प्रकृति के दोस्त: मीथेन भक्षण करने वाले अनोखे जीवाणु

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प्रकृति के दोस्त: मीथेन भक्षण करने वाले अनोखे जीवाणु - डॉ. सुनंदा दास कुछ सूक्ष्मजीवियों या जीवाणुओं में होने वाला कार्बन चक्र, वैश्वि...

प्रकृति के दोस्त: मीथेन भक्षण करने वाले अनोखे जीवाणु

- डॉ. सुनंदा दास

कुछ सूक्ष्मजीवियों या जीवाणुओं में होने वाला कार्बन चक्र, वैश्विक स्तर पर मौजूद वृहत कार्बन चक्र का एक छोटा हिस्सा है। ये सूक्ष्म जीव निर्जीव स्त्रोतों से कार्बन लेकर अपने और अन्य जीवों के लिए इसको उपलब्ध कराने में सक्षम होते हैं। सूक्ष्मजीवों और कवकों के एक किस्म द्वारा यह कार्बन चक्र जलीय वातावरण में होता हैं खासकर अपेक्षाकृत उन ऑक्सीजन मुक्त क्षेत्रों में जहां कार्बन का अनाक्सीय (anaerobic) परिवर्तन होना संभव हो सकता है।

Methane oxidation
ज्यादातर कार्बन, कार्बनडाइऑक्साइड के रूप में कार्बन चक्र द्वारा सूक्ष्मजीवों में प्रवेश कर जाता है। वातावरण में कार्बन, कार्बनडाइऑक्साइड गैस के रूप में मौजूद है जो पानी में घुलनशील है। वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड को प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) की प्रक्रिया द्वारा कार्बनिक पदार्थों में बदला जा सकता है। शैवाल और पादप इस संबंध में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। ठीक वैसे ही कीमो ऑटोट्राफ्स (chemo-autotrophs) मुख्यतः आर्किया (archaea) जीवाणु कार्बन डाइऑक्साइड गैस को कार्बनिक पदार्थों में परिवर्तित करने में सक्षम होते हैं। इन दोंनों ही प्रणालियों द्वारा कार्बनडाइऑक्साइड शर्करा में परिवर्तित होता है। यह परिवर्तन ऑक्सीजन की उपस्थिति एवं अनुपस्थिति में हो सकता है।

कार्बनडाइऑक्साइड एक अन्य गैस मीथेन में भी परिवर्तित हो सकती है। यह परिवर्तन अनाक्सीय वातावरण जैसे गहरे जमे हुए कीचड़ में एक प्रकार के जीवाणुओं द्वारा होता है। जिसे मीथेनोजेनिक (methanogenic) जीवाणु के रूप में जाना जाता है। इस तरह के परिवर्तन में हाइड्रोजन की आवश्यकता होती है जो ‘मीथेनोजेन‘ (methanogens) के लिए पानी और ऊर्जा उत्पन्न करता है।

एक दूसरे प्रकार के बैक्टीरिया जिसे ‘मीथेन ऑक्सीकारक बैक्टीरिया या मीथेनोट्रोफ्स (methanotrophs) कहते हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘मीथेन भक्षण करने वाला‘ के रूप में जाना जाता है। ये मीथेन को कार्बनडाइऑक्साइड में परिवर्तित कर कार्बन चक्र को पूरा करते हैं। यह एक आक्सीय (aerobic) प्रक्रिया है जिसमें, पानी और ऊर्जा की प्राप्ति होती है।

मीथनोट्रोप्स, ऑक्सीय तथा अनाक्सीय सीमा क्षेत्रों के बीच की सीमा रेखा में रहते हैं। वहां वे अनाक्सीय मीथेनाजेनिक जीवाणुओं द्वारा उत्पादित मीथेन को ग्रहण करते हैं तथा साथ ही साथ इन जीवाणुओं द्वारा मीथेन बनाने के लिए प्रयुक्त ऑक्सीजन का भी उपयोग करते हैं।

