ki pol patti kholne men samarth hai.
जवाब देंहटाएंचूंकि चतुर्वेदी जी ज्योतिष के जानकार हैं .. उनसे होनेवाली बहस अवश्य सार्थक हो सकती है .. ज्योतिष की कई कमजोरियो को मैने भी अपने ब्लॉग में उजागर किया है .. विभिन्न प्रकार के राजयोग, कुंडली मिलान , विंशोत्तरी दशा पद्धति , ग्रहों के प्रभाव को परिवर्तित करने का दावा , ग्रहणों का प्रभाव तथा कालसर्प योग आदि को हमलोग निश्चित तौर पर ज्योतिष में अंधविश्वास के रूप में लेते हैं .. पर इसका अर्थ यह नहीं कि ज्योतिष गलत है या ग्रहों का प्रभाव हमपर नहीं पडता है .. जिस प्रकार धर्म का सही स्वरूप आज खो गया है .. और धर्म की ऊंचाइयों पर बैठे लोग धर्म को सही ढंग से परिभाषित नहीं कर पा रहे .. उसी प्रकार ज्योतिष का सही स्वरूप भी खो गया है और ज्योतिष को सही ढंग से लोग परिभाषित नहीं कर पा रहे हैं .. इसका अर्थ यह नहीं कि ज्योतिष गलत है।
जवाब देंहटाएंआलेख विद्वतापूर्ण लगता है,एक बहस तो फिर से आप ने शुरू कर दी.
जवाब देंहटाएंअदभुद लेख्ननी है चतुर्वेदी जी की ,ऎसा प्रतीत हो रहा है कि हिन्दी मे "शब्दों" की रचना "अर्थो" से विलग की गयी है और वाक्य सृजन तथा विन्यास ही महत्वपूर्ण है चाहे उसका कोई अर्थ हो या नही । उपरी तौर पर स्तरीय लेख लगता है पर गहराई मे अनर्गल प्रतीत हो रहा है ।" अति-वास्तविकता " जैसे शब्द केवल व्याकरण से खिलवाड़ के अतिरिक्त कुछ भी नही है । लेख ने कहा बहुत कुछ है पर कह कुछ भी नही पाया ,ऎसा लग रहा है कि बस लिखने के लिये लिखा गया है । यह लेख "ज्योतिष का समाजशास्त्र " दर्शाने का प्रयास करता नजर आ रहा है जिसमे पूर्ण रूप से असफल है
जवाब देंहटाएंसत्येन्द्र जी से शतप्रतिशत सहमत ....
हटाएं-----पूरे आलेख में कोइ भी वास्तविक तथ्य या तत्व की बात नहीं है राजेताओं के वक्तव्य-भाषण जैसा आलेख है जिसका कोइ भी अर्थ नहीं निकलता | पाश्चात्य सत्ताएं एवं अज्ञान में भटके हुए भारतीय इसी प्रकार के अविवेकी अपने विषय से अज्ञानी तथाकथित पंडितों के शब्दजाल पूर्ण एवं तर्कहीन वक्तव्यों द्वारा भारतीय विद्याओं की आलचना करते रहे हैं|
आज बस इतना ही कहना चाहूँगा कि "अन्धे आगे रोये और अपने नैन खोये"...
जवाब देंहटाएंवैसे कहना तो बहुत कुछ चाहता था लेकिन फिर सोचा कि खामखा में विवाद खडा हो जाएगा....इसलिए जिसका कहा/लिखा आपको अपने मतलब का दिखाई दे..उसे पोस्ट बना बनाकर चेपते रहिए ।
शुभकामनाऎँ!!!
अब संगीता जी,चतुर्वेदी जी और भाई दिनेश शर्मा जी किसी नतीजे पर पहुंच जायें तो बता दीजियेगा फिलहाल हम अपना कमेन्ट रिजर्व रख रहे हैं !
जवाब देंहटाएंsahi likha hai .nice
जवाब देंहटाएंअब तक मैंने जितने भी ज्योतिषी देखा सब पाखंडी निकले------ .
