क्यों होते हैं विकलांग यौन शोषण का शिकार?

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Disabled Child Exploitation in India in Hindi

हमारे अतीत के हिस्से में ऐसे बहुत सारे बच्चे हैं जिनका नाम उनकी विकलांगता के आधार पर दर्ज हैं। अब नाम भले दूसरे बच्चों की तरह रखे जाने लगे हो मगर समाज की जुबान से ऐसे अपशब्द पूरी तरह से गए भी नहीं हैं। आज भी कई जगहों पर ऐसे अपशब्द ही उनकी पहचान बने हुए हैं। आज भी समाज की नजर में विकलांगता जैविक और जन्मजात विकृति से ज्यादा कुछ भी नहीं। महज एक रोग, एक अभिशाप है। जबकि यह रोग या अभिशाप नहीं बल्कि एक स्थिति है जो कि सामाजिक पूर्वाग्रह और तरह-तरह की बाधाओं के कारण और जटिल बन  चुकी है। 

जवाबदेही के नाम पर इससे जुड़े हर सवाल को मेडिकल से जोड़कर देख लिया जाता है। फिर मेडिकल में ही पुर्नवास करने-कराने की दलीलें दे दी जाती हैं। विकलांग लोगों के संपूर्ण पुर्नवास पर आवाज लगाने वालों की तादाद देश में अब भी गिनी-चुनी और अनसुनी है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि वह आर्थिक और राजनैतिक स्तर पर कम भी हैं और कमजोर भी। दरअसल विकलांगता को उसकी व्यापकता और वास्तविकता में समझने के लिए एक जमीन चाहिए। एक ऐसी जमीन जिस पर विकलांगता के कारण और उसकी स्थितियों पर प्रकाश डाला जा सके। तो आइए बड़वानी चलते हैं:

बड़वानी- मध्य-प्रदेश का एक गरीब, आदिवासी और विकास के मामले में बहुत पिछड़ा जिला है। जल, जंगल, जमीन के बावजूद दाने-दाने को मोहताज। जो बिखरा-बिखरा, असंगठित, उबड-खाबड़ पहाड़ी, जंगली और नदी-नालों से भरा है। जहां प्रशासन की सुविधाएं भी बहुत दूर-दूर हैं। अंधविश्वास की भावनाएं विकलांगता की स्थिति को कितना बिगाड़ देती हैं, आइए आप ही देख लीजिए:

(एक) प्रदेश में विकलांग समुदाय की कुल आबादी है: 14,77,708। जिसमें 11,08281 ग्रामीणजन हैं। यह कुल आबादी का 75 प्रतिशत भाग है। बड़वानी में कुल 17,782 जन विकलांग हैं, जिसमें 15,427 ग्रामीण अंचल से ताल्लुक रखते हैं।

(दो) प्रदेश में कुल 11,65,703 विकलांग जन गरीबी रेखा से नीचे हैं। बड़वानी का जिक्र किया जाए तो यहां 14,679 विकलांग जन इस अभावग्रस्त रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं, जिसमें 13,052 ग्रामीण हैं। प्रतिशत में यह 89 % है।

(तीन) प्रदेश में कुल विकलांग आबादी में 51,5929 लोग आजीविका या रोजगार से दूर हैं। मतलब, प्रतिशतता के आधार पर 34.91%। तुलना के लिहाज से बड़वानी में कुल 12,828 में से 3,561 विकलांग जन तो पूरी तरह बेकार है। मतलब, 28 % लोग काम की तलाश में यहां से वहां भटकते हैं।
(चार) प्रदेश में साक्षरता के मद्देनजर विकलांग जन की गणना की जाए तो 87,8310 निरक्षर हैं जो कि 59.44 % बोलता है। 

