लड़की का खूबसूरत चेहरा और दूरबीन का आविष्कार

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Telescope information History in Hindi.



दूरबीन का संक्षिप्त इतिहास

-प्रदीप

सदियों से ब्रह्माण्ड मानव को आकर्षित करता रहा है। इसी आकर्षण ने खगोल वैज्ञानिकों को ब्रह्माण्डीय प्रेक्षण और ब्रह्माण्ड अन्वेषण के लिए प्रेरित किया। रात के समय यदि हम आसमान में दिखाई देने वाले तारों का अवलोकन करते हैं, तो हमें दूरबीन_Telescope के बिना भी कुछ बातें शीघ्र स्पष्ट होने लगती हैं। मगर, हम तारों के सूक्ष्म रहस्यों तथा ब्रह्माण्ड के विभिन्न पिण्डों के आकार, गति, स्थिति, आकृति इत्यादि के बारे में बिना दूरबीन की सहायता के नहीं जान सकते हैं। दूरबीन द्वारा प्राप्त जानकारी का स्पष्टीकरण करने के लिए हमें गणित और विज्ञान का सहारा लेना पड़ता है।

आइए, हम यह जानने का प्रयास करते हैं कि किस प्रकार से दूरबीनों ने वैज्ञानिकों को ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने तथा इस विराट ब्रह्मांड की जांच-पड़ताल करने में सहायता की है। इसके लिए सर्वप्रथम हम आकाश दर्शन कराने वाली इन दूरबीनों के द्वारा संभव हुए वैज्ञानिक विचारों के क्रमिक विकास की संक्षिप्त चर्चा करेंगे।

Hans Lippershey Telescope
लिपर्शे की दूरबीन:
दूरबीन के आविष्कार का श्रेय हालैंड के हैंस लिपर्शे_Hans Lippershey नामक एक ऐनकसाज को दिया जाता है। लिपर्शे ने दूरबीन का आविष्कार किसी विशेष वैज्ञानिक उद्देश्य या प्रयास से नहीं किया था, बल्कि यह एक आकस्मिक घटना का परिणाम था। घटना इस प्रकार है कि वर्ष 1608 में एक दिन हैंस कांच के दो लैंसों की सहायता से सामने सड़क पर जा रही एक लड़की के खूबसूरत चेहरे को देखने का प्रयास कर रहा था। उसने संयोग से दोनों लैंसों को एक-दूसरे के समांतर सही दूरी पर रखने पर यह देखा कि लड़की का खूबसूरत चेहरा और भी अधिक सुंदर दिखाई देता है तथा इससे दूर की वस्तुएं भी अत्यधिक स्पष्ट दिखाई देती हैं। इस घटना से प्रभावित होकर हैंस ने दो लैंसों के संयोजन से एक खिलौना बनाया, जिसे आजकल दूरबीन_Telescope कहते हैं।

वास्तविकता में हैंस ने कभी भी इस खिलौने का उपयोग खगोलीय प्रेक्षण एवं अन्वेषण में नहीं किया, बल्कि वह अपने दूरबीन का उपयोग अपने ग्राहकों को चमत्कार करके दिखाने में करता था। हैंस के दूरबीन को सैनिकों एवं नाविकों ने अपने लिए उपयोगी पाया इसलिए दूरबीन का प्रथम उपयोग सैनिकों, जासूसों एवं नाविकों ने किया। एक अन्य प्रतिस्पर्धी रियाश जैन्सन के द्वारा दूरबीन के आविष्कार का दावा करने के कारण सरकार ने हैंस लिपर्शे को कभी भी दूरबीन के आविष्कार का श्रेय यानी पेटेंट नहीं दिया। कुल-मिलाकर हम यह कह सकतें हैं कि हैंस द्वारा अविष्कृत दूरबीन अत्यंत साधारण थी, परन्तु इसे विश्व का प्रथम दूरबीन कहा जा सकता है।
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दूरबीन द्वारा खगोलीय प्रेक्षण की शुरुआत:
वर्ष 1609 में इटली के महान वैज्ञानिक गैलीलियो गैलिली_Galileo galilei ने हैंस लिपर्शे द्वारा दूरबीन के आविष्कार के पश्चात् स्वयं इस यंत्र का पुनर्निर्माण किया तथा पहली बार खगोलीय प्रेक्षण में इसका उपयोग किया। जब गैलीलियो ने अपनी दूरबीन को आकाश की ओर निर्दिष्ट किया तो उन्होंने इतनी बड़ी दुनिया देखी जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।