जवाब देंहटाएं------कर्मण्ये वा------------कदाचन की बात तो स्वयम हमारे कृष्ण भगवान कह गये हैं ----यह केवल धूर्त विद्या है और कुछ नहीं .
ज्योतिष के नाम पर धंधा करने वलों से सावधान रहें--------
कोई ज्योतिषी दावे के साथ कोई भविष्य वाणी करले --नहीं कर सकता,सब पहाडा पढ़ाते है ---
हो गया तो वाह -नहीं हुआ तो आह----
आप भी तो गलत बाते लिखते है, जो हम चुपचाप सह लेते है, बादलो को बलेक होल बोलते हो... भाई मस्त रहो ओर दुसरो को भी मस्त रहने दो... यह टांग खींचना अच्छी बात नही, आप के भी आधे से ज्यादा लेख एक चुटकले से ज्यादा नही होते,
जवाब देंहटाएंक्या बात है भाटियाजी ..... ये विज्ञान विज्ञान चिल्लाते रहने वाले एक दिन भी तो सटीक भविष्यवाणी नहीं कर पाते ......सही बात यही है कि इन पोस्ट लिखने वालों को हाहिये कि बेकार में अपना समय बर्वाद न करें कुछ गुणात्मक कार्य करें ...मस्त रहें ...
हटाएं--- दुनिया में हर चीज़ हेड या टेल का ही खेल है....आदमी के बस का कुछ भी नहीं है ....न उसे आगत का ज्ञान होता है न हो सकता अतः विश्वासों, उदाहरणों, अनुभवों के आधार पर मानव कार्य करता है ..वही ज्योतिष है वही विज्ञान ...
---एक नया-नया आविष्कार है कि वैज्ञानिकों ने सनातन प्राचीन विश्वास कि काम-उत्तेजना में मनुष्य की मति मारी जाती है को सिद्ध किया है कि शरीर में कुछ केमीकल इस अवस्था में बनते हैं जिनके कारण यह होता है ...अब आप बताएं कि सामान्य व्यक्ति को इस व्यर्थ के ज्ञान से क्या मतलब कि कोइ केमीकल बनता है..उसे तो मूल तथ्य से मतलब जो पहले ही सब जानते हैं विज्ञान का इसमें क्या योगदान है? इसी प्रकार फलित ज्योतिष आदि है ...
---- जैसे गलत व धन्धेबाज़ डाक्टरों के कारण चिकित्सा जैसी उच्चतम व्यवस्था का पतन होरहा है वही ज्योतिष के साथ है ...
रजनीश जी ,आप ज्योतिष को छोडिये यही बताइए की विज्ञान कितना पढ़ा है और कैसे पढ़ा है ?डिग्रियां मत गिना दीजियेगा , बस यही बता दीजिये की क्या इसी तरह से विज्ञान के किसी बात को स्वीकार या अस्वीकार किया जाता है ?समाज पर उसके प्रभाव को देखकर? यह कोई सामाजिक लेख लग रहा है वैज्ञानिक तो बिल्कुल नहीं | आज कल की नई नई मशीने भी तो कमजोरों को सताने के लिए प्रयोग में ली जाती हैं तो क्या आप सिविल आभियांत्रिकी को ही झूठा कह देंगे ? या परमाणु बम से लाखों लोगों को मारा गया था तो क्या आप परमाणु विज्ञान को झूठा कह देंगे?
