हम कहने को इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं, जहाँ पर विज्ञान ने वे सारी सुख सुविधाएँ उपलब्ध कराई हैं, जो प्राचीन काल में लोग सपने में सोचा ...
हम कहने को इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं, जहाँ पर विज्ञान ने वे सारी सुख सुविधाएँ उपलब्ध कराई हैं, जो प्राचीन काल में लोग सपने में सोचा करते थे। लेकिन इसके बावजूद लोग ज्योतिष के नाम पर वह सब करते हैं, जो किसी भी कोण से तार्किक नहीं होता। आप किस भी ज्योतिषी के पास जाइए, वह आपका कोई न कोई ग्रह कमजोर बता देगा। फिर आप उसे कुछ दक्षिणा दीजिए, तो वो उपाय भी बता देगा कि आप गाय को रोटी खिलाइए, पीपल के पेड़ की पूजा कीजिए, शनिवार के दिन तेल का दान दीजिए, इससे आपके ग्रह शान्त हो जाएँगे। इसी तरह मा0 संगीता जी भी आजकल ब्लॉगर्स का कल्याण कर रही हैं। वे अपने ब्लॉग पर लिखती हैं- “जातक का शुक्र कमजोर हो तो उनके लिए कन्याओं के विवाह में सहयोग करना अच्छा रहेगा। सूर्य कमजोर हो तो प्राकृतिक आपदाओं में पड़नेवालों की मदद की जा सकती है।”
ज्योतिषी जी किसी भी तरह की जो ऊल-जलूल बात कह दें, हम पढ़े लिखे सभ्य लोग उनकी बातों पर आँख मूंद कर विश्वास कर लेते हैं। किसी भी व्यक्ति के मन में एक बार भी यह सवाल नहीं आता कि भइया लड़कियों का विवाह कराने से शुक्र ग्रह का क्या मतलब है। माना कि गाय को रोटी खिलाना, पीपल के पेड़ की पूजा करना, लड़कियों की शादी कराना अच्छा काम है, पर इन कामों से ग्रहों का क्या सम्बंध हैं?
हमने माना कि गाय एक महत्वपूर्ण पशु है, उसका दूध हमारे लिए बहुत उपयोगी होता है, हिन्दू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है। इसलिए हम उसे एक क्या दो रोटी रोज खिला सकते हैं। हमने माना कि पीपल का पेड़ अधिक मात्रा में आक्सीजन उत्सर्जित करता है, इसलिए उसकी पूजा करने से यह संदेश जाएगा कि वह पवित्र है और लोग स्वार्थ में अंधे होकर उसे काटेंगे नहीं। हमने यह भी माना कि हमारे समाज में लड़कियों की शादी आज भी किसी सरदर्द से कम नहीं होती है। अच्छे खासे सम्पन्न लोगों को भी योग्य लड़का पाने के लिए नाकों चने चबाने पड़ते हैं। ऐसे में उनकी मदद करके आप मानवता की सेवा करेंगे।
लेकिन इन सब कामों से बुध, शुक्र, शनि देवता कैसे प्रसन्न हो जाएँगे, यह हमारी ही नहीं किसी भी व्यक्ति की समझ से परे है, इसका कोई तर्क नहीं है। मा0 संगीता जी, अगर आप बता रही हैं कि कन्याओं की शादी कराने से शुक्र देवता प्रसन्न होते हैं, तो कृपया यह भी बताइए कि वे क्यों प्रसन्न हो जाएंगे। अगर आपके पास इस बात का सटीक जवाब नहीं है, तो फिर इस तरह की अतार्किक बातों के द्वारा लोगों को अंधविश्वासी मत बनाइए। अंधविश्वास हमारे समाज के लिए बहुत नुकसानदायक है। इसके चक्कर में लोग अपनी धन-दौलत, मान-सम्मान ही नहीं जिंदगी तक खो देते हैं। और कुछ पाने की उम्मीद की तुलना में कुछ खोना ज्यादा पीड़ादायक होता है।
पता नहीं आप ये सब याद रखती हैं अथवा नहीं, पर मैं आपको बताना चाहूँगा कि इस अंधविश्वास के चक्कर में किसी ने कुछ पाया हो, इसका कोई ठोस प्रमाण किसी के पास नहीं है, लेकिन इन तमाम चक्करों ने लोगों ने बहुत कुछ खोया है, इसके एक नहीं हज़ारों प्रमाण हैं।
ज्योतिषी जी किसी भी तरह की जो ऊल-जलूल बात कह दें, हम पढ़े लिखे सभ्य लोग उनकी बातों पर आँख मूंद कर विश्वास कर लेते हैं। किसी भी व्यक्ति के मन में एक बार भी यह सवाल नहीं आता कि भइया लड़कियों का विवाह कराने से शुक्र ग्रह का क्या मतलब है। माना कि गाय को रोटी खिलाना, पीपल के पेड़ की पूजा करना, लड़कियों की शादी कराना अच्छा काम है, पर इन कामों से ग्रहों का क्या सम्बंध हैं?