गैलीलियो ने अपनी दूरबीन की सहायता से चन्द्रमा पर उपस्थित क्रेटर, बृहस्पति ग्रह के चार उपग्रहों सहित सूर्य के साथ परिक्रमा करने वाले सौर कलंकों/सौर धब्बों का पता लगाया। गैलीलियो ही वे वैज्ञानिक थे जिन्होंने अपनी दूरबीन से यह पता लगाया कि सूर्य के पश्चात् पृथ्वी का निकटवर्ती तारा प्रौक्सिमा-सेंटौरी_Proxima centauri है। इसके अतिरिक्त गैलीलियो ने ही हमे शुक्र की कलाओं से सम्बन्धित ज्ञान तथा कोपरनिकस के सूर्यकेंद्री सिद्धांत को सत्य प्रमाणित किया। ध्यातव्य है कि गैलीलियो का दूरबीन अपवर्तक दूरबीन था। अपवर्तक दूरबीन में लैंसों का प्रयोग किया जाता है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि जब गैलीलियो ने इटली के वेनिस में अपनी दूरबीन का प्रदर्शन किया था, तभी प्रिंस फेड्रिख सेसी ने ग्रीक शब्द टेली (दूर) + स्कोप (दर्शी) = ‘टेलीस्कोप’ (दूरदर्शी) की रचना की।

वर्ष 1610 में गैलीलियो ने अपनी खोजों पर आधारित एक पुस्तक ‘तारों का संदेशवाहक’ लिखी। कुछ वर्गों द्वारा पुस्तक का भरपूर स्वागत हुआ तो कुछ लोगों, विश्वविद्यालयों और चर्च को दूरबीन से ज्ञात होने वाले नए ज्ञान से आपत्ति थी। इस कारण नए ज्ञान का पुराने ज्ञान से टकराव होना लाजिमी था और आख़िरकार इटली के विश्वविद्यालयों एवं चर्च ने गैलीलियो के दूरबीन को काले जादू की तरह नकार दिया। किसी ने ठीक ही कहा है कि धार्मिक तथा प्रजाति विद्वेष विवेक को नष्ट कर देता है। यदि गैलीलियो के वैज्ञानिक खोजों को इटली में उस समय महत्व दिया जाता तो अब वहाँ वैज्ञानिक विकास की स्थिति कुछ और ही होती!

न्यूटन की परावर्तक दूरबीन_Newtonian reflector:
आज यह सर्वसामान्य जानकारी है कि सर आइज़क न्यूटन ही एकमात्र ऐसे वैज्ञानिक थे जिन्होंने ज्ञान-विज्ञान के विकास में सबसे अधिक महत्वपूर्ण योगदान दिया था। यदि न्यूटन के आरंभिक कृतित्व का अध्ययन किया जाए तो यह मालूम होता है कि न्यूटन ने सर्वप्रथम प्रकाश विज्ञान_Optix पर खोजें कीं तथा उसे पुस्तक रूप में भी प्रकाशित करवाईं। न्यूटन ने एक नई अवधारणा को जन्म दिया था कि जब किसी वस्तु के स्वभाविक रंग पर रंगीन प्रकाश डाला जाता है तो एक पारस्परिक क्रिया के कारण उस वस्तु के रंग में परिवर्तन होता है। विभिन्न रंगों के संयोजन से नया रंग प्राप्त होता है, इस सिद्धांत को हम अब ‘न्यूटन का रंग संयोजन सिद्धांत’ के नाम से जानते हैं। अपने इस कार्य को प्रायोगिक रूप से सिद्ध करने के लिए न्यूटन ने एक विशेष प्रकार के परावर्तक दूरबीन का निर्माण किया, जिसे अब न्यूटोनियन टेलीस्कोप_Newtonian telescope के नाम से जाना जाता है।
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जैसाकि हम जानते हैं कि न्यूटन से पहले दूरबीन का आविष्कार हो चुका था और पहले के दूरबीनों में लैंसों का प्रयोग होता था। लैंसों के प्रयोग के कारण अत्यधिक अपवर्तन होता था और निर्मित चित्र का प्रतिबिंब धुंधले एवं रंगीन होते थे इस घटना को वर्ण-विपथन_Chromatic aberration कहते हैं। न्यूटन ने अपने दूरबीन में प्रकाश को केंद्रित करने के लिए लैंसों के बजाय दर्पणों का प्रयोग किया तथा वर्ण-विपथन की समस्या को दूर किया। वर्ष 1671 में न्यूटन ने रॉयल सोसाइटी के समक्ष अपने परावर्तक दूरबीन का प्रदर्शन किया तथा रंग संयोजन सिद्धांत_Color theory की प्रायोगिक अभिपुष्टि की।