मीथेनाट्राफ्स (methanotrophs) के गुण:
मीथेनोट्रोफ्स को कभी-कभी मीथेनोफाइल (methanophiles) भी कहा गया है। ये ऊर्जा और कार्बन का एक मात्र स्त्रोत मीथेन को ग्रहण करने में सक्षम होते हैं। ये आक्सीय अथवा अनाक्सीय वातावरण में विकसित होने में सक्षम होते हैं। उनमें एक विशेष प्रकार की आंतरिक झिल्ली रूपी प्रणाली होती है जिसके भीतर मीथेन का ऑक्सीकरण होता है। यहां आक्सीजन और मीथेन मिलकर कार्बनिक यौगिक, फार्मेल्डिहाइड (formaldehyde) की संरचना होती है।

मीथेनोट्रोफ्स उच्च और कम तापमान की चर सीमाओं में, कम अम्लता और उच्च लवणता स्थितियों में अपना अस्तित्व बनाए रख सकते हैं। उनके इन गुणों को स्वतंत्र पारिस्थितिकी तकनीक द्वारा प्रदर्शित किया गया है। पृथ्वी के अधिकांश दलदली स्थलों मुख्यतः झीलों, तालाबों भूमिगत दलदली वातावरण, चावल के खेत, लैंडफिल (landfills), शीतोष्ण और उदीच्य (boreal) वन क्षेत्रों की अम्लीय मिट्टी में ये मौजूद होते हैं।

अम्लीय वातावरण जैसे सवोर लकड़ी के दलदली इलाकों में (sphagnum peat bogs) में उगने वाले एक नये प्रकार के मीथेनोट्रोफ्स को हाल ही में खोजा गया है। इसको नई पीढ़ी की प्रजाति मीथइलोसेला पालुसट्रिस (methylocella palustries) और मीथइलोकेप्सा एसीडीफिला (methylocpsa acidiphila) के रूप में वर्णित किया गया है ये अम्लीय वातावरण करीब 5.5 पीएच मान पर बेहतर तरीके से रह सकते हैं तथा अल्फा प्रोटोबैक्टीरिया (Alpha proteobacteria) की उपश्रेणी में शामिल हैं।

मीथेन, कार्बनडाइऑक्साइड गैस से कहीं अधिक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है। वातावरण में मीथेन का उत्सर्जन अधिकतर चावल के खेतों, सागर, सड़े-गले पत्ते, लकड़ियों आदि से उपजे हुए दलदलों से तथा नम-भूमि से अपेक्षाकृत अधिक होती है। यहां मीथेनोट्रोफ्स वातावरण में मीथेन उत्सर्जन में कमी कर एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं।

वैश्विक तापन (global warming) का अध्ययन कर रहे शोधकर्ताओं के लिए हमेशा से ये विशेष रुचि के विषय रहे हैं, क्योंकि वैश्विक मीथेन उत्सर्जन में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

कुछ पर्यावरणीय प्रदूषण जैसे क्लोरीनयुक्त हाइड्रोकार्बनों का सफलतापूर्वक हानिकारक असर कम करने की वजह से इन्हें बायोरेमीडिएशन (bioremediation) प्रणालियों के रूप में प्रस्तुत किया गया है। मीथेनोट्रोफ्स सर्वव्यापी है। इनकी कार्बन और नाइट्रोजन के वैश्विक चक्र में एक प्रमुख भूमिका रही है, साथ ही ये खतरनाक कार्बनिक पदार्थों के अवक्षय (degradation) में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। हाल के परिणाम बताते हैं कि मीथेनोट्रोफ्स विभिन्न प्रकार के धातुओं के यथावत स्वस्थाने (in situ) स्थिरीकरण (immobilization) में भी मदद करते हैं।

मीथेनोट्रोफ्स के प्रकार:
कोशिकाओं के झिल्ली संरचना और विभिन्न तरीके से फाम्रेल्डिहाइड स्थिरीकरण (formaldehyde fixation) के आधार पर मीथेनोट्रोफ्स को कई समूहों में विभाजित किया गया है। इनमें मीथइलोकोकेसी (methylococace), मीथइलोसिस्टेसी (methylocystaceae) और मीथइलोसिस्टेसी (methylocystaceae) शामिल हैं, हालांकि दोनों प्राटियोबैक्टीरिया (proteobacteria) में शामिल किए गए हैं मगर ये विभिन्न उपवर्ग के सदस्य हैं। अन्य मीथेनोट्रोफ्स की प्रजातियां वैरियूकोमाइक्रोबी (verrucomicrobiae) श्रेणी में पायी जाती है।

