भले ही विज्ञान ने आज बहुत तरक्की कर ली हो, पर धरती के बारे में बहुत से ऐसे सवाल हैं, जिनके सटीक जवाब अभी नहीं मिल पाए हैं। ऐसा ही एक सवाल है...
भले ही विज्ञान ने आज बहुत तरक्की कर ली हो, पर धरती के बारे में बहुत से ऐसे सवाल हैं, जिनके सटीक जवाब अभी नहीं मिल पाए हैं। ऐसा ही एक सवाल है कि पृथ्वी की रचना कैसे हुई?
वैसे पृथ्वी की उत्पत्ति के सम्बंध में अनेक सिद्धांत प्रचलित हैं। उनमें से सबसे प्राचीन सिद्धान्त 1755 में जर्मन विचारक इमैन्यूल कैंट ने प्रस्तुत किया था। यह सिद्धांत ‘निहारिका परिकल्पना’ अर्थात ‘नेबुला हायपोथिसिस’ के नाम से जाना जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार ग्रहों का निर्माण बादलों के गुरूत्व के प्रभाव के कारण उनमें उपस्थित पदार्थों के आपस में टकराने से हुआ। यह ग्रह अपने निर्माण के बाद से ही चपटी प्लेटों के आकार में चक्कर लगाने लगे थे। बाद में इन प्लेटों के विखण्डन से सूर्य और अन्य ग्रह बने।
एक दूसरा सिद्धांत सन 1900 में अमेरिका के खगोल वैज्ञानिक फारेस्ट रे मोउल्टन और भूवैज्ञानिक थाॅमस श्र्वोडर चैम्बरलीन तथा ब्रिटेन के सर जेम्स जींस एवं सर हैरोल्ड जैफरी ने दिया। इस सिद्धांत में यह माना गया है कि जब सूर्य से दस गुना बड़ा तारा सूर्य के पास से गुजरा, तो सूर्य का काफी द्रव्यमान उसके बाहर आ गया। यह पदार्थ सिगार के आकार का था, जो बाद में सूर्य के आसपास चक्कर लगाने लगा। धीरे-धीरे उस पदार्थ में विखण्डन होते चले गये और इस प्रकार ग्रहों का निर्माण हुआ। इसी प्रकार से और भी कई सिद्धांत हैं, जो समय-समय पर वैज्ञानिकों ने प्रस्तुत किये हैं।
वैज्ञानिकों का मत है कि जब पृथ्वी का जन्म हुआ था, तब न यहां महासागर थे और न ही वायुमण्डल में आक्सीजन ही थी। उस समय पृथ्वी पर लगातार चट्टाने बरसती रहती थीं। इस बमबारी में पृथ्वी के रेडियोसक्रिय क्षय से उत्पन्न ताप और संकुचन के दबाव से पृथ्वी बहुत गर्म और पिघली अवस्था में थी। लेकिन बाद में धीरे-धीरे भारी पदार्थ पृथ्वी के केन्द्र के पास जमा होते गये और हल्के पदार्थ ऊपरी सतह पर आ गये, जो पृथ्वी की पर्ताे के रूप में जमते चले गये। बाद में फिर करोणों वर्षों के बाद धीरे-धीरे तापमान सामान्य होता गया और एक कोशकीय जीव का जन्म हुआ।
यद्यपि पहले जीव के प्रकट होने का वास्तविक समय एकदम सही ज्ञात नहीं किया जा सका है, लेकिन फिर भी वैज्ञानिकों का यह मानना है कि लगभग साढ़े तीन अरब वर्ष पहले बैक्टीरिया जैसे जीवों का विकास हुआ था। वैज्ञानिकों के एक दल का यह भी अनुमान है कि लगभग चार अरब वर्ष पहले जब धरती की पहली ठोस पर्त का निर्माण हुआ होगा, तब भी जीवन किसी रूप में मौजूद रहा होगा। लेकिन यह सब एक परिकल्पना ही है। अभी भी इस बारे में कुछ भी दावे से नहीं कहा जा सकता है।