न्यूटन के कुछ समय बाद एक शौकिया खगोलविद एन. कैसीग्रीन ने अति-उन्नत परावर्ती दूरबीनों का आविष्कार किया जो न्यूटोनियन टेलीस्कोपों की तुलना में बहुत अधिक शक्तिशाली थे। कैसीग्रीन ने अपने दूरबीनों में लैंसों के साथ उत्तल और अवतल दर्पणों का भी प्रयोग किया था।

दूरबीनों द्वारा दुर्लभ खगोलिकी प्रेक्षण की शुरुआत:
दूरबीन के आविष्कार से पहले आकाशीय पिंडों का अध्ययन-अवलोकन करने के लिए हमारे पास एक ही साधन था- हमारी आँखें। आज से सदियों पूर्व जब आज की तरह आधुनिक दूरबीनें नहीं थीं, फिर भी हमारे पूर्वजों ने ग्रहों एवं नक्षत्रों से संबंधित अत्यंत उच्चस्तरीय वैज्ञानिक खोजें अपनी आँखों एवं अन्य सीमित साधनों से की। इस तथ्य का एक श्रेष्ठ उदाहरण महान खगोलविद टायको ब्राहे_Taiko brahe थे, जिन्होंने डेनमार्क स्थित अपनी वेधशाला में अपनी आँखों और विशाल खगोलीय यंत्रों से कोण मापते हुए महत्वपूर्ण आंकड़े प्राप्त किये थे। इन्हीं आकड़ों का प्रयोग करके जोहांस केप्लर_Johannes kepler ने ग्रहीय गति के प्रसिद्ध तीन नियमों की खोज की थी।

मगर, मनुष्य की आँखें एक सीमा तक ही देख सकती हैं। दरअसल, अधिकांश खगोलीय पिंड हमसे इतने दूर हैं कि हमें अपनी नंगी आँखों से नहीं दिखाई दे सकते हैं। दूरबीन ने वैज्ञानिकों को आधुनिक नेत्र प्रदान किये हैं जिसकी सहायता से मनुष्य अपनीं आँखों से करोड़ों गुना अधिक शक्तिशाली प्रकाश ग्रहण कर सकता है और अनंत आकाश को जान और समझ सकता है।

जर्मन खगोलविद सर विलियम हर्शेल_Sir william herschel, जो बाद में इंग्लैंड में स्थायी रूप से बस गए, ने वर्ष 1774 में स्वयं अपनी दूरबीनें निर्मित कीं एवं अपने सम्पूर्ण जीवन को खगोलीय शोधकार्यों के लिए समर्पित कर दिया। वर्ष 1781 में हर्शेल ने अपनी दूरबीनों की सहायता से सौरमंडल के सातवें ग्रह यूरेनस की खोज की। इसके अतिरिक्त हर्शेल ने हमारी आकाशगंगा ‘दुग्धमेखला’ का पहली बार दूरबीन की सहायता से विस्तृत अध्ययन किया।

आकाश के सर्वाधिक चमकीले तारे व्याध के अदृश्य युग्म तारे की खोज एक अमेरिकी खगोलविद अलवान क्लार्क_Alvan clark ने दूरबीन की ही सहायता से खोज निकाला। हमारी आकाशगंगा में हजारों-लाखों की संख्या में युग्म तारे मौजूद हैं। कुछ युग्म तारों को नंगी आँखों से देखा जा सकता है, परंतु अधिकांश युग्म तारों को मात्र दूरबीन की ही सहायता से पहचाना जा सकता है।