मीथेनोट्रोपी (methanotropy) मीथाइलोट्रोपी (methylotropy) का एक विशेष प्रकार है, जिसमें एकल कार्बन यौगिकों का कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में ज्यादा प्रयोग होता है। कुछ मीथइलोट्रोफ्स यद्यपि बहु-कार्बन योगिकों का उपयोग करते हैं जो इन्हें अन्य मीथेनोट्रोफ्स से अलग करता हैं ये मुख्यतः मीथेन और मीथेनाल का आक्सीकरण करते हैं। अब तक एक ही वैकल्पिक (faculative) मीथेनोट्रोफ पाया गया है जो मीथइलोसेला (methylocella) जाति का सदस्य है।

मीथाइनोट्रोफिक (methanotrophic) समुदाय, मीथेन ऑक्सीकरण बैक्टीरिया की उपस्थिति के कारण धीरे-धीरे विभिन्न तापमान के अनुकूल पाया गया है। तापमान और पीएच के अनुसार मीथेनोट्राफों ने पारिस्थितिकी में अलग-अलग स्थान ग्रहण किया है। 5 से 15 डिग्री सेल्सियस तापमान सीमा के भीतर इनको तीन विशिष्ट समूहों में प्रतिष्ठित किया जा सकता है। पी.एच. 5 से 7 और 5 से 15 डिग्री सेल्सियस तापमान में मीथइलोबैक्टर साइक्रोफिलस (methylobacter psychrophilus) के समान प्रजातियां सर्वाधिक पायी गयीं, जबकि 10 से 15 डिग्री सेल्सियस तापमान और पीएच 4 से 6 अम्लीय स्थिति में द्विधुवी कोशिकाओं वाले मीथइलोसेला पालुसट्रिस (methylocela palustirs) अधिकतर पाए गए हैं।

मीथेनोट्रोफिक जीवाणुओं का तीसरा समूह जिसमें बड़ा गोलाणुवत कोशिका तथा एक मोटी श्रलेष्म कैप्सूल पाया जाता है। यह 5 से 7 डिग्री से. तापमान पर रह सकता है। वर्तमान में 11 मान्यता प्राप्त मीथेनोट्रोफ्स के वर्ग हैं जो इनको क्रमशः टाइप I और I I मीथेनोट्रोफो में विभक्त किया गया है। ये दोनों प्रकार अपने शारीरिक क्रिया विज्ञान तथा अन्य कई मायनों में अलग है और गामा (r) उपकक्षाओं के प्रोटियो बैक्टीरिया को संबोधित करते हैं।

मीथइलोकोकेसी (methylococaeeae):
यह एक ऐसे जीवाणुओं की जाति है जो ऊर्जा और कार्बन, मीथेन से प्राप्त करती है। इन्हें मीथेनोट्रोफ्स टाईप-I कहा गया है। ये मीथइलोसिस्टेसी या मीथेनोट्रोफ्स टाईप- II से भिन्न है। इन्हें प्रोटियोबैक्टीरिया गामा उपखंड में रखा गया है।

मीथइलोकोकेसी की आंतरिक झिल्ली चपटे डिस्क जैसी होती है जो कोशिका के झिल्ली रूपी दीवार के लम्बवत होती हैं, यहां मीथेन अपचायित होकर फार्मेल्डिहाइड में परिवर्तित होता है जो RuMP (Ribulose monophosphate) रिब्यूलोज मोनोफास्फेट पाथवे (pathway) के नियम तहत होता है। फार्मोल्डिहाइड, रिब्यूलोज शर्करा (Ribulose) के साथ मिलकर हेक्स्यूलोज (hexulose) बनाता है, जो बाद में टूटकर ग्लिसरलडीहाइड और अन्य कार्बनिक अणुओं में परिवर्तित होता हैं राइजोबियम जाति के सदस्यों की तरह यह जीवाणु भी नाइट्रोजन को स्थिर करने में सक्षम होता है।

मीथाइलोसिस्टेसी के कोशिकाओं की आंतरिक झिल्ली युग्मित होती है जो कोशिकाओं की परिधि रेखा में व्यवस्थित होती है।