चाहे धरती पर एक कोशकीय जीव अमीबा के जन्म की कहानी हो, चाहे डायनासोर के युग का इतिहास हो और चाहे उसके बाद धरती पर पैदा हुए विशाल मैमथों की दास्तान, सब कुछ इतना रोचक और रोमांचक है कि मनुष्य उसे जानने के लिए लगातार प्रयासरत रहता है। और इसी प्रयास का नतीजा का है कि लगातार बहुत ही ऐसी रोचक और आश्चर्यजनक जानकारियां हमें मिलती रहती हैं, जो दांतों के नीचे उंगली दबाने को मजबूर कर देती हैं।
ऐसी ही तमाम अनकही दास्तानों और खोजों को लेकर हमारे सामने आए हैं बिमान बसु, ‘पृथ्वी ग्रहः एक झरोखा‘ के रूप में। श्री बिमान बसु सी0एस0आई0आर0 की प्रसिद्ध विज्ञान पत्रिका ‘साइंस रिपोर्टर‘ के पूर्व संपादक रहे हैं और लगभग तीन दशकों से विज्ञान लेखन से जुड़े रहे हैं। श्री बसु ने इस पुस्तक में पृथ्वी की कई युगों की विकास यात्रा से लेकर पृथ्वी के जैव मण्डल व प्राकृतिक संसाधनों पर मानवीय प्रभाव एवं पृथ्वी की पारिस्थितिकी के ह्रास पर रोक लगाते हुए प्राकृतिक व मानवीय ज्ञान के सकारात्मक उपयोग पर विचार व्यक्त किये हैं।
‘अन्तर्राष्ट्रीय पृथ्वी ग्रह वर्ष-2008’ के उपलक्ष्य में ‘विज्ञान प्रसार’ द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक न सिर्फ पृथ्वी को जानने और समझने बल्कि उसके रोचक इतिहास से रूबरू होने के सुनहरे अवसर के समान है। पुस्तक बेहद सरल और रूचिकर ढ़ंग से लिखी गयी है और उसमें प्रयुक्त सुंदर चित्र उसमें चार चांद लगाने का काम करते हैं। इस महत्वपूर्ण पुस्तक के प्रकाशन के लिए विज्ञान प्रसार की जितनी प्रशंसा की जाए, कम है।
पुस्तक- 'पृथ्वी ग्रहः एक झरोखा'
लेखक- बिमान बसु
अनुवादक- अभय एस0डी0 राजपूत
प्रकाशक- विज्ञान प्रसार, ए-50, इंस्टीटयूशनल एरिया, सेक्टर-62, नोएडा-201307 फोन- 0120-2404430/35
मूल्य- 90 रूपये।
धन्यवाद इस जानकारी के लिये।
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंज़ाकिर भाई ब्रम्हांड और सृजन के विषय में सुनना /पढना/जानना हमेशा ही सम्मोहनकारी होता है! विज्ञानं को अभी लम्बा रास्ता तय करना होगा ऐसे सवालों के परफेक्ट जबाब देने के लिए !
जवाब देंहटाएंइसलिए ऐसी किताबें पढना रुचिकर तो है !लेकिन इनका अंत भयंकर निराशाभरा और दुखदाई लगता है ! मेरे कहने का मतलब ये है की जिस 'सवाल' पर कथा शुरू की वो अंत में भी 'सवाल'ही बना रहता है! ये तो सभी जानते हैं, की ज्ञान के अनंत विस्तार के आगे विज्ञानं का शैशव इसका मुख्य कारण है !
सच कहूं तो अब तो नासा की विज्ञप्तियों से भी दिल नहीं भरता !
जैसा की मैंने पहले ही कहा की यह विषय सम्मोहनकारी है तो लेखक की मेंहनत के लिए आभार !
कोई बताए आखिर कैसे धरती मां का जन्म हुआ?
जवाब देंहटाएंजब आप ने ही बता दिया तो सवाल कैसा??
कभी मौका मिला तो जरुर पढ़ेंगे.
जवाब देंहटाएंRochak kitab hai.
जवाब देंहटाएंपुस्तक परिचय का आभार !
जवाब देंहटाएंमुझे धरती के बारे मेँ जानकर बहुत खुशी हुई है । ! धन्यवाद !
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