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जवाब देंहटाएंयह सत्य नहीं है कि इस घटना (बलात्कार) का प्रभाव अरूणा के दिलो दिमाग पर ऐसा पड़ा कि वह कोमा में चली गयी।
जवाब देंहटाएंतथ्य यह है कि कोमा में जाने का कारण था बलात्कार के दौरान अरूणा के गले में लपेटे जाने वाली कुत्ते बांधने वाली चेन के कसा जाने से मस्तिष्क में रक्त प्रवाह का रूक जाना
हालांकि पूरा घटनाक्रम बेहद क्षोभजनक है किन्तु कोमा में जाने का चिकित्सकीय कारण यही है
१. मौत की सजा भी कम है. उसे मारना फिर जिलाना फिर मारना चाहिए.
जवाब देंहटाएं२. नहीं. यहाँ एक बात और कहनी है. आज के हिंदुस्तान टाइम्स (दिल्ली) में यह खबर अन्दर के पन्नों पर है. लिखा है की अरुणा का मामला थोडा अलग है. वह जिंदा लाश नहीं है. "she is aware fo her surroundings, smiles when she sees a familiar face and enjoys listening to Lord Krishna's Bhajans," according to a senior doctor at KEM Hospital. "She can't speak or move but she is normal. She should be allowed to live," said the doctor who visits Shanbaug every day. "No one has the moral right to end a life. I hope the Supreme Court takes a pro-life decision," said KEM Hospital Dean, Dr. Sanjay Oak. "She is fed by a spoon, not a tube, and she is not on any medication or oxygen" said the senior doctor.
३. ज़रूर बनाना चाहिए. लेकिन कई मामलों में राज्य खुद अपने लोगों को असहनीय पीड़ा और लाइलाज बीमारियां देने के लिए जिम्मेवार होता है. और इसके पीछे ज़िम्मेदार लोगों को भी सजा होनी चाहिए. अगर ऐसा हुआ तो किसी भी मायावती को मानवाधिकार हनन के मामले में मुकदमे का सामना करना होगा.
४. हाँ है. हम कभी नहीं जानते की कब विज्ञान क्या कर दे.
मैं किसी भी स्थिति में इच्छामृत्यु के खिलाफ़ हूँ. क्यूंकि यह छद्म आत्महत्या है.
जवाब देंहटाएंआत्महत्या भी इन्सान तभी करता है जब वह अपनी परिस्थियों से बेहद परेशान हो जाता है और उसे कोई रास्ता नहीं सूझता, लेकिन हम सब जानते हैं कि वह वक्ती जज़्बात होता है और अगर कोई वह झेल जाता है तो आगे नया रास्ता उसका इंतज़ार कर रहा होता है. इसी तरह से शारीरिक परेशानी भी होती है.
सलेम खान
लोकेश जी, सही वस्तुस्थिति से अवगत कराने के लिए शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंआप ने तथ्यों के साथ कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाये हैं....समस्या केवल अरुणा की लगती है.....पर वास्तव में समस्या बलात्कार की भी है...जो कि किसी स्वस्थ समाज की निशानी नहीं हो सकता....ज़ाहिर है की जिस समाज में हम रहते हैं, जिसे हम बहुत महान और धर्म कर्म वाला कहते हैं,उसका गुण गान करते हैं....उसमें अभी भी इस तरह की शर्मनाक बातें होती हैं....समाज और सरकार दोनों को ही इसका हल सोचना होगा......इसके साथ ही अब यह भी ज़रूरी लगता है कि देश विदेश में सक्रिय सभी चिकत्सा प्रणालियों के वरिष्ठ लोग इस का लिखित फैसला करें कि क्या अब सचमुच ही अरुणा की बाकी की ज़िन्दगी इसी तरह कटने वाली है.....क्या अब सचमुच उसका कोई इलाज नहीं....आज भी बहुत से बाबा और वैद हकीम तरह तरह के करिश्मों का दावा अक्सर करते हैं....सवाल सिर्फ अरुणा की जिंदगी का नहीं........इसके हल से बहुत सी और बातें भी जुडी हुयी हैं जो इस वक्त सभी को साफ़ साफ़ नज़र नहीं आ सकती...इस मुद्दे पर आप की तरह कुछ और जागरूक लोग भी स्वस्थ बहस के लिए आगे आ सकें तो और भी अच्छा हो....कुल मिला कर आप की रचना, आप का प्रयास प्रशंसा का पात्र है और कहते हैं न....
जवाब देंहटाएंदिल से जो बात निकलती है असर रखती है,
पर नहीं ताकते परवाज़ मगर रखती है!.....
अब देखना है कि इस का असर कितनी जल्दी होता है...!
अव्वल तो ये की कोई नया कानून बनने की सम्भावना दूर दूर तक नहीं है और यदि हो भी जाये तो उसके बनने से पहले पीडिता मुक्ति पा चुकी होगी !
