Black Hole Facts and Theory in Hindi
कृष्ण विवर अर्थात् ब्लैक होल एक ऐसा खगोलीय पिण्ड है, जो अपने भीतर अनोखे रहस्य छिपाये हुए है। जबसे मनुष्य ने ब्रह्माण्ड के बारे में जानने समझने का प्रयास किया, यह उसकी जिज्ञासा के मध्य में रहा है। इसकी दुनिया रोचक ही नहीं आश्चर्यजनक भी है। ब्लैक होल क्या है, कैसा होता है और इसका जन्म कैसे होता है, पढि़ए इस महत्वपूर्ण आलेख में।
अद्भुत खगोलीय पिंड : ब्लैक होल
-प्रदीप
कृष्ण विवर अर्थात ब्लैक होल_Black hole अत्यधिक घनत्व तथा द्रव्यमान वाले ऐसें पिंड होते हैं, जो आकार में बहुत छोटे होते हैं। इसके अंदर गुरुत्वाकर्षण इतना प्रबल होता है कि उसके चंगुल से प्रकाश की किरणों निकलना भी असंभव होता हैं। चूंकि यह प्रकाश की किरणों को अवशोषित कर लेता है, इसीलिए यह अदृश्य बना रहता है।ब्लैक होल के संबंध में सबसे पहले वर्ष 1783 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन मिशेल_John Michell ने अपने विचार रखे। मिशेल के बाद वर्ष 1796 में फ़्रांसीसी वैज्ञानिक पियरे साइमन लाप्लास_Pierre Simon Laplace ने अपनी पुस्तक द सिस्टम ऑफ़ द वर्ल्ड_The System of the World में ब्लैक होल के बारे में विस्तार से चर्चा की।
ब्लैक होल कैसे बनते हैं?
ब्लैक होल का निर्माण किस प्रकार से होता है, यह जानने के लिये तारे के विकास-क्रम को समझना ज़रूरी है। दरअसल तारे का विकास आकाशगंगा_Galaxy में उपस्थित धूल एवं गैसों के एक अत्यंत विशाल मेघ_Dust & Gas Cloud से आरंभ होता है, जिसे नीहारिका_Nebula) कहते हैं। नीहारिकाओं के अंदर हाइड्रोजन की मात्रा सर्वाधिक होती है और 23 से 28 प्रतिशत हीलियम_helium तथा अल्प मात्रा में कुछ भारी तत्व होते हैं।
जब गैस और धूलों से भरे हुए मेघ के घनत्व में वृद्धि होती है। उस समय मेघ अपने ही गुरुत्व के कारण संकुचित होने लगता है। मेघ में संकुचन के साथ-साथ उसके केन्द्रभाग के ताप एवं दाब में भी वृद्धि हो जाती है। अंततः ताप और दाब इतना अधिक हो जाता है कि हाइड्रोजन_Hydrogen के नाभिक आपस में टकराने लगते हैं और हीलियम के नाभिक का निर्माण करनें लगतें हैं।
ऐसे में तारों के अंदर तापनाभिकीय संलयन_Thermo-Nuclear Fusion आरंभ हो जाता है। तारों के अंदर यह अभिक्रिया एक नियंत्रित हाइड्रोजन बम_Hydrogen bomb विस्फोट के समान होती है। इस प्रक्रम में प्रकाश तथा ऊष्मा के रूप में ऊर्जा उत्पन्न होती है। इस प्रकार वह मेघ ऊष्मा व प्रकाश से चमकता हुआ तारा बन जाता है। तापनाभिकीय संलयन से निकलीं प्रचंड ऊष्मा से ही तारों का गुरुत्वाकर्षण संतुलन में रहता है, जिससें तारा अधिक समय तक स्थायी बना रहता है।
अंतत: जब तारे के भीतर मौजूद हाइड्रोजन तथा अन्य नाभिकीय ईंधन खत्म हो जाता है, तो वह अपने गुरुत्वाकर्षण को संतुलित करने के लिए पर्याप्त ऊष्मा नहीं प्राप्त कर पाता है। ऐसे में तारा ठंडा होने लगता है।
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वर्ष 1935 में भारतीय खगोलभौतिकविद् सुब्रमण्यन चन्द्रशेखर_Subrahmanyan Chandrasekhar ने यह स्पष्ट कर दिया कि अपने ईंधन को समाप्त कर चुके सौर द्रव्यमान से 1.4 गुना द्रव्यमान वाले तारे, जो अपने ही गुरुत्व के विरुद्ध स्वयं को नही सम्भाल पाता है। उस तारे के अंदर एक विस्फोट होता है, जिसे अधिनवतारा विस्फोट कहा जाता है। विस्फोट के बाद यदि उसका अवशेष बचता है, तो वह अत्यधिक घनत्वयुक्त ‘न्यूट्रान तारा’_Neutron star बन जाता है।