इसी तरह बड़वानी में कुल 12,064 निरक्षर हैं, मतलब 68 %। मतलब कुल संख्या का एक बहुत बड़ा हिस्सा 'क' 'ख' 'ग' 'घ' से परिचित नहीं है। इस पर भी 10989 ग्रामीण हैं। यहाँ की प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर हालत को नाजुक ही बताया जाएगा क्योंकि इस तरह के तुलना 1,874 लोग ही कक्षा 5 तक शिक्षा पा सके हैं। देखा आपने यह सफेद कागज पर विकलांग साथियों के खिलाफ जाता कैसा गणित है?
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ठीकरी ब्लाक के सुराना गांव की सरिता की बात ही लें। यह बच्ची बचपन से ही मंदबुध्दि है। वह जैसे-जैसे बड़ी हुई घरवालों को उसमें असमानता और कमियां दिखाई देने लगीं। जैसा कि होता है, परिवार वालों का व्यवहार भी बदल गया। सरिता, क्योंकि कम दिमाग की बच्ची है इसलिए वह कुछ समझ न पायी। उल्टा, इस बदले व्यवहार ने उसके लिए बहुत-सी समस्यां पैदा कर दी। अब, परिवार वाले उसकी जिद और तरह-तरह की हरकतों से और ज्यादा नाराज़ रहने लगे। हालात यहाँ तक पहुँच गई कि उन्होंने उसे एक कोने में बांधकर रख दिया।

अनिल अभी 12 साल का है। जिला मुख्यालय से 4 किलोमीटर दूर उसका घर बिलावा गांव में है। उसके दोनों पैरों में जन्मजात विकृति है। समय रहते सुधार की गुजांइश थी लेकिन परिवार की आर्थिक हालात बहुत ही खराब थी। मॉ-बाप खेतों में काम कर किसी तरह दो वक्त की रोटी का बंदोबस्त कर लेते हैं। सही वक्त पर उचित परामर्श और चिकित्सा न मिलने से अनिल के जीवन की चाल रुक सी गई है। 

राम जिला मुख्यालय से सटा गांव कसरावद का है। 7 साल का राम एक भील परिवार का बच्चा है। बचपन में ही वह अपनी मां से बिछड़ गया। वह जन्म-जात विकलांगता से ग्रसित था और थोड़ा बड़ा होते ही परिवार वाले भी उसकी इस कमजोरी को समझ गए। उसके पिता ने कई बार डाक्टरों दिखाया। हासिल कुछ भी न हो सका। पिता ने दूसरी शादी कर ली। उनकी दूसरी पत्नी से पहली संतान हुई। सबका ध्यान उसी की ओर हो गया। उसकी बूढ़ी दादी ही उसका सहारा है। वही उसे नहलाती, धुलाती, कपड़े पहनाती और दूसरे काम करती है। पैर पर पैर रखकर वह घसीट-घसीटकर चलता है। नतीजन, उसकी रीढ़ के निचले हिस्से में घाव हो गया है।

जब तक बच्चा गोदी में है अच्छा लगता है। गोदी के बाहर  अनगिनत बाधाएं  हैं। ऐसे बच्चे पर समुदाय ध्यान नहीं देता। उसे बोझ तथा पूर्व जन्मों के पाप समझकर परजीवी बना दिया जाता है। दूसरी तरफ, कुछ परिवार ऐसे भी होते है जो कि अपने लाड़ले की विकलांगता को दूर करने के लिए बहुत पैसा और समय खर्च करते है। इसके बावजूद जब उसकी स्थिति में खास सुधार नही होता तो बर्बादी की सारी जिम्मेदारी घर के ऐसे ही सदस्य के सिर फोड़ी जाती है। इस तरह एक ही परिवार के दूसरे लोग जो किसी कारणवश अपने जीवन मे नाकामयाब होते हैं वह भी अपनी दोषपूर्णता छिपाने के लिए इसी भाई या बहन को जिम्मेदार ठहराते है।

