World Water Day (22 March) Article in Hindi
हम रोज ज़हर पानी में घोल भी रहे हैं और उसका सेवन भी कर रहे हैं। पानी में घुला ज़हर हर वनस्पति में अवशोषित होता है तथा वहां से हमारे खाने में। इन संदूषणों के प्रभाव विध्वंसकारी हैं जो वक्त के साथ-साथ हमें अपने शरीर की घटती प्रतिरोधक क्षमता, बढ़ती बीमारियों और खत्म होते जीवन के रूप में दिखाई दे रही हैं।
सहजे पानी- संवारे दुनिया
-नवनीत कुमार गुप्ता
जल की प्रत्येक बूंद अनमोल है। फिर भी न जाने क्यों आज अधिकतर लोग यह कहावत भूलने लगे हैं कि बूंद-बूंद से घड़ा भरता है। जल की बर्बादी करने वालों को उसकी बूंद-बूंद की कीमत का असली पता तब ही लगेगा जब उन्हें बताया जाए कि आज भी हमारे देश में लाखों महिलाओं को पीने के पानी की व्यवस्था करने के लिए कोसों जाना पड़ता है। ऐसी स्थिति में जब हमें अनेक नलों पर टोंटी नहीं दिखती और वहां पानी की बर्बादी होती दिखती है तो हम यह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि क्यों कुछ लोग पानी की कीमत नहीं समझ पा रहे हैं।
असल में आज पानी न केवल पेयजल बल्कि आर्थिक विकास का भी आधार साबित हो रहा है। इसीलिए हर वर्ष 22 मार्च को जल दिवस के रूप में मना कर जल की महत्ता को प्रचारित करने का प्रयास किया जाता रहा है। इस बार जल दिवस का विषय ‘जल और धारणीय विकास’ (Water and Sustainable Development) रखा गया है।
अब सभी तो यह पता है कि पृथ्वी पर जीवन के स्थायित्व के लिए जल की अहम् भूमिका है। पृथ्वी पर जल करोड़ों वर्षों तक चली क्रियाओं का परिणाम है। पृथ्वी के जन्म के समय यानि करीब चार-पांच अरब वर्ष पहले यहां न तो जल था और न ही जीवन। आरंभिक समय में तो पृथ्वी का तापमान इतना अधिक था कि बारिश का पानी तुरंत ही भाप बन जाता था। जैसे-जैसे पृथ्वी का तापमान कम होता गया, वायुमंडल में फैली हुई नमी जल में बदल कर अनवरत वर्षा के रूप में पृथ्वी पर गिरने लगी। इस प्रकार से वर्षा का जल पृथ्वी के गढ्ढों में इकट्ठा होने लगा।
इस प्रक्रिया के करोड़ों वर्षों तक जारी रहने के उपरांत महासागरों का जन्म हुआ। इस प्रकार हमारी पृथ्वी का लगभग एक तिहाई भाग पानी से घिर गया और और शेष भाग ऊंचाई पर स्थित होने के कारण द्वीपों के रूप में अस्तित्व में आए। पृथ्वी पर जीवन का आरंभ महासागरों से माना जाता है। जल में ही पहली बार जीवन का अंकुर फूटा था। तबसे ही जल पृथ्वी पर जीवन का प्रतीक है।
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सभी जानते हैं कि जल का मुख्य स्रोत बारिश है। सभी स्रोतों में चाहें वह नदी हो या नहर या जमीन के नीचे मौजूद पानी का आथाह भंडार, जल की आपूर्ति बारिश द्वारा ही होती है। हमारे देश में भारी बारिश लगभग 100 घंटों में हो जाती है, यानी साल के 8,760 घंटों में हमें सिर्फ 100 घंटों में बरसे पानी से ही काम चलाना है।
वर्तमान में प्रदूषण के कारण जल की गुणवत्ता में गिरावट आई है। औद्योगीकरण और गहन कृषि तथा शहरीकरण के चलते सतही जल के साथ-साथ नदियों और भू-जल का अंधाधुंध दोहन किया गया है। आज पानी की मात्रा और गुणवत्ता दोनों में भयानक कमी देखी जा रही है। कई इलाकों में पानी में इतने भारी तत्व और अन्य खतरनाक रसायन प्रवेश कर चुके हैं कि वह पानी अब किसी भी जीव के उपयोग के लिए सही नहीं है। आज समाज और व्यक्ति ‘बिन पानी सब सून’ जैसी पुरानी और सार्थक कहावतों को भूलकर, पानी को संचय करने की हजारों साल पुरानी परंपराओं को भूल गया जिसके परिणामस्वरूप भारत समेत विश्व के अधिकतर देशों को जलसंकट की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
पानी में यह जहर या संदूषण विभिन्न माध्यमों से जैसे औद्योगिक तरल अपशिष्ट को सीधे नदी में बहा देना या घरेलू खतरनाक अपशिष्ट को सीधे नदी में डाल देने से फैलता है। इसके अलावा कृषि में उपयोग किए गए रसायनों जैसे रासायनिक खाद, खरपतवारनाशी, कीटनाशी आदि का मिट्टी के क्षरण या कटाव के द्वारा पानी में घुल जाने से भी पानी की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
