ज्योतिष एक ऐसी विधा है, जिसपर वैज्ञानिकों द्वारा हमेशा से अंधविश्ववास फैलाने का आरोप लगता रहा है। स्वयं को विज्ञान साबित करने का दम भरने...
ज्योतिष एक ऐसी विधा है, जिसपर वैज्ञानिकों द्वारा हमेशा से अंधविश्ववास फैलाने का आरोप लगता रहा है। स्वयं को विज्ञान साबित करने का दम भरने वाली यह विधा हमेशा से सवालों के घेरे में रही है। वैज्ञानिकों ने जहां इसे सिर्फ एक हेड या टेल वाला खेल साबित किया है, वहीं प्राचीन काल से ही उसे लेकर तरह तरह की बातें की जाती रही हैं। न सिर्फ ज्योतिष विधा, बल्कि ज्योतिषियों के बारे में भी ऐसी बातें कही गयी हैं, जो पाठकों को सोचने पर मजबूर करती हैं।
उशना स्मृति के अनुसार ज्योतिष का काम ‘भिषक‘ नामक वर्ण शंकर जाति को सौंपा गया है-
नृपायां विप्रपश्चैर्यात् संजातो योभिशक् स्मृतः अभिषिक्तनृपस्याज्ञां प्रतिपाल्य तु वैद्यकः (26)
आयुर्वेदमथाष्टांगं तन्त्रोक्तं धर्ममांचरेत् ज्यौतिषं गतिणतंवौपि कायिकीं वृत्तिमाचरेत् (27
(ब्राह्मण पुरूष और क्षत्रिय कन्या के गुप्त प्रेम की संतान ‘भिषक‘ कहलाती है। यह दवा दारू अथवा गणित ज्योतिष के द्वारा अपनी आजीविका चलाए।)
नैषध चरितम् में ज्योतिष के बारे में लिखा है-
एकं संदिग्धयोस्तावद् भावि तत्रेष्टजन्मनि, हेतुमाहुः स्वमन्त्रादीनसांगानन्यथा विटाः (नैषध चरितम् 17-55)
(ये लोग संदिग्ध मामलों में से एक की भविष्यवाणी कर देते हैं। यदि इत्तेफाक से ठीक निकल आए तो उसे अपनी योग्यता का चमत्कार बताते हैं। यदि गलत निकले तो कह देते हैं- आप ने फलां पूजा, फलां पाठ ठीक से नहीं किया था, अतः ऐसा हुआ है। हमारी भविष्यवाणी तो ठीक ही है।)
विलिखति सदसद् वा जन्मपत्रं जनानाम्, फलति यदि तदानी दर्षयत्यात्मदाक्ष्यम् विषाखायाः, विविध भुजंगक्रीडासक्तां गृहिणीं न जानाति।
(जो ज्योतिर्विद आकाश में च्रद के विशाखा (नक्षत्र) के समागम की गणना करता है, उसे यह तो पता नहीं होता कि उस की घरवाली अनेक व्यभिचारी पुरूषों से समागम करती है।)
ज्योतिषियों को समाज में हमेशा से हेय दृष्टि से देखा जाता रहा है। यही कारण है कि यज्ञ और श्राद्ध जैसे पवित्र कार्यों में उनकी उपस्थिति का निषेध किया गया है। अत्रिसंहिता के अनुसार-
ज्योतिर्विदो, श्राद्धे यज्ञे महादाने न वरणीयाः कदाचन (385)
श्राद्धं च पितरं घोरं दानं चैव तु निष्फलम् यज्ञे च फलहानिः स्यात् तस्मात्तान् परिवर्जयेत् (386)
याविकः चित्रकारश्च वैद्यो नक्षत्रपाठकः, चतुर्विप्रा न पूज्यंते बृहस्पतिसमा यदि (387)
