स्तनपान के प्रति महिलाओं के बदलते नजरिये पर कुछ सवाल।
प्रथम दृष्टया यह बात अजीब सी लग सकती है कि पर सत्य यही है कि जैसे-जैसे हम प्रगति के सोपान चढते जा रहे हैं, जैसे-जैसे हमारे जीवन स्तर में सुधार होता जा रहा है, वैसे-वैसे हमारे लिए मातृत्व के मायने भी बदलते जा रहे हैं। आज की महिलाएँ हालाँकि अपने बच्चों को बहुत प्यार करती हैं, उनके लिए किसी की छोटी सी डांट तक बर्दाश्त नहीं कर सकती हैं, पर जब बात शिशुओं के स्तनपान की आती है, तो वे उसके वैकल्पिक उपायों की तरफ ताकती हुई नजर आती हैं।
keywords: breastfeeding facts in hindi, breastfeeding facts and tips in hindi, breastfeeding facts and myths in hindi, breastfeeding facts 2015 in hindi, uses for breastfeeding in hindi, advantages of exclusive breastfeeding in hindi, purpose of breastfeeding in hindi, good things about breastfeeding in hindi, breastfeeding facts and statistics in hindi, यह बात सभी लोग जानते होंगे कि सरकारी स्तर पर प्रतिवर्ष 01 से 07 अगस्त को स्तनपान सप्ताह मनाया जाता है। इस दौरान सरकारी स्तर पर अखबारों आदि में विज्ञापन जारी करके स्तनपान के लाभ से लोगों को अवगत कराया जाता है। इस अवसर पर विज्ञापनों के अतिरिक्त तमाम तरह की गोष्टियां आदि भी आयोजित की जाती हैं और यह बताया जाता है कि माँ के दूध में पाया जाने वाला "कोलस्ट्रम" (colostrum) तत्व शिशु को रोगों से लडने की शक्ति देता है।
स्तनपान (breastfeeding) करने से बच्चे का शारीरिक विकास समुचित ढंग से होता है, उसका आई0क्यू0 (I.Q.) बढता है और वह मानसिक तथा भावात्मक रूप में भी मजबूत बनता है। इसीलिए शिशु के जन्म के 6 माह तक बच्चों को सिर्फ माँ का दूध देना चाहिए और 6 माह के बाद भी अन्य हल्के सुपाच्य पदार्थों के साथ 2 वर्ष तक उन्हें स्तनपान कराना चाहिए। जो महिलाएं स्तनपान कराती हैं उनमें स्तन, ओवरी व यूट्रस कैंसर की संभावना कम हो जाती है। हाँ इसके लिए प्रत्येक माँ को प्रतिदिन 550 कैलोरी की अतिरिक्त रूप से आवश्यकता होती है।
मेरी समझ से शायद ही कुछ परिवार ऐसे हों, जो बच्चे के स्वास्थ्य के लिए प्रतिदिन 550 कैलोरी का अतिरिक्त खर्च न उठा सकें। बल्कि होता यह है कि जो माताएँ किटी पार्टी के कारण समय की उपलब्धता का रोना रोती हैं, या जो महिलाएँ अपनी फिगर की चिंता के कारण बच्चों को बोतल पकडना ज्यादा श्रेयकर समझती हैं, उन्हें शिशु का पेट भरने के वैकल्पिक साधन के रूप में इससे ज्यादा ही खर्च करना पडता होगा।
अगर हम उत्तर प्रदेश की बात करें, तो यहाँ पर सिर्फ 51.5 प्रतिशत बच्चों को अपनी माँ का दूध नसीब हो पाता है। शेष 48.5 प्रतिशत बच्चे वैकल्पिक खुराक के द्वारा बडे होते हैं। जाहिर सी बात है कि ऐसे बच्चों का न तो शरारिक विकास ही समुचित रूप से हो पाता है और न ही मानसिक विकास। ये बच्चे ज्यादातर अपने माँ-बाप से दूर ही रहते हैं। नतीजतन इनके भीतर तमाम तरह की मानसिक गुत्थियाँ विकसित हो जाती हैं। नतीजतन उनमें तमाम तरह की नकारात्मक प्रवृत्तियाँ उभर आती हैं और वे असमाजिक प्रवृत्तियों की ओर उन्मुख हो जाते हैं। लेकिन बावजूद इसके प्रत्येक माँ-बाप की अपेक्षा यह ही रहती है कि बेटा हमारा बडा नाम करेगा...
अब आप ही तय करिए कि आप अपने बच्चों का भविष्य "वास्तव में" बनाना चाहते हैं या फिर आप भी उसी भीड का हिस्सा हैं, जो मातृत्व की परिभाषा को बदल देने के लिए आतुर दिखाई देती है?
