फलों और सब्जियों में पाये जाने वाले जहरीले तत्व और उनके दुष्प्रभाव।
आपको जानकार हैरानी होगी कि करेला, मेथी, बैंगन, कद्दू, खीरा, सेब, बादाम आदि फल और सब्जियों में सायनाइड (Cyanide) जैसे ज़हरीले पदार्थ भी जाये जाते हैं, जिसकी वजह से आप बीमार हो सकते हैं। लेकिन अगर इन्हें सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए, तो आप इनसे बचे रह सकते हैं। हमारे घरों में ऐसे कौन-कौन से फल और सब्जियाँ हैं, उनमें क्या विषाक्तता होती है और कैसे उनसे बचा जा सकता है, पढिए डॉ. सुनन्दा दास के इस महत्वपूर्ण लेख मेें।
विषाक्त फल और सब्जियाँ
-डॉ. सुनन्दा दास
यह एक ज्ञात तथ्य है कि प्राकृतिक रूप से पैदा किए गए करीब सभी खाद्य पदार्थों में न्यूनाधिक विषाक्त रसायन होता है। यह केवल किसी जीव की खुराक ही है जो गैर-विषैले को विषाक्त पदार्थ से अलग करती है। उदाहरणस्वरूप जल भी यदि एक अधिक मात्रा (4-5 लीटर) में तथा अपेक्षाकृत कम समय (2-3 घण्टे) में लिया जाए तो वह शरीर के लिए विषाक्त होता है। इसे हाइपोनेट्रीमिया (Hyponatremia) कहते हैं जिसके कारण प्रमस्तिष्क (Cerebral edema), दौरा और यहां तक कि मृत्यु भी हो सकती है।
पानी की तरह अत्यंत लाभकारी विटामिन ‘ए’ जो आक्सीकरण रोधी (Antioxidant) का कार्य करता है, अत्यधिक मात्रा में लेने से यकृत की विषाक्तता (Hepatotoxicity) बढ़ाता है। सब्जियों या फलों में पाये जाने वाले हानिकारक रसायन, पर्यावरण प्रदूषण, गलत ढंग से उत्पादन और प्रसंस्करण या अपनी ही लापरवाही के कारण हमारे शरीर में खाद्य पदार्थों के रूप में स्वाभाविक रूप से प्रवेश करते हैं।
एक निश्चित मात्रा की विषाक्तता खाद्य-पदार्थों में जैसे करेला, मेथी, बैंगन, कद्दू, खीरा इत्यादि में सामान्यतः होती है तथा हम सब इसके अभ्यस्त होते हैं क्योंकि इनकी मात्रा काफी कम होती हैं इसी कारण इनको विविध आहार के रूप में सेवन किया जाता है। ताजे फलों और सब्जियों (Vegetables) की तुलना में क्षतिग्रस्त शाक सब्जियों में अधिक विषाक्तता होती है। आमतौर पर सब्जियों तथा फलों के विषैलेपन की सक्रियता का कारण मुख्यतः, पृथ्वी के तापमान में अत्यधिक परिवर्तन, मृदा का कम पी.एच., आर्द्रता और उर्वरता में कमी तथा इन खाद्य पदार्थों का अधिक परिपक्व तथा अनुचित प्रकार से भण्डारण किया जाना है।
नियामक संस्थाएँ वसा, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैलोरी, संभावित एलर्जी आदि के बारे में उपयोगी जानकारी उपभोक्ताओं को तो प्रदान करती हैं लेकिन विषाक्त रसायन जो कि खाद्य पदार्थों में निहित हैं या प्रसंस्करण के दौरान गठित हुए हैं, उनके बारे में कोई जानकारी नहीं देती हैं।
कुछ विषाक्त रसायनों की विषाक्तता भोजन पकाने के दौरान निष्क्रिय होती है तो कहीं कम मात्रा में इन विषाक्त पदार्थों की खपत अपरिहार्य होती है। इस लेख का उद्देश्य प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले खाद्य पदार्थों में उपस्थित इन विषैले पदार्थों के संभावित खतरों को वर्णित किया जाना है जिससे इनके कुप्रभावों से बचा जा सके।
खुंभी (मशरूम Mushroom):
कुकुरमुत्तों (Toadstools) के बारे में हम सभी ने सुना है और हम यह भी जानते हैं कि वे जहरीले होते हैं। किन्तु बहुत से लोगों को यह नहीं पता कि कुकुरमुत्ता वास्तव में एक प्रकार की खुम्भी है। ‘कुकुरमुत्ता’ एक ग्रामीण शब्द है जो विषाक्त खुम्भियों के लिए प्रयुक्त होता है।