जवाब देंहटाएंजहाँ तक भविष्य वाणियों के झूठ या गलत निनालने का प्रश्न है तो आपको पहले मौसम विज्ञान,आर्थिक आकलन करने के विज्ञान को और चुनावों के परिणाम बताने वालों की निंदा करनी पड़ेगी क्यूंकि उनकी भविष्यवाणियाँ ज्यादा गलत सिद्ध हो रही हैं |
यदि आप अज्ञानी ज्योतिषियों और उनके कारण सामान्य जन को होने वाली समस्याओं के कारण इसको ढोंग बता रहे हैं तो आपको पहले चिकित्सा विज्ञान को ढोंग बताना पड़ेगा क्योंकी ज्योतिषियों से ज्यादा तो झोलाछाप डाक्टर हैं और उनके कारण रोज कई लोगों की म्रत्यु होती है |और कुछ लोग मानते अहिं की ज्योतिष सभी समस्याओं का केवल समाधान है और आप मानते हैं की यह कोई समाधान है ही नहीं
यह लेख पूर्वाग्रह से ग्रसित लगता है , वैज्ञानिक तो बिल्कुल ही नहीं |
और आप टिप्पड़ियों पर से नियंत्रण हटा ही दीजिये क्यूंकि पहेली पर से तो उत्तरों की नक़ल हो ही जाती है ऐसे लिखों पर सही से चर्चा नहीं हो पाती है
जवाब देंहटाएंनियंत्रण के बिना तार्किक एवं तथ्यपूर्ण टिप्पणियों को छापने से रोकेंगे कैसे ...किसी भी पोस्ट पर नियंत्रण का अर्थ ही यह है कि ब्लॉग-एडमिनिस्ट्रेटर सिर्फ अपनी-अपनी बकवास कहना चाहता है सुनना नहीं....
हटाएंआदरणीय राज भाटिया जी, आपकी बातें सर्वथा तथ्य से परे हैं। चुटकुले सुनाने का काम दूसरे लोगों ने संभाल रखा है, यह काम 'तस्लीम' नहीं करता। अगर आपकी नजर में सत्य को उदघाटित करना टांग खींचना है, तो वह काम हम करते रहेंगे। और कृपया यह बताने का कष्ट करें कि 'तस्लीम' में कौन सी बात गलत लिखी गयी है? इस तरह अनर्गल आरोप लगाना उचित नहीं है।
जवाब देंहटाएंडॉ. चतुर्वेदी ज्योतिष पढ़े हैं पर समझ नहीं पाए .
जवाब देंहटाएंज्ञान और विवेक में अंतर होता है जी....
हटाएंअंकित भाई, लग रहा है आप इस लेख को पढकर आवेश में आ गये? मेरी समझ से ऐसा नहीं होना चाहिए।
जवाब देंहटाएंज्योतिष के नाम पर दुनिया में कहीं भी जो कुछ हो रहा है, वह है उसका दुरूपयोग। उसके नाम पर लोगों को सिर्फ और सिर्फ बेवकूफ बनाया जा रहा है, इसलिए उसके बारे में लेख "तस्लीम" में प्रकाशित किये जाते हैं। और जहां तक मौसम विभाग की या चुनाव परिणाम बताने वालों की बात है, वह भी गलत साबित होते हैं यह सत्य है। लेकिन उससे किसी का कोई अहित नहीं होता है। वे किसी को ठगते नहीं हैं, वे किसी का पैसा भी नहीं लूटते हैं। अगर आपको लगता है कि वे गलत बोल रहे हैं, तो आप उनकी बात मत सुनिए, बात खत्म। ऐसे तो लाखों लोग गलत बोल रहे हैं, हम किस किसकी परवाह करता फिरें? यह ब्लॉग वैज्ञानिक जानकारियों।धारणाओं के प्रचार प्रसार और अंधविश्वास सम्बंधी बातों के सच को उजागर करने के लिए बनाया गया है, और वह अपना काम कर रहा है।
जहां तक चिकित्सा विज्ञान अथवा अन्य क्षेत्रों में व्याप्त कमियों को बताने की बात है, आप उसपर लिखिये, तस्लीम में उसे भी प्रकाशित किया जाएगा।
जहां तक टिप्पणियों की बात है, वह पहेली के कारण ही लगा है। बार-बार मॉडरेशन हटाना और लगाना संभव नहीं हो पाता, इसीलिए इसे हमेशा के लिए लगा दिया गया है।
---"उसके नाम पर लोगों को सिर्फ और सिर्फ बेवकूफ बनाया जा रहा है"-- यही तो सच में होना चाहिए, इसी पर डटे रहो बाकी सब भूल जाओ ...इससे ज्योतिष असत्य थोड़े ही हो जाती है
हटाएं----"लेकिन उससे किसी का कोई अहित नहीं होता है। वे किसी को ठगते नहीं हैं, वे किसी का पैसा भी नहीं लूटते हैं। अगर आपको लगता है कि वे गलत बोल रहे हैं, तो आप उनकी बात मत सुनिए, बात खत्म। "
--- किसने कहा कि वे लूट नहीं रहे हैं व्यर्थ में ही सफ़ेद हाथी बनाकर, विदशी उपकरण खरीदकर देश का/ पब्लिक का पैसा बरबाद कर रहे हें बेकार में ही तनखा भी ले रहे हैं...ज्योतिषी कम से कम सरकारी पैसा तो नहीं लूटते..