(अर्थात ज्योतिर्विदों को श्राद्ध, यज्ञ और किसी बड़े दान के लिए नहीं बुलाना चाहिए। इन्हें बुलाने से श्राद्ध अपवित्र, दान निष्फल और यज्ञ फलहीन हो जाता है। आविक (बकरीपाल), चित्रकार, वैद्य और नक्षत्रों का अध्ययन करने वाला, ये 4 तरह के ब्राह्मण यदि देवताओं के गुरू बृहस्पति के समान भी विद्वान हों, तो भी उनका सम्मान नहीं करना चाहिए।)
इसी प्रकार महाभारत में भी लिखा है- नक्षत्रैश्च यो जीवति, ईदृशा ब्राह्मण ज्ञेया अपांक्तेया युधिष्ठिर, रक्षांसि गच्छते हव्यमित्याहुर्बह्मवादिनः (महाभारत, अनु0 प0, अ0 90, श्लोक 11/12)
(जो ब्राह्मण नक्षत्रों के अध्ययन से जीविका चलाता हो, ब्राह्मणों को उसे अपनी पंक्ति में बैठ कर भोजन नहीं करने देना चाहिए। हे युधिष्ठिर, ऐसे व्यक्ति द्वारा खाया हुआ श्राद्ध भोजन राक्षसों के पेट में जाता है, न कि पितरों को।)
हिन्दू धर्म के सर्वाधिक चर्चित ग्रन्थ मनु स्मृति में भी इसी बात को दोहराया गया है- नक्षत्रैर्यश्च जीवति (162) एतान् विगर्हिताचारानपांक्तेयान् द्विजाधमान्, द्विजातिप्रवरो विद्वानुभयत्र विवर्जयेत् (167, मनुस्मृति अ0 3)
(नक्षत्रजीवी लोग निंदित, पंक्ति को दूषित करने वाले और द्विजों में अधम हैं, इन्हें विद्वान द्विज देवयज्ञ और श्राद्ध में कभी भोजन न कराएं।)
उपरोक्त उद्धरणों को पढ़ने के बाद यह स्वयं स्पष्ट हो जाता है कि ज्योतिष किस प्रकार की विधा है और सभ्य समाज के लोगों को उसके साथ किस तरह का व्यवहार करना चाहिए?
मैं तो समझती थी कि विदेशियों के आक्रमण के बाद यह विद्या नष्ट हुई .. पर आपके अनुसार पुराने भारतीय ग्रंथों में भी ज्योतिष के विरोध में लिखा गया है .. इसका अर्थ यह है कि उस समय भी ज्योतिष के विरोध में बहुत लोग खडे थे .. इसके बावजूद ज्योतिष का महत्व बना रहना कम महत्वपूर्ण नहीं .. आपका यह लेख पढने के बाद मेरी नजर में उनकी इज्जत और बढ गयी है .. जिन लोगों ने इतना विरोध सहकर इस धरोहर को संभाले रखा !!
जवाब देंहटाएंDear Zakir,
जवाब देंहटाएंDo you believe everything written in Ushna Smriti, Naishadha Charitam, Atrisamhita, Mahabharata and Manu Smriti are true? If yes, then what is the basis of your belief? If no, then why are you being selective?
(no evasive reply please.)
जाकिर जी, आप जिस मनु स्मृ्ति,अत्रि संहिता,नैषेध चरित्तम इत्यादि ग्रन्थों के हवाले से ये सब लिख रहे हैं। क्या आप इन उपरोक्त ग्रन्थों की पृ्ष्ठभूमी जानते हैं? क्या ये जानते हैं कि ये ग्रन्थ किस उदेश्य को लेकर लिखे गये? इन में दिए गये श्लोकों का भावार्थ जानते हैं आप?
