Neuroendocrine tumors diagnosis and treatment in Hindi
कोशिकाओं की बदलती लय से सिमटती जिंदगी
विनीता सिंघल
पिछले कुछ समय से बॉलीवुड स्टार इरफान खान की ‘रेयर’ बीमारी को लेकर तरह तरह की अफवाहें फैल रही थीं। इन सब अफवाहों पर लगाम लगाते हुए स्वयं इरफान खान ने अपनी बीमारी का खुलासा कर दिया है कि वे न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर Neuroendocrine tumor से पीड़ित हैं। अब ये सवाल उठ रहे हैं कि ये बीमारी होती क्या है, ये कैसे होती है और ये कितनी खतरनाक है। मोटे तौर पर इस तरह का ट्यूमर शरीर के उन हिस्सों में जन्म लेता है जो हार्मोन पैदा करते हैं जैसे कि एंडोक्राइन या अंतःस्रावी ग्रंथियां। शरीर के कुछ भाग जैसे कि फेफड़े, पेट और आंतों में न्यूरोएंडोक्राइन कोशिकाएं मौजूद होती हैं जो रक्त संचार सही करने और खाने को पचाने का काम करती हैं। यह ट्यूमर इन्हीं कोशिकाओं में बनता है।क्या होता है एंडोक्राइन या अंतःस्रावी तंत्र
हमारे शरीर का अंतःस्रावी तंत्र ऐसी कोशिकाओं का बना होता है जो हार्मोन निस्स्रवित करती हैं। हार्मोन ऐसे रसायनिक पदार्थ होते हैं जो रक्त प्रवाह के साथ शरीर के विभिन्न भागों में पहुंचाए जाते हैं जिनका शरीर के विभिन्न अंगों, कोशिकाओं की क्रियाओं पर विशिष्ट प्रभाव होता है।क्या होता है एंडोक्राइन या न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर Neuroendocrine tumor
कोई ट्यूमर तब बनता है जब स्वस्थ कोशिकाओं में परिवर्तन होना शुरू होता है और वे बेहिसाब बढ़ना और एक पिंड का आकार लेना शुरू कर देती हैं। यह ट्यूमर कैंसरकारी या अकैंसरकारी (बेनाइन) हो सकता है। कैंसरकारी ट्यूमर असाध्य होता है अर्थात अगर जल्दी ही इसका निदान और उपचार न हो तो यह बढ़कर शरीर के अन्य भागों में फैल सकता है। जबकि अकैंसरकारी ट्यूमर को बिना किसी हानि के सर्जरी द्वारा निकाला जा सकता है।एंडोक्राइन ट्यूमर (NET) एक ऐसा पिंड होता है जो शरीर के ऐसे भागों में बनता है जो हार्मोन का उत्पादन करते हैं। क्योंकि एंडोक्राइन ट्यूमर उन कोशिकाओं में बनता है जो हार्मोन बनाती हैं, इसलिए कोशिकाओं के साथ साथ ट्यूमर भी हार्मोन का उत्पादन कर सकता है। इससे गंभीर बीमारी हो सकती है।
न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर Neuroendocrine tumor शरीर के न्यूरोएंडोक्राइन तंत्र की हार्मोन बनाने वाली कोशिकाओं में बनता है, जो हार्मोन उत्पादक एंडोक्राइन कोशिकाओं और तंत्रिका कोशिकाओं का संयोजन होती हैं। आमतौर से इसकी वृद्धि बहुत धीमी गति से होती है। आरम्भिक अवस्था में इसके कोई लक्षण भी दिखायी नहीं देते और जब इसका पता चलता है तो यह शरीर के कई अंगों में फैल चुका होता है।
