गंगा के मैदानी भागों की आयुर्वेदिक औषधियां एवं उनके उपयोग।
गंगा के मैदानी भागों से पारम्परिक चिकित्सा पद्धति में उपयोग होने वाली औषधीय वनस्पतियों की घटती जनसंख्या
-एक संक्षिप्त विश्लेषण
-डॉ0 अरविन्द सिंह
दुर्भाग्यवश आज गंगा के मैदानी भागों में आधुनिक चिकित्सा पद्धति एलोपैथ के विस्तार एवं प्रचलन ने हमारी आयुर्वेद पर आधारित पारम्परिक चिकित्सा पद्धति को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। परिणामस्वरूप पारम्परिक चिकित्सा में इस्तेमाल होने वाले औषधीय पौधों ने अपना महत्व खो दिया है जिसके चलते उचित संरक्षण के अभाव में विभिन्न कारणों से महत्वपूर्ण औषधीय पौधों की प्रजातियों की जनसंख्या निरन्तर घटती जा रही है जिनका औषधीय उपयोग पूर्व में साधारण से लेकर गंभीर बिमारियों के उपचार में होता रहा है।
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औघधीय वनस्पति-सर्पगंधा |
क्या हैं गंगा के मैदानी भाग?
गंगा के मैदानी भाग की उत्पत्ति हिमालय से निकलने वाली नदियों द्वारा लाये गये अवसादों के जमाव से सिनोजोइक कल्प के क्वाटरनरी युग में हुआ था। गंगा एवं उसकी सहायक नदियों यमुना, गोमती, घाघरा, गण्डक, कोसी एवं प्रायद्वीपीय नदियों जैसे चम्बल, बेतवा, केन एवं सोन नदियाँ जो गंगा से मिलती हैं द्वारा इस विशाल जलोढ़ क्षेत्र का निर्माण हुआ है। गंगा का मैदानी भाग उत्तर प्रदेश, बिहार एवं पश्चिम बंगाल राज्यों में फैला है जिसका कुल क्षेत्रफल लगभग 3.75 लाख वर्ग किलोमीटर है।
गंगा का मैदानी भाग उपजाऊ मृदा एवं उपयुक्त जलवायु के कारण वनस्पति विविधता में अव्वल रहा है। विभिन्न प्रकार के औषधीय पौधो की जंगली अवस्था में भरमार इस क्षेत्र की विशेषता रही है। लेकिन मानव की विभिन्न क्रियाओं के चलते इस क्षेत्र के बहुत से महत्वपूर्ण औषधीय पौधों की आज जनसंख्या लगातार घटती जा रही है जिनका इस्तेमाल सदियों से पारम्परिक चिकित्सा पद्धति में होता रहा है। इनमें से बहुत से पौधों जैसे सर्पगंधा, शतावर, कालमेघ, अनन्तमूल, मण्डूकपर्णी, शंखपुष्पी, पुनर्नवा, अडूसा, गोखरू आदि का उल्लेख भारत के प्राचीन चिकित्सा सम्बन्धी ग्रन्थों अथर्ववेद, चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, सारंगधर संहिता आदि में किया गया है।
औषधीय वनस्पतियों की घटती जनसंख्या के क्या कारण हैं?
