Swine flu: Symptoms Precautions and Treatment in Hindi.
स्वाइन फ्लू का प्रकोप एवम् बचाव
स्वाइन फ्लू (Swine flu) एक बहुत ही खतरनाक महामारी है। इस बीमारी ने सारे विश्व में अपना जाल फैला रखा है। अचानक यह महामारी सुरसा की तरह फैली और देखते ही देखते कई देशों व महानगरों को अपनी चपेट में ले लिया। वैज्ञानिकों का मानना है की ये बिमारी सूअरों से फैलती है, इसलिए इसे स्वाइन फ्लू कहा जाता है। यह बहुत जल्दी फैलने वाला रोग है। इससे बचने के लिए संक्रमित लोगों से दूर रहना चाहिए।
स्वाइन फ्लू के वायरस से संक्रमित मरीज में लक्षण नजर आने से लेकर अगले सात दिनों तक इसका संक्रमण बना रहता है। साथ ही इससे जुड़ा एक तथ्य यह भी है कि स्वाइन फ्लू सर्दियों में अधिक प्रभावी होता है। लेकिन इस साल स्वाइन फ्लू का प्रकोप अगस्त के महीने से दिखाई पड़ रहा है। ये देखा गया है कि वायरस साल-दर-साल म्यूटेट होते रहते हैं, ऐसे में इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि स्वाइन फ्लू का वायरस इस बार गंभीर रूप नहीं लेगा।
समाचार-पत्र एवं न्यूज चैनल स्वाइन फ्लू की खबरों से भरे पड़े हैं। सरकार एवं स्वास्थ विभाग इस बीमारी के आक्रमण से चिंतित है और इसकी रोकथाम एवं उपचार के लिये हर संभव उपाय कर रही है फिर भी जनता दहशत में है। वैसे तो स्वाइन फ्लू भी वायरस जनित रोग है लेकिन हर फ्लू स्वाइन फ्लू नहीं होता है, इसलिये घबराने की जरूरत नहीं है। स्वाइन फ्लू से बचाव एवं उपचार पूरी तरह संभव है, परन्तु सतर्क एवं सावधान रहने की जरूरत है।
क्या है स्वाइन फ्लू ?
स्वाइन फ्लू श्वसन तंत्र से जुड़ी एक संक्रामक बीमारी है, जो ए-टाइप के इनफ्लुएंजा वायरस से होती है। यह वायरस एच1 एन1 (H1N1) के नाम से जाना जाता है और मौसमी फ्लू में भी यह वायरस सक्रिय होता है। अप्रैल 2009 में सबसे पहले मैक्सिको में इस वाइरस की पहचाना हुई थी और पूरी दुनिया में कहर बन कर बरपा था, जिसका अभी तक खात्मां नहीं हो पाया है। WHO ने इसे जून 2009 में महामारी (Pandemic) घोषित किया था। देखा जाए तो किसी मरीज में स्वाइन फ्लू के इन्फेक्शन के लक्षण एक से सात दिन में विकसित हो सकते हैं। पीआर टेस्ट के माध्यम से पता चल जाता है कि मरीज को स्वाइन फ्लू है या नहीं।
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कैसे फैलता है स्वाइन फ्लू ?
स्वाइन फ्लू मुख्य रूप से दो तरह से फैलता है। पहला, रोगी को छूने, हाथ-मिलाने या सीधे संपर्क में आने से। दूसरा, रोगी की सांस के जरिए, जिसे ड्रॉपलेट इंफेक्शन भी कहा जाता है। जब कोई स्वाइन फ्लू से प्रभावित व्यक्ति खांसता या छींकता हैं तो हवा में या जमीन पर या जिस भी सतह पर थूक या मुंह और नाक से निकले द्रव कण गिरते हैं, वह वायरस की चपेट में आ जाता है। यह कण हवा के द्वारा या किसी के छूने से दूसरे व्यक्ति के शरीर में मुंह या नाक के जरिए प्रवेश कर जाते हैं। मसलन, दरवाजे, फोन, कीबोर्ड, गिलास, तिकया, तौलिया या रिमोट कंट्रोल के जरिए भी यह वायरस फैल सकते हैं, अगर इन चीजों का इस्तेमाल किसी संक्रमित व्यक्ति ने किया हो। वहीं स्वाइन फ्लू का वाइरस कठोर सतह (स्टील, प्लास्टिक, इत्यादि) में 24 से 48 घंटों तक, कपड़ों में 8 से 12 घंटों तक, टिश्यू पेपर में 15 मिनट तक और हाथों में 30 मिनट तक सक्रिय रहता है। इन्हें खत्म करने के लिए डिटर्जेंट, एल्कॉहॉल, ब्लीच या साबुन का इस्तेमाल कर सकते हैं। किसी भी मरीज में बीमारी के लक्षण इन्फेक्शन के बाद 1 से 7 दिन में डिवेलप हो सकते हैं। लक्षण दिखने के 24 घंटे पहले और 8 दिन बाद तक किसी और में वायरस के ट्रांसमिशन का खतरा रहता है।
इनका रखें विशेष ध्यान- छोटे बच्चों, बुजुर्ग, गर्भवती महिलाओं, एवं लिवर, किडनी, दमा व एचआईवी से पीडितों को स्वाइन फ्लू का खतरा सबसे ज्यादा रहता है। इसके अलावा जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, ऐसे लोग जो प्रभावित व्यक्ति के संपर्क में ज्यादा आते हैं, जैसे यात्री, डॉक्टर, नर्स और परिजनों को स्वाइन फ्लू की आशंका बनी रहती है।