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क्योंकि न्यूरोएंडोक्राइन कोशिकाएं पूरे शरीर के विभिन्न अंगों जैसे कि फेफड़ों, अमाशय एवं आंतों सहित गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल टैक्ट में पायी जाती हैं। न्यूरोएंडोक्राइन कोशिकाएं कुछ विशिष्ट काम करती हैं जैसे कि फेफड़ों से होकर गुजरने वाले वायु एवं रक्त के प्रवाह को नियंत्रित करना और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल टैक्ट से आहार का तेजी से गुजरना आदि। न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर Neuroendocrine tumor कई प्रकार के हो सकते हैं, यह इस पर निर्भर करता है कि वह शरीर के किस भाग में विकसित हुआ है। सामान्यतया न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर Neuroendocrine tumor आहार नली या अग्नाशय में विकसित होता है। इस ट्यूमर को सामूहिक रूप से गैस्ट्रोएंटीरोपैक्रिएटिक न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर Neuroendocrine tumor कहते हैं।
आहारनली का न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर Neuroendocrine tumorः
यह सबसे अधिक पाया जाने वाला न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर Neuroendocrine tumor है। इसे कार्सिनॉयड भी कहते हैं। गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर Gastrointestinal neuroendocrine tumor, छोटी एवं बड़ी आंत सहित आहार नली के किसी भी भाग में हो सकते हैं। इसके लक्षण इस प्रकार हैंः* उदर या मलाशय में बेचैनी या दर्द
* मचली और वमन
* डायरिया
* मलाशय से रक्तस्राव या मल में रक्त का आना
* रक्त अल्पता और उसके कारण होने वाली थकान
* सीने में जलन या अपाचन
* अमाशय में अल्सर- इनके कारण सीने में जलन, अपाचन और सीने एवं उदर में दर्द
* भार में कमी
* आंत में अवरोध- इसके कारण उदर में दर्द और कब्ज
कार्सिनॉयड सिंड्रोम अनेक लक्षणों का समूह होता है जो न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर के बड़ी मात्रा में सीरोटोनिन और अन्य रसायनों को रक्त में स्रवित करने के कारण उत्पन्न होते हैं। किसी भी प्रकार के न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर में कार्सिनॉयड सिंड्रोम हो सकता है। यह सामान्यतः छोटी आंत में होने वाले न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर के कारण होता है जो यकृत तक फैल जाता है।
कार्सिनॉयड सिंड्रोम के लक्षण :
कार्सिनॉयड सिंड्रोम के लक्षण इस प्रकार हैंः* त्वचा का लाल होना
* डायरिया
* सांस लेने में कठिनाई और घरघराहट होना
* दिल की धड़कन तेज और अनियमित होना
* निम्न रक्तचाप
* हृदय आघात
अग्नाशय का न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर Neuroendocrine tumorः
यह अग्नाशय में विकसित होता है। ये अत्यंत दुर्लभ प्रकार के ट्यूमर हैं। इसके विभिन्न प्रारूप होते हैंः* इंसुलिनोमस - जो इंसुलिन बनाते हैं।
* गैस्ट्रिनोमस - जो गैस्ट्रिन (भोजन को पचाने में सहायक हार्मोन) बनाते हैं।
* ग्लुकागोनोमस - यह ग्लुकागॉन (रक्त शर्करा के स्तर को बढ़ाने में सहायक हार्मोन) बनाते हैं।
* वाइपोमस - यह पाचन तथा अन्य शारीरिक प्रक्रियाओं में सहायक वासोएक्टिव इंटेस्टाइनल पेप्टाइड बनाते हैं।
* सोमैटोस्टेटाइनोमा - जो पाचन में सहायक हार्मोन सोमैटोस्टेटिन बनाते हैं।
इनमें से कुछ ट्यूमर अग्नाशय के बाहर विकसित होते हैं। जैसे कि गैस्ट्रिनोमस को अंडाशय, गुर्दे, अमाशय और यकृत में भी विकसित होते देखा गया है।