निर्मला बरेला, 14 साल की ऐसी बच्ची है जिसने कक्षा तीन तक पढ़ने के बाद कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा। वह तकरीबन 15 किलोमीटर दूर सिलावद (नदी पार) की है। एक पैर से विकलांग होने के कारण अकसर बीमार रहती है। पंजे के बल एड़ी को उठाकर, लचकती-सी चलती है तो कई बार गिर भी जाती है। जब पहली बार उसको देखने यहां की महिला कार्यकर्ता पहुंची तो वह भाग गई। धीरे-धीरे कार्यकर्ता ने उसे स्कूल में लाने कोशिश की। अब वह बच्ची कार्यकर्ता के पास तो आने लगी, मगर माता-पिता के कहने पर। और एक दिन जब बच्ची के घर उसके अलावा कोई नहीं था खुद बच्ची ने महिला कार्यकर्ता को भला बुरा कहा।

एक खास बाधा स्कूल का गेट या उसकी सीढ़ी से जुड़ा है। कहने की जरूरत नहीं कि जिन्दगी के 1,2,3 और 4,5 जाने बगैर सुंदर भविष्य की कल्पना बेमानी है। पढ़ाई लिखाई में भी विकलांग बच्चों को लगातार उपेक्षित किया जाता है। राम के साथ भी ऐसा ही हुआ। जब एक गैर सरकारी संस्था के स्थानीय-कार्यकर्ता ने उसे स्कूल भेजने का जिम्मा लिया तो इसके लिए उसकी प्यारी दादी से बात हुईं। दादी किसी तरह मान गई। लेकिन टीचर ने एडमीशन देने तक को मना कर दिया। कार्यकर्ता ने बात को यही समाप्त करने की बजाय पंचायत में बात की। अभी वह पहली में पढ़ने के लिए किसी तरह स्कूल जा जरूर रहा है। मगर अधिकतर ऐसे बच्चे तरह-तरह की समस्याओं के कारण 'मेरे दोस्त को स्कूल भेजो' नहीं कहते। बल्कि वह खुद ही बीच में पढ़ाई छोड़ देते हैं। 
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यहां शिक्षकों की संवेदनशीलता और अध्ययन के तरीकों पर बात उठनी लाजमी है। ज्यादातर शिक्षक इसके पीछे काम काज में अतिरिक्त भार को कारण बताते है। सहपाठी दोस्तों का अ-संवेदनशील रवैया और हतोत्साहन भी विकलांग बच्चों को स्कूल से बाहर का दरवाजा दिखाता है। स्कूल में संदवेनशील और एक समान व्यवहार का माहौल तैयार करना शिक्षक का काम होता है। वह विद्यार्थियों में सहयोगात्मक भावना जगा सकता है। ऐसे विद्यार्थियों को स्कूल जाने मे जिन बाधाओं का सामना करना पड़ता है उन पर विचार करना चाहिए। जैसे: कक्षा तक जाने के लिए सीढ़िया, मैदान, बैठक व्यवस्था, ब्लैक-बोर्ड, उस पर लेखन प्रणाली, शिक्षक की आवाज, रौशनी, पेयजल और शौचालय तक पहुंचने का मार्ग आदि।
विकलांग बच्चियों के साथ तो स्थिति और खराब हो जाती है। बच्ची होने से उसे घर की चारदीवारी में कैद हो जाना पड़ता है और विकलांगता के चलते उसे शर्मिंदा होना पडता है। जब वह ही अपनी विकलांगता को छिपाना चाहेगी तो फिर वह अपने अगले कदम मतलब अधिकार की बात कैसे करेगी?

जिला मुख्यालय से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर गाँव तलवाड़ा बुर्जग में दाएं पैर से विकलांग लक्ष्मण-सिंह चलते समय लकड़ी का सहारा लेता है। पांचवी फेल यह 27 साल का अविवाहित युवक है। लक्ष्मण निराश्रित पेंशन-योजना के तहत 150 रूपए प्रति-माह पाता है। आजीविका के लिए वह अपनी  सिलाई मशीन से थोड़ा-बहुत पैसा कमाता रहा था, मगर यह मशीन अब खराब पड़ी है, जिसे सुधरवाने में 300 रूपए का खर्च आएगा। एक गरीबी-रेखा के नीचे गुजर-बसर करने वाले व्यक्ति के लिए यह एक भारी रकम है। रकम की व्यवस्था न हो पाने के कारण लम्बे समय से उसका काम ठप्प है। बेकारी ने उसकी मुश्किलों को और बढ़ा दिया है। अपनी छोटी -सी झुग्गी में मटमैले कपड़े, बिखरे बाल और चहरे पर जमा गंदगी के साथ जैसे निराशाओं ने भी जड़े जमा ली हैं।

