पृथ्वी दिवस (Earth Day) इतिहास और उसका महत्व
पृथ्वी दिवस सबसे पहले 1970 को पूरे अमेरिका में मनाया गया। फिर तो स्वच्छ पर्यावरण के लिए जागरूकता बढ़ाने के लिए पूरे विश्व में प्रतिवर्ष पृथ्वी दिवस मनाया जाने लगा। इस साल पृथ्वी दिवस की 45वीं वर्षगांठ की वैश्विक थीम ‘नेतृत्व करने की अब हमारी बारी’ सभी को पर्यावरण संरक्षण के लिए आगे आने को प्रेरित कर रही है।
आओ संवारें अपनी पृथ्वी
-नवनीत कुमार गुप्ता
हमारा पृथ्वी ग्रह बेहद सुंदर और जीवनदायी है। यह अनोखा ग्रह सौर मंडल का तीसरा ग्रह है जो आज से लगभग साढ़े चार अरब वर्ष पहले अस्तित्व में आया। पृथ्वी के जन्म के लाखों-करोड़ों वर्षों के बाद से विभिन्न जटिल प्रक्रियाओं व नाजुक संयोगों के परिणामस्वरूप इस ग्रह पर विभिन्न रूपों में जीवन का विकास हुआ। पृथ्वी ग्रह की अनोखी संरचना, सूर्य से दूरी एवं अन्य भौतिक कारणों के कारण यहां जीवन पनप पाया है।
यह बात सोचने की है कि बेलगाम दोहन के बावजूद आदमी पहले से ज्यादा सुखी नहीं हुआ है, ज्यादा दुखी हो गया है। बीसवीं सदी में जब दुनिया विकास की अंधी दौड़ लगा रही थी तब हमारा पर्यावरण किसी की चिन्ता का विषय नहीं था। सबकी निगाह अंतिम विकास पर टिकी थी। आज जब हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं मगर शुद्ध वातावरण में सांस नहीं ले रहे हैं। हमने पिछली शताब्दी में पर्यावरण की कीमत पर विकास हासिल किया है। विकास के लिए हमने अपने पर्यावरण और जैव विविधता को नजर-अंदाज किया है तो आज हमें ग्लोबल वार्मिंग जैसी वैश्विक चुनौती का भी सामना करना पड़ रहा है।
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ग्लोबल वार्मिंग आज पूरी दुनिया के लिए एक भयावह चुनौती बन गई है। ग्लोबल वार्मिंग एवं इससे संबंधित विभिन्न समस्याओं जैसे प्रदूषित होता पर्यावरण, जीवों व वनस्पतियों की प्रजातियों का विलुप्त होना, उपजाऊ भूमि में होती कमी, खाद्यान्न संकट, तटवर्ती क्षेत्रों का क्षरण, ऊर्जा के स्रोतों का कम होना और नयी-नयी बीमारियों का फैलना आदि संकटों से पृथ्वी ग्रह पर विनाष के बादल मंडरा रहे हैं।
आज मानव अधिकाधिक भौतिक सुविधाएं जुटाकर आरामदायक और वैभवशाली जिन्दगी बिताने की इच्छा रखता है। और इस राह में चलते हुए विकास और प्रगति की दौड़ में हर कोई आगे निकलना चाहता है जिससे प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन करना आम बात हो गई है। आज शुद्ध जल, शुद्ध मिट्टी और शुद्ध वायु हमारे लिए अपरिचित हो गए हैं। आज विकास की राह सिर्फ इंसान के लिए राह बनाई जा रही है, इसमें प्रकृति कहीं नहीं है।
आज पृथ्वी के जीवनदायी स्वरूप को बनाए रखने की सर्वाधिक जिम्मेदारी मानव के कंधों पर ही है। ऐसे में मानव को ऐसे व्यक्ति या उसके विचारों का अनुसरण करने की आवश्यकता है, जिसनें प्रकृति को करीब से जाना-समझा हो और सदैव प्रकृति का सम्मान किया हो। दुनिया में प्रकृति के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाले लोगों में कुछ भारतीय नाम जैसे महात्मा गांधी, सुंदरलाल बहुगुणा, बाबा आम्टे, का नाम भी शामिल है।
आज सभी को मानवीय मूल्यों और पर्यावरण में होते ह्रास के कारण पृथ्वी और यहां उपस्थित जीवन के खुशहाल भविष्य को लेकर चिंता होने लगी है। ऐसे समय में महात्मा गांधी के विचार हमारा विश्वास कायम रख सकते हैं। इस समय गांधीजी के “सादा जीवन उच्च विचार” वाली विचारधारा को अपनाने की आवश्यकता है। गांधीजी के विचारों का अनुकरण करने पर मानव प्रकृति के साथ प्रेममयी संबंध स्थापित करते हुए इस पृथ्वी ग्रह की सुंदरता को बरकरार रख सकता है।
पृथ्वी दिवस को सबसे पहले 22 अप्रैल 1970 को पूरे अमेरिका में मनाया गया। फिर तो स्वच्छ पर्यावरण के लिए जागरूकता बढ़ाने के लिए पूरे विष्व में प्रतिवर्ष पृथ्वी दिवस मनाया जाने लगा। इस साल पृथ्वी दिवस की 45वीं वर्षगांठ की वैश्विक थीम ‘नेतृत्व करने की अब हमारी बारी’ सभी को पर्यावरण संरक्षण के लिए आगे आने को प्रेरित कर रही है। पृथ्वी दिवस के अवसर पर प्रत्येक व्यक्ति को प्राकृतिक संसाधनों का किफायत से उपयोग करना सीखना होगा तभी यह धरती हमारी आवश्यकताओं को पूरा करती हुई जीवन के विविध रूपों के साथ खिलखिलाती रहेगी।
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नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं। आपसे निम्न मेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है:

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लेख अच्छा है‚ बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा आपने.... (h)
जवाब देंहटाएंNice and helpfull
जवाब देंहटाएंअपनी टिप्पणी लिखें...supar
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