मीथेनोट्रोफ्स अन्य सूक्ष्म-जीवाणुओं से अलग होते हैं क्योंकि वे कार्बन और ऊर्जा के स्त्रोत के रूप में मीथेन का उपयोग करने की क्षमता रखते हैं तथा गामा-प्रोटियोबैक्टीरिया (टाईप-I मीथेनोट्रोफ) और अल्फा प्रोटियोबैक्टीरिया (टाईप- I I मीथेनोट्रोफ) से संबंध रखते हैं।

मिट्टी में पाये जाने वाले मीथेनोट्रोफ्स:
वन भूमि, मीथेन के लिए एक प्रभावी कुण्ड (sink) के रूप में कार्य करती है क्योंकि पेड़ पौधों की वजह से मिट्टी में पानी का स्तर भूमि की ऊपरी सतह से काफी नीचे होता है जो इन जीवाणुओं के विकास के लिए काफी लाभदायक है।

बरसात और सर्दियों के मौसम में यह मिट्टी जल आच्छादित रहती है तब यह संतुलन मीथेनोट्रोफों जो मीथेन को ग्रहण करते हैं उनसे अनाक्सीय मीथेन उत्पाद करने वाले बैक्टीरिया ‘मिथेनाजेनो’ पर स्थानांतरित हो जाता है और आद्र भूमि तब मीथेन उत्सर्जन का एक स्त्रोत बन जाता है। मिट्टी का तापमान, मिट्टी में पानी की आद्रता और नाइट्रोजन की सांद्रता जैसे कुछ महत्वपूर्ण कारक हैं जिनके आधार पर ‘मीथेन कुण्ड’ की कार्य क्षमता का निर्धारण होता है।

जंगली भूमि के गहरे मिट्टी के परतों से उत्सर्जित मीथेन और वायुमंडलीय मीथेन के लिए जलवायु परिवर्तन पर अंर्तसरकार पैनल (IPCC) के अनुमान के अनुसार भूमि प्रतिवर्ष लगभग 30 लाख टन मीथेन कुण्ड के रूप में कार्य करती है। इस कुण्ड में मुख्यतः मीथेन का भक्षण, मीथेनोट्रोफ जाति के बैक्टीरिया द्वारा किया जाता है। जो मीथेन ऑक्सीकरण प्रक्रिया द्वारा इस गैस को कार्बन के एक मात्र स्त्रोत के रूप में उपयोग करते हैं।

दो विभिन्न प्रकार के मीथेनोट्राफ अक्सरी मिट्टी में पाये जाते हैं।

पहला प्रकार- ‘उच्च क्षमता-कम बंधुत्व’ वाले मीथेनोट्रोफ्स जो उच्च मीथेन सांद्रता (लगभग 9000ppm) वाले वातावरण में, जैसे कि मिट्टी युक्त जल भराव वाले क्षेत्र में पाये जाते हैं।

दूसरे प्रकार के अक्सर ‘कम क्षमता उच्च बंधुत्व’ वाले मीथेनोट्रोफ जो काफी कम मीथेन की मात्रा (लगभग 1.8 ppm) वाले क्षेत्रों में इस गैस का उपभोग करने में सक्षम होते हैं। यद्यपि कई ‘उच्च क्षमता’ वाले मीथेनोट्रोफों की प्रयोगशालाओं में पहचान की गयी है मगर ‘उच्च बंधुत्व’ वाले जीवाणुओं की पूर्ण रूप से पहचान नहीं हो पायी है।

समुद्र में-
वातावरण में मीथेन गैस के पहुंचने से पहले समुद्र के भीतर उत्पन्न ज्यादातर मीथेन (लगभग 80 प्रतिशत) वहां रहने वाले सूक्ष्म जीवों द्वारा उपभोग कर ली जाती है। इस प्रकार ये सूक्ष्मजीव पृथ्वी का ताप संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं। ये सूक्ष्मजीव दो प्रकार के हैं जिन्हें मीथेनोट्रोफ कहा गया है लेकिन इन दोनों में महत्वपूर्ण भिन्नता है।

‘आर्किया मीथेनोट्रोफ जहां ऑक्सीजन उपलब्धता नहीं है वहां मीथेन की खपत करने में सक्षम होते हैं, उदाहरण के लिए समुद्रतल और जल में न्यूनत्व ऑक्सीजन वाले क्षेत्र दूसरे प्रकार के आर्किया मीथेनोट्राफ, जहां ऑक्सीजन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है वहां ये मीथेन की खपत करने में सक्षम होते हैं, जैसे समुद्र के पानी में और तलछट के ऊपर की परत, वहां यह बैक्टीरिया स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं। आर्किया और बैक्टीरिया दोनों एकल कोशिका के जीव हैं पर दोनों अलग-अलग शाखाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।