समाज का नकारात्मक सोच और खुद का कोई काम कर पाने को लेकर गिरा भरोसा बेकारी से निकलने नहीं देता। जब वह किसी और के भरोसे हो जाता है तो उसकी भावना, इच्छा और फैसलों को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। यह तो एक लक्ष्मण की बात है। बाकी के न जाने कितने लक्ष्मण भीख मागने को अपना एकमात्र उपाय समझ लेते है। हमारा समाज भी धार्मिक या सामाजिक तौर पर दान देने की गलत पंरपरा को निभाता है। इस तरह समुदाय की एक खासी तादाद अर्थव्यवस्था में अपनी भागीदारी नहीं निभा पता है। जो लोग ऐसा नहीं कर पाते वह निर्णय की प्रक्रिया में भी कही कोई स्थान नहीं पाते।

गरीब व्यक्ति हमेशा मानसिक तनाव में रहता है। मानसिक तनाव मानसिक रोग में बदल जाता है। गरीबी के कारण ही उचित उपचार नहीं हो पाता है। लेखराम 17 किलोमीटर दूर ओसाड़ा गॉव के निवासी है। उसे पिता की बीमारी और मौत ने मानसिक रूप से परेशान कर दिया। अंतिम-संस्कार के समय ढ़ोल-बाजे सुनकर वह कांप उठा था। फिर सीटी बजाना, घर से भागना, पत्थरों को फेंकना,गाली-गलौच करना, बड़बड़ना और तालिया बजा-बजाकर हंसना उसकी फितरत बन गई। भूत भागाने वालों  के चक्कर में परिवार ने 10 साल में हजारों रूपये बर्बाद कर दिए।

अगर विकलांग समुदाय की मानवीय स्वभाव से जुड़ी अन्य जरूरतों पर बात की जाए तो सेक्स को नजर-अन्दाज नहीं किया जा सकता। मगर इस बीच आने वाली विकलांगतारूपी पीड़ाएँ बाधा बनती हैं। जब उनकी इस प्रकार की जरूरतें पूरी नहीं हो पाती तो मानसिक संतुलन की स्थिति बिगड़ जाती है। पुरूष तो किसी तरह अपने हिस्से की जिन्दगी जी लेते हैं मगर महिलाओं के लिए जिंदगी बद से बदतर बन जाती है। क्योंकि उसके लिए तो बंधन हैं, मर्यादाओं की एक दहलीज है। 

दहलीज के बाहर निकलने में ऐतराज है। दहलीज के भीतर रहने में समस्याएं हैं। फिर गरीबों का रेनबसेरा बहुत छोटा होता है। जिसमें एकाध कमरा और तंग दीवारें होती हैं। इन तंग दीवारों में परिवार के दूसरे सदस्यों की सेक्स गतिविधियां उनकी भावनाओं को भड़काती हैं। अगर वह अपनी भावनाओं को दबाएं भी तो इससे मानसिक हालत बिगड़ने का खतरा रहता है। 

कई बार समाज के दबंग मर्द विकलांग और कमजोर महिला को यौन शोषण का शिकार बनाने से नही चूकते। ऐसे में उनके द्वारा किए गए अत्याचार से जो गर्भ ठहरता है उसके लिए वहीं जिम्मेदार ठहराई जाती है। उल्टा उसे ही असामाजिक घोषित कर नरक के द्वार खोल दिए जाते है। कुछ परिवार यह सोचकर कि इनमें सेक्स संबंधी भावनाएं होती ही नही है, उनकी तरफ ध्यान नहीं देते। उनकी यही कमजोरी उनके शोषण की एक मुख्य वजह बन जाती है।