जवाब देंहटाएंजी नहीं, मैं कहता हूँ कि आप इस विषय में कुछ नहीं जानते। बिना उसके अर्थ को जाने आप सिर्फ अपने उदेश्यपूर्ती हेतु उनका निज अनुसार प्रयोग कर रहे हैं।
उशना स्मृ्ति में दिए गए जिस श्लोक की आप बात कर रहे हैं, उसके जरिए ग्रन्थकार नें वर्ण संकर प्रजाति के द्वारा किए जाने वाले कर्माजीविका का वर्णन किया है न कि ज्योतिष विधा या ब्राह्मण के महत्व को कम करके आँका है।
मनुस्मृ्ति नामक ग्रन्थ भी विभिन्न जातियों,उपजाति,वर्ण संकर जातियों के कर्ताव्याकर्तव्य एवं कर्म इत्यादि पर आधारित है।
ज्योतिष तथा विधाध्ययन(शिक्षा) के द्वारा धनार्जन की परम्परा इस देश और संस्कृ्ति में कभी भी नहीं रही है। विधा प्रदान करने को दान की महता प्रदान की गई थी ओर ज्योतिष के जरिए निस्वार्थ भाव से बिना कोई धन राशी या अन्य कोई लाभ प्राप्ती के जनसेवा की जाती थी। इन विधाओं को आजीविका का माध्यम बनाने वाले मनुष्य को शूद्र की संज्ञा प्रदान की गई थी।
अपने महाभारत के जिस श्लोक का उल्लेख किया है,उसके जरिए भी सिर्फ यही दर्शाया गया है कि ऎसा ब्राह्मण त्याज्य है जो कि इस दैवीय विधा को आय प्राप्ति का माध्यम बनाता है। अर्थात इस विधा का उदेश्य निस्वार्थ भाव से बिना किसी प्राप्ति की अकांक्षा किए जनकल्याण होना चाहिए।
माना कि आज के समय में इस विधा नें एक व्यापार का रूप धारण कर लिया है,किन्तु उसमें भी दोष ज्योतिषियों का है, न कि इस विधा का।
विधा तो आज भी वही है, जो युगों पहले थी,उसका उदेश्य भी वही है,किन्तु उसका रूप बदल चुका है।
जाकिर भाई,मैं पुन: आपसे एक बार फिर कहना चाहूँगा कि अगर अपने पूर्वाग्रहों का परित्याग करके देखेंगे तो ही आपको सच दिखलाई देगा अन्यथा इसी प्रकार से हवा में हाथ पावँ मारे जाते रहेंगे।
ज्योतिष को अन्धविश्वास कहने वालो पर मुझे हंसी आती है जिस विषय वास्तु में खगोल की इतनी जानकारियां भरी हो गृह नक्षत्रों की गति ,स्थिति आदि की सटीक जानकारी हो , क्या उसे अन्धविश्वास कहेंगे ? क्या उस विद्या को अन्धविश्वास कहेंगे जिसमे आने वाले पचास सालो बाद सूर्य कब उगेगा व कब छुपेगा के समय की एक छोटे से पंचांग की सहायता से तुंरत पता लगाया जा सकता है ? जबकि आजके वैज्ञानिक इस काम को बिना कंप्यूटर के नहीं कर सकते |
जवाब देंहटाएंवे लोग मुर्ख है जो ज्योतिष को भविष्य बताने वाली विद्या से जोड़कर इसे अन्धविश्वास कहते है | अन्धविश्वास ज्योतिष नहीं अन्धविश्वासी वे लोग है जो ज्योतिषी बने ठगों के चुंगल फंसते है |
डीके शर्मा जी की बात से सहमत लेकिन मैं अपनी बात पर अब भी अटल हूं कि ये साइंस वाले अपने ब्लॉग की टीआरपी बढ़ाने के लिए ज्योतिष और पीछे पीछे ब्लॉ ब्लॉ ब्लॉ लिख देते हैं।
जवाब देंहटाएंअब ये महामंत्री जी की घघरी आधी भी नहीं भरी कि छलकने लगी।
वाह वाह क्या निष्कर्ष निकाले हैं।
इन्हें सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया जाना चाहिए। सत्य के एक और पक्ष को उद्घाटित करने के लिए।
करतो रहो ब्लॉ ब्लॉ ब्लॉ :)
पंडित जी ने आपके आरोप का बहुत विनम्र उत्तर दिया है और इन श्लोकों का वह पक्ष सामने रखा है जिसे देखने में आप विफल रहे. सवाल यह नहीं है की मेरा ज्योतिष में विशवास है या नहीं, वरन यह है की क्या मैं सामने रखे तथ्यों के आधार पर निष्पक्ष निर्णय ले सकता हूँ? क्या मैं सही निष्कर्ष निकालने के लिए अपने पूर्वाग्रहों को परे हटा सकता हूँ. दुःख के साथ कहना पद रहा है की यह लेख इन दोनों ही उद्देश्यों में असफल रहा है. शमीम उद्दीन जी का कथन भी अपनी जगह पर जायज़ है.