पैक्रिएटिक न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर के लक्षण :
पैक्रिएटिक न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैंः* रक्त में ग्लूकोज का उच्च स्तर अर्थात हाइपरग्लिसीमिया Hyperglycemia होना। ग्लूकोज ऐसी शर्करा होती है जो शरीर में ऊर्जा में बदल जाती है। हाइपरग्लिसीमिया के कारण भूख और प्यास, दोनों बढ़ जाती हैं।
* रक्त में ग्लूकोज का उच्च स्तर अर्थात हाइपोग्लिसीमिया होना। इसके कारण थकान, घबराहट और कंपन, चक्कर आना, पसीना आना, दौरे एवं बेहोशी होती है।
* अतिसार से ग्रस्त मरीजों को होता है ज्यादा खतरा। डॉक्टरों की मानें तो न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर की बीमारी पिछले कुछ समय से लगातार बढ़ रही है। इस बीमारी का सबसे बड़ा लक्षण है लगातार डायरिया होना। अगर 20 से 25 दिनों तक किसी को लगातार दस्त हो रहे हों तो तुरंत इसकी जांच करानी चाहिए।
* भूख न लगना या भार में कमी होना
* कफ बनना
* शरीर के किस्से भाग में गांठ बनना
* मूत्र या मल त्याग की आदतों में बदलाव आना
* बहुत अधिक भार बढ़ना या घटना
* पीलिया जिसमें त्वचा पीली और आंखें सफेद हों
* अचानक रक्तस्राव या स्राव होना
* लगातार ज्वर होना या रात में पसीना आना
* सिरदर्द होना
* उत्तेजना बढ़ना
* गैस्ट्रिक अल्सर होना
* त्वचा पर चकत्ते पड़ना
* कुछ लोगों में बीमारी की शुरूआत से ही पोषक तत्वों जैसे कि निआसिन और प्रोटीनों की कमी हो जाती है। कुछ लोगों में ये लक्षण बाद में विकसित होते हैं।
फेफड़ों का न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर :
यह फेफड़ों में विकसित होता है। फेफड़ों में विकसित होने वाला एनईटी अधिकतर कार्सिनॉयड ट्यूमर होता है। फेफड़ों में ट्यूमर अधिकतर वायुमार्गों में विकसित होता है जिसके लक्षण इस प्रकार होते हैंः* लगातार कफ बने रहना
* कफ में खून का आना
* सांस लेने में कठिनाई होना
* थकान होना
* न्यूमोनिया होना
* कार्सिनॉड सिंड्रोम - इसमें त्वचा का छिलना, डायरिया और सांस में घरघराहट होना शामिल है।
शरीर में कॉर्टिसॉल की बहुत अधिक मात्रा होने के कारण कुशिंग सिंड्रोम होता है। यह न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर, विशेष रूप से फेफड़ों के न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर से पीड़ित लोगों में देखा जाता है जब एड्रीनोकॉर्टिकोट्रोपिक हार्मोन (ACTH) बहुत अधिक मात्रा में रिलीज किया जाता है। कुशिंग सिंड्रोम के लक्षण या संकेत इस प्रकार होते हैंः
* भार का बढ़ना
* चेहरे पर लालिमा एवं सूजन आना
* मांसपेशियों का कमजोर होना
* शरीर और चेहरे पर तेजी से बालों का बढ़ना
* कॉलर बोन के ऊपर या कंधों के बीच वसा का जमा होना
* त्वचा पर बैंगनी रेखाएं पड़ना
* उच्च रक्त चाप
* रक्त में शर्करा के स्तर का बढ़ना
* व्यवहार या मूड में परिवर्तन होना
कुछ अन्य दुर्लभ प्रकार
एड्रीनल ग्रंथि का न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर या फीओक्रोमोसाइटोमा Feocromocitoma :