आधुनिक चिकित्सा पद्धति एलोपैथ के विस्तार एवं प्रचलन के कारण नयी पीढ़ी में इन पौधों के औषधीय गुणों की जानकारी का अभाव है अतः इन्हें खर-पतवार समझकर नष्ट कर दिया जाता है परिणामस्वरूप उचित संरक्षण के अभाव में इनकी जनसंख्या में गिरावट आती है।
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गंगा के उपजाऊ मैदानी भाग में विदेशी मूल की शाकीय वनस्पति गाजर घास (पार्थिनियम हिट्रोफोरस) के आक्रमण एवं विस्तार के कारण बहुत से औषधीय पौधों की प्रजातियों की जनसंख्या में अभूतपूर्व गिरावट आयी है। आमतौर से कठोर प्रवृत्ति की गाजर घास उगने वाले आवास में अपना एकाधिकार स्थापित कर लेती है परिणामस्वरूप देसी पौधों की अन्य प्रजातियाँ वहाँ से पूर्णतः विस्थापित हो जाती हैं। उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में गाजर घास ने प्रजाति मिश्रण को बदल दिया है। इस विदेशी मूल के पौधे के कारण जैव-विविधता क्षय का प्रकोप दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। इसी प्रकार विदेशी मूल की झाड़ीनुमा वनस्पति कुर्री (लैण्टाना कमरा) के आक्रमण एवं विस्तार के कारण भी औषधीय वनस्पतियों का विस्थापन हुआ है।
रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों तथा खर-पतवारनाशकों के अंधाधुन्ध प्रयोग पर आधारित पारम्परिक कृषि प्रणाली भी बहुत से औषधीय पौधों की घटती जनसंख्या के लिए उत्तरदायी है। खर-पतवार को नष्ट करने के लिए खर-पतवारनाशकों का प्रयोग खर-पतवार के साथ-साथ जंगली अवस्था में उग रहे औषधीय पौधों को भी नष्ट कर देता है। कीटनाशकों के निरन्तर प्रयोग से हानिकारक कीटों के साथ-साथ उपयोगी कीट (जो पौधों में परागण की क्रिया को बढ़ावा देते हैं) नष्ट हो जाते हैं फलस्वरूप कीट परागण पर निर्भर औषधीय पौधों की प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है जिसके कारण उनकी जनसंख्या में गिरावट होती है।
सिकुड़ते भूमि संसाधन भी इन औषधीय पौधों के घटती जनसंख्या के प्रमुख कारण हैं। गलत कृषि कार्यों के परिणामस्वरूप मृदा लवणता, मृदा अपरदन Soil Erosion तथा मृदा अम्लीयता (रासायनिक उर्वरक यूरिया के अंधाधुन्ध प्रयोग के कारण) एवं जल-जमाव की समस्या ने गंगा के मैदानी क्षेत्रों में विकराल रूप धारण कर लिया है जो इन औषधीय पादपों के विकास एवं विस्तार को प्रभावित करता है। मकोय नामक औषधीय पौधे की प्रजाति जल-जमाव के प्रति अत्यन्त ही संवेदनशील होती है।
भारत जैसे धार्मिक देश में कुछ पौधों के फूल तथा फल को मंदिरों में भगवान को अर्पित करने की परम्परा रही है। मदार के फूल एवं धतूरा के फल मंदिरों में शिव भगवान को अर्पित किया जाता है। फल एवं फूल को तोड़ने से इन पौधों की प्रजनन क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है जिससे यह पौधे अपने आपको विस्तारित नहीं कर पाते परिणामस्वरुप इनकी जनसंख्या में गिरावट आती है।
