Biological Clock Theory in Hindi
टिक...टिक... चलती जाए घड़ी
-डॉ. विनीता सिंघल
वैज्ञानिक बहुत लंबे समय से मानते रहे हैं कि जीव अपने व्यवहार और कायिकी को दिन के समय के अनुसार सिरकेडियन ढंग से अनुकूलित करते हैं। ऐसा पौधों में, पत्तियों और फूलों में होने वाली गति के आधार पर माना जाता है। उदाहरण के लिए, छुईमुई (Mimosa) की पत्तियां दिन में खुल जाती हैं और रात में बंद हो जाती हैं। 1729 में, फ्रेंच खगोलविद जीन जेक्यूस Gein jesus ने छुईमुई के पौधे को कई दिनों तक अंधेरे में रखा और देखा कि पत्तियां खुली रहीं और दिन के सही समय पर ही बंद हुयीं। कई दिनों तक सूर्योदय के साथ छुईमुई की पत्तियां खिलती और सूर्यास्त के साथ बंद होती रहीं। जिससे जेक्यूस को लगा छूईमुई सूर्य के प्रकाश से प्रभावित होकर नहीं बल्कि उनमें कोई भीतरी दैनिक रिद्म होता है।लगभग 200 वर्षों के बाद, जर्मनी के पादप कायिकविद और सिरकेडियन रिद्म शोध के अग्रणी वैज्ञानिक, इरविन बनिंग Erwin Bunning ने बीन पौधे की पत्तियों को एक कीमोग्राफ से जोड़ दिया और दिन-रात के दौरान लेकिन लगातार प्रकाश में रखते हुए, पत्तियों की गतिविधियों को रिकार्ड किया। उन्होंने देखा कि पत्तियों की गति का रिद्म वही रहा। अब सवाल यह उठता है कि क्या पौधों और जीवों में व्यवहार किसी भीतरी घड़ी द्वारा निर्देशित होता है या केवल सिरकेडियन Circadian प्रकृति के बाहरी उद्दीपक के प्रति प्रतिक्रिया मात्र है। दशकों तक यह बहस जारी रही। अंततः बीसवीं शताब्दी में यह तथ्य स्थापित हुआ कि सभी जीवों में एक सिरकेडियन घड़ी होती है। जीवों के शरीर में समय का अनुमान लगाने की युक्ति को जैविक घड़ी तथा जैविक घड़ी के अनुसार कार्य करने को ‘सिरकेडियन’रिद्म’ (Circadian rhythm) का नाम दिया गया।
यह घड़ी हमारे सोने जागने से लेकर शरीर की कोशिकाओं की क्रियाओं को भी नियंत्रित करती है। निरंतर हुयी खोजों से पता चला कि पौधे, जानवर और इंसान किस प्रकार अपनी आंतरिक जैविक घड़ी के अनुरूप चलते हैं, ताकि वे धरती की परिक्रमा के अनुसार अपने को ढाल सकें। दिन रात में होने वाले परिवर्तनों को मापने के लिए मानव ने तो घड़ियों का निर्माण बहुत बाद में किया लेकिन प्रकृति ने जीवों के शरीर में जैविक घड़ी का निर्माण जीवन की उत्पत्ति के साथ ही कर दिया था। इंसान के शरीर में हार्मोन के स्तर, शरीर के तापमान और पाचन क्रिया में लगातार उतार-चढ़ाव होता रहता है। यह आंतरिक जैविक घड़ी शरीर में हार्मोन के स्तर, नींद, शरीर के तापमान, उपापचय जैसी जैविक क्रियाओं को प्रभावित करती है। वैज्ञानिकों ने उन जीनों को अलग करने में सफलता प्राप्त की जो रोजमर्रा की जैविक स्थिति को नियंत्रित करती हैं। ये जीन उस प्रोटीन को परिवर्तित करने का काम करते हैं, जो रात के समय कोशिका में जम जाता है और फिर दिन के समय बहुत ही छोटा आकार ले लेता है।
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जीवों के शरीर में आणिवक स्तर पर ऐसे क्या परिवर्तन होते हैं जिनके कारण जीव पृथ्वी की गति के साथ तालमेल बैठा पाते हैं। अब वैज्ञानिकों ने जैविक घड़ी को नियंत्रित करने वाली ‘जीन’ को खोज लिया है। इस शोध के लिए वैज्ञानिकों ने फ्रूट फ्लाई fruit fly यानी फल मक्खी को चुना। फल मक्खी पर प्रयोग करते हुए इन्होंने पाया कि एक जीन एक विशिष्टि प्रोटीन के संश्लेनषण को निर्देशित करती है। रात के समय यह प्रोटीन बन कर एकत्रित होता है और दिन के समय इसका उपयोग होता है। इसके अतिरिक्त इन्होंने कुछ अन्य प्रोटीनों का भी पता लगाया जो इस प्रक्रिया में सहायक होती हैं।
शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने देखा कि फल मक्खी के किसी जीन में उत्परिवर्तन होने से उनकी सरकेडियन रिद्म गड़बड़ा जाती है। वैज्ञानिकों ने इस अज्ञात जीन को सिरकेडियन रिद्म को नियंत्रित करने वाली जीन मान कर पीरियड का नाम दिया। बाद में जेफ्रे हॉल Jeffrey C Hall एवं माइकल रॉसबाश Michael Rosbash ने यह भी खोज निकाला है कि पीरियड जीन PER नामक प्रोटीन का उत्पादन करते हैं। इस प्रोटीन का स्तर 24 घंटे में अर्थात सिरकेडियन रिद्म के साथ बढ़ता घटता रहता है। इन्होंने यह भी खोज निकाला कि PER प्रोटीन के बढ़ते स्तर का पीरियड जीन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और जीन की गतिविधि रुक जाती है। यह जीन जैविक घड़ी को सही रखने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है। इसी वजह से शरीर की घड़ी सही काम करती है। इसमें असंतुलन आते ही शरीर की घड़ी गड़बड़ हो जाती है और शरीर बीमारियों का शिकार हो जाता है।
वैज्ञानिकों ने फल मक्खी में जैविक रिद्म को नियंत्रित करने वाले पीरियड जीन को अलग कर उस पर शोध किया और पाया कि रात के समय फल मक्खी के मस्तिष्कघ के न्यूरॉनों में PER प्रोटीन अधिकता में होता है। पीरियड जीन द्वारा एनकोडित mRNA ने भी फल मक्खी के मस्तिष्कव में जैवचक्रीय चक्रों की अधिकता दिखायी जिससे पता लगा कि PER प्रोटीन का चक्र पीरियड mRNA के चक्रण का परिणाम होता है। इस प्रकार, रात के आरंभिक चरण में, PER प्रोटीन की अधिकता से कई घंटे पहले पीरियड mRNA का स्तर उच्चतम होता है। वैज्ञानिकों ने दिखाया कि किस प्रकार यह जीन रात को कोशिकाओं में एकत्रित होने वाले विषेश प्रोटीन को दिन होते ही तोड़ देता है, जो हमारी नींद के लिए उत्तरदायी होता है।
जैविक रिद्म और नोबेल पुरस्कार:
इस शोध ने कुछ प्रश्नों के उत्तर दिए तो कुछ नए प्रश्नों को जन्म भी दिया जिनमें एक प्रश्नय यह भी था कि PER प्रोटीन कोशिकाद्रव्य में उत्पन्न होता है जबकि पीरियड जीन केंद्रक में क्रियाशील होती है। फिर PER प्रोटीन केंद्रक में कैसे पहुंचता है? इस प्रश्नं का उत्तर तलाशने में वैज्ञानिकों को एक अन्य जैवघड़ी नियंत्रक जीन मिली। इस नई जीन का नाम उन्होंने ‘टाइमलेस’ रखा और इससे उत्पन्न प्रोटीन को TIM का नाम दिया। आगे किए गए प्रयोगों में यह सिद्ध हुआ कि TIM प्रोटीन, PER प्रोटीन से जुड़ कर नया प्रारूप लेता है जो केंद्रक में प्रवेश करने में सक्षम होता है। लेकिन अब भी कुछ सवाल अनसुलझे थे। सबसे प्रमुख सवाल यह था कि इन प्रोटीनों की उत्पत्ति की आवृत्ति को दिन के प्रहरों के साथ नियमित कौन करता है? माइकल यंग ने जैव घड़ी से जुड़ी एक नई जीन खोजी। ‘डबल टाइम’ नामक इस जीन से उत्पन्न प्रोटीन को DBT का नाम दिया गया। DBT प्रोटीन का काम था PER प्रोटीन के एकत्रित होने की गति को कम करना। इस जीन का पता लगने के बाद 24 घंटे की जैविक घड़ी की कार्य प्रणाली को समझना लगभग संभव हो गया है। वर्श 2017 का चिकित्सा या कायिकी का नोबेल पुरस्कार जैविक घड़ी का आण्विक आधार की खोज के लिए प्रदान किया गया है।