हमने माना कि गाय एक महत्वपूर्ण पशु है, उसका दूध हमारे लिए बहुत उपयोगी होता है, हिन्दू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है। इसलिए हम उसे एक क्या दो रोटी रोज खिला सकते हैं। हमने माना कि पीपल का पेड़ अधिक मात्रा में आक्सीजन उत्सर्जित करता है, इसलिए उसकी पूजा करने से यह संदेश जाएगा कि वह पवित्र है और लोग स्वार्थ में अंधे होकर उसे काटेंगे नहीं। हमने यह भी माना कि हमारे समाज में लड़कियों की शादी आज भी किसी सरदर्द से कम नहीं होती है। अच्छे खासे सम्पन्न लोगों को भी योग्य लड़का पाने के लिए नाकों चने चबाने पड़ते हैं। ऐसे में उनकी मदद करके आप मानवता की सेवा करेंगे।
लेकिन इन सब कामों से बुध, शुक्र, शनि देवता कैसे प्रसन्न हो जाएँगे, यह हमारी ही नहीं किसी भी व्यक्ति की समझ से परे है, इसका कोई तर्क नहीं है। मा0 संगीता जी, अगर आप बता रही हैं कि कन्याओं की शादी कराने से शुक्र देवता प्रसन्न होते हैं, तो कृपया यह भी बताइए कि वे क्यों प्रसन्न हो जाएंगे। अगर आपके पास इस बात का सटीक जवाब नहीं है, तो फिर इस तरह की अतार्किक बातों के द्वारा लोगों को अंधविश्वासी मत बनाइए। अंधविश्वास हमारे समाज के लिए बहुत नुकसानदायक है। इसके चक्कर में लोग अपनी धन-दौलत, मान-सम्मान ही नहीं जिंदगी तक खो देते हैं। और कुछ पाने की उम्मीद की तुलना में कुछ खोना ज्यादा पीड़ादायक होता है।
पता नहीं आप ये सब याद रखती हैं अथवा नहीं, पर मैं आपको बताना चाहूँगा कि इस अंधविश्वास के चक्कर में किसी ने कुछ पाया हो, इसका कोई ठोस प्रमाण किसी के पास नहीं है, लेकिन इन तमाम चक्करों ने लोगों ने बहुत कुछ खोया है, इसके एक नहीं हज़ारों प्रमाण हैं।
रजनीश जी , मै आपकी बात से बिलकुल सहमत हूँ ... जैसे जैसे हम पढ़ लिख कर तरक्की कर रहे हैं , इन सब बातों में विशवास बढ़ाते जा रहे हैं ... पिछड़े लोगों की तो बात ही क्या करें ...हमारे पूर्वजों ने कुछ बातों के लिए जैसे कि आपने कहा पीपल की पूजा करना , इसीलिए बताया कि लोग इसे न काटें , ऐसे ही कैंची खाली मत चलाओ नहीं तो झगडा हो जायेगा ..इसीलिए कि उससे बच्चे अपने चोट न लगा लें ...ऐसे उद्हारनो से हमारा जीवन भरा पड़ा है ...जरूरत है इनके पीछे छिपे तथ्यों को समझने की न कि आँख मूँद कर उन्हें मानने की ....