जवाब देंहटाएंये देश ऐसा ही है !
१- धारा ३७६ के अपराध मे आजीवन या दस साल की सजा का प्रावधान है लेकिन परिस्थितियों के मद्देनज़र कमी कर दी जाती है
जवाब देंहटाएं२-आवेदन परिजन द्वारा दिया गया है इसलिये नहे
३- असहनीय पीड़ा झेलरहे और ला इलाज को इच्छाम्रत्यु का अधिकार मिलना चाहिये मगर लाइलाज का भी चिकित्सक अन्तिम सांस तक इलाज करते है ।
४- इसके लिये क्रिपया मुन्नाभाई एम बी बीएस फ़िल्म का अवलोकन करे
बलात्कार के अलावा एक अपराध और हुआ था। गला घोंटने का जिस के कारण महिला कोमा में गई। इस अपराध का विचारण ठीक से न हुआ। क्या इसे मृत्यु के समान माना जा कर अपराधी को इस के लिए अलग से सजा दी जा सकती है?
जवाब देंहटाएंयह मामला इच्छा मृत्यु की नहीं है। महिला केवल कृत्रिम उपायों से कोमा की अवस्था में जीवित है। उसे दिए जा रहे कृत्रिम उपाय क्या जरूरी हैं जब कि चिकित्सकीय तरीकों से किसी सुधार की कोई आशा न हो तो क्या उन्हें हटा लेना इच्छा मृत्यु है? यह स्वाभाविक मृत्यु को टालना भर नहीं है क्या?
क्या यह रोज नहीं हो रहा है क्या कि रोगी के स्वस्थ होने की संभावना समाप्त होने पर चिकित्सक उसे घर ले जा कर अपने परंपरागत तरीके से उस की सेवा करने की सलाह देते हैं, जब कि वे जानते हैं कि इस तरह शीघ्र मृत्यु हो जाएगी। लोग उस सलाह का अनुसरण करते हैं। इस तरह की सलाह देना क्या अपराध की श्रेणी में आता है?
यह भी कि निश्चित रूप से मरते हुए व्यक्ति को चिकित्सक अस्पताल में जबरन जीवित रखते हैं जब तक कि उस व्यक्ति के परिजनों में अस्पताल का खर्च भुगतने की क्षमता शेष रहती है या वह पूरी तरह कंगाल और कर्जदार नहीं हो जाता। क्या यह भी अपराध नहीं है? ये बहुत से प्रश्न हैं जिन के उत्तर विधिशास्त्र को खोजने हैं।
दर-असल हमारे पूरे समाज को एक बड़े आपरेशन की जरूरत है, बल्कि समाज क्या देश कहिये. या तो मरीज बचेगा या फिर मर ही जायेगा. कम से कम इस घुट घुट कर मरने से तो बेहतर होगा. अभी एक खबर पढी थी कि एक बलात्कार की शिकार महिला ने इसलिये आत्महत्या कर ली कि जो प्रश्न उससे पूछे गये और जिस तरह से भरी अदालत में पूछे गये उन्होंने उसे और भी प्रताडित कर दिया. पहले तो भारत में पुलिस के पास जाने की हिम्मत पुरुषों में ही नहीं होती, महिलाओं की तो बात ही मत कीजिये. दूसरा यह कि आई ओ केस की ऐसी तैसी करने में पूर्ण सक्षम होता है यदि सामने वाला दबंग है तो फिर महिला के साथ हर जगह बलात्कार सा ही होने लगता है. रही बची कसर वकील पूरी कर देते हैं. घूम फिर कर वही बात कि जिनके कन्धों पर बड़ी जिम्मेदारी है वे कान में तेल डालकर बैठे हैं, नीचे जो वास्तव में सही काम करने वाला है, उसे कुछ करने नहीं दिया जाता. समरथ को नहिं दोष गुसांई चरितार्थ करते हैं. नैतिकता गई भाड़ में. जब तक बलात्कारियों को भरे चौराहे पर पत्थर मार कर मारा नहीं जायेगा स्थिति में सुधार नहीं आयेगा. और हमारे जैसे लोकतन्त्र में जहां ऊपर से नीचे तक और हर जगह हर स्तर पर भ्रष्टाचार हो कुछ नहीं हो सकता.
जवाब देंहटाएंVicharneey mudda hai.
जवाब देंहटाएंयह केस हमारे समाज के बारे में बहुत से सवाल छोड़ता है. फिर भी अभी सिर्फ आपके सवाल:
जवाब देंहटाएं1 क्या बलात्कारी के लिए 7 साल की सज़ा काफी है? अथवा उसे मृत्युदण्ड दिया जाना चाहिए?
उसे आजीवन कारावास दिया जाए और उस दौरान और उसके बाद भी पीडिता की देखभाल की तन-मन-धन से उम्र भर ज़िम्मेदारी उठाने का दंड/अवसर मिले.
2 क्या कोमा में पड़ी अरूणा को मरने का अधिकार मिलना चाहिए?