जवाब देंहटाएंVakai ye tathya aaschyaryajanak hain, magar inki pristhbhumi par bhi gaur karne ki jarurat hai.
जवाब देंहटाएं:}
जवाब देंहटाएंवाह पुरातन अतिवादियों ने सीधी साधी बात को तोड़ मरोड़ दिया है -जो उद्धरण और हिन्दी अर्थ जाकिर ने दिए हैं वह बिलकुल सही है ,प्रमाणिक हैं -बाटम लाईन यही है की फलित ज्योतिष प्राचीन काल से ही बुद्धिजीवियों द्बारा हेय दृष्टि से देखा जाता था !
जवाब देंहटाएंबहुत पुरानी बात छोड़ दीजिये ग्रह नक्षत्रों के पंडिताई और पेट पूजा करने वालों को रामचरित मानस में वृषली स्वामी कहा गया है जो की वस्तुतः बड़ी गंदी गाली है !
फलित ज्योतिष हमेशा ही विवादित और अस्वीकार्य रहा है !
कोई जोर लगाये तो इन या समकक्ष ग्रन्थों में फलित ज्योतिष के पक्ष में भी मिल जायेगा!
जवाब देंहटाएंमैं इस विद्या के प्रति शंकाभाव रखूंगा। पर इसका अनादर नहीं करूंगा। बहुत कुछ है जिसे मैं नहीं जानता या समझता।
बहुत कुछ है जिसे मैं नहीं जानता या समझता....
जवाब देंहटाएंफलित ज्योतिष एक ऐसी विधा है, जिसने समाज में अन्धविश्वास को बढाया है. इसीलिये इसकी आलोचना आदिकाल से होती रही है. मेरी समझ से ज्योतिष के इसी पछ को केंद्र में रख कर ये लेख लिख गया है.
जवाब देंहटाएंअरविन्द मिश्र जी,
जवाब देंहटाएंतुलसी बाबा खुद लोगों का भविष्य बांचते थे. (स्रोत: मानस का हंस, लेखक: अमृत लाल नागर). फिर 'मानस' एक महाकाव्य है, कोई ईश्वरीय ग्रन्थ नहीं.
शमिमुद्दीन साहब क्या कोई ईश्वरीय ग्रन्थ भी होता है ? मतलब वेद और कुरान ईश्वरीय ग्रन्थ है ? यदि आपका उत्तर हाँ है तो माफ़ कीजियेगा आपसे बहस का कोई अर्थ ही नहीं है ?
