ज्योतिष एक ऐसी विधा है, जिसपर वैज्ञानिकों द्वारा हमेशा से अंधविश्ववास फैलाने का आरोप लगता रहा है। स्वयं को विज्ञान साबित करने का दम भरने...
ज्योतिष एक ऐसी विधा है, जिसपर वैज्ञानिकों द्वारा हमेशा से अंधविश्ववास फैलाने का आरोप लगता रहा है। स्वयं को विज्ञान साबित करने का दम भरने वाली यह विधा हमेशा से सवालों के घेरे में रही है। वैज्ञानिकों ने जहां इसे सिर्फ एक हेड या टेल वाला खेल साबित किया है, वहीं प्राचीन काल से ही उसे लेकर तरह तरह की बातें की जाती रही हैं। न सिर्फ ज्योतिष विधा, बल्कि ज्योतिषियों के बारे में भी ऐसी बातें कही गयी हैं, जो पाठकों को सोचने पर मजबूर करती हैं।
उशना स्मृति के अनुसार ज्योतिष का काम ‘भिषक‘ नामक वर्ण शंकर जाति को सौंपा गया है-
नृपायां विप्रपश्चैर्यात् संजातो योभिशक् स्मृतः अभिषिक्तनृपस्याज्ञां प्रतिपाल्य तु वैद्यकः (26)
आयुर्वेदमथाष्टांगं तन्त्रोक्तं धर्ममांचरेत् ज्यौतिषं गतिणतंवौपि कायिकीं वृत्तिमाचरेत् (27
(ब्राह्मण पुरूष और क्षत्रिय कन्या के गुप्त प्रेम की संतान ‘भिषक‘ कहलाती है। यह दवा दारू अथवा गणित ज्योतिष के द्वारा अपनी आजीविका चलाए।)
नैषध चरितम् में ज्योतिष के बारे में लिखा है-
एकं संदिग्धयोस्तावद् भावि तत्रेष्टजन्मनि, हेतुमाहुः स्वमन्त्रादीनसांगानन्यथा विटाः (नैषध चरितम् 17-55)
(ये लोग संदिग्ध मामलों में से एक की भविष्यवाणी कर देते हैं। यदि इत्तेफाक से ठीक निकल आए तो उसे अपनी योग्यता का चमत्कार बताते हैं। यदि गलत निकले तो कह देते हैं- आप ने फलां पूजा, फलां पाठ ठीक से नहीं किया था, अतः ऐसा हुआ है। हमारी भविष्यवाणी तो ठीक ही है।)
विलिखति सदसद् वा जन्मपत्रं जनानाम्, फलति यदि तदानी दर्षयत्यात्मदाक्ष्यम् विषाखायाः, विविध भुजंगक्रीडासक्तां गृहिणीं न जानाति।
(जो ज्योतिर्विद आकाश में च्रद के विशाखा (नक्षत्र) के समागम की गणना करता है, उसे यह तो पता नहीं होता कि उस की घरवाली अनेक व्यभिचारी पुरूषों से समागम करती है।)
ज्योतिषियों को समाज में हमेशा से हेय दृष्टि से देखा जाता रहा है। यही कारण है कि यज्ञ और श्राद्ध जैसे पवित्र कार्यों में उनकी उपस्थिति का निषेध किया गया है। अत्रिसंहिता के अनुसार-
ज्योतिर्विदो, श्राद्धे यज्ञे महादाने न वरणीयाः कदाचन (385)
श्राद्धं च पितरं घोरं दानं चैव तु निष्फलम् यज्ञे च फलहानिः स्यात् तस्मात्तान् परिवर्जयेत् (386)
याविकः चित्रकारश्च वैद्यो नक्षत्रपाठकः, चतुर्विप्रा न पूज्यंते बृहस्पतिसमा यदि (387)
(अर्थात ज्योतिर्विदों को श्राद्ध, यज्ञ और किसी बड़े दान के लिए नहीं बुलाना चाहिए। इन्हें बुलाने से श्राद्ध अपवित्र, दान निष्फल और यज्ञ फलहीन हो जाता है। आविक (बकरीपाल), चित्रकार, वैद्य और नक्षत्रों का अध्ययन करने वाला, ये 4 तरह के ब्राह्मण यदि देवताओं के गुरू बृहस्पति के समान भी विद्वान हों, तो भी उनका सम्मान नहीं करना चाहिए।)
इसी प्रकार महाभारत में भी लिखा है- नक्षत्रैश्च यो जीवति, ईदृशा ब्राह्मण ज्ञेया अपांक्तेया युधिष्ठिर, रक्षांसि गच्छते हव्यमित्याहुर्बह्मवादिनः (महाभारत, अनु0 प0, अ0 90, श्लोक 11/12)
(जो ब्राह्मण नक्षत्रों के अध्ययन से जीविका चलाता हो, ब्राह्मणों को उसे अपनी पंक्ति में बैठ कर भोजन नहीं करने देना चाहिए। हे युधिष्ठिर, ऐसे व्यक्ति द्वारा खाया हुआ श्राद्ध भोजन राक्षसों के पेट में जाता है, न कि पितरों को।)
हिन्दू धर्म के सर्वाधिक चर्चित ग्रन्थ मनु स्मृति में भी इसी बात को दोहराया गया है- नक्षत्रैर्यश्च जीवति (162) एतान् विगर्हिताचारानपांक्तेयान् द्विजाधमान्, द्विजातिप्रवरो विद्वानुभयत्र विवर्जयेत् (167, मनुस्मृति अ0 3)
(नक्षत्रजीवी लोग निंदित, पंक्ति को दूषित करने वाले और द्विजों में अधम हैं, इन्हें विद्वान द्विज देवयज्ञ और श्राद्ध में कभी भोजन न कराएं।)
उपरोक्त उद्धरणों को पढ़ने के बाद यह स्वयं स्पष्ट हो जाता है कि ज्योतिष किस प्रकार की विधा है और सभ्य समाज के लोगों को उसके साथ किस तरह का व्यवहार करना चाहिए?
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