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कटेली एवं गुमा के सम्पूर्ण पौधों को गोवर्धन पूजा तथा अन्नकूट पूजा के दौरान अनिवार्य रूप से उपयोग किया जाता है। उक्त त्योहारों पर उपयोग हेतु अंधाधुन्ध शोषण के परिणामस्वरूप पूर्वी उत्तर प्रदेश में इन दोनों औषधीय वनस्पतियों की प्रजातियों की जनसंख्या में लगातार गिरावट आ रही है।
औषधीय उपयोग तथा औषधीय दवा के निर्माण हेतु अति-शोषण ने भी कुछ औषधीय पौधों को विलुप्ति के कगार पर पहुंचा दिया है। पुनर्नवा इसका प्रमुख उदाहरण है। वनस्पतियों की जड़ों का उपयोग पीलिया तथा बदहजमी के उपचार में होता हैं। औषधि निर्माता कम्पनियां भी समाज के निर्बल वर्ग के लोगों के माध्यम से जंगली अवस्था में उगने वाले इस पौधे के शोषण में संलग्न हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में अति-शोषण के कारण आज पुनर्नवा विलुप्ति के कगार पर खड़ा है।
झाड़ीभूमियाँ एवं काष्ठभूमियाँ पारम्परिक रूप से औषधीय पौधों का भण्डार रही हैं। लेकिन बढ़ती जनसंख्या एवं कृषि विस्तार के कारण ज्यादातर झाड़ीभूमियों एवं काष्ठभूमियों को नष्ट कर कृषि भूमि में परिवर्तित कर दिया गया है जिसके परिणामस्वरूप मण्डूकपर्णी, कालमेघ, लजौनी, जैसे महत्वपूर्ण औषधीय वनस्पतियों की जनसंख्या में अभूतपूर्व गिरावट आयी है।
गंगा के मैदानी भाग में प्राकृतिक घास के मैदान भी औषधीय पौधों जैसे- छोटी दुद्धी, गोखरू, शंखपुष्पी, पपोरी शंखपुष्पी आदि के भण्डार रहे हैं। लेकिन अत्यधिक-चराई ने इन घास के मैदानों को नष्ट कर दिया है फलस्वरूप इन औषधीय पौधों की जनसंख्या में निरन्तर गिरावट हुई है।
गंगा के मैदानी भागों में वन भी औषधीय वनस्पतियों के भण्डार होते हैं। निरन्तर जनसंख्या वृद्धि के कारण इन वनों पर दबाव बढ़ा है परिणामस्वरुप वन क्षय की दर में वृद्धि हुई है। वन क्षय के कारण वनों में उगने वाले औषधीय पौधों जैसे- सर्पगंधा, रत्ती, कालमेघ, अमरबेल, रामदातुन, अपराजिता, कंघी, शतावर आदि की जनसंख्या में गिरावट आयी है।
तालाबों की कम होती संख्या के कारण जल में उगने वाले औषधीय पौधों की जनसंख्या में गिरावट आयी है। पारम्परिक कृषि में रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुन्ध प्रयोग इन तालाबों के विलुप्ति का प्रमुख कारण है। वर्षा जल के बहाव द्वारा रासायनिक उर्वरक कृषि भूमि से तालाब तक पहुँचते हैं परिणामस्वरुप सुपोषण के फलस्वरुप नीलहरित शैवालों का बहुतायत में वृद्धि एवं विकास होता है। तत्पश्चात् जीवांश भार बढ़ने के कारण अनुक्रमण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है जिसके परिणामस्वरूप तालाब स्थलीय पारितंत्र में परिवर्तित हो जाते हैं। अतः सुपोषण उत्तर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों से तालाबों की विलुप्ति का प्रमुख कारण है।
उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त बढ़ता जल, वायु तथा मृदा प्रदूषण भी इन औषधीय पौधों की प्रजातियों के गिरती जनसंख्या के कारण हैं।
प्रभावित औषधीय वनस्पतियां एवं उनके उपयोग:
गंगा के मैदानी क्षेत्रों में जंगली अवस्था में उगने वाली औषधीय वनस्पतियों की कुछ प्रजातियाँ जिनकी जनसंख्या में गिरावट दर्ज की गयी है-
1. अडूसा, वैज्ञानिक नाम- एडाथोडा वसिका, कुल- अकेन्थेसी, औषधीय उपयोग- दमा, ब्रान्काइटिस, क्षयरोग, मलेरिया
2. अन्तमूल, वैज्ञानिक नाम- टाइलोफोरा अस्थमेटिका, कुल- एस्केलपीडेसी, औषधीय उपयोग- दमा, काली खाँसी
3. अनन्तमूल, वैज्ञानिक नाम- हेमिडेस्मस इण्डिकस, कुल- एपोसाइनेसी, औषधीय उपयोग- ज्वरनाशक, श्वेत प्रदर, बदहजमी, त्वचारोग
4. अपराजिता, वैज्ञानिक नाम- क्लाइटोरिया टरनेटिया, कुल- फैबेसी, औषधीय उपयोग- रेचक, बिषनाशक
5. अमरबेल, वैज्ञानिक नाम- कस्कुटा रिफ्लेक्सा, कुल- कनवालवुलेसी, औषधीय उपयोग- शक्तिवर्धक, कफनाशक, शीतनाशक
6. उटकटना, वैज्ञानिक नाम- इकाइनाप्स इकाइनेटस, कुल- एस्टरेसी, औषधीय उपयोग- त्वचारोग
7. कटीली चौराई, वैज्ञानिक नाम- अमरैन्थस स्पाइनोसस, कुल- अमरेन्थेसी, औषधीय उपयोग- दाद, पेटदर्द
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8. कमल, वैज्ञानिक नाम- निलम्बो न्यूसिफेरा, कुल- निल्यूम्बोनेसी, औषधीय उपयोग- अतिसार, सिरदर्द
8. कमल, वैज्ञानिक नाम- निलम्बो न्यूसिफेरा, कुल- निल्यूम्बोनेसी, औषधीय उपयोग- अतिसार, सिरदर्द
9. कनकुआ, वैज्ञानिक नाम- कामेलाइना बेनघालेन्सिस, कुल- कामेलाइनेसी, औषधीय उपयोग- कुष्ठ रोग
10. कालमेघ, वैज्ञानिक नाम- एण्ड्रोग्रेफिस पैनिकुलेटा, कुल- अकेन्थेसी, औषधीय उपयोग- पीलिया, बदहजमी
11. काली केंवाच, वैज्ञानिक नाम- मुकुना प्रूरियेन्स, कुल- फैबेसी, औषधीय उपयोग- कृमिनाशक, श्वेत प्रदर
12. कासनी, वैज्ञानिक नाम- सिनकोरियम इन्टीयूबस, कुल- ऐस्टरेसी, औषधीय उपयोग- कफनाशक, खाँसी
13. कटेली, वैज्ञानिक नाम- सोलेनम जैन्थोकारपम, कुल- सोलेनेसी, औषधीय उपयोग- कफनाशक, कृमिनाशक, ज्वरनाशक, दमा, कानदर्द, जलोदर
14. करेमना, वैज्ञानिक नाम- आइपोमिया एक्वेटिका, औषधीय उपयोग- कानवलवुलेसी रेचक, जुलाब
15. कुकरौंधा, वैज्ञानिक नाम- ब्लूमिया एरोमेटिका, ब्लूमिया इण्डिका, कुल- एस्टरेसी, औषधीय उपयोग- त्वचारोग, जुलाब
16. कुप्पी, वैज्ञानिक नाम- अकेलिफा इण्डिका, कुल- यूफोर्बियेसी, औषधीय उपयोग- निमोनिया, दमा, ज्वरनाशक, गठिया
17. कुंदरू, वैज्ञानिक नाम- काक्सीनिया ग्रेन्डिस, कुल- कुकुरबिटेसी, औषधीय उपयोग- मधुमेह, चर्मरोग, सूजाक
18. कंघी, वैज्ञानिक नाम- एबुटीलॉन इण्डिकम, कुल- मालवेसी, औषधीय उपयोग- बवासीर, ब्रान्काइटिस, कुष्ठ रोग
19. गोखरू, वैज्ञानिक नाम- ट्राइबुलस टेरेस्ट्रिस, कुल- जाइगोफिलेसी, औषधीय उपयोग- गठिया, नपुंसकता, सिफलिस
20. गूमा, वैज्ञानिक नाम- ल्यूकस एस्पेरा, कुल- लैमिनेसी, औषधीय उपयोग- सिरदर्द, मधुमेह, पीलिया, मलेरिया