खुंभी की विषाक्तता, माइसेटिज़म (Mycetism) के रूप में जानी जाती है जिसका लक्षण पेट की मामूली गड़बड़ी होता है लेकिन कभी कभी इससे हालत बिगड़ भी सकती है। इन कवकों में विभिन्न प्रकार के विषाक्त पदार्थ मौजूद होते हैं जो इनमें विशिष्ट जैवरासायनिक चयापचय क्रियाओं द्वारा उत्पादित होते हैं। अक्सर इनके गम्भीर लक्षण खाने के तुरंत बाद परिलक्षित नहीं होते। यह कभी कभी दिनों या हफ्तों के बाद भी शरीर के अभिन्न अंगों यानि गुर्दा, यकृत आदि पर हमला करते हैं।
खुम्भियों में पाए जाने वाले विषाक्त पदार्थ और उनके घातक प्रभाव:
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Amanita Mushroom |
गाइरोमिट्रिन (Gyromitrin) गाइरोमिट्रा खुंभी (Gyromitra) में पाया जाने वाला घातक विष है जो जठरांत्र को गड़बड़ करता है तथा रक्त कोशिकाओं का विनाश एवं तंत्रिकातंत्र को क्षति पहुँचाता है।
इरगोटेमीन (Ergotamin) अतिघातक है जो क्लेविसेप्स (Claviceps) में पाया जाता है तथा नाड़ी तंत्र को क्षति पहुँचाता है जिसके कारण अंगों को हानि पहुंचती है तथा मृत्यु तक हो जाती है।
इसी प्रकार मशरूमों की कई अन्य किस्में विषाक्त होती हैं। इनमें पाया जाने वाला अगेरिटीन (Agaritine) रसायन विष है लेकिन पकाने से इसकी विषाक्तता निष्क्रिय हो जाती है।
कुछ खुभियों में हानिकारक यौगिक होते हैं जिनके विष का उपचार हो सकता है। मगर कुछ मशरूम जैसे अमानिटा में इतने विषाक्त पदार्थ होते हैं कि उनकी विषाक्तता से अक्सर मौत हो जाती है।
विषाक्तता के अन्य कारण:
भंडार या बगीचों में जहाँ मशरूम उगाए या भंडारित किए जाते हैं, वहाँ कीटनाशकों या खरपतवार नाशकों के छिड़काव के कारण मशरूम विषाक्त हो जाते हैं। मशरूम कभी-कभी भारी धातुओं या रेडियोधर्मी प्रदूषण द्वारा भी विषाक्त हो जाते हैं जैसा कि चेरनोबिल (Chernobyl) आपदा के प्रभाव से हुआ था। क्षतिग्रस्त या सड़े हुए मशरूम का उपयोग भी भोजन को विषाक्त कर सकता है। खाने योग्य मशरूम भी विषाक्त हो सकता है यदि उससे दुर्गन्ध आ रही हो या उसमें फफूँद लगा हो।
आमतौर पर खुंभियों में रेशों की अधिकता रहती है। इसलिए इसको अत्यधिक मात्रा में ग्रहण करने से अपच हो सकता है जिसको अक्सर ‘विषाक्तता‘ का नाम दिया जाता है।
जायफल (Nutmeg):
‘जायफल‘ एक प्रकार की ‘विभ्रमित‘ या मिथ्याभास कराने की औषधि है। इसे हम सभी अपनी रसोई में नियमित रूप से मिष्ठान, कस्टर्ड, टार्ट केक वगैरह में इस्तेमाल करते हैं। यह एक प्रकार
का विष भी है जिससे मृत्यु तक हो सकती है। कम मात्रा में इसको ग्रहण करने से शारीरिक तथा तंत्रिका प्रणाली को किसी प्रकार की क्षति नहीं होती है। जायफल में ‘मिरिस्टिसीन‘ (Mysisticin) रसायन होता है। मिरिस्टिसिन विषाक्तता हृदयगति बढ़ाता है। इससे मिचली, दौरा, निर्जलीकरण तथा शरीर में दर्द पैदा होता है तथा बेहोशी भी आ सकती है।
का विष भी है जिससे मृत्यु तक हो सकती है। कम मात्रा में इसको ग्रहण करने से शारीरिक तथा तंत्रिका प्रणाली को किसी प्रकार की क्षति नहीं होती है। जायफल में ‘मिरिस्टिसीन‘ (Mysisticin) रसायन होता है। मिरिस्टिसिन विषाक्तता हृदयगति बढ़ाता है। इससे मिचली, दौरा, निर्जलीकरण तथा शरीर में दर्द पैदा होता है तथा बेहोशी भी आ सकती है।
लगभग दो ग्राम तक जायफल लेने से एम्फेटामिन (Amphetamine) जैसे लक्षण पैदा होते हैं जिसके कारण उल्टी, बुखार और सर दर्द भी होता है। 7.5 ग्राम तक लेने से दौरे आने शुरू होते हैं। 10 ग्राम तक लेने से मिथ्याभास जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं तथा एक पूरा जायफल लेने से ‘नटमेग साइकोसिस‘ (Nutmeg psychosis) जिससे आसन्न कयामत, विभ्रान्ति और उत्तेजित होने जैसी भावनाओं से ग्रसित होना हैं।