अधिकार? मानव-ह्त्या को अधिकार किस जुबां में कहा जाता है? अरुणा ने किस्से और कब यह अधिकार(?) माँगा है?
3 क्या हमारे समाज में असहनीय पीड़ा और लाइलाज बीमारियों से ग्रस्त लोगों को इच्छा मृत्यु प्राप्त करने के लिए कानून बनाया जाना चाहिए?
ताकि अपराधियों का काम और आसान हो जाए और ह्त्या की जगह हर तरफ धडाधड इच्छा-मृत्यु होने लगें? डॉक्टर डेथ का नाम सुना है?
4 और क्या जिंदा लाश बन चुके लोगों पर समाज के कीमती और महत्वपूर्ण संसाधन खर्च करना उचित है?
संसाधनों की तुलना मानव जीवन से? वाह भई वाह! संसाधन जीवन-स्तर सुधारने के लिए होते हैं इसका उलट सोचना ही आसुरी कहलाता है.
अरुणा की दास्ताँ बहुत ही दर्दनाक है, दरअसल अपराधी को "attempt to murder" और चोरी के जुर्म में सजा हुई है, ना कि बलात्कार के लिए, अब ऐसा क्यों हुआ, ये मुझे नहीं पता, क्या कोर्ट नहीं मानता कि बलात्कार हुआ है ? अरुणा की हालत की वजह वही है जो लोकेश ने बताई, मगर मुझे ये बताएं कि जो अपराधी ने किया क्या वो हत्या के समतुल्य नहीं है ? अपराधी आज भी कहीं चैन से जी रहा होगा....अरुणा के सन्दर्भ में एक और पक्ष भी है, अरुणा जिस अस्पताल के वार्ड में सालों से कैद है, वहां के नर्सों की पूरी टीम लौट लौट कर उनके पास आती है, एक ऐसा रिश्ता है उनके साथ जिसें सभी नर्सों को एक सूत्र में बाँधा हुआ है, कुछ तो है उनके व्यक्तित्व में ऐसा जो इस अवस्था में भी उन्हें एक सुंगंधित फूल का दर्जा दे रहा है, मुझे लगता है कि उनका जीवन महत्वपुर्ण है, और उन्हें दूसरों की प्रेरणा बन कर जब तक जीवन है जीवित रहना चाहिए."इच्छा मृत्यु" का अधिकार किसी को मिलना चाहिए या नहीं, इस विषय पर मेरी राय है- ये व्यक्ति व्यक्ति की अवस्था पर निर्भर करती है, यदि अरुणा को इस अवस्था में ये महसूस होता है कि उनके इस तरह जीवित रहने से उनका आत्मसम्मान आहत होता है, तो उन्हें मृत्यु का अधिकार देना चाहिए.... हर व्यक्ति को सम्मान के साथ सर उठा कर जीने का अधिकार होता है....खैर ये विषय एक लम्बी बहस की मांग करता है,
जवाब देंहटाएंअरुणा की दास्ताँ बहुत ही दर्दनाक है, दरअसल अपराधी को "attempt to murder" और चोरी के जुर्म में सजा हुई है, ना कि बलात्कार के लिए, अब ऐसा क्यों हुआ, ये मुझे नहीं पता, क्या कोर्ट नहीं मानता कि बलात्कार हुआ है ? अरुणा की हालत की वजह वही है जो लोकेश ने बताई, मगर मुझे ये बताएं कि जो अपराधी ने किया क्या वो हत्या के समतुल्य नहीं है ? अपराधी आज भी कहीं चैन से जी रहा होगा....अरुणा के सन्दर्भ में एक और पक्ष भी है, अरुणा जिस अस्पताल के वार्ड में सालों से कैद है, वहां के नर्सों की पूरी टीम लौट लौट कर उनके पास आती है, एक ऐसा रिश्ता है उनके साथ जिसें सभी नर्सों को एक सूत्र में बाँधा हुआ है, कुछ तो है उनके व्यक्तित्व में ऐसा जो इस अवस्था में भी उन्हें एक सुंगंधित फूल का दर्जा दे रहा है, मुझे लगता है कि उनका जीवन महत्वपुर्ण है, और उन्हें दूसरों की प्रेरणा बन कर जब तक जीवन है जीवित रहना चाहिए."इच्छा मृत्यु" का अधिकार किसी को मिलना चाहिए या नहीं, इस विषय पर मेरी राय है- ये व्यक्ति व्यक्ति की अवस्था पर निर्भर करती है, यदि अरुणा को इस अवस्था में ये महसूस होता है कि उनके इस तरह जीवित रहने से उनका आत्मसम्मान आहत होता है, तो उन्हें मृत्यु का अधिकार देना चाहिए.... हर व्यक्ति को सम्मान के साथ सर उठा कर जीने का अधिकार होता है....खैर ये विषय एक लम्बी बहस की मांग करता है,
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