जवाब देंहटाएंजाकिर भाई, ये कुंडली में बैठे बुध, बृहस्पति, शुक्र आदि ग्रह जो केवल जन्म समय पर अंतरिक्ष में पृथ्वी के सापेक्ष उन का स्थान बताते हैं कैसे किसी व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करते हैं, या कि कुछ करने से वे कैसे प्रसन्न या अप्रसन्न हो जाते हैं? यह कदापि न पूछिए, बस मान लीजिए। यह भी मान लीजिए यह सब विज्ञान है। जब लोग अंधविश्वासों में डूबे हों तब तर्क की कहाँ आवश्यकता है।
जवाब देंहटाएंरजनीश जी, विनय पूर्वक अपनी आपत्ति दर्ज करना चाहूंगी...
जवाब देंहटाएंआपके पास जो ज्ञान है,आपके जो भी अनुभव रहे हैं और उसके आधार पर आपकी जो भी धारणाएं ,विश्वास हैं,जिस प्रकार वे आपको अतिशय प्रिय हैं और आप उन्होंने अपने लेखों के माध्यम से विस्तार देना चाहते हैं,ऐसे ही संगीत जी या अन्य की भी अपनी अपनी धारणाये,विश्वास व आस्थाएं हैं,जो कि उनके अध्ययन और अनुभव पर आधारित हैं...इस प्रकार किसी एक पर उंगली उठा उसे गलत ठहराना मेरे हिसाब से असहिष्णुता भी है और अशिष्टता भी...
आप अपनी बात किसी का नाम लिए बिना भी रख सकते हैं..जिसे माननी होगी मानेंगे जिसे नहीं माननी होगी नहीं मानेंगे...
जिस प्रकार आधुनिक विज्ञान आपको प्रमाणिक लगता है ,इसी प्रकार ज्योतिष भी अपने आप में विज्ञान ही है...आप न मानना चाहें बेशक न माने..
रंजना जी, आपकी प्रतिक्रिया के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंमैंने भी अपनी बात विनयपूर्वक ही कही है और सम्मानपूर्वक उनका नाम लेकर कही है। इसके पीछे मेरा मकसद यही है कि यदि इस तरह की बातों के पीछे कोई सत्य है, तो उसे सामने लाया जाए। और अगर इसके पीछे कोई सत्य नहीं है, तो फिर इस तरह से लोगों को गुमराह नहीं किया जाना चाहिए।
जाकिर भाई इसका एक पक्ष यह भी है की -मां 'बच्चे' को डराती है 'गब्बर' आ जायेगा ! गब्बर कभी नहीं आता लेकिन बच्चा सो जाता है ! बच्चे का समय पर सोना , बच्चे और उसके अभिभावक , दोनों के लिए जरुरी है ! "अगले दिन की सेहत" बच्चे के समय पर सोने पर निर्भर करती है ! उम्र बढ़ने के साथ साथ बच्चा , खुद बखुद जान जाता है , गब्बर की असलियत ....और तब गब्बर उसकी नींद के लिए 'व्यर्थ' हो जाता है !
जवाब देंहटाएंइसी तरह से वीनस खुश हो या न हो उसके बहाने कुछ नेक काम तो हो ही सकते हैं ! बच्चों को बड़ा होने दीजिये वीनस क्या सभी नौ ग्रह व्यर्थ हो जायेंगे तब तक किसी बहाने से ही सही , नेक काम तो होने ही दीजिये !