मीथेनोट्रोफ, समुद्री मीथेन को वायुमंडल में जाने से रोकने के अलावा कार्बन, को पारिस्थितिकी तंत्र के उच्च स्तरों के जीवों के पोषण के लिए भी उपलब्ध कराते हैं। लवण सहिष्णु आर्किया यानि ‘हैलोबैक्टीरिया’ (halobacteria) का ऊर्जा स्त्रोत, सौर्य ऊर्जा होता है।

यह पाया गया है कि आर्किया हर प्रकार की कठिन से कठिन परिस्थितियों में रह सकता है। जैसे, गर्म पानी के झरने नमक की झीलें इत्यादि। बाद में उनके निवास का एक विस्तृत क्षेत्र जैसे नमभूमि, सागर की तलहटी और दलदल भी पाया गया। (विशेष रूप से महासागरों के पलवकों में कई प्रकार के आर्किया पाये गये हैं।) आर्कियाकी इस ग्रह पर बसे प्रचुर जीवों के समूहों में गिनती की जा सकती है। अब ये पृथ्वी के जीवन के एक प्रमुख अंग के रूप में मान्यता प्राप्त कर रहे हैं तथा यह भी माना जा रहा है कि ये कार्बन और नाइट्रोजन चक्र में यह प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं।

रोटोरूआ, न्यूजीलैंड (Rotoura, New Zealand) की एक नई खोज से यह पता चला है कि जीयोथर्मल (geotharmal) क्षेत्रों में रहने वाले एक प्रकार के सूक्ष्म जीव मीथेन उपभोग करने की क्षमता रखते हैं तथा इनमें अत्यधिक अम्लीय परिस्थितियों में जीने की क्षमता भी है।>

जीएनएस (GNS) शोधकर्ताओं ने यह पाया कि एक दिन यह जीवाणु दलदल में मीथेन गैस के उत्सर्जन को कम करने में इस्तेमाल किया जा सकेगा। यह जीयोथर्मल ऊर्जा स्टेशनों से भी मीथेन उत्सर्जन की कटौती करने में मदद कर सकेगा।

यह जीवाणु मीथेनोट्रोफ्स समूह का एक हिस्सा है जो अपने समूह के जीवाणुओं से कहीं अधिक गर्म और अम्लीय परिस्थितियों में रहने में सक्षम है। ज्यादातर वे उस मिट्टी में निवास करते हैं जहाँ विशेष तथा मीथेन का उत्पादन अधिक होता है।

‘नेचर’ पत्रिका में छपे एक शोध के अनुसार ये सूक्ष्मजीवी रोटोरूआ, टिकिटेरे (tikitere) के जीयाथर्मल फील्ड, हेल्स गेट ; (Hells gate) में पाये गये हैं। इसे ‘चराई’ कहा जाता है। कुछ अति विशिष्ट जंतु जैसे सीपी, ट्यूब कृमि अपने शरीर पर मीथेनोट्रोफ की आबादी को पनपने देते हैं, यह ‘सहजीविता’ (symbiosis) का एक अच्छा उदाहरण है। यहां सीपी या कृमि मीथेनोट्रोफ द्वारा बनाए गये कार्बन के कुछ हिस्से का उपयोग करते हैं तथा मीथेनोट्रोफों का इन जीवों के कारण एक आरामदायक आश्रय उपलब्ध हो जाता है।

हालांकि वातावरण में कम ही मीथेन उत्सर्जित हो रही है मगर, भूगर्भित अतीत में कई बार मीथेन प्रचुर मात्रा में सागर से वातावरण में उत्सर्जित हुई है, जो इन सूक्ष्म जीवियों के मीथेन उपभोग क्षमता के परे था। समुद्र की तलहटी और भीतर उपस्थित ‘मीथेन पूल‘ रहे हैं जिससे अतीत में बहुत अधिक मात्रा में मीथेन उत्सर्जन के फलस्वरूप ‘वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी हुई है।‘