फीओक्रोमोसाइटोमा एक दुर्लभ ट्यूमर है जो एड्रीनल ग्रंथि की क्रोमाफिन कोशिकाओं में बनता है। ये विशेषीकृत कोशिकाएं तनाव के समय एड्रीनेलिन हार्मोन निस्स्रवित करती हैं। फीओक्रोमोसाइटोमा अधिकतर एड्रीनल ग्रंथियों के भीतरी भाग एड्रीनल मेड्यूला में होता है। इस प्रकार के ट्यूमर से एड्रीनेलिन और नॉरएड्रीनेलिन हार्मोनों का उत्पादन बढ़ जाता है, जिससे रक्त चाप और हृदय गति बढ़ जाती है। हालांकि फीओक्रोमोसाइटोमा आमतौर से अकैंसरकारी होता है, फिर भी इससे जीवन को खतरा हो सकता है क्योंकि ट्यूमर बहुत बड़ी मात्रा में एड्रीनेलिन रक्त प्रवाह में निर्मुक्त कर सकता है। फीओक्रोमोसाइटोमा से पीड़ित 80 प्रतिषत लोगों में ट्यूमर एक ही एड्रीनल ग्रंथि में होता है, 10 प्रतिषत लोगों में दोनों ग्रंथियों में, जबकि 10 प्रतिषत लोगों में ट्यूमर एड्रीनल ग्रंथियों के बाहर होता है।फीओक्रोमोसाइटोमा के लक्षण :
* उच्च रक्तचाप होना* उत्तेजना के दौरे पड़ना
* ज्वर आना
* सिरदर्द होना
* पसीना आना
* मचली होना
* वमन होना
* चिपचिपी त्वचा
* नाड़ी की गति तेज होना
* दिल की धड़कन तेज होना
त्वचा का न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर या मर्केल कोशिका कैंसर
मर्केल कोशिका कैंसर अत्यंत आक्रामक, या तेजी से बढ़ने वाला दुर्लभ कैंसर होता है। यह त्वचा के ठीक नीचे हार्मोन उत्पादक कोशिकाओं, हेयर फॉलिकिल्स में होता है। यह आमतौर से सिर और गर्दन वाले भाग में होता है। मर्केल कोशिका कैंसर को त्वचा का न्यूरोएंडोक्राइन कार्सिनोमा या टेबेकुलर कैंसर भी कहते हैं।
* त्वचा पर लाल, गुलाबी या नीले रंग के दर्द रहित कड़े, चमकदार पिंड होना ही मर्केल कोशिका कैंसर के प्रमुख लक्षण होते हैं।
खतरे के कारक
किसी भी व्यक्ति में निम्न कारक न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर विकसित होने के खतरे को बढ़ा सकते हैंः
* आयुः फीओक्रोमोसाइटोमा सामान्यतया 40 से 60 वर्ष आयु के लोगों में होता है। मर्केल कोशिका कैंसर 70 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में होता है।
* लिंगः फीओक्रोमोसाइटोमा स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों में अधिक होता है। मर्केल कोशिका कैंसर भी स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों में ही अधिक होता है।
* जाति/नस्लः मर्केल कोशिका कैंसर अकसर श्वेत लोगों में होता है। कुछ अश्वेतों और पॉलीनेशिया के लोगों में भी यह रोग देखा गया है।
* पारिवारिक इतिवृत्तः डॉक्टरों के अनुसार यह जानलेवा बीमारी का दस प्रतिशत कारण वंशानुगत, या आनुवंशिक होता है। मल्टीपिल एंडोक्राइन निओप्लेसिया टाइप 1 (MEN1) एक वंशानुगत अवस्था है। ट्यूमर के पिट्यूटरी ग्रंथि, पैराथायरॉयड ग्रंथि और अग्नाशय में विकसित होने से खतरा बढ़ जाता है। मल्टीपिल एंडोक्राइन निओप्लेसिया टाइप 2 (MEN2) फीओक्रोमोसाइटोमा सहित मेड्यूलरी थायरॉयड कैंसर तथा अन्य प्रकार के कैंसरों से संबंधित वंशानुगत अवस्था होती है। परिवार में माता या पिता को यह बीमारी हो तो उनसे उनके बच्चे को होने का खतरा रहता है। बच्चे में इस बीमारी का पता लगाने के लिए आनुवंशिक परीक्षण जरूरी होता है। अगर परीक्षण में बच्चे में यह बीमारी पाई जाती है तो सर्जरी करके उसकी थायरायड ग्रंथि निकाल जाती है। इससे उसे ट्यूमर होने का खतरा कम हो जाता है।
