न्यूट्रिनो एवं उससे सम्बंधित खोज के लिए भारत में स्थापित की जा रही न्यूट्रिनो वेधशाला के महत्व पर एक शोधपरक आलेख।
केरल की सीमा से सटे तमिलनाडु के थानी जिले में स्थित बोडी पहाड़ियां भारत के इतिहास का महत्वपूर्ण अंग बनने जा रही है। कारण है यहां पर टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान द्वारा स्थापित की जा रही ‘न्यूट्रिनों वेधशाला', जो रहस्यमयी कण न्यूट्रिनो सम्बंधी खोज को नया आयाम देगी। प्रस्तुत है इस वेधशाला एवं न्यूट्रिनो के बारे में जानकारी देता एक रोचक आलेख-
न्यूट्रिनो वेधशाला से संवरेगा विज्ञान
-नवनीत कुमार गुप्ता
हमारा ब्रह्मांड एक सुपर हाइवे जैसा है। इसमें अरबों-खरबों कण बहुत लम्बी-लम्बी यात्राएं तय करते हैं। इनमें से न्यूट्रिनो नामक कण सबसे दृढ़निश्चयी यात्री साबित होता है। इस कण की कोई सीमा नहीं है, ये सघन तारों के बीच से होकर आगे बढ़ता है, विशालकाय आकाशगंगाएं और अन्तरतारकीय बाधाएं भी इसका रास्ता रोक नहीं पातीं। जिस प्रकार यात्री के पास यात्रा से प्राप्त विभिन्न प्रकार के अनुभव होते हैं उसी प्रकार एक संभावना है कि न्यूट्रिनो कण से भी अंतरिक्ष से संबंधित विभिन्न प्रकार की जानकारियां प्राप्त की जा सकती हैं। इसी कारण से ही वैज्ञानिकों की इनके अध्ययन में विशेष रूचि रही है।
फोटोन के बाद न्यूट्रिनो प्रचुर मात्रा में ब्रहांड में विद्यमान है। हमारे ब्रहांड में प्रत्येक एक घन सेंटीमीटर में लगभग 300 न्यूट्रिनो होते हैं। ये कण सूर्य जैसे तारों में, रेडियोसक्रिय क्षय और वायुमंडल से कॉस्मिक विकिरणों की अंतःक्रिया से उत्पन्न होते हैं। हम इन्हें नाभिकीय रियक्टर से भी निर्मित कर सकते हैं।
बिग बैंग के बाद जो बेहद आरंभिक न्यूट्रिनो पैदा हुए थे, वो आज तक भी हमारे ब्रह्मांड में घूमते रहते हैं। सौर केंद्र में परमाणु संलयन की वजह से जो न्यूट्रिनो उत्पन्न हुए, वो पृथ्वी के ऊपर, हम सब के ऊपर घूमते रहते हैं। यही नहीं हमारे शरीर से भी न्यूट्रिनो उत्सर्जित होते हैं। एक औसत मानव शरीर में करीबन रेडियोसक्रिय तत्व पोटेशियम-40 की 20 मिलीग्राम मात्रा होती है जो लगातार न्यूट्रिनो का उत्सर्जन करती है। प्रति सेकंड लगभग 100 खरब न्यूट्रिनो सूर्य और अन्य पिंड़ों से उत्सर्जित होकर हमारे शरीर से टकराते हैं लेकिन इससे हमें कोई नुकसान नहीं पहुंचता।
न्यूट्रिनो की खोज:
न्यूट्रिनो के बारे में गहराई से जानने से पहले इसके अतीत से भी रूबरू होना आवश्यक है। सन् 1930 में जब जाने-माने भौतिकिविद् पॉउली (Wolfgang Ernst Pauli) को प्रयोगों से पता चला था कि जब कोई अस्थिर आण्विक नाभिक एक इलैक्ट्रॉन को छोड़ता था, तो उसकी नई ऊर्जा और गति उम्मीद के मुताबिक नहीं होती थी। इस समीकरण को संतुलित करने के और ऊर्जा के सरंक्षण सिद्धांत को कायम रखने के लिए पॉउली ने एक सैद्धांतिक कण की अवधारणा प्रस्तुत की।
