Technical Education Quality Improvement in Hindi
वर्तमान समय में हमारे देश में तकनीकी शिक्षा के स्तर पर बहुत से सवाल खड़े हो रहे हैं। तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता संदेह के घेरे में आ चुकी है। केवल आई.आई.टी एवं एन.आई. टी. जैसे कुछ प्रतिष्ठत तकनीकी शिक्षण संस्थान ही इस संदेह से बाहर हैं। इनके अतिरिक्त अधिकतर राज्य स्तर के तकनीकी संस्थान, प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज, प्राइवेट यूनिवर्सिटी आदि से शिक्षा प्राप्त छात्र एक अच्छी नौकरी पाने के लिए लाचार हैं। आखिर वे कौन से कारण हैं जो इसके लिए जिम्मेदार हैं? क्या उपाय हो सकते हैं? इस लेख में इन सभी तथ्यों पर इस लेख में प्रकाश डाला गया है।
तकनीकी शिक्षा में गुणवत्ता का सवाल
-मनोज कुमार
-मनोज कुमार
आज इंजीनियरिंग की पढ़ाई पर 6 से 8 लाख रूपये खर्च करने के बाद भी इंजीनियरिंग शिक्षा प्राप्त छात्र बेरोजगार है और मजबूरन वह अपने शिक्षण क्षेत्र से हटकर बैंक क्लर्क, बैंक पी.ओ., एस.एस.सी. एवम अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने को विवश है, जिसको वह मात्र बी.ए. या बी.एस.सी. जैसे सस्ते कोर्स में स्नातक करने के बाद भी कर सकता है। फिर क्या फायदा है उसके ये इंजीनियरिंग करने पर 7 से 8 लाख रूपये खर्च करने का?
हालत यह है की इंजीनियरिंग के डिग्री में 70% से ज्यादा मार्क्स प्राप्त करने वाले छात्र किसी कंपनी में इंजीनियर की पोस्ट के लिए इंटरव्यू के लिए जाते हैं, तो अधिकतर छात्रों को निराशा ही हाथ लगती है। इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे इंग्लिश में कम्युनिकेशंस स्किल्स का बेहतर नहीं होना, अपने इंजीनियरिंग क्षेत्र में तकनीकी ज्ञान की कमी होना एवं विशेषकर प्रयोगात्मक रूप से कमजोर होना।
तकनीकी शिक्षा में गुणवत्ता को लेकर जानी-मानी सॉफ्टवेयर कंपनी इनफ़ोसिस के संस्थापक श्री नारायणमूर्ति तो यह भी कह चुके हैं की पिछले कुछ वर्षों में आई.आई.टी. जैस संस्थानों में भी प्रवेश लेने वाले छात्रों में गुणवत्ता नहीं है। अन्य कम्पनियो का भी यही कहना है कि 70 % से अधिक इंजीनियरिंग पास छात्र कंपनी में जॉब की दृष्टि से उपयुक्त नहीं हैं और इसलिए वह कोई रिस्क न लेकर अनुभवी लोगों को ही वरीयता देना पसंद करते हैं।
कुछ कॉलेज और यूनिवसर्टी में कैंपस प्लेसमेंट जरूर होता है, मगर कंपनी वाले उनमें से केवल कुछ को ही चयनित करते हैं बाकी सब को बहार का रास्ता दिखा देते हैं। कुल मिलकर कहने का मतलब यह है आई.आई.टी. और इन.आई.आई.टी. के अलावा अन्य कॉलेज और यूनिवर्सिटी के 70% से अधिक इंजीनियरिंग छात्रों को अपनी पसंद की जॉब नही मिल पाती।
तकनीकी शिक्षा में गुणवत्ता का अर्थ: भिन्न-भिन्न लोगों की दृष्टि में हो सकता है कि तकनीकी शिक्षा में गुणवत्ता के मायने भिन्न-भिन्न हों, लेकिन हमें एक कॉमन निष्कर्ष पर आना है। चलिए यहाँ मैं आपको तीन विकल्प देता हूँ।
अगर आपसे पूछा जाए की तकनीकी शिक्षा में गुणवत्ता का क्या अर्थ है तो आपका जवाब क्या होगा?