मेरे ख्याल से वीनस मिथकीय चरित्र हैं और हमारा देश शताब्दियों से मिथकों पर सम्मोहित होकर जीता आया है ! सम्मोहनग्रस्त पीढियां मिथकों पर चोट बर्दाश्त नहीं करेंगी और न हीं उनके 'स्टील फ्रेम्ड' ख्यालातों के बदलने की कोई सम्भावना भी है !
बेहतर हो वैज्ञानिक चेतना विकसित करने का कार्य नवागत पीढ़ी को ध्यान में रख कर किया जाये ! और जहां तक मैं समझता हूँ ऐसा हो भी रहा है !
हमे तो आज तक समझ मे नही आया जिस ग्रह पर हम पैदा हुए और जिस पर अंत मे मर जाते है उस पृथ्वि का कुंडली मे कोई स्थान क्यो नही है ? वैसे अब यह बहस पुरानी हो गई है न कोई 5 लाख का चेलेंज स्वीकार करता है न कोई यह सब मानना छोड़ता है .. । होगा शायद धीरे धीरे ।
जवाब देंहटाएं@रंजना जी ,जाकिर ,
जवाब देंहटाएंआपका कहना सही है की बिना संगीता जी के नामोल्लेख के भी बात कही जा सकती थी पर मुश्किल यह है की कोई लगातार वैसी बातों का प्रलाप करता जा रहा हो जिसे विज्ञान के पद्धति में जरा भी विश्वास रखने वाला व्यक्ति केवल बकवास समझता हो तो धैर्य रख पाना और वह भी एक ब्लॉगर साईंस एकटीविस्ट के लिए बहुत मुश्किल हो जाता है -यह वैज्ञानिक मनोवृत्ति के प्रसार के ईमानदार प्रयासों पर झाडू लगाने /पानी फेरने जैसा है ! वैसे भी वैज्ञानिक संस्कृति में शोध पत्रों पर खुले भिडंत होती है ,इसे बुरा नहीं माना जाता है -वहां बल्कि समवयी लोगों को समीक्षाओं के लिए प्रेरित किया जाता है -और यह प्राचीन परम्परा भी है -वादे वादे जायते तत्वबोधः!
संगीता जी सचमुच कभी कभी बहुत अतार्किक हो जाती हैं-हम लोगों के विगलित और अंध विश्वासों को यूं ही आँख मूद कर नहीं देख सकते-हमारे सामाजिक सरोकार का यह तकाजा भी नहीं है -हमने समाज का ठेका नही le रेखा है ,मगर सामने दूध में पडी मख्ही को देख कर उसे मुंह भी नहीं लगा सकते ! आईये हम यह विमर्श करें की संस्कृति के किन घटकों को अनुष्ठान मान कर सहेजें और किन्हें कोरे अंधविश्वास के रूप में चिह्नित कर दफ़न करें !यहाँ आपकी मदद की दरकार है !
रजनीश को अशिष्ट कह देने भर से बात नहीं बनेगी -किस किस को अशिष्ट कहती रहेगी आप ?
ज्योतिष ठेलना और ज्योतिष को रगेदना दोनो एक्स्ट्रीम हैं। मध्य-मार्ग होना चाहिये!
जवाब देंहटाएंसहमत हूं आपसे ग्रह-दशा सब खराब वक़्त मे ही नज़र आते है बाकि समय तो सब चलता है।ये बात सही है अंधविश्वास की जकड़ मे बहुत से लोग है और इसका फ़ायदा पाखण्डी-ढोंगी लोग जमकर उठाते हैं।यंहा आज भी किसी भी महिला को टोनही कह कर प्रताड़ित किया जाता है,इस बुराई पर नियंत्रण के लिये तमाम प्रयास किये जा रहे हैं मगर कोई फ़ायदा नही।
जवाब देंहटाएंकृपया मेरी दूसरी टिप्पणी को पहली और पहली टिप्पणी को दूसरी समझकर पढें .. कई बार मुझे पूरा पूरा लिखना पडा .. टिप्पणियां लंबाई की वजह से बार बार गायब हो जा रही थी .. फिर उसके दो भाग कर सेंड किया .. दूसरा भाग पहले और पहला भाग बाद में पहुंचा .. जिससे यह त्रुटि हो गयी .. अत्यधिक चिडचिडाहट की वजह से इस टिप्पणी में मैंने एक और गल्ती कर दी है .. वैसे यदि लोग इस बात पर दृढ हो जाएं कि सूर्य पृथ्वी का चक्कर नहीं .. पृथ्वी ही सूर्य का चक्कर लगाती है .. तो एक वैज्ञानिक को भी चुप्पी ही साधनी पडती है .. इसे भी उल्टा पढने का कष्ट करें !!
