विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून पर विशेष लेख प्रकृति से जुड़िए नवनीत कुमार गुप्ता इस आपाधापी के जीवन में, हम नदियों, पहाड़ों और जंगलों से दूर हो...
विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून पर विशेष लेख
प्रकृति से जुड़िए
नवनीत कुमार गुप्ता
इस आपाधापी के जीवन में, हम नदियों, पहाड़ों और जंगलों से दूर होते जा रहे हैं। शहरों में रहने वाले लोगों ने कई सालों से टिमटिमाते तारे नहीं देखे होंगे। ऐसे अनेक लोग मिल जाएंगे जिन्होंने तितलियों को फूलों पर मंडराते कभी नहीं देखा होगा। असल में हम भाग—दौड़ की जिंदगी में हमारे आसपास बिखरे असीम सौंदर्य को देखने का समय ही नहीं निकाल पाते। इससे हमारे मन में प्रकृति के प्रति लगाव और आकर्षण कम होने लगा है।
इसी बात को ध्यान में रखकर, राष्ट्र संघ द्वारा इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस की थीम को चुना गया है। इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस की थीम 'लोगों को प्रकृति से जोड़े_Connecting people to nature' है। असल में प्रकृति से जुड़ने पर हम पृथ्वी की सुरक्षा और उसके संरक्षण के प्रति भी सजग होंगे।
संयुक्त राष्ट्र संघ संघ द्वारा सन् 1972 से प्रत्येक वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है। विश्व पर्यावरण दिवस वैश्विक स्तर पर पर्यावरण और उसके विभिन्न घटकों के संरक्षण के लिए आयोजित किया जाने वाला सबसे बड़ा अभियान है। इस दिवस के माध्यम से हम, हमारे आसपास के पर्यावरण की सुरक्षा और स्वच्छता के साथ ही पृथ्वी के संरक्षण के लिए जागरूकता का प्रसार कर सकते हैं।
इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस का प्रकृति से जुड़ाव का संदेश, हममें नयी उमंग और उत्साह का संचार कर सकता है। हम अपने आसपास के प्राकृतिक सौंदर्य को तलाशे और उससे दूसरों को परिचित कराएं। हमारे आसपास स्थिति पहाड़, बगीचे, नदियां, तालाब, झीलें, रंग—बिरंगे फुल आदि सभी प्रकृति का ही हिस्सा हैं। आधुनिक वैज्ञानिक विकास और बढ़ती पर्यावरणीय समस्याओं जैसे ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन ने एक बार फिर से हमें प्रकृति से ही समाधान तलाशने को मजबूर कर दिया है।
प्रकृति से ही हमें जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने का रास्ता मिल सकेगा। समुद्र, जंगल और मिट्टी ग्रीन हाउस गैसों के बड़े भंडार हैं। इसलिए ऐसे संसाधनों का संरक्षण अतिआवश्यक है। किसान जमीन से ही अनाज उपजाता है। मछुआरे मछली पकड़ने के लिए जल स्रोतों ही निर्भर होते है। बादलों से ही बारिश होती है। यही नहीं प्रकृति जीवनयापन के साधन मुहैया कराने के साथ ही जैविक विविधता का भी आधार है। इसलिए हवा, पानी और मिट्टी जैसे प्रकृति प्रदत्त संसाधन को कोई मूल्य नहीं लगा सकता। वाकई ये अनमोल हैं।
वैसे आज भी अरबों लोग ऐसे हैं जो अपना पूरा जीवन प्रकृति के सानिध्य में बिताकर अपना जीवनयापन करते हैं। हमारे देश में रहने वाले लाखों आदिवासी पूरी तरह सेजल, जमीन और जंगल पर ही निर्भर हैं। ऐसे लोगों ने लिए प्रकृति ही सबकुछ है। ऐसे में यदि पृथ्वी के किसी भी तंत्र को नुकसान होता है या जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण या अत्याधिक दोहन की घटनाएं होती है। तो सबसे पहले प्रकृति पर निर्भर रहने वाले लोग ही प्रभावित होंगे। इसलिए प्रकृति का संरक्षण कर हम लाखों—करोड़ों लोगों के जीवन को बचाने का भी काम करते हैं।
विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर आप अपने शहर के बगीचों या आसपास के जंगलों में जा सकते है। वहां की जैवविविधता को निहार सकते हैं। आप देख सकते हैं कैसे रंग—बिरंगी तितलियां फूलों का परागण करती है। किस तरह से मधुमख्खियां परागण करके जैवविविधता के साथ ही अनाज उत्पादन में भी मददगार साबित होती है। विश्व पर्यावरण दिवस हमें यह याद दिलाता है कि मानवता और प्रकृति के मध्य के सुमधुर संबध इस धरती को सदैव जीवनदायी बनाए रखेंगे।
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नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं। आपसे निम्न मेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है:

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आपका कथन बिलकुल सत्य है|अगर हर वक्ति अपने घर के सामने दो छायादार वृक्ष लगाये तो हम पर्यावरण को सुन्दर बना सकते हैं|
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंNavneet ji समाज की मानसिकता को बदलने के लिए हमने एक कदम उठाया है |आप सबके सहयोग की आवस्यकता है | https://narijagaranblog.wordpress.com
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