इसके अलावा जैविक पदार्थ और मल आदि से भी नदियों का पानी दूषित होता है। एक अध्ययन के अनुसार भारत में मानव और पशुओं के अपशिष्ट के प्रबंधन की कोई सही व्यवस्था नहीं है। हालांकि यह समस्या ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में समान ही है, परन्तु तेजी से बढ़ते महानगरों में अपशिष्ट के प्रबंधन की समस्या ज्यादा गंभीर है। औद्योगिक गतिविधियां से काफी बड़ी मात्रा में जैविक पदार्थ नदियों में मिलते हैं जो उसे प्रदूषित करते हैं। जैविक पदार्थों को नदी में डालने से नदी में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा में कमी आ जाती है।
लेकिन इन सब से ज्यादा खतरनाक है, नदी में मानव द्वारा निर्मित जैविक संदूषकों और भारी तत्वों का घुलना। इलैक्ट्रोप्लेटिंग, रंगाई के कारखाने और धातु आधारित उद्योगों आदि के कारण भारी तत्वों का काफी बड़ी मात्रा में उत्सर्जन होता है, जो नदी में घुल जाते हैं और इससे पूरे मानव समाज के साथ-साथ पशु-पक्षियों और नदी के जीवों पर भी बड़ा भयानक प्रभाव पड़ता है। पेंट, प्लास्टिक आदि उद्योगों के अलावा गाड़ी आदि के धुएं में भी सीसे, पारे आदि जैसे भारी तत्वों की काफी मात्रा होती है और यह कैंसर जैसे रोग पैदा करने के साथ-साथ सांस की भयानक बीमारियों को जन्म देते हैं और बच्चों में मस्तिष्क का विकास भी प्रभावित होता है। इस प्रकार तरह-तरह के त्वचा रोग भी इन प्रदूषकों की ही देन हैं।
जल की गुणवत्ता में गिरावट और संदूषण के लिए मुख्यतः औद्योगिक, घरेलू, कृषि रसायनों तथा अंधाधुंध पानी के दोहन को ही जिम्मेदार माना जाता है। भारत में हुए एक अध्ययन का यह निष्कर्ष निकला है कि ज्यादातर भूजल संदूषण शहरी विकास के संदर्भ में बनाई गई गलत और अनुपयोगी नीतियों का ही नतीजा है।उद्योगों में जल को बगैर उपचारित करे बहा देना, कृषि में रासायनिक खाद और कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग और इसके साथ-साथ भूमि में जमा जल का सिंचाई के लिए गैर-जरूरी दोहन, पानी में घुलते ज़हर की समस्या में भारी इजाफ़ा करते हैं।
अस्सी के दशक में हुए एक सर्वेक्षण से यह सामने आया था कि भारत में करीब 7452 करोड़ लीटर अपशिष्ट जल प्रति दिन पैदा होता है, जो आज इससे कई गुना बढ़ गया है और अगर इस दूषित जल का उपचार ठीक से नहीं किया गया तो यह बहुमूल्य भू-जल को भी विषैला बना देगा। पश्चिम बंगाल के आठ जिलों में आर्सेनिक की विषाक्तता पाई गई है। पारा पश्चिम बंगाल से लेकर मुम्बई के तटों पर भी मौजूद है। भारत में तेरह राज्य फ्लूरोसिस से ग्रसित घोषित किए गए हैं। फ्लूरोसिस प्राकृतिक रूप से मौजूद फ्लोराइड के खनिजों की अधिकता से होता है। भारत में करीब 5 लाख लोग फ्लोराइड की अधिकता से पीड़ित हैं। इसी तरह, भारत के कुछ राज्यों में पानी में लौह तत्व की भी अधिकता देखी गई है, हालांकि लौह हमारे शारीरिक तंत्र को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाता, परन्तु लम्बी अवधि तक यह ऊतकों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देता है।
हम रोज ज़हर पानी में घोल भी रहे हैं और उसका सेवन भी कर रहे हैं। पानी में घुला ज़हर हर वनस्पति में अवशोषित होता है तथा वहां से हमारे खाने में। इन संदूषणों के प्रभाव विध्वंसकारी हैं जो वक्त के साथ-साथ हमें अपने शरीर की घटती प्रतिरोधक क्षमता, बढ़ती बीमारियों और खत्म होते जीवन के रूप में दिखाई दे रही हैं। हमने पानी और अपने जीवन में बहुत ज़हर घोल लिया।
अब जरूरत है अपनी पारंपरिक मान्यताओं और ज्ञान की ओर लौटने के साथ हमेशा से पवित्र और अमृत तुल्य समझे जाने वाले जल के संरक्षण के लिए प्रयासरत हो जाएं ताकि जीवन को पोषित करने वाले जल को शुद्ध और स्वच्छ बनाए रखें।
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नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं। आपसे मेल आईडी ngupta@vigyanprasar.gov.in पर संपर्क किया जा सकता है।
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Sahi kaha aapne, pani ki har boond ko bachana hoga.
जवाब देंहटाएंपानी का न सिर्फ बचाना बल्कि उसको स्वछ रखना भी हमारा दायित्व है . हर नागरिक को यह जिमेदारी अपने स्तर पर निभानी चाहिए
जवाब देंहटाएंwater is life..........
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