(1 ) क्या केवल अच्छी परसेंटेज जैसे 75% से अधिक मार्क्स के साथ इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त करना अच्छी गुणवत्ता का मापक है?
(2 ) क्या केवल विषय का तकनीकी ज्ञान का अच्छा होना अच्छी गुणवत्ता का मपक है?
(3 ) क्या विषय के तकनीकी ज्ञान के साथ-साथ छात्रों को वह व्यवहारिक ज्ञान भी प्रदान किया जाना चाहिए, जो उस क्षेत्र में नौकरी के लिए आवश्यक है।
उपरोक्त विकल्पों में से मैं विकल्प 3 को वरीयता दूंगा। अगर अधिकतर इंजीनियरिंग कॉलेज में शिक्षा का तरीका विकल्प तीन है, तो ये छात्रों के भविष्य के लिए कारगर साबित होगा।
तकनीकी शिक्षा में गुणवत्ता की कमी के प्रमुख कारण:
अगर हम आई.आई.टी. एवं एन.आई.टी. या कुछ अन्य अच्छे तकनीकी शिक्षण संस्थान के अतिरिक्त अधिकतर प्राइवेट यूनिवर्सिटी और इंजीनियरिंग कॉलेज में तकनीकी पढ़ाई की बात करें तो गुणवत्ता की कमी के कई कारण सामने आते हैं, जिनमें कुछ इस प्रकार हैं:-
• अधिकतर इंजीनियरिंग कॉलेज जोकि स्टेट टेक्निकल यूनिवर्सिटी से संबंद्ध हैं, में प्रयोगात्मक परीक्षा को गंभीरता के साथ नहीं लिया जाता। केवल पाठ्यक्रम में होने के कारण एक्सटर्नल प्रक्टिकल की औपचारिकता पूर्ण की जाती है। नतीजन छात्र इसको महत्व नहीं देते और वह उस ज्ञान से वंचित रह जाते हैं, जिसकी आगे चलकर सख्त जरूरत होती है।
• दूसरा महत्वपूर्ण कारण है इंटरनल मार्क्स के लिए सही प्रक्रिया का न अपनाया जाना। कभी-कभी तो यह भी पाया जाता है कि छात्र की अटेंडेंस 75 से कम होने, इंटरनल टेस्ट में फेल होने पर भी उसको 50 में से 40-45 इंटरनल मार्क्स दे दिए जाते हैं। इसकी वजह से छात्र पढ़ाई को गंभीरता से नहीं लेते और उनकी मानसिकता यह बन जाती है कि इनटरनल मार्क्स तो मिल ही जाएंगे और एक्सटर्नल एग्ज़ाम हम रटकर पास कर लेंगे।
• तीसरा महत्वपूर्ण कारण एक्सटर्नल पेपर में प्रश्नों का चयन है। अक्सर यह देखा जाता है कि इन पेपर्स को संतुलित रूप से तैयार नहीं किया जाता है। पेपर में अधिकतर थ्योरी बेस्ड प्रश्न होते हैं तथा उनमें भी न्यूमेरिकल, लॉजिकल एवं प्रयोगात्मक प्रश्नों की कमी होती है। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि छात्र गत वर्षों में आये हुए पेपर्स को ध्यान में रखते हुए ही अपनी पढ़ाई शुरू करते हैं और रट्टा के सहारे अपनी नैया पार लगा लेते हैं।
• कभी-कभी देखा जाता है कि अध्यापकगण अपने विषय को उत्सुकता और रूचि के साथ नहीं पढ़ाते हैं, नतीजन छात्र उनके लेक्चर को गंभीरता से नहीं लेते और क्लास बंक करने लगते हैं।
• समय की कमी होना भी एक महत्वपूर्ण कारण है। इन कोर्सेज में कहने के लिए तो एक सेमेस्टर 6 महीने का होता है, जबकि क्लास 4 महीने भी नहीं लग पाती हैं। नतीजन अधिकतर छात्र 5 यूनिट में से सिर्फ 3 या 4 यूनिट तक ही पढ़ाई सही से कर पाते हैं।
तकनीकी शिक्षा में गुणवत्ता बढ़ाने हेतु कुछ सुझाव:
तकनीकी शिक्षा में गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए इंजीनियरिंग कॉलेज प्रबंधन को गम्भीर कदम उठाने की जरूरत है, जिनमें से कुछ कदम यह हो सकते हैं:-