जवाब देंहटाएंक्यों ज्योतिषियों के पीछे पड़े हैं मुद्दे और भी बहुत सारे हैं अन्धविस्वास हटाने के !!! तंत्र विद्या, मौलवियों का भुत उतारण ! तिलस्मी ताबीज, आदि आदि !!!
जवाब देंहटाएंसवाल तो अच्छा है
जवाब देंहटाएंपर उत्तर मिलना मुश्किल है
प्रणाम
मुरारी जी, आपकी सलाह सर माथे पर। तस्लीम इन सभी विषयों पर लगातार लिख रहा है। पोस्ट के सेकेण्ड लास्ट पैरे के लिंक देखिए, वहाँ इन्हीं सब बातों का जिक्र है।
जवाब देंहटाएंएक ओर अन्तिम बात जो कि मैं आपको फिर से याद कराना चाहूँगा कि आपके एक लेख से संबंधित मैने अपनी एक आपती दर्ज कराई थी जिसका जवाब आज तक अनुतरित है...जिसके लिए मैं आपको पहले भी 3-4 बार आग्रह कर चुका हूँ..लेकिन आप हर बार ये कहकर कि " तनिक प्रतीक्षा कीजिए, आपके सवाल का जवाब कुछेक दिनों में दे दिया जाएगा" उस सवाल को पिछले दो महीनों से टालते आ रहे हैं...जिस प्रकार आप किसी दूसरे के लिखे पर सवाल खडा करते हैं ओर ये उम्मीद भी करते हैं कि आपके सवालों का जवाब मिलना चाहिए तो जो आधारहीन तथा इधर उधर से इकट्ठी की गई सामग्री आप विज्ञान का नाम लेकर परोस रहे हैं..अगर कोई पाठक उस सामग्री/कथन की विश्वसनीयता पर सवाल खडा करता है तो आपका भी ये कर्तव्य बनता है कि आप उसकी आपत्ती का निवारण करें ।
जवाब देंहटाएंजाकिर जी, किसी भी विषय में तर्क-वितर्क करना हो तो सबसे पहले हमें उस विषय की जानकारी होनी आवश्यक है...ओर दूसरे यदि हम अपनी धारणाओं को दरकिनार कर खोजने का प्रयास करें तो ही सत्य का अनुशीलन कर सकते हैं । अन्यथा हमें सिर्फ वो ही दिखाई देगा...जो कि हम देखना चाहते हैं ।
जवाब देंहटाएंइसलिए यदि आप वास्तव में इस विद्या को सत्य/असत्य की कसौटी पर परखना चाहते हैं तो सबसे पहले तो आप ढंग से इसके बारे में कुछ ज्ञान हासिल करें....सीखने,समझने का प्रयास करें..ओर नहीं तो कम से कम मूलभूत जानकारी तो अवश्य ही जुटा लें...ताकि आप अपने विचार ठीक से रख सकें ओर दूसरा सामने वाला भी अपनी बात आपको अच्छे से समझा सकें...।
ये रोज रोज की ब्लां-ब्लां कृ्प्या बन्द कीजिए...बेफालतू में अपने विचार दूसरों पर थोपने से बाज आएं....आपको सरकार नें कोई अधिकार पत्र नहीं सौंप दिया है ओर न ही सच झूठ का फैसला करने को आपको किसी न्यायधीश की कुर्सी पर बिठा दिया गया है.... इसलिए सार्वजनिक तौर पर किसी का इस प्रकार से नाम लेकर उसकी धारणा, विचारों और ज्ञान पर उंगली उठाकर आप लोग अपने दुराग्रहों, अशिष्टता और असभ्यता का ही परिचय दे रहे हैं ।
आपका ये कहना कि " इसके पीछे मेरा मकसद यही है कि यदि इस तरह की बातों के पीछे कोई सत्य है, तो उसे सामने लाया जाए।"
क्या आप इतना भी नहीं जानते कि सत्यान्वेषण के लिए विषय का मूलभूत ज्ञान तो होना चाहिए कि नहीं? आप एक घास खोदने वाले से भौतिक विज्ञान के सत्य की खोज की उम्मीद कर सकते हैं ?