अब हमें मालूम है कि मानव सहित सभी बहुकोशिकीय जीवों में जैवचक्रीय सामंजस्य के नियंत्रण की क्रियाविधि समान होती है। बहुत बड़ी संख्या में हमारी जीनें जैविक घड़ी से नियंत्रित होती है, और परिणामस्वरूप, सावधानीपूर्वक अंशांकित जैवचक्रीय रिद्म दिन के विभिन्न हिस्सों में हमारी कायिकी को अनुकूलित करती हैं। इस खोज के बाद जैवचक्रीय जीवविज्ञान एक विस्तृत और अत्यंत डायनामिक शोध क्षेत्र में बदल गया है जो हमारे स्वास्थ्य से संबंधित है जैसे कि जैविक घड़ी में गड़बड़ी से मस्तिश्क की क्रिया पर असर पड़ता है। इससे तनाव, व्यक्तित्व विकार, संज्ञानात्मक क्रिया पर प्रभाव, स्मृति लोप होने के साथ साथ तंत्रिका संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। दर्द, चयापचय संबंधी बीमारियों और कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है। मानव स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए अवधि, प्रावस्था या आयाम को बदलने के लिए क्रोनोबायलॉजी Chronobiology और फार्माकोलॉजी Farmacology में अभिगम विकसित करने के प्रयास जारी हैं।
मनुष्य की बॉडी क्लॉक (शारीरिक रिद्म) की प्रमुख स्थितियां:
हर इंसान की बॉडी क्लॉक थोड़ी अलग अलग होती है, जो 22 घंटे से 25 घंटे के बीच होती है। अर्थात यह जरूरी नहीं कि धरती पर 24 घंटे का दिन होने का मतलब यह नहीं कि शरीर भी इसे 24 घंटे का ही माने। औसतन बॉडी क्लॉक 24.5 घंटे की होती है। जो लोग सुबह जल्दी उठते हैं, उनकी बॉडी क्लॉक 22 घंटे की होती है और जो देर से उठते हैं, उनकी बॉडी क्लॉक 25 घंटे की होती है। मतलब जो सुबह 5 बजे के आसपास उठते हैं उनकी बॉडी क्लॉक 24 घंटे के बजाय 22 घंटे में ही पूरी हो जाती है। सूरज की रोशनी हमारी बॉडी क्लॉक को दुनिया के 24 घंटे के चक्र के साथ सामंजस्य बैठाने में मदद करती है। इसका मतलब है कि सुबह के समय जब कोई सूरज की रोशनी के जितना संपर्क में रहता है, बॉडी क्लॉक उतनी ही तेज होती है। वहीं शाम के समय सूरज की रोशनी के संपर्क में रहने पर भी बॉडी क्लॉक धीमी चलती है।[next]
- रात 2 बजे: इस समय शरीर सबसे गहरी नींद में होता है।
- सुबह 4.30 से 5 बजे: इस समय शरीर का तापमान सबसे कम होता है।
- सुबह 6 बजे: इस वक्त शरीर तनाव बढ़ाने वाले कार्टिसोल हार्मोन Cortisol hormone का सबसे ज्यादा स्राव करता है। इसका कारण है कि इस समय शरीर जागने के लिए तैयार हो रहा होता है।
- सुबह 7 बजे: शरीर में ब्लड प्रेशर तेजी से बदलता है। यही कारण है कि स्ट्रोक या हार्ट अटैक जैसे हादसे सुबह ज्यादा होते हैं।
- सुबह 8.30 बजे: इस समय शरीर का बाउअल मूवमेंट Baul movement सबसे तेज होता है।
- सुबह 9 बजे: शरीर में टेस्टोस्टीरॉन Testosterone hormone ज्यादा बनने लगता है और शरीर किसी भी तरह की एथलेटिक गतिविधि के लिए सबसे ज्यादा तैयार होता है।
- सुबह 10 बजे: शरीर सबसे ज्यादा अलर्ट होता है। यही वजह है कि ऑफिस में काम की शुरूआत इसी समय की जाती है।
- दोपहर बाद 2.30 बजे से 5 बजे तक शरीर बेहतरीन कोऑर्डिनेशन Coordination और रिएक्ट करने के हालात में होता है।
- शाम 5 बजे शरीर पेशी सामर्थ्य और कार्डियोवैस्कुलर Cardiovascular प्रक्रिया के लिए सबसे उपयुक्त होता है।
- शाम 6.30 बजे शरीर में रक्तचाप ऊंचा होता है।
- शाम 7 बजे शरीर का तापमान सबसे ज्यादा होता है।
