श्रीनिवास रामानुजन की गणितीय विरासत को रेखांकित करता एक महत्वपूर्ण लेख।
श्रीनिवास रामानुजन की गणितीय विरासत
-नवनीत कुमार गुप्ता
अक्सर गणित को एक कठिन और गंभीर विषय माना जाता है। किन्तु हमारे देश में अनेक ऐसे गणितज्ञ हुए हैं, जिन्होंने अपने कार्यों से इस विषय के प्रति रुचि जाग्रत करने का प्रयास किया है। श्रीनिवास रामानुजन भी ऐसे ही गणितज्ञ थे। रामानुजन को बीसवीं सदी के असाधारण गणितज्ञ होने के साथ ही भारतीय गणितीय परम्परा का अग्रदूत भी माना जा सकता है। ऐसे समय में जब भारत परतंत्र था और उसे मदारियों और अंधविश्वासों से भरा माना जाता था । ऐसे में उनकी प्रतिभा को सबसे पहले विदेशी वैज्ञानिकों ने समझा और उन्हें अपने साथ कार्य करने के लिए आमंत्रित किया। गणित के विश्वप्रसिद्ध प्रोफेसर जी.एच. हार्डी और जे.ई.लिटिलवुड ने रामानुजन की प्रतिभा को पहचान कर विश्व को परिचित कराया। रामानुजन की प्रतिभा इतनी असाधारण थी कि उनके कार्यों पर आज भी शोध-पत्र लिखे जा रहे हैं।
रामानुजन में बचपन से गणितीय प्रतिभा थी, जिसके कारण उन्हें विद्यालय में अनेक पुरस्कार मिले। उन्होंने इसी दौरान ‘ए सिनाप्सिस ऑफ एलिमेंट्री रिजल्ट्स इन प्योर एंड एप्लाइड मैथमेटिक्स’ (A Synopsis of Elementary Results in Pure and Applied Mathematics) को पढ़ा। उन्होंने इस किताब के माध्यम से तीन नोटबुकें तैयार कीं।
इसके बाद उन्होंने एक छात्रवृत्ति प्राप्त की और कुंभकोणम राजकीय विद्यालय में पढ़ाई जारी रखी। लेकिन बाद में परिक्षा परिणाम अच्छा न आने की वजह से उन्हें छात्रवृत्ति को छोड़ना पड़ा। और इस तरह विश्वविद्यालय की डिग्री के बिना रामानुजन एक अच्छी नौकरी की तलाश में संघर्ष करते रहे। लेकिन गणित के प्रति उनकी जुनून में कोई कमी नहीं आई और वह अधिकांश समय गणितीय समस्याओं को हल करने का प्रयत्न करते रहते। इस दौरान वह नोटबुकों को तैयार करते रहते, जो उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण थीं।
इसी दौरान पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते 14 जुलाई, 1909 को रामानुजन का विवाह जानकी देवी से हुआ। सन् 1910 में भारतीय गणितीय सोसायटी के संस्थापक प्रोफेसर वी.रामास्वामी अय्यर रामानुजन से मिले। रामानुजन की नोटबुकें देखकर वह हैरान रह गए। उन्होंने समझा कि रामानुजन में गणित के संबंध में नैसर्गिक प्रतिभा है। फरवरी 1911 से अक्टूबर 1911 के दौरान जर्नल ऑफ दि इंडियन मैथमेटिकल सोसायटी (Journal of the Indian Mathematical Society) में रामानुजन के 50 सवालों और उनके समाधान प्रकाशित हुए।
वर्ष 1912 में रामानुजन के ने मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में लेखा अनुभाग में लिपिक के रूप में कार्य करना आरंभ किया। इस दौरान उनकी ओर गणित के अनेक विद्वानों का ध्यान गया। लेकिन रामानुजन के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव उनके द्वारा सन् 1913 में विख्यात गणितज्ञ जी.एच. हार्डी (G. H. Hardy) को पत्र लिखना था, जिसमें गणितीय समस्याओं पर विचार किया गया था। गणितज्ञ जी.एच. हार्डी ने अपने मित्र जॉन लिटिलवुड से उन पत्रों पर चर्चा की और फिर उन्होंने रामानुजन को लंदन आमंत्रित किया।
14 अप्रैल 1914 को रामानुजन लंदन पहुंचे और फिर अगले पांच सालों तक उन्होंने गणितज्ञ जी.एच. हार्डी के साथ कार्य करते हुए गणित की अनेक समस्याओं को हल करने का प्रयास किया। उनके कार्यों के कारण सन् 1916 में उन्हें बी.ए. की उपाधि प्रदान की गई। रामानुजन पहले गणितज्ञ थे जिन्हें रॉयल सोसायटी की प्रतिष्ठित फैलोशिप प्रदान की गई। इसके बाद तो उन्हें अनेक स्थानों पर व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया गया और उनके शोधपत्रों को सराहा गया।
सन् 1919 को रामानुजन भारत वापस आए। इसी दौरान उनकी सेहत भी बिगड़ती गई और लंबी बीमारी के बीच 32 वर्ष की अल्पायु में ही 26 अप्रैल 1920 को इस महान भारतीय गणितज्ञ का निधन हो गया। इस विलक्षण गणितज्ञ की स्मृति को चिरस्थायी बनाए रखने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2012 को राष्ट्रीय गणितीय वर्ष घोषित किया था। इस वर्ष उनके जन्म की 125वीं वर्षगांठ भी है। इस अवसर पर पूरे देश में गणित को लोकप्रिय बनाने के लिए अनेक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया।
रामानुजन आर्यभट्ट और भास्कर आदि भारतीय विद्वानों की श्रेणी के गणितज्ञ थे। असल में भारतीयों के लिए रामानुजन गणित के क्षेत्र में ऐसे विलक्षण प्रतिभा संपन्न विद्वान थे जिन्होंने अपने कार्यों के बल पर डिग्री प्राप्त की, न कि डिग्री के बल पर कार्य किया। उनकी विलक्षण प्रतिभा ने समूचे राष्ट्र को उनका आभारी बना दिया है।
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नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं। आपसे निम्न मेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है:

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विनम्र श्रद्धांजलि।
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