.(बे)फालतू में अपने विचार दूसरों पर थोपने से बाज आएं....
जवाब देंहटाएंक्या यह बात तथाकथित ज्योतिषियों पर लागू नहीं होती ?
==================================
चलते चलते हलके फुल्के में
फालतू --> बेकार
बेफालतू --> बे बेकार (उपयोगी )
Pandit Ji, Aapse sambandh poochha gaya hai, agar aapko maaloom ho to batayen. Agar Nahi maloom hai to batayen.
जवाब देंहटाएंAur Jahan tak adhikar patra ki baat hai, to kya vo aapke paas hai? Agar hai, to vo kisne diya hai, kripya batane ka kasht karen.
Aur aapki jaankari ke liye bata doon, Bharteey sanvidhan ke anusar andhvishwaas failaana aur logon ko bevakoof banaana kanoonan Jurm Hai. Aur Filhal jyotishi log yahi kaam kar rahe hain.
आप सभी को विग्यान की एक वाणी (भविष्य?)के बारे में बतना चाहता हूं कि विग्यान की खोजें कितनी प्रमाणिक हें। लगभग ३० साल पहले वैग्यानिक पाउडर के दूध को चिल्ला-चिल्ला कर बच्चों के लिये स्वास्थ्य वर्धक व माताओं द्वारा ब्रेस्ट-मिल्क पिलाना माताओं के शरीर-सौन्दर्य के लिये ठीक नहीं बताते थे, कि असन्ख्य महिलाओं ने बच्चों को दूध पिलाना छोडकर, बच्चों व स्वयम के स्वास्थ्य से खेल किया था। आज वही वैग्यानिक उसी पाउडर मिल्क को अनुपयुक्त व ब्रेस्ट-मिल्क पिलाना स्वास्थ्य के लिये अच्छा बता रहे हैं।
जवाब देंहटाएं-----प्रयोगों से खोज व वर्षों, युगों की अनुभव-विचार-खोजों में यही अन्तर होता है। जैसे कुछ लोग कक्षा १२ पास करके व्त्ग्यान-विग्यान चिल्लाने लगते हैं, वैसे ही कुछ अग्यानी ज्योतिष के नाम पर ठगी करते हैं।----सोचिये, समझिये ।----इस तिप्पणी को छापा जायगा यानहीं ,क्या पता
और जो एक उपन्यास है--men are from Mars & women from veenus--उसका क्या? वीनुस प्रेम की देवी है ?
जवाब देंहटाएंDear Rajnish
जवाब देंहटाएंSangita g tatha anya jin par aap nishana lagate h,ii sabhi k paas kam se kam digree ya gyan to h apne karya ka lekin aap kis aadhar pe kah sakte h-"विज्ञान की जन समझ को विकसित करने का एक विनम्र प्रयास।"
What about the English invent football championship?
जवाब देंहटाएंहम्म्म्म
जवाब देंहटाएंअंधविश्वास को दूर सिर्फ शिक्षा से ही दूर किया जा सकता है ।
लेकिन , अफसोस , पढ़ेलिखे लोग भी अपनी आँखेँ नही खोलते । ।