• कॉलेज में प्रयोगात्मक कक्षाओं का समय बढ़ाया जाए और इनमें छात्रों की परफॉरमेंस को नजरअंदाज न किया जाए।
• प्रयोगात्मक क्लास में अध्यापकों के अतिरिक्त एक लैब असिस्टेंट कि उचित व्यवस्था हो, जिसे उस विषय का समुचित तकनीकी ज्ञान भी होना चाहिए।
• इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रबंधन को अध्यापकों के लिए "फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम" को भी पर्याप्त महत्व देना चाहिए।
• छात्रों के लिए तकनीकी ज्ञान के साथ-साथ पर्सनालिटी डेवलपमेंट क्लासेज की व्यवस्था भी की जानी चाहिए, जिसमें इंटरव्यू, ग्रुप डिस्कशन, इंग्लिश स्पीकिंग पर विशेष ध्यान दिया जाए।
• फाइनल ईयर के छात्रों का महीने में कम से कम दो बार जॉब ओरिएन्टेड टेस्ट होना चाहिए, जिससे उन्हें जॉब देने वाली कंपनियों के मूड और जरूरतों को समझने में सुविधा हो सके।
निष्कर्ष:
वर्तमान समय में तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। इंजीनियरिंग संस्थानों के प्रबंधन को केवल विषय के पाठ्यक्रम तक ही सिमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उपरोक्त बताये गये सभी कारगर उपायों को गंभीरता के साथ अपनाना चाहिए ताकि छात्र पढ़ाई से जी न चुराए एवं उसमें मन लगाकर सम्मिलित हो सकें। अगर ऐसा संभव हो पाया, तो फिर छात्रों को कम्पनी में नौकरी पाने में काफी आसानी होगी और इंजीनियरिंग कॉलेज सही मायने में छात्रों के साथ उचित न्याय कर सकेंगे।
वर्तमान समय में तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। इंजीनियरिंग संस्थानों के प्रबंधन को केवल विषय के पाठ्यक्रम तक ही सिमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उपरोक्त बताये गये सभी कारगर उपायों को गंभीरता के साथ अपनाना चाहिए ताकि छात्र पढ़ाई से जी न चुराए एवं उसमें मन लगाकर सम्मिलित हो सकें। अगर ऐसा संभव हो पाया, तो फिर छात्रों को कम्पनी में नौकरी पाने में काफी आसानी होगी और इंजीनियरिंग कॉलेज सही मायने में छात्रों के साथ उचित न्याय कर सकेंगे।
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लेखक परिचय:
मनोज कुमार युवा एवं उत्साही लेखक हैं।
आप जून 2009 से ब्लॉग जगत में सक्रिय हैं और नियमित रूप से अपने ब्लॉग 'डायनमिक' के द्वारा विज्ञान संचार को मुखर बना रहे हैं।
इसके अलावा आप 'साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन' के सक्रिय सदस्य के रूप में भी जाने जाते हैं।
आप जून 2009 से ब्लॉग जगत में सक्रिय हैं और नियमित रूप से अपने ब्लॉग 'डायनमिक' के द्वारा विज्ञान संचार को मुखर बना रहे हैं।
इसके अलावा आप 'साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन' के सक्रिय सदस्य के रूप में भी जाने जाते हैं।
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inpar vichar kiye jane ki awashyakta hai.
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