मिरिस्टिसीन विषाक्तता कुछ पालतू पशुओं के लिए घातक सिद्ध हुआ है। संभवतः यह मात्रा मनुष्यों के लिए हानिरहित हो जो अक्सर खाद्य पदार्थां में इस्तेमाल की जाती है। जायफल विषाक्तता से मृत्यु के दो मामले दर्ज किए गए हैं, एक 1908 में और दूसरा 2001 में।
सेब (Apple):
सेब के बीजों में सायनाइड (Cyanide) अत्यंत कम मात्रा में मौजूद होता है जिसे हम अक्सर गलती से खा लेते हैं। हालांकि ज्यादा संख्या में उपभोग करने से मनुष्य बीमार हो सकता है तथा उसकी मृत्यु तक हो सकती है। किसी एक सेब में मौजूद चन्द बीज के दाने से किसी की मृत्यु नहीं हो सकती।
सेब के बीज में साइनोजेनिक ग्लाइकोसाइड होता है। यह एमिग्डैलिन (Amygdalin) उर्फ लेटराइल (Laetrile) तथा प्रूसिक अम्ल, और विटामिन बी-17 होता है। एमिग्डैलिन को कैंसर अवराधी तत्व होने का दावा किया गया है। सेब खाते वक्त बीजों में उपस्थित एमिग्डैलिन आमतौर पर प्रभावित नहीं करता है क्योंकि अक्सर यह सीधे निगल लिया जाता है। बीजों को चबाने से या पाचन क्रिया के दौरान यह एमिग्डैलिन विषाक्त साइनाइड के रूप में शरीर को प्रभावित करता है।
एमिग्डैलिन विषाक्तता के परिणामस्वरूप खून में साइनाइड पहुँच सकता है जिससे मृत्यु तक हो सकती है। लेटराइल के वजह से यकृत परिगलन (Necrosis) यानी यकृत कोशिका की मौत होता है तथा न्यूरोमायोपैथी (Neuromyopathy तंत्रिकाओं और मांस-पेशियों की क्षति) भी होता है।
बादाम (Almond):
बादाम एक अद्भुत उपयोगी बीज है जिसको हम सब एक नट (Nut) के रूप में जानते हैं। इसको पकाने से इसके अद्वितीय स्वाद और इसकी उपयुक्तता के कारण सदियों से यह पेस्ट्री, मिष्ठान तथा अन्य भारतीय व्यंजनों में रसोई की सबसे लोकप्रिय सामग्री रहा है।
हम सभी को शायद यह पता नहीं है कि सबसे स्वादिष्ट और सुगंधित कड़वा बादाम होता है न कि मीठा बादाम। ये अपनी तीव्र खुशबू की वजह से कई देशों में सबसे अधिक लोकप्रिय है। मगर एक सबसे बड़ी समस्या यह है कि ये बादाम साइनाइड से भरे होते हैं। इसलिए कड़वे बादाम के उपयोग से पहले इसको संसाधित किया जाता है। इसके बावजूद कुछ देशों में खासकर न्यूजीलैंड में कड़वे बादामों की बिक्री अवैध है। हालांकि तापमान कड़वे बादाम के विष को नष्ट करता है, पर अब संयुक्त राज्य अमेरिका में कच्चे बादाम की बिक्री को अवैध करार दिया गया है। वहाँ बादाम को विष तथा जीवाणुओं की वजह से संसाधित करके ही बाजार में बिक्री हेतु लाया जाता है।
कुछ अन्य विषाक्त फल एवं सब्जियां:
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Prunus cerosus |
मटर (Lathyrus sativus) एक ऐसी फली है जिसको एशिया और पूर्वी अफ्रीका में ‘फसल बीमा योजना‘(Insurance crop) के तहत उगाया जाता है जिससे इसका उपयोग अकाल या दुर्भिक्ष के दौरान किया जा सके। इन फलियों में Oxyl-L-α, β-diaminopropionic acid (ODAP) होता है जिसको अगर लंबी अवधि तक लिया जाता है जो क्षय एवं पक्षाघात तक होने की संभावना रहती है।
राजमा (Phaseolus vulgaris) में ‘लेक्टिन फाइटोहीमाग्लुटिनिन‘(Lectin phytohaemagglutinin) होता है जो पेट में गड़बड़ी करता है। राजमा को पकाने से, ताप से यह विषाक्त पदार्थ नष्ट हो जाता है।
