Science communication Training: A Global Perspective in Hindi.
विज्ञान संचार पर विशेष श्रृंखला- कड़ी 3
प्रारंभ में, विभिन्न पृष्ठभूमि के उत्साही लोगों ने जनता को विज्ञान से परिचित कराने के प्रयास किए। लेकिन संचार और डिजिटल प्रौद्योगिकियों के अग्रिम विकास के साथ, जनमानस से संवाद स्थापित करने के तरीके भी बदल रहे हैं। बदलते समय के साथ विज्ञान संबंधी लोकप्रिय संचार की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए, विज्ञान संचार के क्षेत्र में बौद्धिक लोगों ने विज्ञान स्नातकों को विज्ञान संचार में प्रशिक्षण देने की आवश्यकता महसूस की ताकि इस क्षेत्र में पेशेवरों का एक वर्ग तैयार हो सके। विज्ञान संचार के इन पेशेवरों का प्राथमिक कार्य जनता और विज्ञान के बीच संवाद कराना हो, ताकि विज्ञान और समाज के बीच के अंतर को कम किया जा सके।
ऐसे विज्ञान संचारक वैज्ञानिकों और गैर-वैज्ञानिकों के बीच बातचीत शुरू करने और वैज्ञानिक गतिविधियों में सार्वजनिक भागीदारी बढ़ाने में विशेषज्ञ होने चाहिए। जब प्रशिक्षित पेशेवरों की आवश्यकता पूरी दुनिया में है, ऐसे में उच्च शैक्षणिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों -द्वारा चलाए जा रहे विज्ञान संचार के औपचारिक शिक्षा के पाठयक्रम बहुत सहायक सिद्ध हो रहे हैं। इस प्रकार, विज्ञान संचार एक शैक्षिक अनुशासन और पेशे के रूप में –निरंतर अपनी जगह बनाते जा रहा है। इस के अतिरिक्त, विज्ञान संचार के क्षेत्र में सक्रिय शोध तो भी बल मिल रहा है।
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स्नातक और परास्नातक स्तर पर विज्ञान संचार में शैक्षणिक पाठ्यक्रम दुनिया भर में आरंभ किए गए हैं और ऐसे पाठ्यक्रमों की प्रवृत्ति निरंतर बढ़ रही है। एक विषय के रूप में विज्ञान संचार ने 1990 के दशक के आरंभ से ही वैश्विक ध्यान आकर्षित करना शुरू कर दिया था। विदेशों में से कुछ अग्रणी संस्थानों ने ऐसे पाठ्यक्रम शुरू किए। इन संस्थानों में से कुछ के नाम इस प्रकार हैं: ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलिया; इंपीरियल कॉलेज लंदन, ब्रिटेन; कॉर्नेल विश्वविद्यालय, अमेरिका; डबलिन सिटी यूनिवर्सिटी, आयरलैंड; यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन, ब्रिटेन; कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय, अमेरिका; ओपन यूनिवर्सिटी, ब्रिटेन; इंटरनेशनल स्कूल फॉर एडवांस्ड स्ट्डीज़ (एसआईएसएसए), इटली; ल्यूवेन विश्वविद्यालय, बेल्जियम; हेलसिंकी विश्वविद्यालय, फिनलैंड; लुई पाश्चर विश्वविद्यालय, फ्रांस; फ्री बर्लिन विश्वविद्यालय, जर्मनी; टेक्नियन - इजरायल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, इजरायल; पाडोवा विश्वविद्यालय, इटली; विश्वविद्यालय ट्वेन्टी, नीदरलैंड; आवेरो विश्वविद्यालय, पुर्तगाल; ओटागो विश्वविद्यालय, न्यूजीलैंड; होकाइदो विश्वविद्यालय, जापान; और नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर।
विश्व स्तर पर, विज्ञान संचार के लिए विश्वविद्यालय के शैक्षिक कार्यक्रमों का नाम क्या होना चाहिए, इसके बारे में आरंभ से कोई एकरूपता नहीं रही है। विभिन्न संस्थान और विश्वविद्यालय अपने कार्यक्रमों को अलग-अलग तरह से नाम देते हैं ।
अलग-अलग लोगों ने इस उभरते हुए क्षेत्र के लिए अलग-अलग शब्दों का उपयोग करना शुरू कर किया हैं। इनमें से कुछ विज्ञान की सार्वजनिक समझ, विज्ञान की सार्वजनिक जागरूकता, विज्ञान और प्रौद्योगिकी की सार्वजनिक समझ, विज्ञान का सार्वजनिक संचार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी का सार्वजनिक संचार, वैज्ञानिक साक्षरता (Scientific Literacy), विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रति जागरूकता, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ सार्वजनिक भागीदारी आदि शामिल हैं। कुछ लोगों ने इन अलग-अलग शब्दों को परिभाषित करने का प्रयास भी किया है।