पाउॅली के अनुसार इस कण में न तो धनात्मक आवेष था और न ही ऋणात्मक। आगे चलकर सन् 1933 में इसे जाने-माने भौतिकीविद् फर्मि (Enrico Fermi) ने इस कण को न्यूट्रिनो नाम दिया। न्यूट्रिनो के जरिये पॉउली की ऊहापोह तो खत्म हो गई पर ये कण उन्हें फिर भी परेशान करता ही रहा। उनकी परेशानी यह थी कि उन्होंने एक ऐसे कण की मौजूदगी स्वीकार की थी जिसका पता ही नहीं लगाया जा सकता। सन् 1956 में फ्रेड रैनिस् और क्लायड कोवेन नामक वैज्ञानिकों ने आखिरकार न्यूट्रिनों के मिल जाने की घोषणा की। लेकिन इस कण का पता लगाना मुश्किल था, इसीलिए इसे इतनी प्रसिद्धि भी मिली।
न्यूट्रिनो कण भौतिकी के स्टैंडर्ड मॉडल में सबसे मुश्किल से दिखने वाला कणों में से एक था। आधुनिक भौतिकी में स्टैंडर्ड मॉडल इस सवाल का बेहद सरल जवाब देता है जिसके अनुसार पूरे ब्रह्मांड को बनाने वाले कुल 12 बुनियादी ब्लॉक हैं। ये ब्लॉक चार बलों के जरिये आपस में अंतःक्रिया करके तमाम पदार्थों को बनाते हैं। हम कुछ अधिक प्रसिद्ध बुनियादी कणों जैसे कि इलैक्ट्रॉन और फोटोन को पहचान सकते हैं। लेकिन एक विज्ञान प्रेमी के लिए न्यूट्रिनों जैसे कम जाने-पहचाने कण भी उतने ही आकर्षक होते हैं। बुनियादी कणों में न्यूट्रिनों अलग ही नजर आता है। न्यूट्रिनों का एक अलग ही गुण होता है। ये आसानी से नजर नहीं आता।
वैसे आखिर किस कारण से न्यूट्रिनो इतनी मुश्किल से दिखता है? इसकी वजह है गुरुत्व और विद्युतचुम्बकत्व जो हमें बड़ी गहराई से प्रभावित करते हैं, मगर बिना आवेश वाले और लगभग द्रव्यमान विहीन न्यूट्रिनो पर कोई असर नहीं डालते। यह कण न तो ये इलैक्ट्रॉन्स या प्रोटोन की तरह, पदार्थ के अणु बनाने के लिए अंतःक्रिया करता है, और न ही ये दूसरे भारी पिंडों की ओर आकर्षित होता है। न्यूट्रिनो की अंतःक्रियाएं बहुत ही कमजोर होती हैं, इतनी कमजोर कि उन्हें आसानी से न तो रोका जा सकता है और न ही पकड़ा जा सकता है। इन कमजोर अंतःक्रियाओं की वजह से ही वैज्ञानिकों की रुचि इन न्यूट्रिनो का अध्ययन करने की होती है। न्यूट्रिनो के रास्ते में लगभग कोई बाधा नहीं होती है इसलिए वे हम तक पहुंचने के लिए आराम से अंतरिक्ष में सफर कर पाते हैं।
पूरी दुनिया में बहुत से वैज्ञानिक पिछली सदी के दौरान, मुश्किल से नजर आने वाले न्यूट्रिनों को खोजते रहे हैं। इस खोज में भारत का न्यूट्रिनों पर अनेक शोध हुए हैं। कॉस्मिक रे से बनने वाले न्यूट्रिनो का सबसे पहले पता 1965 में जमीन में करीबन 2.3 किलोमीटर की गहराई पर, कोलार सोने की खदानों (kolar gold fields) में एक न्यूट्रिनो संसूचक ने लगाया था। वैसे आज वायुमंडलीय न्यूट्रिनो शोध के लिए आर्कषक क्षेत्र है।
1990 के दशक में कोलार सोने की खदानों के बंद हो जाने से भारत के न्यूट्रिनों कार्यक्रम का रास्ता रूक गया। हमारे देश के न्यूट्रिनो कार्यक्रम के खत्म हो जाने के कारण अमरीका और जापान जैसे देश आगे बढ़ गए और उन्होंने कई नई और अनोखी खोजें की। ऐसा लग रहा था जैसे भारत की तरफ से न्यूट्रिनों की खोज का सिलसिला खत्म हो गया है। बदकिस्मती से उस समय हमारे देश में इस दिशा में काम बंद कर दिया। अगर हम काम जारी रखते, तो हम आज इस क्षेत्र में दुनिया में चोटी पर होते।
न्यूट्रिनो वेधशाला:
टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान द्वारा केरल की सीमा से सटे तमिलनाडु के थानी जिले में बोडी पहाड़ियों वाले स्थान को विज्ञान के एक अहम प्रयोगस्थल ‘न्यूट्रिनों वेधशाला’ के लिए चुना गया। असल में भारत स्थित न्यूट्रिनो वेधशाला के लिए इस स्थान के चुनाव के कुछ विशेष कारण थे। इस परियोजना के लिए भौतिकविज्ञान की जरूरत के हिसाब से कम से कम एक किलोमीटर की गहराई और सुरक्षा के लिए बढ़िया गुणवत्ता वाली चट्टानों की आवश्यकता के साथ ही इसका पर्यावरण पर इसका कम से कम प्रभाव को भी ध्यान रखा गया। तभी तो न्यूट्रिनो के लिए एक उपयुक्त जगह पाने के सिलसिले में बोडी पहाड़ियों में स्थित यह स्थान इन तमाम शर्तों को पूरी करता है। आज न्यूट्रिनो वेधशाला भारत की विज्ञान की व्यापक और बेहद महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से है।
अगले पांच साल में यह वेधशाला न्यूट्रिनों भौतिकी के सिलसिले में नए-नए और अनोखे प्रयोगों की साक्षी होगी। न्यूट्रिनो वेधशाला भारतीय विज्ञान के क्षेत्र में अब तक के सबसे बड़े सहयोग का भी उदाहरण है। इस अंतरसंस्थानिक सहयोग में 26 जाने-माने विज्ञान संस्थानों के 100 से ज्यादा वैज्ञानिक शामिल हैं।
न्यूट्रिनों वेधशाला परियोजना के तहत 1300 मीटर ऊंचे चट्टानी पहाड़ों के ठीक नीचे 2 किलोमीटर लम्बी एक सुरंग बनाई जाएगी ताकि एक अनोखी भूमिगत प्रयोगशाला बनाई जा सके। इस परियोजना को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग और परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा सहयोग प्रदान किया गया है।
इस परियोजना की संकल्पना पूरी तरह से भारतीय वैज्ञानिकों ने प्रस्तुत की। सन् 2002 में सात भारतीय संस्थानों ने इस संबंध में एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य न्यूट्रिनों का अध्ययन करना है। यहां पर कण भौतिकी एवं खगोलभौतिकी से संबंधित महत्वपूर्ण सवालों को जवाब तलाशा जाएगा।
इस प्रयोग में सिर्फ न्यूट्रिनो भौतिकविद् ही हिस्सा नहीं लेंगे। इसमें बेहतरीन इंजीनियर भी शामिल होंगे जो मैग्नेट बना सकें। इसमें इलेक्ट्रॉन विशेषज्ञ भी शामिल होंगे जो चिपों, डाटा संकलन व्यवस्था को मूर्त रूप देंगे। इस प्रयोग में साफ्टवेयर विशेष प्रयोग की मॉनिटरिंग के लिए सॉफ्टवेयर डिजाइन करेंगे। इस प्रकार इस प्रयोग में कई क्षेत्रों के लोगों का सहयोग लेना होगा। ऐसा शायद पहली बार हो रहा है कि इतने बड़े स्तर पर, इतने सारे लोगों की मदद ली जा रही है। इन विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों का आपसी सहयोग भारतीय वैज्ञानिक समुदाय में एक नया जोश पैदा करने वाला होगा।
असल में दूसरे लोगों के साथ सहयोग करना हमारे लिए मुश्किल हो जाता है। विदेशी प्रयोगशालाओं में तो हम ऐसा कर लेते हैं, लेकिन देश में विभिन्न संस्थानों के लोगों का एक साथ काम करना एक चुनौती साबित होता है। लेकिन अब स्थिति बदल रही है। इस प्रयोग के द्वारा विभिन्न संस्थान एक-दूसरों के साथ सहयोग करना सीखेंगे, और उम्मीद है कि इससे भारत में सहयोग आधारित दूसरी परियोजनाओं के लिए एक मिसाल कायम होगी।