आकाशगंगा में ऐसे बहुत से तारे होते हैं जिनका द्रव्यमान सौर द्रव्यमान से तीन-चार गुना से भी अधिक होता है। ऐसे तारों पर गुरुत्वीय खिचांव अत्यधिक होने के कारण तारा संकुचित होने लगता हैं, और दिक्-काल_Space-Time विकृत होने लगती है, परिणामत: जब तारा किसी निश्चित क्रांतिक सीमा (Critical limit) तक संकुचित हो जाता है, और अपनें ओर के दिक्-काल को इतना अधिक झुका लेता है कि अदृश्य हो जाता है। यही वे अदृश्य पिंड होते हैं जिसे अब हम ‘कृष्ण विवर’ या ‘ब्लैक होल’ कहते हैं। अमेरिकी भौतिकविद् जॉन व्हीलर (John Wheeler) ने वर्ष 1967 में पहली बार इन पिंडो के लिए ‘ब्लैक होल’ (Black Hole) शब्द का उपयोग किया।
यदि पृथ्वी के पदार्थों का घनत्व लाखों-करोंड़ों गुना अधिक हो जाए तथा इसके आकार को संकुचित करके 1.5 सेंटीमीटर छोटी कर दिया जाए तो ऐसी अवस्था में प्रबल गुरुत्वाकर्षण बल के कारण पृथ्वी भी प्रकाश- किरणों को उत्सर्जित नही कर सकेगी और यह एक ब्लैक होल बन जाएगी। किसी भी ब्लैक होल में द्रव्यमान की तुलना में घनत्व अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। यदि सूर्य को संकुचित करकें इसकी 700,000 किलोमीटर की त्रिज्या को 3 किलोमीटर में परिवर्तित कर दिया जाए, तो इसकी परिणति ब्लैक होल के रूप में होगी। हम जानते हैं कि पृथ्वी एवं सूर्य का इस प्रकार से संकुचित होना असम्भव हैं, क्योंकि न तो पृथ्वी का द्रव्यमान और गुरुत्वाकर्षण बल इतना अधिक हैं और न ही सूर्य का।
ब्लैक होल की विशेषताएं:
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Schwarzschild Radius |
दिलचस्प बात यह हैं कि कार्ल स्क्वार्जस्चिल्ड ने ब्लैक होल की विद्यमानता को सैद्धांतिक रूप में सिद्ध करने के पश्चात् इसके भौतिक विद्यमानता को स्वयं अस्वीकृत कर दिया था। बहरहाल, कार्ल स्क्वार्जस्चिल्ड और जॉन व्हीलर_John Wheeler को ब्लैक होल के खोज का श्रेय दिया जाता हैं।
अल्बर्ट आइंस्टाइन_Albert Einstein के विशेष सापेक्षता सिद्धांत_Theory of Special Relativity के अनुसार एक निश्चित दूरी पर स्थित एक प्रेक्षक के लिए ब्लैक होल के निकट स्थित घड़ियाँ अत्यंत मंद गति से चलेंगी। विशेष सापेक्षता सिद्धांत के अनुसार समय सापेक्ष है। समय व्यक्तिनिष्ठ है, जिस समय प्रेक्षक ‘अब’ कहता हैं, वह केवल स्थानीय निर्देश-प्रणाली पर ही लागू होती है, नाकि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड पर! इस प्रभाव को समय विस्तारण_Time Dilation कहते हैं।
ब्लैक होल के गुरुत्वाकर्षण के कारण, उससे दूर स्थित कोई भी प्रेक्षक यह देखेगा कि ब्लैक होल के अंदर गिरने वाली कोई भी वस्तु उसके घटना क्षितिज के निकट बहुत कम गति से नीचें गिर रही है, उस तक पहुँचनें में अनंत काल-अवधि लगती हुई प्रतीत होती है। उस समय उस वस्तु की समस्त गतिविधियाँ अत्यंत धीमी होने लगेगी, इसलिए वस्तु का प्रकाश अत्यधिक लाल और धुंधला (अस्पष्ट) प्रतीत होगा।
