Chandrayaan 2 Mission in Hindi
इसरो का महत्वकांक्षी अभियान चंद्रयान-2
-नवनीत कुमार गुप्ता
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो (Indian Space Research Organisation -ISRO)द्वारा विगत कुछ वर्षों से अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत को नयी पहचान दिलाई है। आज अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत विश्व के शीर्ष देशों में शामिल है। कुछेक मामलों में तो सटिकता और लागत के स्तर पर भारत ने सभी देशों को पीछे छोड़ दिया है। इसी कड़ी में चंद्रयान-2 (Chandrayaan 2) अभियान भी शामिल है। यह अभियान चंद्रयान-1 अभियान की सफलता के बाद उठाया गया कदम है जिसमें चंद्रमा के संबंध में ओर भी वैज्ञानिक अध्ययन किए जाएंगे।
इसरो द्वारा पहले 15 जुलाई, 2019 को चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण किया जाना था लेकिन प्रक्षेपण के लगभग एक घंटे पहले कुछ तकनीकी कारणों से अभियान को टालना पड़ा। यह कदम इसरो की सतर्कता का परिचायक है जिसने अंतिम क्षणों में तकनीकी त्रुटि को समझ कर यह निर्णय लिया।
तकनीकी ख़ामी को दूर करके चंद्रयान-2 को इसरो द्वारा कुछ दिनों बाद प्रक्षेपित किया जाएगा। इस अभियान से भारत, सोवयत संघ, अमेरिका और चीन के बाद चंद्रमा पर गहन अभियान भेजना वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा।
क्या है चंद्रयान-2 का उद्देश्य
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी का ये बहुप्रतीक्षित अभियान चंद्रमा को बेहतर ढंग से समझने के लिए नई खोज करने में मदद करेगा। इस अभियान के जरिये, इसरो उन स्थानों पर खोज करेगा जहां अब से पहले किसी देश ने अभियान नहीं भेजा, ये स्थान है, चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र। इस चंद्र अन्वेषण अभियान का उद्देश्य चंद्रमा के पर्यावरण को जानना और उसका अध्ययन करना है। आगे यह अभियान चंद्र की सतह पर पानी के अणुओं और खनिज संपदा की मौजूदगी का पता लगाएगा करेगा। इस मिशन का प्रक्षेपण सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से जीएसएलवी मार्क III से किया जाएगा।
चंद्र अभियान 2 में, ऑर्बिटर (Orbiter), लैंडर (Lander)- विक्रम (Vikram) और प्रज्ञान रोवर (Pragyan Rover) शामिल हैं। इस अंतरिक्षयान का डिजाइन और विकास इसरो द्वारा किया गया है। इस अंतरिक्षयान के सभी भागों को निर्दिष्ट कार्यों को करने के लिए डिजाइन किया गया है। ऑर्बिटर चंद्रमा के चारों ओर परिक्रमा करेगा और इसे पृथ्वी और लैंडर- विक्रम के बीच रिले संचार का संचालन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। लैंडर का मुख्य कार्य दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र में सरलत सॉफ्ट लैंडिंग करना है। अपने प्रक्षेपण के बाद चंद्रमा तक पहुंचने के लिए ये लगभग 52 दिनों का समय लेगा।
इस गहन अतंरिक्ष अभिान अभियान में पहली बार रोबोटिक रोवर की तरह कुछ खास तकनीकों का परीक्षण करेगा। इसके परीक्षण से विस्तृत मानचित्रण परिदृश्य बनेगा जिससे चंद्रमा की सतह की संरचना को समझने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, इस अभियान में अन्वेषण से जो विवरण हासिल होगें उससे सौर मंडल में चंद्रमा की उत्पत्ति और इसके विकास का पता लगाने में मदद मिलेगी। अंतरिक्ष वैज्ञानिक, चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र में अन्वेषण की योजना बना रहे हैं, क्योंकि चंद्रमा का यह भाग उसका अंधियारा हिस्सा है और इस स्थान पर पानी और खनिजों की उपस्थिति की संभावना हो सकती है। इसके अलावा, दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र में कई क्रेटर (craters) भी हो सकते हैं, जो सौर मंडल की उत्पत्ति को समझने में हमारी मदद करेंगे।
इसरो लैंडर विक्रम और प्रज्ञान रोवर का उपयोग निर्दिष्ट स्थान पर उतरने के लिए करेगा जिसमें दो क्रेटर्स मैंजिनस C (Manzinus C) और सिमपेलियस N (Simpelius N) शामिल हैं। अंतरिक्षयान के चंद्रमा की सतह पर उतरने के बाद रोवर प्रज्ञान वहां की सतह का सर्वे करेगा। लैंडर और रोवर एक साथ चंद्रमा की सतह के भौतिक और थर्मल गुणों का अध्ययन करेंगे। साथ ही, अंतरिक्ष यान चंद्रमा के चारों ओर वायुमंडलीय प्लाज्मा की जांच करेगा।
इसके अलावा, इस अभियान के अन्य पेलोड में, बड़े क्षेत्र सॉफ्ट एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर, इमेजिंग आईआर स्पेक्ट्रोमीटर, ऑर्बिटर हाई-रिज़ॉल्यूशन कैमरा शामिल हैं। इस अभियान की कुल लागत 978 करोड़ है। ISRO चंद्रमा की सतह में रोवर के नेविगेशन और मार्गदर्शन के लिए नासा के डीप स्पेस नेटवर्क का भी उपयोग करेगा। इस महत्वकांक्षी महत्वाकांक्षी अभियान की सफलता के साथ, भारत चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र पर सरलता से अपना यान उतारने वाला दुनिया का पहला देश बन जाएगा।
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