इस सहयोग का एक बड़ा हिस्सा खुद ये समुदाय है। थेनी जहां यहां वेधशाला स्थापित की गई है वहां आसपास मौजूद स्थानीय निवासियों को तमाम जानकारियां दी जा रही है ताकि बेवजह की आशंकाओं और गलतफहमियों को दूर किया जा सके। असल में इस प्रयोग को लेकर कुछ अफवाहें भी प्रचारित हुईं। एक अफवाह के अनुसार इस वेधशाला में नाभिकीय अपशिष्टों को एकत्र किया जा रहा है। जबकि सच्चाई यह है कि यहां सिर्फ अधारभूत विज्ञान को गहराई से समझने विशेष रूप से न्यूट्रिानों को समझने से सम्बंधित प्रयोग किए जाएंगे।
एक अफवाह यह भी उड़ी कि यहां होने वाले प्रयोग पर्यावरण को क्षति पहुंचाएंगे। लेकिन इस वेधशाला की स्थापना से पहले पर्यावरण से संबंधित सभी पहलुओं पर विचार किया जा चुका है। इसलिए विभिन्न अफवाहों से परे यह वेधशाला विज्ञान के कल्याणकारी स्वरूप को समर्पित है।
इसलिए वेधशाला के कर्मियों द्वारा आम लोगों और पर्यावरण की चिंता करने वाले लोगों के साथ बातचीत की जाती है। स्थानिय लोगों से बात करके उन्हें इस परियोजना के प्रभाव के बारे में बताते हैं। जब भी मौका मिलता है इस परियोजना से जुड़े वैज्ञानिक वहां जाते हैं और उनसे चर्चा करते रहते हैं। इससे इस परियोजना के बारे में स्थानीय लोगों के बीच एक सकारात्मक माहौल बना है।
न्यूट्रिनो वेधशाला के दो लक्ष्य हैं। यह प्रयोग न सिर्फ न्यूट्रिनो के बारे में ओर विस्तार से जानकारी उपलब्ध कराएगा बल्कि इस प्रयोग से विद्यार्थियों को भी विज्ञान के क्षेत्र की ओर प्रेरित किया जाएगा ताकि हम ऐसे बहुत से युवा वैज्ञानिक पैदा कर सकें जो बेहद उन्नत बुनियादी शोध करने के लिए प्रशिक्षित हों।
यह प्रयोग शोधछात्रों विशेषकर दक्षिणी राज्यों के विद्यार्थियों को विज्ञान की ओर आकर्षित करने में भी अपनी भूमिका निभाएगा। इसके अलावा यह प्रयोग वैज्ञानिक संगठनों को एक साथ काम करने का अनुभव भी प्रदान करेगा जिसका विज्ञान और देश को दूरगामी लाभ होगा।
---------------------------------
लेखक परिचय:
नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से संबंद्ध हैं। आपसे मेल आईडी ngupta@vigyanprasar.gov.in पर संपर्क किया जा सकता है।
keywords: neutrino in hindi, neutrino information in hindi, neutrino speed in hindi, neutrino observatory in hindi, neutrino detector in hindi, neutrino oscillation in hindi, neutrino massneutrino observatory in hindi, neutrino india in hindi, neutrino observatory india in hindi, neutrino observatory madurai in hindi, neutrino observatory kerala in hindi, neutrino research in hindi, icecube neutrino observatory in hindi, indian neutrino observatory project in hindi, neutrino observatory ino in hindi, neutrino observatory (ino) project in hindi, kolar gold fields in hindi नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से संबंद्ध हैं। आपसे मेल आईडी ngupta@vigyanprasar.gov.in पर संपर्क किया जा सकता है।
बेहतरीन लेख, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंCongrats (h) (h) (h)
जवाब देंहटाएं