* कमजोर प्रतिरक्षी तंत्रः ह्यूमन इम्म्युनोडिफिशियेंसी वाइरस (HIV) से पीड़ित लोग जिन्हें एक्वायर्ड इम्म्युनोडिफिषियेंसी सिंड्रोम होता है, और जिन लोगों का प्रतिरक्षी तंत्र अंग प्रत्यारोपण के कारण कमजोर हो गया हो, उनमें न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर विकसित होने का खतरा बहुत बढ़ जाता है।
* मर्केल कोशिका पोलिओवाइरस (MCV): शोधों में इस वाइरस और मर्केल कोशिका कैंसर के बीच संबंध पाया गया है। मर्केल कोशिका कैंसर के लगभग 80 प्रतिषत रोगियों में एमसीवी पाया गया है। हालांकि वैाानिकों का मानना है कि इसके लिए और अनुसंधान किए जाने की जरूरत है।
* आर्सेनिक के संपर्क में आनाः वैज्ञानिकों का मानना है कि आर्सेनिक जो एक प्रकार का विष होता है, के संपर्क में आना भी मर्केल कोशिका कैंसर के खतरे को बढ़ा सकता है।
* डायबिटीजः जो लोग लंबे समय तक डायबिटीज से पीड़ित होते हैं, उनमें न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर बनने का खतरा बढ़ जाता है। यह खतरा विशेष रूप से स्त्रियों में होता है।
* कुछ अन्य मेडीकल अवस्थाएंः अगर बहुत लंबे समय तक आंतों या अमाशय की लाइनिंग में सूजन रहे, इस अवस्था को क्रानिक एट्रॉफिक गैस्ट्रिाइटिस कहते हैं, अमाशय या आंतों में न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर विकसित होने का खतरा होता है।
न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर होने के कुछ अन्य कारकों का भी अध्ययन किया गया है लेकिन अभी पूरी तरह यह सुनिश्चित नहीं हो सका है कि ये न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर के खतरे को जन्म देते हैं। जैसे किः
* संतृप्त वसाएंः एक अमेरिकी अध्ययन में देख गया है कि जो लोग अधिक मात्रा में संतृप्त वसाओं का सेवन करते हैं, उनकी छोटी आंत में, कम वसा का सेवन करने वालों की अपेक्षा न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर का खतरा ज्यादा होता है। लेकिन अभी इसे पूरी तरह सिद्ध करने के लिए कि वसा का न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर से कोई संबंध है, और अनुसंधानों की आवश्यकता है।
* धूम्रपान और अल्कोहलः धूम्रपान और अल्कोहल का सेवन संभवतः अग्नाशय में न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर के खतरे को बढ़ा सकते हैं लेकिन निश्चित रूप से कुछ कह पाना अभी संभव नहीं है।
* मोटापाः मोटापा अनेक बीमारियों का घर होता है। अमेरिका में किए गए अध्ययनों के अनुसार देखा गया है कि मोटे लोगों की छोटी आंत में न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर का खतरा अधिक होता है।
* हार्मोन रिप्लेसमेंट थिरैपी (HRT) हार्मोन रिप्लेसमेंट थिरैपी छोटी आंत में न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर Neuroendocrine tumor के खतरे को दोगुना कर देती है। लेकिन विभिन्न प्रकार की हार्मोन थिरैपी और उसमें न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर Neuroendocrine tumor विकसित होने के संभावित खतरे पर और अध्ययन किए जाने की आवश्यकता है।
