ऊँ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्न मृतंमर्त्यच। हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भूवनानि पश्चन्। यह एक ऐसा मंत्र...
ऊँ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्न मृतंमर्त्यच।
हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भूवनानि पश्चन्।
यह एक ऐसा मंत्र (सूर्य मंत्र-Surya Mantra) है, जिसमें सूर्य देवता का आह्वान किया गया है। भारतीय संस्कृति में सूर्य को देवता का दर्जा प्राप्त है, इसलिए इसकी पूजा अर्चना की परम्परा प्राचीनकाल से चली आ रही है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो सूर्य एक तारा है, जो हमारे सौरमण्डल के केन्द्र में स्थित है। अंतर्राष्ट्रीय खगोल संघ के अनुसार हमारे सौरमण्डल में आठ ग्रह हैं- बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, युरेनस और नेप्च्यून। इन आठ मुख्य ग्रहों के अतिरिक्त तीन बौने ग्रह भी माने जाते है- सीरिस, प्लोटो और एरीस। प्लूटो को पहले मुख्य ग्रह माना जाता था, पर हाल ही में उससे मुख्य ग्रह की पदवी छीन कर उसके सिर पर बौने ग्रह का ताज पहना दिया गया है।
सूर्य वास्तव में गैसों का एक बहुत बडा पिण्ड है, जिसमें नाभिकीय संलयन की क्रिया सतत रूप से चलती रहती है। जिसके फलस्वरूप बेशुमार ऊर्जा उत्पन्न होती है। यही ऊर्जा प्रकाश के रूप में हम तक पहुंचती है, जिसके द्वारा पादप जगत प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करके अपने भोजन का निर्माण करता है। सूरज की रौशनी के साथ घातक अल्ट्रा वायलेट किरणें भी निकलती रहती हैं। पृथ्वी के वायुमण्डल में मौजूद ओजोन गैस की पर्त इन हानिकारक किरणों को रोक लेती हैं। लेकिन ओजोन गैस की पर्त में छेद हो जाने के कारण ये खतरनाक किरणें अब सीधे धरती पर आने लगी हैं, जिसके कारण पिछले वैज्ञानिक समाज के बीच चिन्ता के बादल घिर आए हैं।
इस चिन्ता से आम जन को परिचित कराने तथा सूर्य के अबूझ रहस्यों से पर्दा उठाने की नियत से विज्ञान प्रसार ने जे0 एन0 देसाई, एन0 एम0 अशोक और एच0 एस0 शाह लिखित एक महत्वपूर्ण पुस्तक का प्रकाशन किया है, जिसका शीर्षक है ‘दि सन’।
लेखक त्रयी में शामिल डा0 एन0एम0 अशोक ऐस्ट्रोनॉमी और ऐस्ट्रोफिजिक्स विभाग, फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी, अहमदाबाद में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं और इस क्षेत्र के जाने माने वैज्ञानिक हैं। प्रोफेसर जे0 एन0 देसाई भी ऐस्ट्रोनॉमी और ऐस्ट्रोफिजिक्स विभाग, फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी, अहमदाबाद से जुडा एक महत्वपूर्ण नाम है। वे इस संस्थान में प्रोफेसर के रूप में कार्यरत रह चुके हैं और बच्चों के लिए पापुलर साइंस कैटेगरी में रोचक आलेख लिखने के लिए जाने जाते हैं। जबकि श्री सुरेश आर0 शाह बी0 डी0 कालेज ऑफ आर्टस एण्ड साइंस अहमदाबाद में भौतिकी के लेक्चरर हैं और फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी, अहमदाबाद हाइड्रोलॉजी विभाग से विजिटिंग साइंटिस्ट के रूप में जुडे रहे हैं। श्री शाह गुजराती के एक प्रतिष्ठित विज्ञान लेखक हैं और गुजराती भाषा में उनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित यह पुस्तक सूर्य के इन्साइक्लोपीडिया के रूप में है और विज्ञान के जिज्ञासु पाठकों तथा बच्चों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है। विज्ञान प्रसार जोकि वैज्ञानिक चेतना के प्रचार प्रसार के लिए समर्पित एक सरकारी संगठन है, से आशा की जाती है कि वह इस पुस्तक का हिन्दी संस्करण भी शीघ्र प्रकाशित करेगा, जिससे यह महत्वपूर्ण कृति अधिक से अधिक लोगों तक अपनी पैठ बना सके।
पुस्तक- दि सन
लेखक- जे0 एन0 देसाई, एन0 एम0 अशोक एवं एच0 एस0 शाह
सम्पादक- बिमान बासू
प्रकाशक- विज्ञान प्रसार, ए 50, इंस्टीटयूशनल एरिया, सेक्टर 62, नोएडा 201307 उ0प्र0, भारत
मूल्य- 75 रूपये
पृष्ठ- 102
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मित्र, आपकी समीक्षात्मक टिप्पणी से किताब को पढ़ने की जिज्ञासा बढ़ गई है। इसे मंगवाकर अवश्य ही पढ़ूंगा।
जवाब देंहटाएंjankari ke liye dil se shukriya...
जवाब देंहटाएंmeet
महत्वपूर्ण एवं पढने योग्य पुस्तक की जानकारी दी है आपने।
जवाब देंहटाएंहिन्दी संस्करण की प्रतिक्षा रहेगी.
जवाब देंहटाएंकितने ही देवता हैं पर सूर्य सदृश्य -यह उनके महत्व को और भी बढ़ा देता है !
जवाब देंहटाएंहिन्दी संस्करण होता, तो कुछ और बात होती।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद यह बताने को।
जवाब देंहटाएंइस महती जानकारी के लिये आपका आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम
Mahatavapoorn pustak hai.
जवाब देंहटाएंहिंदी संस्करण का इन्तजार रहेगा रोचक लगी यह समीक्षा इस पुस्तक पर शुक्रिया
जवाब देंहटाएं" suraj ki duniya.....ye apne aap mey ek gehra rhsy hai...or iske bare mey jo jankari di gyi hai usse jigyasa bdh gyi hai.....pustak khan se kaise mangai ja skti hai, kya noida ke diye address pr ampark kiya ja skta hai??? "
जवाब देंहटाएंRegards
अच्छी जानकारी. हिंदी संस्करण और भी उपयोगी होगा.
जवाब देंहटाएंPustak ke baare mai jankari dene kadhanywaad...
जवाब देंहटाएंAb isko to parne ki ichha bahut bar gayi hai...
निश्चित रूप से हिंदी संस्करण जन- जन तक पहुचेगा, इस और सोचना हितकारी है.
जवाब देंहटाएंपुस्तक पढने का इच्छुक हूँ.
धन्यवाद इस जानकरी के लिये
जवाब देंहटाएंउम्मीद है इसका हिंदी संस्करण भी जल्द ही आएगा
जवाब देंहटाएंसीमा जी, पुस्तक को आप दिये गये पते पर पत्र लिख कर मंगवा सकती हैं। वैसे विज्ञान प्रसार का नम्बर भी मैं लिख रहा हूं, वहॉं फोन करके भी पुस्तक मंगवायी जा सकती है। नं0 0120 2404430 एवं 35
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