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट को युं देखें---
जवाब देंहटाएं१- उशना--शुक्राचार्य का ही नाम है,जो असुरों के गुरु थे व स्वयं अपने अकर्मॊ व बदमाशी से असुरत्व प्राप्त ब्रह्मण थे एवम देवों से घ्रणा करते थे। देव संस्क्रितिव देव गुरु ब्रहस्पति के विरोधी थे वेदों आदि के विरोी थे। उनके कथन दुर्भावना पूर्ण थे। स्दैवे ही अमान्य।
२-शास्त्र नियम है कि-कला,मनोरन्जन,चिकित्सा,ज्योतिष आदि जो भी उच्च विद्यायें है उनका धन्धा नहीं होना चाहिये,वे सदैव मुफ़्त देनी चाहिये,उनको धन्धे की भांति प्रयोग करने वाले ब्राह्मणत्व से गिर जाते हैं। आज कल डा्क्टर, अफ़सर, नेता, जिन्हें मुफ़्त कार्य करना चाहिये ,धन्धा करते हैं ,उनकी भी समाज़ में बुराई होती है। अतः जो पोस्ट में कहा है उसमें नई बात कहां है।
३-भिषक--वैद्य को ही कहते है। वर्ण शंकर प्रज़ाति नहीं है। ब्रह्मण व क्षत्रिय- संबंध /विवाह भारत/हिन्दुओं मेंसर्वश्रेष्ठ माना जाता है, श्लोक में गुप्त के अर्थ का कोई शब्द नहीं है। वैसे भी उसकाल में संबंध स्त्रियों की इक्षा से ही होते थे, गुप्त का प्रश्न नहीं था। खुला समाज़ था। मन्तव्य है कि वह सन्तान रजा की आग्या से सर्वश्रेष्ठ कार्य-चिकित्सा, ज्योतिष ,कला को करे। राजाग्या अवैध संबंधों में नहीं होती।
४- ठीक कहा-सी बी आई,पुलिस, मन्त्री,वैग्यानिक ,अफ़सर ,अमेरिका का राष्ट्र्पति सभी के व उनकी पत्नियों के अवैध संम्बंध उजागर होते हैं, कोई क्या कर लेता है-त्रिया चरित्र किसने जान
५- सही बात है-यग्य,दान,धार्मिक कार्यों मे ज्योतिषी,डाक्टर ,कलाकार का क्या काम--रिष्तेदार की तरह आयें।
------वस्तुतः शास्त्रॊ की बातें उनके अर्थ समझने के लिये निस्वार्थ मन, प्रग्या व ग्यान चाहिये।
डॉक्टर साहिब,
जवाब देंहटाएंएक जवाब देते जाइये, क्या आप वेदों जैसी एक ऋचा/श्लोक या कुरान के जैसे कोई आयत/सूरत बना सकते हैं?
Shamim uddin...Bilkul bana sakte hain ...kyo nahi bana sakte ..yeh sab kaise ban raha hain....aap kahe ki kuch naya add karne ke liye bilkul ho sakta hain ....
हटाएंजाकि रही भावना जैसी .. प्रभु मूरत देखि तीन तैसी !!
जवाब देंहटाएंमै प. वत्स जी और समार्ट इंडीयन जी की बात से बिलकुल सहमत हूँ हमरे रिशी मुनियों ने वो कुछ लिखा है जिसे साईस अब देख रही है ये सही है कि आज कल लालच मे लोगों ने ज्योतिश को बदनाम कर दिया है और ना ही उन के पास वो दिव्य दृ्ष्ति है लेकिन इसका ये अर्थ कदापि नहीं कि ये विद्द्या है हि नहीं
जवाब देंहटाएंमै प. वत्स जी और समार्ट इंडीयन जी की बात से बिलकुल सहमत हूँ हमरे रिशी मुनियों ने वो कुछ लिखा है जिसे साईस अब देख रही है ये सही है कि आज कल लालच मे लोगों ने ज्योतिश को बदनाम कर दिया है और ना ही उन के पास वो दिव्य दृ्ष्ति है लेकिन इसका ये अर्थ कदापि नहीं कि ये विद्द्या है हि नहीं
जवाब देंहटाएंशमीम साहब बात खत्म हुयी -जो विनम्रता एक वैज्ञानिक में होती है वे कठमुल्लों ,पंडा पंडितों में नहीं दिखती -ऋचाओं और आयतों की बात करते हैं इन्हें तो कुछ दिनों में पी सी /ऐ आई लिख देगा -कहाँ हैं आप ? मानव बुद्धि को इसमें लगाने से फायदा ?
जवाब देंहटाएंआदरणीय अरविन्द मिश्र जी आपके धैर्य और संयम की दाद देता हूँ !
जवाब देंहटाएंवरना अब तक
विद्वानों की ज्ञान वर्धक बातें
सुनकर तो यहाँ .........
जाकिर भाई बीन बजाने से कोई लाभ नहीं ... नयी पोस्ट लाईये !