ग्रेड
कैंसर के ग्रेड से डॉक्टर को यह पता लगता है कि ट्यूमर कितनी तेजी से बढ़ रहा है और क्या यह शरीर के अन्य भागों में फैल सकता है। ग्रेड से यह भी पता लगता है कि ट्यूमर कोशिकाएं कितनी सामान्य या असामान्य हैं, ये कितनी तेजी से विभाजित हो रही हैं। परीक्षणों से कोशिका विभाजन की दर का भी पता लगाया जा सकता है। ग्रेड को तीन चरणों में बांटा जा सकता है। ग्रेड 1 - कोशिकाएं बिल्कुल सामान्य कोशिकाओं जैसी दिखायी देती हैं, उन्हें लो ग्रेड या सुविभेदित भी कह सकते हैं। उनके विभाजित होने की गति बहुत धीमी होती है। ग्रेड 2 - कोशिकाएं कुछ असामान्य दिखने लगती हैं। इसे लो ग्रेड और हाई ग्रेड ट्यूमर के बीच की अवस्था भी कह सकते हैं। ग्रेड 3 - कोशिकाएं पूरी तरह असामान्य दिखती हैं। वे बहुत तेजी से विभाजित होने और फैलने लगती हैं। इन्हें हाई ग्रेड या अविभेदित भी कह सकते हैं।न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर का उपचार
डॉक्टर न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर के उपचार के लिए विभिन्न विधियों का प्रयोग करते हैं। लेकिन जब ट्यूमर के स्पश्ट लक्षण सामने नहीं दिखायी तब सीधे कोई उपचार करना कठिन हो जाता है। न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर बढ़ने की दर अलग अलग होती है लेकिन कभी कभी वे बहुत धीमी गति से बढ़ते हैं। कभी कभी तो ये महीनों-सालों तक बिना बढ़े यूं ही पड़े रहते हैं। ऐसे में डॉक्टर स्कैनिंग के जरिए केवल इन पर नजर रखते हैं। लेकिन जब ट्यूमर बढ़ने लगता है या उसके लक्षण प्रकट होने लगते हैं तो अगर संभव हो तो ट्यूमर को निकालने के लिए सर्जरी की जाती है। अगर सर्जरी करना संभव न हो तो लक्षणों के अनुसार ट्यूमर के नियंत्रण के लिए अनेक उपचार आजमाए जाते हैं। कई बार एक साथ कई प्रकार के उपचार किए जाते हैं। इनमें शामिल हैंः1. सर्जरी :
फीओक्रोमोसाइटोमा और मर्केल कोशिका कैंसर के लिए सर्जरी ही प्रमुख उपचार है। सर्जरी के दौरान, डॉक्टर ट्यूमर के साथ, उसके आस पास की कुछ स्वस्थ कोशिकाओं को भी निकाल देते हैं। इसके लिए अधिकतर लैप्रोस्कोपिक सर्जरी की जाती है। अगर सर्जरी से ट्यूमर को निकालना संभव न हो डॉक्टर दूसरे उपचारों की सलाह देते हैं।2. रेडिएशन थिरैपी :
रेडिएशन थिरैपी में ट्यूमर कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए उच्च ऊर्जा एक्स-किरणों या अन्य कणों का प्रयोग किया जाता है। आमतौर से रेडिएशन थिरैपी की सलाह तब दी जाती है जब ट्यूमर ऐसे स्थान पर हो जहां सर्जरी कर पाना कठिन या असंभव हो। जब न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर फैलने लगता है, तब भी रेडिएशन थिरैपी की जाती है। सामान्यतया दिए जाने वाले रेडिएशन उपचार को एक्सटरनल-बीम रेडिएशन थिरैपी कहते हैं क्योंकि इसमें शरीर के बाहर से मषीन द्वारा रेडिएशन दिया जाता है। जब रेडिएशन उपचार देने के लिए इम्प्लांट का उपयोग किया जाता है तो इसे इन्टरनल रेडिएशन थिरैपी या ब्रेकीथिरैपी कहते हैं। रेडिएशन थिरैपी एक निष्चित अवधि में, निश्चित संख्या में उपचार दिए जाते हैं। मर्केल कोशिका कैंसर के लिए, अकसर रोग की पहली और दूसरी अवस्था में सर्जरी के बाद रेडिएशन थिरैपी दी जाती है। इसे एडजुवेंट थिरैपी कहते हैं। थकान महसूस होना, त्वचा पर चकत्ते बनना, पेट का अपसेट होना या अतिसार होना रेडिएशन थिरैपी के कुछ पार्ष्व प्रभाव हैं जो उपचार खत्म होने के बाद स्वयं ही खत्म हो जाते हैं।3. कीमोथिरैपी :