दूरबीन के आविष्कार के पश्चात् अनेक दुर्लभ खगोलिकी खोजें हुई। यह सब खोजें दूरबीनों द्वारा लिए गए प्रेक्षणों से ही संभव हुई, इन सभी खोंजों का वर्णन एक लेख में करना संभव नहीं है। आइए, अब हम ब्रह्मांड अन्वेषण में योगदान देनेवाले आधुनिक विशालकाय दूरबीनों की चर्चा करतें हैं।

दूरबीन तकनीक में क्रांति : विशाल भू-आधारित दूरबीनें:
गैलीलियो द्वारा दूरबीन से प्रथम खगोलीय प्रेक्षण के लगभग 407 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं, इन 407 वर्षों में बहुत से विशालकाय दूरबीनों को पृथ्वी पर स्थापित किया जा चुका है। पृथ्वी पर स्थापित इन दूरबीनों को ‘भू-स्थिर दूरबीनें’ या ‘भू-आधारित दूरबीनें’ कहा जाता है। आकाश दर्शन एवं ब्रह्मांड अन्वेषण में सहायता करने वाले कुछ प्रसिद्ध विशालकाय भू-आधारित दूरबीनें निम्नलिखित हैं-

सदर्न अफ्रीकन लार्ज टेलीस्कोप:- 
Southern African large Telescope_SALT दूरबीन दक्षिणी अफ्रीका के कारू नामक क्षेत्र के सूदरलैंड कस्बे में अवस्थित है। साल्ट दूरबीन के अंदर कई षट्कोणीय दर्पणों को जोड़कर एक विशाल दर्पण का निर्माण किया गया है। इस दूरबीन का दर्पण ही इसे विश्व का सर्वश्रेष्ठ प्रकाशीय दूरबीन बना देता है। यह दूरबीन आधुनिक तकनीकी दक्षता एवं कम्प्यूटर नियंत्रित युक्ति की पहचान है। साल्ट दूरबीन दूर के आकाशगंगाओं एवं क्वासरों को देखने में सक्षम है।

केक्क टेलीस्कोप:- 
हवाई द्वीप में निष्क्रिय ज्वालामुखी मोनाकिया की चोटी पर दो विशालकाय केक्क टेलीस्कोप_Keck telescope स्थित हैं। इन दोनों दूरबीनों में 9.8 मीटर व्यास का मुख्य दर्पण लगा हुआ है। यह समुद्र तल से 1400 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। इन जुड़वा दूरबीनों ने तारों के जीवन चक्र को समझने में विशेष सहायता की है।
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वेरी लार्ज टेलीस्कोप:- 
Very large telescope_VLT चार दूरबीनों का एक समूह है, जो एक दूसरे से जुड़कर एक विशाल प्रकाशीय दूरबीन का सृजन करती हैं। प्रत्येक दूरबीन के दर्पण का व्यास 8.2 मीटर है।

ग्रेट केनरी टेलीस्कोप:- 
Great canary telescope_GCT दूरबीन ग्रेट केनरी द्वीप के लॉपामा नामक स्थान पर स्थित है। यह विश्व की सबसे बड़ी एवं शक्तिशाली प्रकाशीय दूरबीन है। इस दूरबीन के दर्पण का व्यास 10.4 मीटर है। यह दूरबीन हमारे सौरमंडल से परे अन्य सौर-परिवारों के अवलोकन में विशेष सहायक सिद्ध हुआ है।

उपरोक्त दूरबीनों के अतिरिक्त अनेक क्षमतावान दूरबीनें ब्रह्मांड प्रेक्षण एवं अन्वेषण में आज उपयोग में लाई जा रही हैं। ऊपर हमने कुछ ही प्रसिद्ध भू-स्थिर दूरबीनों के बारे में चर्चा की है।