--- क्या यह दोहरा मापदंड नहीं..कि मत मानिए बात ख़त्म..यही बात तो ज्योतिष के लिए सत्य है ..मत मानिये.. पर ज्योतिष-विद्या थोड़े ही व्यर्थ होजाती है ..
--- मोडरेशन लगाना अवैज्ञानिक कृतित्व है...
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंSanjay Sharma ji, sahi kaha aapne! Jyotish ko wahi log samajh paaye hain, jo logo ko chootiya bana ke Rs. kama rahe hain!
जवाब देंहटाएंजी नहीं , भावावेश नहीं था, परन्तु आपकी धरना विज्ञानिक नहीं है | अगर कुछ दुरूपयोग हो भी रहा है तो वो केवल इसलिए की कुछ लोग ज्योतिष विज्ञान को मान्यता नहीं देते हैं और इसी के कारण इस क्षेत्र में शोध नहीं हो पारहे हैं | आपका यह कहना भी बिल्कुल गलत है की मौसम की गलत भविष्यवाणियों से ठगा नहीं जाता या नुकसान नहीं होता | शेयर मार्केट और वायदा कारोबार से लेकर खेती तक मौसम की भविष्य वाणियों पर आधारित होती है| और खरबों रुपयों का खर्च होता है इनके शोधों पर , अगर इसका दसवां हिस्सा भी ज्योतिष पर खर्च किया जाए तो परिणाम निकलेंगे और ज्यादा अच्छे निकलेंगे |
जवाब देंहटाएंपरन्तु सबसे बड़ी समस्या यह है की आप इसे ना तो विज्ञान मान रहे हैं और ना ही इसका वग्यानिक तरीकों से अध्ययन कर रहे हैं,आप केवल प्रभावों का अध्ययन कर रहे हैं |सभी विज्ञान की शाखाओं की तरह इसकी भी सीमायें हैं आपका अध्ययन केवल उन सीमाओं के बहार ही हो रहा है अन्दर तो हो ही नहीं रहा है |
मुझे किसी भी विज्ञान की निंदा नहीं करनी है , हम तो केवल यही कह रहे थे की अगर सीमाओं के बाहर की बात की जाये तो सभी विज्ञान झूठ ही लगेंगे ये भी तो देखिये की किती भविष्य वाणियाँ ठीक होती हैं, और अगर इसका विकास हो तो एक जन सामान्य की इसका कितन लाभ होगा |
और यह खर्चीला भी तो नहीं है |
सही कहा अंकित....
हटाएंसटीक तर्क दिया है अंकित ने , रजनीश जी से इसके प्रतिउत्तर की अपेक्षा है .....
जवाब देंहटाएंअंकित भाई, किसी भी क्षेत्र में शोध कौन करता है? जिसमें उसकी रूचि होती है। अगर ज्योतिषियों को लगता है कि यह विज्ञान है, तो फिर उन्हें ही इसके लिए आगे आना होगा। लेकिन जब लोगों को बेवकूफ बनाकर जेब गरम हो रही है, तो फिर शोध की जरूरत उन्हें कहां रह जाती है? उनका तो काम चल ही रहा है। हाँ, उसकी वजह से लोग ठगे जाते हैं, तो ठगते रहें। उनकी बला से।
जवाब देंहटाएंरजनीश जी की बात मे भी दम है अब देखना है इस गम्भीर एवं तार्किक बहस (स्वस्थ ) मे अंकित क्या तर्क रखते हैं
जवाब देंहटाएं----क्या अतार्किक तथ्य है...जो जिस विज्ञान को सदियों से प्रयोग कर रहा है वह क्यों उसे सिद्ध करने हेतु शोध करे, उसे क्या आवश्यकता , ....जिसे उससे परेशानी है वह शोध करके उसे असत्य सिद्ध करे...