बहुत सही विवेचन किया है आज की स्थिति का। समाज में आधुनिकता के नाम पर हर रिश्ता बेमानी हो रहा है फिर माँ का रिश्ता भी पलहे जैसा क्यों रहे? आधुनिकता के नशे ने इसमें भी मिलावट कर दी है। एक विचारात्मक लेख के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सटीक विश्लेषण.
जवाब देंहटाएंआधुनिकता की अंधी दौड़ का अंजाम है ये.
आगे आगे देखिये होता है क्या.
सत्य है!
जवाब देंहटाएंमातृत्व की परिभाषा बदल रही है!
लेख के लिए बधाई।
आपने एक गम्भीर बिन्दु की ओर ध्यान दिलाया है। अब हर माता को यह कहने से पहले कि वह अपने बच्चे को अपनी जान से ज्यादा प्यार करती है, एक बार तो सोचना ही पडेगा कि क्या वह सही कह रही है?
जवाब देंहटाएंविचारोत्तेजक सामग्री परोसी है। कोई भी विचारशील व्यक्ति पढ कर सोच में पड जाएगा। शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंकुछ प्रचलित लेकिन गलत धारणायें हैं स्तनपान के बारे में, जिनका खुलासा एक डाक्टर होने के नाते यहां करूंगा:
जवाब देंहटाएं१) स्तनपान कब करायें? पैदा होते ही!
२) मां का पहला दूध कहीं बच्चे को नुकसान तो नहीं करता? अजी बिलकुल नहीं, बल्कि पहला दूध तो पोषक पदार्थों से भरा होता है जो ९ महीने से बन रहे होते हैं।
३) स्तनपान से शारीरिक सुंदरता कम तो नहीं हो जाती? बिल्कुल नहीं, बल्कि थोड़ी बढ़ और जाती है - किसी भी डाक्टर से पूछ लें।
४) स्तनपान सिर्फ ३-४ महीने ही कराना चाहिये क्या? नहीं, १ साल तक तो कराना ही चाहिये, आगे भी करा सकते हैं - जितना अधिक, उतना फायदा!
५) स्तनपान स्तनों के कैंसर से बचाता है!!
और भी ढेरों फायदे हैं स्तनपान के, जो इस टिप्पणी को ग्रंथ बना देंगे। लेकिन मैं ये आपपर छोड़ देता हूं, पता लगायें।
यदि आप पुरुष हैं और इस टिप्पणी को पढ़ रहे हैं तो पास-पड़ोस के पुरुषों में और अपने घर की महिलाओं में यह संदेश ज़रूर फैलायें!
ज़ाकिर भाई ,इस बेहतरीन पोस्ट के लिए साधुवाद !बहुत मौजू मुद्दा उठाया आपने .
जवाब देंहटाएंआज भी लोक कहावतों में छठी के दूध का जिक्र होता है -यह अनायास ही नही था -कभी कभी दुःख होता है की हम अपने आजमाए ज्ञान को तो तिलानजलि दे देते हैं मगर अही ज्ञान जब पश्चिम से प्रत्यावर्तित हो लौटता है तो हमारे लिए बहुत बड़ा ज्ञान बन जाताहै -आज तो मैं प्रश् पहेली का उत्तर बताने वाला था -मगर यह ज्यादा जरूरी मसला था -फिर से बधाई !
सटीक विश्लेषण.
जवाब देंहटाएंआंकड़े डराने और चौंकानेवाले भी कहूंगी। हालांकि अपने ईर्द-गिर्द रहनेवाली (ख़ासतौर पर कामकाजी)महिलाएं अपने बच्चे के लिए जितनी भागदौड़ और परेशानी झेलती हैं। कई बार उन पर तरस भी आता है। लगता है 24 घंटे में से उन्होंने 48 घंटे निकाल लिए हैं, फिर भी वक़्त कम पड़ जाता है। उत्तर प्रदेश के बारे में तो ये आंकड़ा और भी चौंकाता है।
जवाब देंहटाएंbahut achcha lekh laga aapka....saari baaten saargarbhit aur sahi hain.
जवाब देंहटाएं...मातृत्व के मायने भी बदलते जा रहे हैं...
जवाब देंहटाएंसच है - समय के साथ सब कुछ बदल रहा है - कुछ सुविधा के नाम पर, कुछ आधुनिकता के नाम पर. मगर सच यह भी है कि बहुत कुछ थोपा भी जा रहा है - अनपढ़ गरीब माँ पर झूठे बाजारी वायदों के द्वारा.
अच्छा लेख। सोचने पर विवश करता है। जब दूध का रिश्ता ही नहीं तो मातृत्व कैसा ..
जवाब देंहटाएंमाँ! यह आवाज़ के साथ ही एक चेतना शरीर में आ जाती है। माँ अपना अमृत पीलाते वक़्त वो महसूस करती है जो अहसास शायद एक माँ ही समज़ सकती है। एक वैज्ञानिक और संवेदनाओं से भरे विषय के लिये धन्यवाद।
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