आज के व्यक्तिवादी समाज में बूढ़ों की हालत वैसे ही कमजोर हो गई है। ऐसे में विकलांग समुदाय के बूढ़ों की बात करें तो स्थिति ज्यादा नाजुक बन जाती है। देखा जाए तो इस उम्र तक आते-आते विकलांग व्यक्ति या तो जी ही नहीं पाते या आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाते हैं। और जो दोनों स्थितियो से बच निकलते हैं वह अकेलापन लिए होते हैं। अभावग्रस्त जीवन को ढ़ोने और केवल दुख को महसूस करने के लिए जिंदा रहते हैं।

सखाराम 65 साल के आदिवासी बुजुर्ग और अपने दोनों पैरों से लाचार है। गांव राजघाट में उनका घर एक छोटी-सी बेड़ी पर पड़ता है। अन्दर को नालियों से जाता गंदा पानी। कीचड़ से लथ-पथ गलियों से गुजरता हुआ उनका जीवन असंमजस में अटका पड़ा है। खासकर शौचालय जाने पर।

ऐसी स्थितियां आपके आसपास भी होगी। असल में सामाजिक स्तर पर विकलांगता के शिकार व्यक्ति विकलांगता से ज्यादा समाज में फैले भ्रम और अनदेखियों से जूझते हैं। एक तरफ सरकार समाज से कहती है कि विकास में सबका साथ चाहिए। मगर इस तबके को जब तक मौका नहीं मिलेगा तब तक यह समाज में अपनी रचनात्मक भागीदारी नहीं निभा सकता। यह तबका तो हताशा से घिरा हुआ है जो अपने भीतर भरोसा कायम नहीं कर पा रहा है।
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 शिरीष खरे ‘चाईल्ड राईटस एण्ड यू’ के ‘संचार-विभाग’ से जुड़े हैं।  
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COMMENTS

BLOGGER: 9
  1. एक गंभीर रिपोर्ट !

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  2. गम्भीर समस्या है आज विकलागो का शोषण।

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. एक तथ्यपरक आलेख ...सोद्देश्य लेखन !
    जाकिर भाई और शिरीष जी दोनों का हृदय से आभार !

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  5. यह सनसनी पैदा कर देने वाली रिपोर्ट है.

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  6. शिरीश की एक और उम्दा रिपोर्ट.

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  7. बेनामी1/21/2017 11:08 pm

    hanadicap ki bejojgari bhaut sare h

    जवाब देंहटाएं
वैज्ञानिक चेतना को समर्पित इस यज्ञ में आपकी आहुति (टिप्पणी) के लिए अग्रिम धन्यवाद। आशा है आपका यह स्नेहभाव सदैव बना रहेगा।