हटाएं---शोध रूचि के लिए नहीं 'आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है' ..यह बात हाई-स्कूल का छात्र भी जानता होगा जी ..
---ज्योतिषी लोग भी स्वतः ही देश-काल के अनुसार व्यवहारिक शोध करके अपने फलित विज्ञान को परिवर्तित करते रहते हैं..जैसे चन्द्रमा किसी गलत स्थान पर होने से हानि होने का अर्थ ..पाषाण युग में शिकार न मिल पाना होगा तो, त्रेता में राज्य-हानि ,कलयुग में दुकान न चलना , आज के युग में नौकरी चले जाना , व्यापारी को व्यापार में हानि होना , अफसर को प्रोमोशन न मिलना, चपरासी को अफसर की नाराजगी आदि...
भाटिया जी, यह बहस की बात नहीं है। यह फोटो जानबूझ कर लगाया गया था। और यह सिर्फ एक पहेली थी, जो सांकेतिक रूप से ओजोन के छोटे हाते छिद्र के बारे में जानकारी के लिए पूछी गयी थी। इस बारे में पहले भी सब कुछ कहा जा चुका है। इसलिए इप पहेली के बहाने आप यह नहीं कह सकते कि तस्लीम में गलत सामग्री प्रकाशित होती है।
जवाब देंहटाएं@ सत्येन्द्र जी ये बहस नहीं विचार विमर्श है
जवाब देंहटाएंजी रजनीश जी , सही कहा आपने वास्तव में शोध तो केवल ज्योतिषियों को ही करना होगा परन्तु भूखे पेटों से शोध करना कुछ कठिन होता है और मुझे तो नहीं लगता की कोई भी विज्ञान सरकारी सहायता के बिना शोध कार रहा होगा |
और हाँ यह भी एक भ्रम है की शोध नहीं हो रहा , यह हो रहा है परन्तु इसकी गति धीमी है |
हम आशा करते हैं की भविष्य में यह विज्ञान भी पर्याप्त प्रगति कर लेगा और और जनसामान्य के लिए एक लाभ का कारण बनेगा |
नेति नेति ......
हम चुप रहते है तो यह मतलब नही कि हम आप की बातो से सहमत है, लेकिन अगर आप सच मै अंधविशवास को मिटाना चाहते है, ओर आप की नीयत सच मै नेक है तो ..... फ़िर आप से कभी बहस जरुर होगी.... लेकिन आज कल मेरे पास समय नही, लेकिन तेयार रहियेगा.
जवाब देंहटाएंसलाम
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंचतुर्वेदी जी का आलेख,तथ्यों से परे एक घुमावदार लेख है जो ज्योतिष को बदनाम करता है. यह बात सच है कि ज्योतिष के नाम पर नीम-हकीम बहुत पैदा हो गए है और वे आधी किताब पढकर पूरा ज्योतिषी बन जाते है. बेरोजगारी की समस्या भी इसका एक कारण है. इस बारे में मेरे दो ही मत है जो ठोस है आप सभी भी सहमत हो सकते है या नही भी. (1)- ज्योतिष एक शास्त्र है जो वैज्ञानिक गणनाओं पर आधारित है. यह कोई मूर्ख बनाने का साधन नही है. किन्तु यह भी सत्यं है कि सही ज्योतिष कुछ चंद विद्वान ही जानते है, बाकी सब अपनी दुकान चला रहे है. (2)- हम रिश्वत देते है तो लोग लेते है. इसी तरह हम ख़ुद ही मूर्ख बनने ज्योतिषी के पास जाते है तो मूर्ख बनाए जाते है.
जवाब देंहटाएं