स्वाइन फ्लू के लक्षण
तेज बुखार, सुस्ती, नाक का लगातार बहना, गले में खराश, छींकें आना, सांस लेने में परेशानी, सीने में दर्द, तेज सिरदर्द, रक्त चाप गिरना, खांसी के साथ खून या वलगम, मांसपेशियां में दर्द, अकड़न, नाखूनों का रंग नीला हो जाना आदि लक्षण हो सकते है। ये ऐसे लक्षण हैं जो सामान्य सर्दी, जुकाम एवं फ्लू में भी होते हैं अंतर ये है की स्वाइन फ्लू में ये गंभीर किस्म के होते है| कभी कभी उल्टी दस्त जैसे पाचन संस्थान के लक्षण भी साथ में होते है। यदि उपरोक्त में से 3-4 लक्षण भी लगातार बने रहें और दवा लेने के बावजूद लक्षणों में आराम न हो, तो स्वाइन फ्लू की जांच कराकर उपचार कराना चाहिये।
एन्फ्लूएंजा वायरस की खासियत यह है कि यह लगातार अपना स्वरूप बदलता रहता है। इसकी वजह से यह उन एंटीबॉडीज को भी छका देता है, जो पहली बार हुए एन्फ्लूएंजा के दौरान विकसित हुई थीं। यही वजह है कि एन्फ्लूएंजा के वैक्सीन का भी इस वायरस पर असर नहीं होता।
स्वाइन फ्लू का इलाज
संक्रमण के लक्षण प्रकट होने पर आराम करना, खूब पानी पीना, शरीर में पानी की कमी न होने देना इसका सबसे बेहतर इलाज है। शुरुआत में पैरासीटामॉल जैसी दवाएं बुखार कम करने के लिए दी जाती हैं। बीमारी के बढ़ने पर एंटी वायरल दवा ओसेल्टामिविर (टैमी फ्लू) और जानामीविर (रेलेंजा) जैसी दवाओं से स्वाइन फ्लू का इलाज डॉक्टर के परामर्श से किया जाता है। रोगी के पूर्ण स्वास्थ्य के बाद अस्पताल से छुट्टी दी जाती है । तुलसी, गिलोए, कपूर, लहसुन, एलोवीरा, आंवला जैसी आयुर्वेदिक दवाईयों का भी स्वाइन फ्लू के इलाज में बेहतर असर देखा गया है।
स्वाइन फ्लू से बचाव
हम हमेशा से सुनते आये हैं उपचार से बेहतर है बचाव (prevention is better than cure) – यह बात स्वाइन फ्लू के मामले में तो बिलकुल फिट बैठती है।
- किसी परिचित या सहकर्मी...से न गले मिलें, न मिलाएं हाथ.....सिर्फ करें नमस्ते।
- खांसी या छींक आने पर मुहं पर रुमाल रखें या टिशू पेपर उपयोग करें व 6 फिट कि दूरी बनायें।
- खाना खाने से पहले एवं शौचालय जाने के बाद साफ़ पानी एवं साबुन से हाथ धोएं। अकेली यह आदत अनेक संक्रामक बिमारियों से बचा सकती है।
- स्वाइन फ्लू के लक्षण दिखने पर घर पर रहें एवं भीड़-भाड़ इलाकों जैसे ऑफिस, बाजार, स्कूल, शादी विवाह, मेलों आदि में जाने से बचें ।
- अस्पताल या अन्य किसी सार्वजनिक स्थान पर जाने से पहले मास्क पहनें।
- मास्क पहन कर ही मरीज के पास जायें।
- पानी पीने में आलस्य न करें, पानी खूब पीयें ताकि शरीर से विष पेशाब, पसीने आदि के द्वारा निकलता रहे।
- पर्याप्त आराम जरूर करें।
- स्वाइन फ्लू से बचने के लिय डॉक्टर कि सलाह से Nasovac vaccine ले सकते हैं, जिसे नाक से सूंघकर लिया जा सकता है। यह वैक्सीन एक साल तक इस बीमारी से आपकी रक्षा करती है।
- स्वाइन फ्लू के शुरुआती लक्षण दिखते ही अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
- अपने मित्र परिवार और जान-पहचान के व्यक्तियों से स्वाइन फ्लू संबंधी जानकारी साझा करें।
- साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना और संक्रमित लोगों से दूर रहना ही इस बीमारी का बचाव है।
-लेखक परिचय-

आप कि विशेषता का क्षेत्र, जैव-रसायन, जैव प्रौद्योगिकी, एवं विष विज्ञान है। आप निम्नलिखित प्रतिष्ठित संगठन से विज्ञान में अनुसंधान हेतु जुड़े हुए थे/हैं-
1. परमेश्वरदत्त सामाजिक विकास एवम् अनुसंधान संस्थान (एन.जी.ओ.), भड्चक, पोस्ट-गढ़ी मानिकपुर, जिला- प्रतापगढ़, 230202
2. लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ
3. केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआई), लखनऊ
4. जैवरसायन विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद
5. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, नई दिल्ली
ईमेल: pandeyati@gmail.com
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