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अंतरिक्ष युद्ध,1,अंतर्राष्‍ट्रीय ब्‍लॉगर सम्‍मेलन,1,अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉगर सम्मेलन-2012,1,अतिथि लेखक,2,अन्‍तर्राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन,1,आजीवन सदस्यता विजेता,1,आटिज्‍म,1,आदिम जनजाति,1,इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी,1,इग्‍नू,1,इच्छा मृत्यु,1,इलेक्ट्रानिकी आपके लिए,1,इलैक्ट्रिक करेंट,1,ईको फ्रैंडली पटाखे,1,एंटी वेनम,2,एक्सोलोटल लार्वा,1,एड्स अनुदान,1,एड्स का खेल,1,एन सी एस टी सी,1,कवक,1,किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज,1,कृत्रिम मांस,1,कृत्रिम वर्षा,1,कैलाश वाजपेयी,1,कोबरा,1,कौमार्य की चाहत,1,क्‍लाउड सीडिंग,1,क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान कथा लेखन,9,खगोल विज्ञान,2,खाद्य पदार्थों की तासीर,1,खाप पंचायत,1,गुफा मानव,1,ग्रीन हाउस गैस,1,चित्र पहेली,201,चीतल,1,चोलानाईकल,1,जन भागीदारी,4,जनसंख्‍या और खाद्यान्‍न समस्‍या,1,जहाँ डॉक्टर न हो,1,जितेन्‍द्र चौधरी जीतू,1,जी0 एम0 फ़सलें,1,जीवन की खोज,1,जेनेटिक फसलों के दुष्‍प्रभाव,1,जॉय एडम्सन,1,ज्योतिर्विज्ञान,1,ज्योतिष,1,ज्योतिष और विज्ञान,1,ठण्‍ड का आनंद,1,डॉ0 मनोज पटैरिया,1,तस्‍लीम विज्ञान गौरव सम्‍मान,1,द लिविंग फ्लेम,1,दकियानूसी सोच,1,दि इंटरप्रिटेशन ऑफ ड्रीम्स,1,दिल और दिमाग,1,दिव्य शक्ति,1,दुआ-तावीज,2,दैनिक जागरण,1,धुम्रपान निषेध,1,नई पहल,1,नारायण बारेठ,1,नारीवाद,3,निस्‍केयर,1,पटाखों से जलने पर क्‍या करें,1,पर्यावरण और हम,8,पीपुल्‍स समाचार,1,पुनर्जन्म,1,पृथ्‍वी दिवस,1,प्‍यार और मस्तिष्‍क,1,प्रकृति और हम,12,प्रदूषण,1,प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड,1,प्‍लांट हेल्‍थ क्‍लीनिक,1,प्लाज्मा,1,प्लेटलेटस,1,बचपन,1,बलात्‍कार और समाज,1,बाल साहित्‍य में नवलेखन,2,बाल सुरक्षा,1,बी0 प्रेमानन्‍द,4,बीबीसी,1,बैक्‍टीरिया,1,बॉडी स्कैनर,1,ब्रह्माण्‍ड में जीवन,1,ब्लॉग चर्चा,4,ब्‍लॉग्‍स इन मीडिया,1,भारत के महान वैज्ञानिक हरगोविंद खुराना,1,भारत डोगरा,1,भारत सरकार छात्रवृत्ति योजना,1,मंत्रों की अलौकिक शक्ति,1,मनु स्मृति,1,मनोज कुमार पाण्‍डेय,1,मलेरिया की औषधि,1,महाभारत,1,महामहिम राज्‍यपाल जी श्री राम नरेश यादव,1,महाविस्फोट,1,मानवजनित प्रदूषण,1,मिलावटी खून,1,मेरा पन्‍ना,1,युग दधीचि,1,यौन उत्पीड़न,1,यौन शिक्षा,1,यौन शोषण,1,रंगों की फुहार,1,रक्त,1,राष्ट्रीय पक्षी मोर,1,रूहानी ताकत,1,रेड-व्हाइट ब्लड सेल्स,1,लाइट हाउस,1,लोकार्पण समारोह,1,विज्ञान कथा,1,विज्ञान दिवस,2,विज्ञान संचार,1,विश्व एड्स दिवस,1,विषाणु,1,वैज्ञानिक मनोवृत्ति,1,शाकाहार/मांसाहार,1,शिवम मिश्र,1,संदीप,1,सगोत्र विवाह के फायदे,1,सत्य साईं बाबा,1,समगोत्री विवाह,1,समाचार पत्रों में ब्‍लॉगर सम्‍मेलन,1,समाज और हम,14,समुद्र मंथन,1,सर्प दंश,2,सर्प संसार,1,सर्वबाधा निवारण यंत्र,1,सर्वाधिक प्रदूशित शहर,1,सल्फाइड,1,सांप,1,सांप झाड़ने का मंत्र,1,साइंस ब्‍लॉगिंग कार्यशाला,10,साइक्लिंग का महत्‍व,1,सामाजिक चेतना,1,सुरक्षित दीपावली,1,सूत्रकृमि,1,सूर्य ग्रहण,1,स्‍कूल,1,स्टार वार,1,स्टीरॉयड,1,स्‍वाइन फ्लू,2,स्वास्थ्य चेतना,15,हठयोग,1,होलिका दहन,1,‍होली की मस्‍ती,1,Abhishap,4,abraham t kovoor,7,Agriculture,8,AISECT,11,Ank Vidhya,1,antibiotics,1,antivenom,3,apj,1,arshia science fiction,2,AS,26,ASDR,8,B. 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