इस प्रभाव को गुरुत्वीय अभिरक्त विस्थापन_Gravitational Red Shift कहते हैं। अंततः ब्लैक होल के अंदर गिरनेवाली वस्तु इतनी अधिक धुंधली हो जाएगी कि दिखाई देना बंद हो जायेगी। अधिकांशत: लोगो का यह मत होता है कि ब्लैक होल वैक्यूम क्लीनर_Vacuum Cleaner की तरह व्यवहार करता है, परन्तु ऐसा नहीं है। जो भी वस्तु ब्लैक होल के निकट जायेगा उसे ही वह निगलेगा। इसका अभिप्राय यह है कि यदि हमारा सूर्य एक ब्लैक होल बन जाए, तब इसकी त्रिज्या 3 किलोमीटर होगी, तो भी सभी ग्रहों की कक्षाएँ पूर्णतया अपरिवर्तित होंगी। ब्लैक होल किसी भी ग्रह को निगल नही सकेगा, बशर्ते यदि वह ग्रह ब्लैक होल के निकट न आवे।
ब्रह्माण्ड में कई प्रकार के ब्लैक होल हैं जो अपने विशिष्ट भौतिक गुणों द्वारा पहचाने जाते हैं। ऐसे तारे जिनका द्रव्यमान सौर द्रव्यमान से कुछ गुना अधिक होता है और गुरुत्वीय संकुचन के कारण वे अंततः एक ब्लैक होल में बदल जाते हैं। ऐसे कृष्ण विवरों को तारकीय द्रव्यमान ब्लैक होल_Stellar Mass Black Hole कहते हैं। ऐसे ब्लैक होल जिनका निर्माण आकाशगंगाओं के केंद्र में होता है, अतिसहंत ब्लैक होल_Super Massive Black Hole कहलाते हैं। इनका द्रव्यमान सौर द्रव्यमान की तुलना में लाखों-करोड़ों गुना अधिक होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार हमारी आकाशगंगा-दुग्धमेखला के केंद्र में एक विशाल ब्लैक होल हैं और इसका द्रव्यमान सौर द्रव्यमान से एक करोड़ गुना है।
ऐसे ब्लैक होल जिनका द्रव्यमान सौर द्रव्यमान से भी कम होता है, उनका निर्माण गुरुत्वीय संकुचन के कारण न होकरके, बल्क़ि अपने केंद्र भाग के पदार्थ का दाब एवं ताप के कारण संपीडित होने से होता है। ऐसे कृष्ण विवरों को प्राचीन ब्लैक होल_Primordial Black Hole या लघु ब्लैक होल_Small Black Hole के नाम से जाना जाता हैं। इन लघु कृष्ण विवरों के बारे में वैज्ञानिकों की मान्यता है कि इनका निर्माण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के समय हुआ होगा। भौतिकविद् स्टीफन हाकिंग_Stephen Hawking के अनुसार हम ऐसे ब्लैक होलों के अध्ययन से ब्रह्माण्ड की आरंभिक अवस्थाओं के बारे में बहुत कुछ पता लगा सकते हैं।
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Schwarzschild Black Hole |
ब्लैक होल को कैसे खोजा जाता है?
जैसा कि हम जानते हैं कि ब्लैक होल प्रकाश की किरणों को उत्सर्जित नहीं करते हैं, तो हम इन्हें खोजने की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं? यह खगोलविदों के लिए पहले एक गम्भीर समस्या थी। परन्तु खगोलविदों ने इस समस्या का भी समाधान ढूढ़ निकाला। मिशेल के अनुसार ब्लैक होल अदृश्य होने पर भी अपने निकट स्थित पिंडों पर गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव डालता है। खगोलविदों ने इस परियोजना के अंतर्गत आकाश में स्थित उन युग्म तारों का प्रेक्षण किया, जो एक-दूसरे के गुरुत्वाकर्षण से बंधकर एक-दूसरे की परिक्रमा करते हैं। कल्पना करें की आकाश में दो तारें एक दूसरे की परिक्रमा कर रहे हैं, उनमें से एक तारा अदृश्य है तथा दूसरा तारा दृष्टिगोचर है। ऐसी स्थिति में दृश्य तारा अदृश्य तारे की परिक्रमा करेगा।