कीमोथिरैपी में कोशिकाओं के बढ़ने और विभाजित होने की क्षमता को रोक कर, ट्यूमर कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है। इसमें शरीर के किसी भी भाग में ट्यूमर कोशिकाओं तक रसायनों को रक्त प्रवाह के जरिए पहुंचाया जाता है। इसमें रोगी को एक बार में एक औशधि या विभिन्न औशधियों के संयोजन को आंतरषिरीय रूप से या गोली के रूप में दिया जाता है। कीमोथिरैपी के पार्ष्व प्रभाव व्यक्ति विशेष पर या दी गई औषधि की मात्रा पर निर्भर करते हैं। इनमें थकान, किसी प्रकार का संक्रमण, मचली और वमन, भूख की कमी और डायरिया, बालों का झड़ना आदि प्रमुख हैं।4. टार्गेटेड थिरैपी
टार्गेटेड थिरैपी या लक्षित उपचार में, उपचार का लक्ष्य मुख्यतः ट्यूमर की विशिष्ट जीन, प्रोटीन, या ऊतकों के आस पास का वह वातावरण होता है जो इसकी वृद्धि में योगदान देता है। इस उपचार से ट्यूमर कोशिकाओं की वृद्धि और प्रसार रुक जाता है और स्वस्थ कोशिकाओं को कुछ खास नुकसान नहीं होता। अध्ययनों में देखा गया है कि सभी ट्यूमरों का समान लक्ष्य नहीं होता। प्रभावी उपचार के लिए पहले सही जीन, प्रोटीन और अन्य कारकों का पता लगाने के लिए अनेक परीक्षण किए जाते हैं।न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर का निदान और उपचार दोनों ही ट्यूमर के प्रकार, इसके स्थान के साथ साथ इस पर निर्भर करते हैं कि यह अतिरिक्त हार्मोन का उत्पादन कर रहा है या नहीं, यह कितना आक्रामक है और यह शरीर के अन्य भागों तक फैला है या नहीं। वैज्ञानिक इस बीमारी के उपचार के लिए नए नए तरीकों की खोज में जुटे हैं। डॉक्टरों का मानना है कि यह बीमारी बेहद दुर्लभ तो है लेकिन अगर समय रहते इसका पता लग जाए तो यह लाइलाज नहीं है। इसका खतरा सबसे अधिक 40 वर्ष की आयु के आस पास के लोगों को अधिक होता है। रक्त चाप, सिरदर्द और बहुत ज्यादा पसीना आने पर इस उम्र के लोगों को बिना देर किए तुरंत जांच करानी चाहिए।
-लेखिका परिचय-
डॉ. विनीता सिंघल देश की प्रतिष्ठित विज्ञान संचारक हैं। आपकी विभिन्न विषयों पर 35 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। साथ ही आपने 20 से अधिक पुस्तकों का सम्पादन व इतनी ही पुस्तकों को अनुवाद भी किया है। आप पूर्व में 'विज्ञान प्रगति' एवं 'साइंस रिपोर्टर' जैसी पत्रिकाओं की सह सम्पादक रह चुकी हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं आकाशवाणी से आपके 700 से अधिक लेख प्रकाशित/प्रसारित हो चुके हैं। विज्ञान संचार के क्षेत्र में उल्लेखनीय योागदान के लिए आपको 'आत्माराम पुरस्कार' सहित देश के अनेक प्रतिष्ठित सम्मान/पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं।
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