खगोलिकी एवं खगोलभौतिकी में नवाचार : विलक्षण अंतरिक्ष दूरबीनें:
खगोलीय पिंड दृश्य प्रकाश के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के विद्युत्-चुंबकीय विकिरणों का भी उत्सर्जन करते हैं। सुदूरस्थ खगोलीय पिंडों से उत्सर्जित होने वाली विद्युत्-चुंबकीय विकिरण का अधिकांश हिस्सा पृथ्वी के वायुमंडल द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है तथा इसी कारणवश पृथ्वी पर स्थित विशाल प्रकाशीय दूरबीनों से उन खगोलीय पिंडों को भलीभांति प्रेक्षित नहीं किया जा सकता है। पृथ्वी के वायुमंडल से होनेवाली बाधा के कारण खगोलीय पिंडों के चित्र धुंधले बनते हैं। पृथ्वी के वायुमंडलीय बाधा को दूर करने एवं दूरस्थ खगोलीय पिंडों के सटीक प्रेक्षण के लिए ‘अंतरिक्ष दूरबीनों’ को निर्मित किया गया है। यहाँ पर हम दो प्रसिद्ध अंतरिक्ष दूरबीनों क्रमशः हब्बल अंतरिक्ष दूरबीन एवं चन्द्रा एक्स-रे दूरबीन के बारे में चर्चा करने जा रहें हैं, जो पृथ्वी के वायुमंडल से पूर्णतया मुक्त, अंतरिक्ष में होने के कारण पृथ्वी पर स्थित विशालकाय दूरबीनों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण साबित हुए हैं।

Hubble space telescope
हब्बल अंतरिक्ष दूरबीन_Hubble space telescope:
दूरबीन एक अंतरिक्ष आधारित दूरबीन होने के नाते, इसे अंतरिक्ष में कृत्रिम उपग्रह के रूप में स्थापित किया गया है। हब्बल अन्तरिक्ष दूरबीन की महानतम उपलब्धियों ने उसे खगोलभौतिकी एवं खगोलकी के इतिहास ने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण दूरबीन बना दिया है। इसका प्रक्षेपण स्पेस शटल डिस्कवरी द्वारा 25 अप्रैल, 1990 में किया गया था। सृष्टी के आरम्भ और आयु के संबंध में खगोलीय प्रेक्षण द्वारा प्रथम परिचय हब्बल अंतरिक्ष दूरबीन ने ही करवाया है। इसी दूरबीन ने ही हमें श्याम उर्जा का ज्ञान दिया है। इसकी सहायता से हमें यह ज्ञात हुआ है कि ब्रह्माण्ड न केवल विस्तारमान है, बल्क़ि इसके विस्तार की गति भी समय के साथ त्वरित होती जा रही है। श्याम उर्जा को इस त्वरण का उत्तरदायी माना जा रहा है।

दीर्घवृत्तीय आकाशगंगाओं की खोज, क्वासरों के विशिष्ट गुणों की खोज तथा वर्ष 1994 में बृहस्पति ग्रह और पुच्छल तारे ‘शूमेकर लेवी-9′ के बीच हुए टकराव का चित्रण हब्बल अन्तरिक्ष दूरबीन की विशिष्ट उपलब्धियों में सम्मिलित है। यह पहली अन्तरिक्ष दूरबीन है जो अल्ट्रावायलेट और इन्फ्रा-रेड के समीप कार्य करती है और सुग्राहकता के साथ खूबसूरत, मनमोहक एवं अद्भुत् चित्रों को लेती है तथा पृथ्वी पर प्रेषित करती है।

चन्द्रा एक्स-रे दूरबीन_Chandra x ray telescope:
जैसाकि हम जानतें हैं कि खगोलीय पिंड विभिन्न प्रकार के विद्युत्-चुंबकीय विकिरणों का उत्सर्जन करते हैं। इन विकिरणों में दृश्य प्रकाश के अतिरिक्त पैराबैंगनी किरणें, अवरक्त किरणें, रेडियों तरंगे, गामा किरणें, एक्स-किरणें आदि भी होती हैं। पृथ्वी पर स्थापित रेडियों दूरबीनों एवं हब्बल अंतरिक्ष दूरबीन ने कुछेक विद्युत्-चुंबकीय विकिरणों को पकड़ने में सफलता प्राप्त की है। परंतु गामा, एक्स आदि किरणों को पकड़ने के लिए अंतरिक्ष में एक दूरबीन स्थापित करना अत्यंत आवश्यक था।