यहां तक कि इन पाठ्यक्रमों की संरचना और विषयवस्तु में भी दुनिया भर में भिन्नता है। हालांकि, धीरे-धीरे आम तौर पर एक सहमति बन रही है कि इस विधा के लिए 'विज्ञान संचार’ यानी ‘साइंस कम्युनिकेशन' शब्द का इस्तेमाल किया जाए। और अधिकांश विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों और कार्यक्रमों के लिए इस का प्रयोग भी होने लगा है।
अभय एसडी राजपूत विज्ञान संचारक हैं। पिछले कई सालों से विभिन्न मीडिया माध्यमों से विज्ञान संचार के कार्य में संलग्न हैं। आपको रजत जयंती विज्ञान संचार अवार्ड-2008 और एस. रामासेशन विज्ञान लेखन फैलोशिप-2008 के प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान लेखन के साथ-साथ, विज्ञान संचार में शोधकार्य में भी रूचि रखते हैं।
नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से विभिन्न माध्यमों द्वारा विज्ञान संचार के कार्य में संलग्न हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं।
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विज्ञान संचार शिक्षण का अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य
Science communication Training: A Global Perspective
-अभय एस डी राजपूत एवं नवनीत कुमार गुप्ता
आज पूरे विश्व में विज्ञान संचार को एक पेशेवर क्षेत्र के रूप में मान्यता मिल चुकी है। इस क्षेत्र में क्षमता निर्माण की औपचारिक शैक्षिक आवश्यकताओं को काफी समय से महसूस किया जा रहा था। इसलिए दुनिया भर के विभिन्न विश्वविद्यालयों में शैक्षिक अनुशासन के रूप में विज्ञान संचार (Science Communication) को मान्यता दी गयी। इसके कारण एक पेशे के रूप में विज्ञान संचार की जड़ें मजबूत हो रही हैं। असल में इस विधा के विकास के कई कारण थे। मुख्यतया यह विधा वैज्ञानिक ज्ञान की जटिलता और विविधता के कारण और विभिन्न स्तरों एवं लक्ष्यित वर्गों की आवश्यकताओं के साथ विकसित हुई। जनता के बीच विज्ञान की सामान्य समझ बढ़ाने के लिए 1980 के दशक के आरंभ में यह विधा स्थापित होने लगी और जल्द ही दुनिया भर में इसको मान्यता मिलने लगी।प्रारंभ में, विभिन्न पृष्ठभूमि के उत्साही लोगों ने जनता को विज्ञान से परिचित कराने के प्रयास किए। लेकिन संचार और डिजिटल प्रौद्योगिकियों के अग्रिम विकास के साथ, जनमानस से संवाद स्थापित करने के तरीके भी बदल रहे हैं। बदलते समय के साथ विज्ञान संबंधी लोकप्रिय संचार की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए, विज्ञान संचार के क्षेत्र में बौद्धिक लोगों ने विज्ञान स्नातकों को विज्ञान संचार में प्रशिक्षण देने की आवश्यकता महसूस की ताकि इस क्षेत्र में पेशेवरों का एक वर्ग तैयार हो सके। विज्ञान संचार के इन पेशेवरों का प्राथमिक कार्य जनता और विज्ञान के बीच संवाद कराना हो, ताकि विज्ञान और समाज के बीच के अंतर को कम किया जा सके।
ऐसे विज्ञान संचारक वैज्ञानिकों और गैर-वैज्ञानिकों के बीच बातचीत शुरू करने और वैज्ञानिक गतिविधियों में सार्वजनिक भागीदारी बढ़ाने में विशेषज्ञ होने चाहिए। जब प्रशिक्षित पेशेवरों की आवश्यकता पूरी दुनिया में है, ऐसे में उच्च शैक्षणिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों -द्वारा चलाए जा रहे विज्ञान संचार के औपचारिक शिक्षा के पाठयक्रम बहुत सहायक सिद्ध हो रहे हैं। इस प्रकार, विज्ञान संचार एक शैक्षिक अनुशासन और पेशे के रूप में –निरंतर अपनी जगह बनाते जा रहा है। इस के अतिरिक्त, विज्ञान संचार के क्षेत्र में सक्रिय शोध तो भी बल मिल रहा है।