जो विनम्रता एक वैज्ञानिक में होती है वे कठमुल्लों ,पंडा पंडितों में नहीं दिखती |।।
जवाब देंहटाएंमिश्रा जी,इतने भद्र पुरूष,महान आत्मा,शान्ती दूत अब्दुल कादिर जैसे महान वैज्ञानिक को तो नोबल पुरस्कार मिलना चाहिए!!
धन्य हो प्रभु!! विनम्रता के कैसे कैसे मापदण्ड निर्धारित किए जा रहे हैं!!:)
मिश्रा जी,एक शेर अर्ज है! जो कि शायद आप जैसे लोगों के लिए ही कहा गया है।
मुझे तरस आता है उन पे
जिन्हे सलीका नहीं हैं अहसास करने का
पूछते हैं कि गर खुदा है तो
फिर दिखाई क्यूँ नहीं देता।।
वेदों और कुरान की ऋचायें रचने वाली मानव निर्मित मशीन बन ही नहीं सकती.
जवाब देंहटाएंए आई याने आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस कुछ और लिख देगा, जो बेहतर या कमतर हम जैसे बुद्धिजीवी, या बुद्धुजीवी ही तो तय करेंगे. मगर वैसे अब बनना नहीं, क्योंकि
सिर्फ़ एहसास है ये रूह से मेहसूस करो...
मुझे तो इस लेख से ज्यादा ये टिप्पणियां रोचक लगी |
जवाब देंहटाएंनिजी तौर पर मैं न तो ज्योतिष में यकीन करता हूँ न ही भगवान् में, ज़ाहिर है, अरविन्द जी से सहमत हूँ | लेकिन मैं किसी के "भरोसे" पर ऊँगली नहीं उठाना चाहता, सबकी अपनी अपनी सोच है, मान्यता है | बहस ही क्यों करनी है?
सबकी अपनी-अपनी सोच, भरोसा,मान्यता--की ही बात है तो बीमार होनेपर डाक्टर की, वकीलों की,सरकारी कानूनों की बाते क्यों मानते हो ; यह सोच ही तो अग्यानता व अन्धविस्वासों को जन्म देती है; बहस के बिना ,मीटिन्ग के बिना आज के युग में क्या कोई कम्पनी का काम, टेन्डर पास, सरकारी काम, राजनैतिक निर्णय होता है क्या? बहस से ना जानकार डरते हैं।
जवाब देंहटाएं--वेदिक रिचा, या आयतें भी समय-समय पर विभिन्न विद्वानों ने लिखीं हैं, नई भी लिखी जा सकतीं हैं, नये विषयों पर जो वहां पर छूट गये हैं, इसके लिये पहले पूर्ण रूप से अध्ययन करके ,क्या छूटा है जानना होगा।
----हुज़ूर, पी सी /ए आइ--मानव द्वारा जो फ़ीड किया जाता है उसीको रिपीट करते हैं अपने से कुछ नहीं लिखते।
-----राठी--का कहना है वह भगवान में विश्वास नहीं करते--इसका अर्थ है कि भगवान तो है,परन्तु वे विस्वास नही करते, अगर भग्वान न होता तो उस पर अविस्वास कैसे किया जा सकता है।
---विनम्रता आदमियत का गुण है, प्रोफ़ेसन का नहीं । वत्स जी का शेर अच्छा लगा।
---अन्तिम बात यही है--ज्योतिष को नहीं, धन्धेबाज ज्योतिषितों आदि को बुरी निगाह से देखा जाता था हर युग में, यह विग्य-समाज की पहचान है। आज भी लूटने वाले चिकित्सक,वकील,दुकानदार, नेता ,अफ़सर की बुराई ही होती ह
---प्रोफ़ेसन व समाज,सन्स्था आदि बुरे नहीं होते-वे तो जड वस्तु हैं,वुरा-भला उनका गुण नहीं है;बुरा-अच्छा होना जीव--मानव का गुण है ।
गुप्ता जी, बधाई हो. आप की साईं ब्लॉग वाली पोस्ट आज अमर उजाला में प्रकाशित हुयी है.