आर्किया (Archeae) मीथेनाट्रोफ-
आर्किया एकल कोशिका वाले सूक्ष्मजीवों का एक समूह है। इनकी कोशिकाओं के भीतर कोई नाभिक या किसी प्रकार का अंग (organell) नहीं होता है। अतीत में इनको एक असामान्य समूह के बैक्टीरिया, ‘आर्किबैक्टीरिया‘(archaebacteria) के नाम से जाना गया लेकिन इनके अन्य जीवों से भिन्नता के कारण इन्हें एक अन्य वर्ग में रखा गया। ये है आर्किया बैक्टीरिया के आकार में काफी समानता है। हालांकि कुछ आर्किया के कोशिकाओं के आकार काफी असामान्य है। जैसे चपटे और वर्गाकार आकार हैलोक्वान्ड्रा वाल्सबाई (haloquandra walsbyi) आर्किया, जीन और कई अन्य प्रकार के एंजाइमों के ट्रांसक्रिप्शन (transcription) और ट्रांशलेशन (translation) प्रक्रियाओं की वजह से बैक्टीरिया, यूकोरियोटा (ukaryota) से निकट संबंध रखते हैं।

आर्किया विभिन्न प्रकार के ऊर्जा स्त्रोतों को पोषक तत्वों के रूप में अत्यधिक उपयोग करते हैं जैसे बहु-परिचित कार्बनिक यौगिक - शर्करा, अमोनिया आदि। जीएनएस के सूक्ष्मजीवी वैज्ञानिक मैथ्यू स्ट्रोट के अनुसार यह रोमांचक खोज विशेष रूप से एक अंतर्राष्ट्रीय महत्व रखता है। वैश्विक स्तर पर सड़े गले पादपों और पत्तों से बने दलदली क्षेत्रों में अधिकतम मात्रा में मीथेन उत्पन्न होता है। वैज्ञानिकों को हमेशा से जिज्ञासा रही है कि मीथेन का काफी मात्रा वातावरण में रहने वाले बैक्टीरिया द्वारा समाप्त की जा रही है। इन वैज्ञानिकों को खोज ने यह साबित कर दिया है कि उच्च अम्लीय वातावरण में रहने वाले सूक्ष्मजीवों द्वारा यदि मीथेन ग्रहण नहीं किया जाता है तो वायुमंडल में प्रवेश कर रही मीथेन की मात्रा बहुत अधिक होती।

जीएनएस साइंस के वैज्ञानिक पीटर डनफिल्ड जिनहोंने इन जीवाणुओं को खोजा है। इसका नाम ‘मिथाइलोकोरस इन्फरमोरम’ (Methylokorus Infermorum) दिया है। इस जीवाणु को अनुवांशिक संरचना अन्य सभी ज्ञात मीथेनोट्रोफो से अलग है।

टिकिटेरे ट्रस्ट के जिम ग्रे के अनुसार एक्सट्रीमोफाइल (extremeophile) विज्ञान में इस प्रकार का खोज न्यूजीलैंड और टिकिटेरे ट्रस्ट को अर्न्तराष्ट्रीय स्तर के परिप्रेक्ष्य में अग्रणी स्तर पर रखने की क्षमता रखता है।

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लेखक परिचय: 
डॉ. सुनन्दा दास सी.एम.पी. कॉलेज, (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) इलाहाबाद में रसायन विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। आपने रसायन विज्ञान की अनेक शाखाओं पर शोधकार्य किये हैं। आप एक सक्रिय विज्ञान लेखक के रूप में भी जाती हैं। आपकी विज्ञान विषयक अनेक पुस्तकें प्रकाश‍ित हो चुकी हैं। आपको विज्ञान संचार के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए अनेक पुरस्कार/सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आपसे निम्न ईमेल पर सम्पर्क किया जा सकता है: 

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वैज्ञानिक चेतना को समर्पित इस यज्ञ में आपकी आहुति (टिप्पणी) के लिए अग्रिम धन्यवाद। आशा है आपका यह स्नेहभाव सदैव बना रहेगा।

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Scientific World: प्रकृति के दोस्त: मीथेन भक्षण करने वाले अनोखे जीवाणु
प्रकृति के दोस्त: मीथेन भक्षण करने वाले अनोखे जीवाणु
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