21. गुड़मार, वैज्ञानिक नाम- जिमनेमा सिलवेस्टर, कुल- एस्केलपीडेसी, औषधीय उपयोग- मधुमेह
22. चिचिड़ा, वैज्ञानिक नाम- एकाइरेन्थस एस्पेरा, कुल- अमरेन्थेसी, औषधीय उपयोग- पाइरिया, बवासीर, बदहजमी
23. चिटचिटिया, वैज्ञानिक नाम- पेरिसट्राफी बाईकेलीकुलेटा, कुल- अमरेन्थेसी, औषधीय उपयोग- गठिया
24. छोटी दुद्धी, वैज्ञानिक नाम- यूफोर्बिया थाइमिफोलिया, कुल- यूफोर्बियेसी, औषधीय उपयोग- जुलाब
25. जंगली प्याज, वैज्ञानिक नाम- यूरजिनिया इण्डिका, कुल- लिलीएसी, औषधीय उपयोग- जलोदर, गठिया, त्वचारोग
26. जंगली गोभी, वैज्ञानिक नाम- एलिफैन्टोपस स्केबर, कुल- एस्टरेसी, औषधीय उपयोग- पेचिश
27. तलमखाना, वैज्ञानिक नाम- हाइग्रोफिला आरिकुलेटा, कुल- अकेन्थेसी, औषधीय उपयोग- पीलिया तथा जलोदर
28. धतूरा, वैज्ञानिक नाम- धतूरा अल्बा, धतूरा मेटेल, धतूरा फैस्टुओसा, धतूरा स्ट्रेमोनियम, कुल-सोलेनेसी, औषधीय उपयोग- दमा, ब्रान्काइटीस, काली खांसी, त्वचा बिमारियाँ, बवासीर, भगंदर
29. नक चिकनी, वैज्ञानिक नाम- सेन्टीपीडा मिनीमा, कुल- ऐस्टरेसी, औषधीय उपयोग- दाँतदर्द
30. नील, वैज्ञानिक नाम- इण्डिगोफेरा टिंकेटोरिया, कुल- फैबेसी, औषधीय उपयोग- मिर्गी, हाइड्रोफोबिया
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31. पपोरी संख्पुष्पी, वैज्ञानिक नाम- इवालवुलस एल्सिनाइडिस, कुल- कानवलवुलेसी, औषधीय उपयोग- स्नायुवर्धक
31. पपोरी संख्पुष्पी, वैज्ञानिक नाम- इवालवुलस एल्सिनाइडिस, कुल- कानवलवुलेसी, औषधीय उपयोग- स्नायुवर्धक
32. पीला हुरहुर, वैज्ञानिक नाम- क्लीओम विस्कोसा, कुल- कैपारेसी, औषधीय उपयोग- ज्वरनाशक, अतिसार, शक्तिवर्धक
33. पीत्तपापरा, वैज्ञानिक नाम- फ्यूमेरिया पारवीफ्लोरा, कुल- फ्यूमेरियेसी, औषधीय उपयोग- ज्वरनाशक, कृमिनाशक, मूत्रवर्धक, रक्तशोधक
34. पुनर्नवा, वैज्ञानिक नाम- बोरहैविया डिफ्यूजा, कुल- निक्टाजिनेसी, औषधीय उपयोग- पीलिया, बदहजमी, मूत्रवर्धक
35. बज्रदन्ति, वैज्ञानिक नाम- बारलेरिया प्रायोनाइटिस, कुल- अकेन्थेसी, औषधीय उपयोग- पाइरिया
36. बड़ी दुद्धी, वैज्ञानिक नाम- यूफोर्बिया हर्टा, कुल- यूफोर्बियेसी, औषधीय उपयोग- बच्चों की आँत सम्बन्धित बिमारियाँ
37. लजौनी, वैज्ञानिक नाम- बायोफाइटम सेन्सीटाइवम, कुल- आक्जैलिडेसी, औषधीय उपयोग- मूत्रवर्धक, अनिद्रा, छाती दर्द
38. ब्रह्मबुटी, वैज्ञानिक नाम- सिलेस्ट्रस पैनीकुलेटस, कुल- सिलेस्ट्रेसी, औषधीय उपयोग- कफनाशक, त्वचारोग
39. ब्राह्मी, वैज्ञानिक नाम- बकोपा मोनिराई, कुल- स्क्रोफुलैरिएसी, औषधीय उपयोग- मस्तिष्कवर्धक, स्नायुवर्धक, कुष्ठरोग, त्वचारोग, अनिद्रा
40. बिसखोपरा, वैज्ञानिक नाम- ट्राइएन्थिमा पार्टुलेकेस्ट्रम, कुल- एजोएसी, औषधीय उपयोग- ज्लोदर
41. भगंरिया, वैज्ञानिक नाम- इक्लिप्टा प्रोस्ट्रेटा, कुल- एस्टरेसी, औषधीय उपयोग- घाव भरने एवं यकृत बिमारियों में कारगर