जवाब देंहटाएंफिर वही ज्योतिष ! बार बार एक ही मुद्दे को तूल देना तो स्वार्थ सिद्ध करने क परिचायक है और भी बहुत से विषय है जिन्हे वैज्ञानिक रुप से परखने की आवश्यकता है । इस पोस्ट के बारे मे यही कह सकते है - तेरी नफरत ही तेरे प्यार का इजहार है...........। बार बार एक ही चीज को नकारने का मतलब है आप उस पर आसक्त हो रहे है
जवाब देंहटाएंवैसे इस तरह की पोस्ट लेखक की मान्यता को ही उलझा सकती है जैसे इस पोस्ट से यह सिद्ध होता है कि लेखक का उपरोक्त ग्रंथो मे पूर्ण विश्वास है इसीलिये इन्हे आधार मानकर प्रस्तुत किया गया है । यह लेखक के लिये एक विषम स्थिति है अब या तो ग्रंथ सही है या ज्योतिष । वत्स जी का और श्याम गुप्ता जी का कथन तार्किक रुप से बलशाली है।
तस्लीम को कुछ् सशक्त पोस्टो की आवश्यकता है जो इसकी विचारधारा को नये आयाम दे सके
यहां यह जो सत्संग चर्चा चल रही है, उस पर इस नाचीज़ को कुछ नहीं कहना है।
जवाब देंहटाएंआस्था को तर्कों के जरिए दिमाग़ से नहीं निकाला जा सकता, बिल्कुल उसी तरह जैसे ड़र को तर्कों के सहारे नहीं जीता जा सकता।
वैसे इस बात को देखने में मज़ा आता है, कि आस्थावान मनुष्य जो कि तर्क को किनारे रखता है, इसके बचाव में सबसे ज़्यादा तर्क-कुतर्क करता है। जिस पर विश्वास नहीं उसी पद्धति का सहारा। खैर जी।
ज्ञान और समझ हमारे सारे बचकानेपन को शनै-शनै खत्म करती जाती हैं।
इस पोस्ट पर समय का भी प्रतिवाद है, और गहरा है। कृपया इसे भी दर्ज़ कर लें।
आप वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास के लिए यहां जिस पद्धति को काम में ले रहे हैं, मुआफ़ कीजिएगा समय को लगता है यह कतई भी वैज्ञानिक नहीं है।
दर्शन की भाषा में कहें तो यह चीज़ों को समझने का अधिभूतवादी तरीका (metaphysical method)है, वैज्ञानिक द्वंदवादी तरीका नहीं है।
आप अपने विरोधी विचार को उन्हीं की ज़्यादा प्रचलित पद्धति के जरिए मात देने की खाम्ख़्वाह कोशिश कर रहे हैं।
विवाद इसी वजह से होता है। जब इसी कार्य को प्रतिगामी शक्तियां करती हैं तो गलत है, तो सही चीज़ों को ही सही, सामने लाने के लिए प्रगतिशील शक्तियां भी इसी गलत चीज़ का इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं। जाहिर है उनके तर्कजाल में उलझने की पृष्ठभूमि तो पहले से ही तैयार है।
इस तरह से पुरातन ग्रंथों से, जो कि अपने ऐतिहासिक काल की समझ की उत्पत्ति होते हैं, उदाहरण ढ़ूंढ़ कर लाने और उसे वर्तमान में प्रतिष्ठित करने का यह पुनीत कार्य ही तो आज की प्रतिगामी शक्तियां कर रही है। तो फिर इस पोस्ट के जरिए उलटबासी में ही सही, क्या यही कार्य यहां नहीं हो रहा है, क्या उन्हीं की पद्धति नहीं अपनाई जा रही है।
पुरातन ग्रंथों की कई वैज्ञानिक द्वंदवादी व्याख्याएं मानवजाति द्वारा पूर्व में ही की जा चुकी हैं, आपका समूह उनसे गुजरेगा तो सही मायनों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाया जा सकेगा।
इस हेतु भारतभूमि पर भी काफ़ी मानवश्रेष्ठ यह कार्य संपन्न कर चुके हैं। आप अमृत डांगे, देवीप्रसाद चट्टोपाध्याय, दामोदर धर्मानंद कोसांबी आदि विद्वानों और इतिहासकारों की पुस्तकें पढ़ सकते हैं। आपके समूह को दर्शन से भी गुजरना चाहिए। द्वंदवादी ऐतिहासिक भौतिकवादी दृष्टिकोण से भी माथापच्ची करनी चाहिए।
आपने जो उद्धरण दिये हैं, क्या उनमें यह नहीं देखा जाना चाहिए था कि आखिर धर्म और ज्योतिष की नाभीनालबद्धता के बाबजूद इन धर्मग्रंथों में ज्योतिष पर यह दृष्टिकोण क्यों अपनाया गया है? क्या इसमें आपकों कोई पेच नज़र नहीं आया?