- रात 9 बजे शरीर में कुदरती रूप से नींद लाने वाला मेलाटोनिन Melatonin hormone बनना शुरू हो जाता है।
जैविक घड़ी हमारे शरीर को नियंत्रित करती है और इसमें किसी भी तरह का बदलाव आने पर हमारे शरीर पर बहुत गहरा प्रभाव होता है। हमारे शरीर की घड़ी अपने आसपास के माहौल के हिसाब से अपने लिए एक खास रिद्म सैट कर लेती है। रात को सोते वक्त जहां शरीर की गतिविधियां काफी धीमी पड़ जाती हैं, वहीं सुबह होने पर शरीर की अंदरूनी घड़ी ही इन्हें फिर से ट्रिगर करती है। अगर यह रिद्म बिगड़ जाए तो सो कर उठने के बाद भी शरीर सही तरह से काम नहीं करता और रोजमर्रा की जिंदगी मुश्किल हो जाती है।
शारीरिक रिद्म और जेटलैग सिंड्रोम (Jet lag syndrome):
वैज्ञानिकों ने बताया कि जैविक घड़ी के प्रभाव के कारण ही लंबी हवाई यात्रा के बाद अकसर यात्रियों को ‘जेटलैग सिंड्रोम’ Jet lag syndrome की समस्या होती है। इसमें सिरदर्द, शरीर दर्द और नींद की समस्या आम बात है। जब हम अपने टाइम जोन को बदलते हैं तो हमारी जैविक घड़ी तत्काल बाहरी वातावरण से तालमेल नहीं बैठा पाती। लंबे वक्त तक जैविक घड़ी से छेड़छाड़ शरीर में हार्मोन्स के स्राव को असंतुलित कर देता है। यह असंतुलन अगर लंबे समय तक बना रहे तो जीनों में उत्परिवर्तन की आषंका बनी रहती है और यह बदलाव ही कैंसर का कारण बन सकता है। जैविक घड़ी का दिल से भी करीबी रिश्ता होता है। अनियमित दिनचर्या रखने वालों या नाइट शिफ्ट करने वालों में मोटापा ज्यादा तेजी से बढ़ता है। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी Cambridge university के प्रोफेसर माइकल हास्टिंग Professor Michael hosting के अनुसार सेहत और व्यक्तित्व के सभी पहलुओं के साथ दवाओं और बीमारियों के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया भी आंतरिक जैविक घड़ी द्वारा नियंत्रित की जाती है। शोध से पता चला है कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में जैविक घड़ी के बिगड़ने का ज्यादा खतरा होता है।भारतीय चिकित्सा पद्धति में मानवीय क्रियाओं में समय और ऋतु के साथ सही तालमेल पर बहुत जोर दिया गया है। अब तो विज्ञान ने भी मान लिया है कि अगर यह रिद्म बिगड़ जाए तो शरीर ठीक से काम नहीं करेगा और जिंदगी मुश्किल हो जाएगी। इसलिए शरीर की घड़ी जिस तरह से शरीर को चलाती है, उस हिसाब से ही दिनचर्या बनाने से स्वस्थ जीवन जिया जा सकता है। हो सकता है कि पूरी तरह से बॉडी क्लॉक का अनुकरण करना संभव न हो सके लेकिन जितना हो सके इसका अनुकरण करें। क्योंकि रिद्म हर जिंदगी के लिए जरूरी है।
-लेखिका परिचय-
डॉ. विनीता सिंघल देश की प्रतिष्ठित विज्ञान संचारक हैं। आपकी विभिन्न विषयों पर 35 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। साथ ही आपने 20 से अधिक पुस्तकों का सम्पादन व इतनी ही पुस्तकों को अनुवाद भी किया है। आप पूर्व में 'विज्ञान प्रगति' एवं 'साइंस रिपोर्टर' जैसी पत्रिकाओं की सह सम्पादक रह चुकी हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं आकाशवाणी से आपके 700 से अधिक लेख प्रकाशित/प्रसारित हो चुके हैं। विज्ञान संचार के क्षेत्र में उल्लेखनीय योागदान के लिए आपको 'आत्माराम पुरस्कार' सहित देश के अनेक प्रतिष्ठित सम्मान/पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं।
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