यदि आप जल्दबाजी में अदृश्य तारे को ब्लैक होल मान लेते हैं तो आप गलत भी हो सकतें हैं क्योंकि यह एक ऐसा तारा भी हो सकता हैं जो हमसे बहुत दूर हैं और उसका प्रकाश इतना धीमा हैं कि हमे दिखाई न दे रहा हो। यदि खगोलविद दृश्य तारे के कक्षा से सबंधित खगोलीय गणनाओं के आधार पर उसके द्रव्यमान से सबंधित जानकारी एकत्र कर लेगा तो वह खगोलीय विधियों द्वारा सरलता से उस अदृश्य तारे के द्रव्यमान के बारे में पता लगया जा सकता है। यदि उसका द्रव्यमान सौर द्रव्यमान से तीन-चार गुना अधिक होता है, तो अत्यधिक सम्भावना है कि वह अदृश्य तारा एक ब्लैक होल है।
ब्लैक होल के अस्तित्व को सिद्ध करने का एक अन्य उपाय भी है। कल्पना करें ब्लैक होल के निकट एक दृश्य तारा है, तब ब्लैक होल इस दृश्य तारे की गैसीय द्रव्यराशि को उसके पृष्ठभाग से अपनें में खींचता रहेगा। ब्लैक होल में दृश्य तारे की द्रव्यराशि के गिरने के कारण उसमें से काफी तेजी से एक्स-किरणें उत्सर्जित होने लगेंगी (घर्षण, ताप एवं दाब के कारण)। तब एक्स-किरणों के उद्गम के निरीक्षण एवं अध्ययन से ब्लैक होल के भौतिक विद्यमानता को सिद्ध किया जा सकता हैं।
खगोलविदों को वर्ष 1965 में हंस_Cygnus तारामंडल में एक अत्यंत प्रचंड एक्स-रे स्रोत मिला। उस स्रोत को सिग्नस एक्स-1_Cygnus X-l नाम दिया गया। वर्ष 1970 में अमेरिका द्वारा प्रक्षेपित एक उपग्रह द्वारा यह पता चला कि सिग्नस एक्स-1 कोई श्वेत वामन या न्यूट्रान तारा नही है, बल्कि एक ब्लैक होल हैं। दरअसल सिग्नस एक्स-1 एक युग्म तारक-योजना है। इस युग्म तारे का दृश्य तारा अत्यंत विशाल है, जो अदृश्य तारे की परिक्रमा कर रहा है। खगोलविदों ने सिग्नस एक्स-1 के द्रव्यमान का निर्धारण खगोलीय विधियों द्वारा छह सूर्यों के द्रव्यमान के बराबर की है। इससे यह स्पष्ट होता हैं कि सिग्नस एक्स-1 एक ब्लैक होल हैं।
स्टीफेन हॉकिंग और ब्लैक होल:
ब्लैक होल के संबंध में हमारी वर्तमान समझ भौतिकविद् स्टीफन हाॅकिंग_Stephen Hawking के कार्यों पर आधारित है। हाकिंग ने वर्ष 1974 में ब्लैक होल इतने काले नहीं_Black Holes Ain’t So Black शीर्षक से एक शोधपत्र प्रकाशित करवाया। इस शोधपत्र में हॉकिंग ने सामान्य सापेक्षता सिद्धांत एवं क्वांटम भौतिकी के सिद्धांतों के आधार पर यह दर्शाया कि ब्लैक होल पूरे काले नही होते, बल्कि ये अल्प मात्रा में विकिरणों को उत्सर्जित करतें हैं। हाकिंग
ने यह भी प्रदर्शित किया कि ब्लैक होल से उत्सर्जित होने वाली विकीरणें क्वांटम प्रभावों के कारण शनै: शनै: बाहर निकलती हैं। इस प्रभाव को हॉकिंग विकीरण_Hawking Radiation के नाम से जाना जाता है।
ने यह भी प्रदर्शित किया कि ब्लैक होल से उत्सर्जित होने वाली विकीरणें क्वांटम प्रभावों के कारण शनै: शनै: बाहर निकलती हैं। इस प्रभाव को हॉकिंग विकीरण_Hawking Radiation के नाम से जाना जाता है।
हॉकिंग विकिरण प्रभाव के कारण ब्लैक होल अपने द्रव्यमान को धीरे-धीरे खोने लगते हैं, तथा ऊर्जा का भी क्षय होता हैं (E=mc²)। यह प्रक्रिया लम्बें अंतराल तक चलने के बाद अन्ततोगत्वा ब्लैक होल वाष्पन को प्राप्त होता है। दिलचस्प बात यह है कि विशालकाय ब्लैक हालों से कम मात्रा में विकिरणों का उत्सर्जन होता है, जबकि लघु ब्लैक होल बहुत तेजी से विकिरणों का उत्सर्जन करके वाष्प बन जाते हैं।
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बहुत ही अच्छा व सरल शब्दों में ज्ञानवर्धक लेख ।
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