आप जल्दबाज़ी में थे, अपने अनुकूल लगती सी इस नई प्राप्त बात को सामने लाने के लिए।
धर्मग्रंथों में अपने विरोधी विचारों के ख़िलाफ़ निर्देश जारी किये जाते हैं, नाकि अपने अनुकूल साबित होने वाली चीज़ों को नकारा जाता है।
यही तथ्य क्या काफ़ी नहीं था, कि शक होना चाहिए था कि जाहिरातौर पर यहां उस वक्त भी प्रचलित फ़लित ज्योतिष के बारे में तो यह बातें कही ही नहीं जा सकती थी। आखिर कौनसा दृष्टिकोण अपने पैरों पर खु़द कुल्हाडी मारेगा।
हालांकि समय अभी इनकी गहराई में नहीं गया है, परंतु उपरोक्त बात तो कही ही जा सकती है।
भाववादी या आदर्शवादी या प्रत्ययवादी धर्मग्रंथों में उस वक्त में प्रचलित भौतिकवादी, यथार्थवादी दृष्टिकोणों पर फ़तवे जारी किए जाते थे। ज्ञान और समझ विकसित करने वाले हर वैज्ञानिक दृष्टिकोण को कुचलने की कोशिश की जाती थी। सांख्यों, चार्वाकों आदि के खिलाफ़ यही किया गया था।
अगर यह सही है, तो जाहिर है कि ग्रहों और नक्षत्रों का ज्ञान रखने वालों या इनपर शोध करने वालों या इन्हें पढ़ने-पढा़ने वाले जिन लोगों की चर्चा की जा रही है, वे उन धर्मग्रंथकारों के लिए खटकने वाले ही रहे होंगे।
जाहिर है फिर वे फलित ज्योतिष के जरिए मनुष्य के भाग्य की भविष्यवाणियां करने वाले तो नहीं ही रहे होंगे। हां वे लोग वे हो सकते हैं, जो कि ग्रहों और नक्षत्रों की स्थितियों और गतियों का प्रेक्षण करने और इनका विज्ञान विकसित करने की कोशिश कर रहे थे, और जाहिरा तौर पर ग्रंथिक प्रस्थापनाओं को चुनौती दे रहे होंगे।
यहां यह भी हो सकता है कि ये उक्तियां भौतिकवादी दार्शनिक परंपरा के ग्रंथों और उनके उद्धरणों से ली गयी हो। सीधे वहीं से, या किसी कारण भाववादी ग्रंथों में भी स्थान पा गई हों। अगर यह भौतिकवादी परंपराओं की हैं, तो जाहिर है इनका भाववादियों के फलित ज्योतिष के ख़िलाफ़ होना ही है। हालांकि इसकी संभावना कम ही है, क्योंकि ये मनुस्मृति में भी स्थान पा गई हैं।
क्या यह सब सोचा और देखा समझा गया था?
०००००००
मुआफ़ी की दरकार है।
परंतु गंभीर समीक्षा और सही पद्धति का अभाव लगा इसलिए इतना कुछ लिख गया।
पुनश्चः
जवाब देंहटाएंयह एक साथी का प्रतिवाद है, विरोधी की ख़िलाफ़त नहीं। अन्यथा ना लें।
इसी वज़ह से थोडा अंतराल के बाद उपरोक्त टिप्पणी...