आलू (Solanum tuberosum) के पत्तों और हरे रंग के कंदों में ग्लाइकोएल्केलॉइड ‘सोलानिन‘ (Solanin) पाया जाता है जिसका प्रकाश की उपस्थिति में निर्माण होता है। इस तरह के कंद खाने से पाचन तथा तंत्रिकातंत्र में गड़बड़ी तथा अधिक मात्रा में सेवन करने से मृत्यु तक हो सकती है।
फल एवं सब्जियों की विषाक्ता से बचने के उपाय:
1. फल और सब्जियों को किसी अधिकृत विक्रेता से ही खरीदें। खरीदने से पहले यह यकीन कर लें कि वे अधिक परिपक्व या खराब स्थिति में न हों।
2. अस्वास्थ्यकर हालात में उगाए हुए सब्जियों या फलों का उपयोग न करें।
3. यदि फलों अथवा सब्जियों का स्वाद ठीक न लगे या दिखने में सही न हों या किसी अन्य प्रकार की भिन्नता हो तो उसे फेंक दें।
4. इन खाद्य वस्तुओं के उपयोग के पहले इनको पोटैशियम परमैंगनेट (Potassium permanganate) या नमक के पानी में धो लें।
5. फलों के अनुसार उपयोग के पहले उन्हें छील लें।
6. फलों या सब्जियों को लंबी अवधि के लिए कटा नहीं रखना चाहिए।
7. इन खाद्य पदार्थों को उपयुक्त परिस्थितियों में ही भन्डारित करें।
8. तिक्त और कसैले सब्जियों के रसों को अन्य फल या सब्जियों के रसों के साथ मिश्रित नहीं करना चाहिए।
9. सब्जियों जैसे बीन्स, बैंगन, काली मिर्च, टमाटर इत्यादि जो गर्म जलवायु में पैदा होती हैं इन्हें 10 डिग्री सेल्सियस पर बेहतर रूप से भंडारित किया जा सकता है।
10. आलू में चार डिग्री सेल्सियस से ऊपर स्टार्च, शर्करा में परिवर्तित हो जाता है। इनके अंदर प्रकाश की उपस्थिति में विषाक्त एल्कालॉइड (Alkaloid) के गठन को रोकने के लिए उन्हें ठंडे और अंधेरे स्थान पर भंडारित किया जाना चाहिए।
11. आमतौर पर अधिकांश फल और सब्जियाँ शून्य डिग्री पर ताजा बनी रहती हैं।
फल/सब्जी विषाक्ता सम्बंधी कुछ अप्रत्याशित घटनाएँ:
कुछ अभिलेखों द्वारा यह ज्ञात हुआ है कि 479 ई.पू. के आसपास गौतम बुद्ध (सिद्धार्थ) की मशरूम विषाक्तता के काण ही मृत्यु हो गई थी।
रोमन सम्राट क्लोडियस (Roman Emperor Clodius) के लिए यह कहा जाता है कि उन्हें खतरनाक टोपी मशरूम खिलाकर उनकी हत्या कर दी गई थी। यह अफवाह है कि पोप क्लीमेंट सप्तम (Pope Clement vii) की भी इसी प्रकार हत्या की गई थी।
भौतिक विज्ञानी डैनियल गैब्रियल फारेनहाइट (Daniel Gabriel Fahrenheit), जोकि फारेनहाइट तापमान पैमाने (Fahrenheit thermometer) के आविष्कारक के रूप में जाने जाते हैं, के माता-पिता की 14 अगस्त 1701 में डेनजिंग में गलती से जहरीला मशरूम खाने से मृत्यु हो गई थी।
मशहूर लेखक निकोलस इवांस (Nicholas Evans), जोकि अपनी चर्चित पुस्तक The Horse Whisper के लिये जाने जाते हैं, की मृत्यु कोर्टिनेरियस स्पीशियोसीसिमस (Cortinarius speciosissimus) नामक मशरूम खाने से हुई थी।
इस प्रकार हम देखते हैं कि अनेक फलों तथा सब्जियों में विषाक्त रसायन मिलते हैं। उचित सावधानी तथा संसाधन से हम इनके दुष्प्रभावों से आसानी से बच सकते हैं।

डॉ. सुनन्दा दास सी.एम.पी. कॉलेज, (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) इलाहाबाद में रसायन विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। आपने रसायन विज्ञान की अनेक शाखाओं पर शोधकार्य किये हैं। आप एक सक्रिय विज्ञान लेखक के रूप में भी जानी जाती हैं। आपकी विज्ञान विषयक अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। आपको विज्ञान संचार के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए अनेक पुरस्कार/सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आपसे निम्न ईमेल पर सम्पर्क किया जा सकता है:

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