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स्नातक और परास्नातक स्तर पर विज्ञान संचार में शैक्षणिक पाठ्यक्रम दुनिया भर में आरंभ किए गए हैं और ऐसे पाठ्यक्रमों की प्रवृत्ति निरंतर बढ़ रही है। एक विषय के रूप में विज्ञान संचार ने 1990 के दशक के आरंभ से ही वैश्विक ध्यान आकर्षित करना शुरू कर दिया था। विदेशों में से कुछ अग्रणी संस्थानों ने ऐसे पाठ्यक्रम शुरू किए। इन संस्थानों में से कुछ के नाम इस प्रकार हैं: ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलिया; इंपीरियल कॉलेज लंदन, ब्रिटेन; कॉर्नेल विश्वविद्यालय, अमेरिका; डबलिन सिटी यूनिवर्सिटी, आयरलैंड; यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन, ब्रिटेन; कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय, अमेरिका; ओपन यूनिवर्सिटी, ब्रिटेन; इंटरनेशनल स्कूल फॉर एडवांस्ड स्ट्डीज़ (एसआईएसएसए), इटली; ल्यूवेन विश्वविद्यालय, बेल्जियम; हेलसिंकी विश्वविद्यालय, फिनलैंड; लुई पाश्चर विश्वविद्यालय, फ्रांस; फ्री बर्लिन विश्वविद्यालय, जर्मनी; टेक्नियन - इजरायल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, इजरायल; पाडोवा विश्वविद्यालय, इटली; विश्वविद्यालय ट्वेन्टी, नीदरलैंड; आवेरो विश्वविद्यालय, पुर्तगाल; ओटागो विश्वविद्यालय, न्यूजीलैंड; होकाइदो विश्वविद्यालय, जापान; और नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर।
विश्व स्तर पर, विज्ञान संचार के लिए विश्वविद्यालय के शैक्षिक कार्यक्रमों का नाम क्या होना चाहिए, इसके बारे में आरंभ से कोई एकरूपता नहीं रही है। विभिन्न संस्थान और विश्वविद्यालय अपने कार्यक्रमों को अलग-अलग तरह से नाम देते हैं ।
अलग-अलग लोगों ने इस उभरते हुए क्षेत्र के लिए अलग-अलग शब्दों का उपयोग करना शुरू कर किया हैं। इनमें से कुछ विज्ञान की सार्वजनिक समझ, विज्ञान की सार्वजनिक जागरूकता, विज्ञान और प्रौद्योगिकी की सार्वजनिक समझ, विज्ञान का सार्वजनिक संचार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी का सार्वजनिक संचार, वैज्ञानिक साक्षरता (Scientific Literacy), विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रति जागरूकता, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ सार्वजनिक भागीदारी आदि शामिल हैं। कुछ लोगों ने इन अलग-अलग शब्दों को परिभाषित करने का प्रयास भी किया है।
यहां तक कि इन पाठ्यक्रमों की संरचना और विषयवस्तु में भी दुनिया भर में भिन्नता है। हालांकि, धीरे-धीरे आम तौर पर एक सहमति बन रही है कि इस विधा के लिए 'विज्ञान संचार’ यानी ‘साइंस कम्युनिकेशन' शब्द का इस्तेमाल किया जाए। और अधिकांश विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों और कार्यक्रमों के लिए इस का प्रयोग भी होने लगा है।
-लेखक परिचय-
अभय एसडी राजपूत विज्ञान संचारक हैं। पिछले कई सालों से विभिन्न मीडिया माध्यमों से विज्ञान संचार के कार्य में संलग्न हैं। आपको रजत जयंती विज्ञान संचार अवार्ड-2008 और एस. रामासेशन विज्ञान लेखन फैलोशिप-2008 के प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान लेखन के साथ-साथ, विज्ञान संचार में शोधकार्य में भी रूचि रखते हैं।
नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से विभिन्न माध्यमों द्वारा विज्ञान संचार के कार्य में संलग्न हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं।
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