ब्रह्मांड के एक्स-रे स्रोतों को पकड़ने के लिए ‘चन्द्रा एक्स-रे दूरबीन’ को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया। इस दूरबीन को ‘चन्द्रा’ नाम भारतीय मूल के प्रसिद्ध वैज्ञानिक सुब्रमणियन् चन्द्रशेखर के सम्मान में दिया गया है। यह दूरबीन किसी अन्य एक्स-रे दूरबीन की तुलना में लगभग 30 गुना अधिक सेंसिटिव है। इसका प्रक्षेपण स्पेस शटल कोलम्बिया द्वारा 3 जुलाई, 1999 किया गया। इसकी लंबाई 14 मीटर है तथा इसके दर्पण का व्यास 2.7 मीटर है। दिलचस्प बात यह है कि जब इस दूरबीन को प्रक्षेपित किया गया था, तब इसकी आयु पांच वर्ष आंकी गयी थी, परंतु इसने दस वर्षो से अधिक कार्य किया है और यह अब भी कार्यरत है। वैज्ञानिकों को पूर्ण विश्वास है कि यह लगभग एक दशक तक और ब्रह्मांड में एक्स-रे स्रोतों की छानबीन करता रहेगा।

साधारण प्रकाशीय दूरबीनों से अंतरिक्ष दूरबीनों तक का यह सफर विज्ञान के क्रमिक विकास को इंगित करती है और इससे हमे यह भी पता चलता है कि जब गैलीलियो ने पहली बार दूरबीन द्वारा आकाश का प्रथम प्रेक्षण किया था, उस समय से हम बहुत आगे निकल गये हैं।

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लेखक परिचय: 
 श्री प्रदीप कुमार यूं तो अभी इंटरमीडिएट के विद्यार्थी हैं, किन्तु विज्ञान संचार को लेकर उनके भीतर अपार उत्साह है। आपकी ब्रह्मांड विज्ञान में गहरी रूचि है और भविष्य में विज्ञान की इसी शाखा में कार्य करना चाहते हैं। वे इस छोटी सी उम्र में 'वैज्ञानिक ब्रह्मांड' नामक ब्लॉग का भी संचालन कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त आप 'साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन' के भी सक्रिय सदस्य के रूप में जाने जाते हैं। आपसे निम्न ईमेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है:

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अंतरिक्ष युद्ध,1,अंतर्राष्‍ट्रीय ब्‍लॉगर सम्‍मेलन,1,अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉगर सम्मेलन-2012,1,अतिथि लेखक,2,अन्‍तर्राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन,1,आजीवन सदस्यता विजेता,1,आटिज्‍म,1,आदिम जनजाति,1,इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी,1,इग्‍नू,1,इच्छा मृत्यु,1,इलेक्ट्रानिकी आपके लिए,1,इलैक्ट्रिक करेंट,1,ईको फ्रैंडली पटाखे,1,एंटी वेनम,2,एक्सोलोटल लार्वा,1,एड्स अनुदान,1,एड्स का खेल,1,एन सी एस टी सी,1,कवक,1,किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज,1,कृत्रिम मांस,1,कृत्रिम वर्षा,1,कैलाश वाजपेयी,1,कोबरा,1,कौमार्य की चाहत,1,क्‍लाउड सीडिंग,1,क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान कथा लेखन,9,खगोल विज्ञान,2,खाद्य पदार्थों की तासीर,1,खाप पंचायत,1,गुफा मानव,1,ग्रीन हाउस गैस,1,चित्र पहेली,201,चीतल,1,चोलानाईकल,1,जन भागीदारी,4,जनसंख्‍या और खाद्यान्‍न समस्‍या,1,जहाँ डॉक्टर न हो,1,जितेन्‍द्र चौधरी जीतू,1,जी0 एम0 फ़सलें,1,जीवन की खोज,1,जेनेटिक फसलों के दुष्‍प्रभाव,1,जॉय एडम्सन,1,ज्योतिर्विज्ञान,1,ज्योतिष,1,ज्योतिष और विज्ञान,1,ठण्‍ड का आनंद,1,डॉ0 मनोज पटैरिया,1,तस्‍लीम विज्ञान गौरव सम्‍मान,1,द लिविंग फ्लेम,1,दकियानूसी सोच,1,दि इंटरप्रिटेशन ऑफ ड्रीम्स,1,दिल और दिमाग,1,दिव्य शक्ति,1,दुआ-तावीज,2,दैनिक जागरण,1,धुम्रपान निषेध,1,नई पहल,1,नारायण बारेठ,1,नारीवाद,3,निस्‍केयर,1,पटाखों से जलने पर क्‍या करें,1,पर्यावरण और हम,8,पीपुल्‍स समाचार,1,पुनर्जन्म,1,पृथ्‍वी दिवस,1,प्‍यार और मस्तिष्‍क,1,प्रकृति और हम,12,प्रदूषण,1,प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड,1,प्‍लांट हेल्‍थ क्‍लीनिक,1,प्लाज्मा,1,प्लेटलेटस,1,बचपन,1,बलात्‍कार और समाज,1,बाल साहित्‍य में नवलेखन,2,बाल सुरक्षा,1,बी0 प्रेमानन्‍द,4,बीबीसी,1,बैक्‍टीरिया,1,बॉडी स्कैनर,1,ब्रह्माण्‍ड में जीवन,1,ब्लॉग चर्चा,4,ब्‍लॉग्‍स इन मीडिया,1,भारत के महान वैज्ञानिक हरगोविंद खुराना,1,भारत डोगरा,1,भारत सरकार छात्रवृत्ति योजना,1,मंत्रों की अलौकिक शक्ति,1,मनु स्मृति,1,मनोज कुमार पाण्‍डेय,1,मलेरिया की औषधि,1,महाभारत,1,महामहिम राज्‍यपाल जी श्री राम नरेश यादव,1,महाविस्फोट,1,मानवजनित प्रदूषण,1,मिलावटी खून,1,मेरा पन्‍ना,1,युग दधीचि,1,यौन उत्पीड़न,1,यौन शिक्षा,1,यौन शोषण,1,रंगों की फुहार,1,रक्त,1,राष्ट्रीय पक्षी मोर,1,रूहानी ताकत,1,रेड-व्हाइट ब्लड सेल्स,1,लाइट हाउस,1,लोकार्पण समारोह,1,विज्ञान कथा,1,विज्ञान दिवस,2,विज्ञान संचार,1,विश्व एड्स दिवस,1,विषाणु,1,वैज्ञानिक मनोवृत्ति,1,शाकाहार/मांसाहार,1,शिवम मिश्र,1,संदीप,1,सगोत्र विवाह के फायदे,1,सत्य साईं बाबा,1,समगोत्री विवाह,1,समाचार पत्रों में ब्‍लॉगर सम्‍मेलन,1,समाज और हम,14,समुद्र मंथन,1,सर्प दंश,2,सर्प संसार,1,सर्वबाधा निवारण यंत्र,1,सर्वाधिक प्रदूशित शहर,1,सल्फाइड,1,सांप,1,सांप झाड़ने का मंत्र,1,साइंस ब्‍लॉगिंग कार्यशाला,10,साइक्लिंग का महत्‍व,1,सामाजिक चेतना,1,सुरक्षित दीपावली,1,सूत्रकृमि,1,सूर्य ग्रहण,1,स्‍कूल,1,स्टार वार,1,स्टीरॉयड,1,स्‍वाइन फ्लू,2,स्वास्थ्य चेतना,15,हठयोग,1,होलिका दहन,1,‍होली की मस्‍ती,1,Abhishap,4,abraham t kovoor,7,Agriculture,8,AISECT,11,Ank Vidhya,1,antibiotics,1,antivenom,3,apj,1,arshia science fiction,2,AS,26,ASDR,8,B. 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Scientific World: लड़की का खूबसूरत चेहरा और दूरबीन का आविष्कार
लड़की का खूबसूरत चेहरा और दूरबीन का आविष्कार
Telescope information History in Hindi.
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Scientific World
https://www.scientificworld.in/2017/05/telescope-information-history-hindi.html
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