42. र्भूइं आंवला, वैज्ञानिक नाम- फाइलैण्थस निरूराई, कुल- यूफोर्बियेसी, औषधीय उपयोग- पीलिया
43. भुईं कुसुम, वैज्ञानिक नाम- आक्ना प्यूमिला, कुल- आक्नेसी, औषधीय उपयोग- अतिसार, पेचिश
44. ममारी, वैज्ञानिक नाम- आसिमम कैनम, कुल- लैमिएसी, औषधीय उपयोग- सिरदर्द
45. मदार, वैज्ञानिक नाम- कैलोट्रापिस प्रासेरा, कैलोट्रापिस आइजेण्टीया, कुल- एस्केलपिडेसी, औषधीय उपयोग- त्वचारोग, दमा, जलोदर एवं गर्भपात में कारगर
46. मण्डूकपर्णी, वैज्ञानिक नाम- सेन्टेला एसियाटिका, कुल- एपियेसी, औषधीय उपयोग- हैजा, बवासीर, मानसिक दुर्बलता, त्वचारोग
47. मकोय, वैज्ञानिक नाम- सोलेनम नाइग्रम, कुल- सोलेनेसी, औषधीय उपयोग- हृदयवर्धक, स्वापक, दर्दनाशक, जलोदर, बवासीर, पीलिया
48. मुण्डी, वैज्ञानिक नाम- स्फीरेन्थस इण्डिकस, कुल- एस्टरेसी, औषधीय उपयोग- रक्तवर्धक, हिस्ट्रीरिया
49. रत्ती, वैज्ञानिक नाम- एब्रस प्रीकैटोरियस, कुल- फैबेसी, औषधीय उपयोग- रक्तशोधक, गठिया, कुष्ठरोग, त्वचारोग, यौनरोग
50. रामदातुन, वैज्ञानिक नाम- स्माइलेक्स ओवेलिफोलिया, स्माइलेक्स ग्लैब्रा, कुल- लिलिएसी, औषधीय उपयोग- अतिसार, मुत्ररोग
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51. लाजवन्ति, वैज्ञानिक नाम- मिमोसा प्यूडिका, कुल- फैबेसी, औषधीय उपयोग- कफनाशक, ज्वरनाशक
51. लाजवन्ति, वैज्ञानिक नाम- मिमोसा प्यूडिका, कुल- फैबेसी, औषधीय उपयोग- कफनाशक, ज्वरनाशक
52. लपेतुआ, वैज्ञानिक नाम- जेन्थियम स्ट्रोमेरियम, कुल- एस्टरेसी, औषधीय उपयोग- बवासीर
53. वघनखा, वैज्ञानिक नाम- मार्टीनिया एनुआ, कुल- मार्टीनियेसी, औषधीय उपयोग- गठिया
54. वनतुलसी, वैज्ञानिक नाम- आसीमम बैसिलिकम, कुल- एपीयेसी, औषधीय उपयोग- अतिसार, पेचिश
55. वनजीरा, वैज्ञानिक नाम- वरनोनिया एन्थेलमिन्टिका, कुल- एस्टरेसी, औषधीय उपयोग- ब्रान्काइटिस, कृमिनाशक
56. सर्पगंधा, वैज्ञानिक नाम- रावोल्फिया सरपेन्टीना, कुल- एपोसाइनेसी, औषधीय उपयोग- अनिद्रा, उच्च रक्तचाप, मानसिक दुर्बलता
57. सफेद हुरहुर, वैज्ञानिक नाम- गाइनेन्ड्रापसिस पेण्टाफिला, कुल- कैपारेसी, औषधीय उपयोग- ज्वरनाशक, गठिया, कृमिनाशक
58. सुबाली, वैज्ञानिक नाम- क्राजोफोरा प्रोस्ट्रेटा, कुल-यूफोर्बियेसी, औषधीय उपयोग- कफनाशक, रेचक
59. शरपुंखा, वैज्ञानिक नाम- टिफ्रोसिया परपुरिया, कुल- फैबेसी, औषधीय उपयोग- जलोदर, दमा, गठिया, पेचिश
60. शंखपुष्पी, वैज्ञानिक नाम- कनवालवुलस प्लुरिकालिस, कुल- कानवलवुलेसी, औषधीय उपयोग- स्नायुवर्धक, मस्तिष्कवर्धक
61. शतावर, वैज्ञानिक नाम- एस्परगस रेसिमोसस, कुल- लिलिऐसी, औषधीय उपयोग- बच्चा जनने वाली माता के स्तनों में दुग्ध बढ़ाने में कारगर, शक्तिवर्धक, शुक्रवर्धक, सूजाक, बवासीर, श्वेत प्रदर, मिरगी
62. हाथी सूड़, वैज्ञानिक नाम- हिलियोट्रापियम इण्डिकम, कुल- बोराजिनेसी, औषधीय उपयोग- कीटदंश एवं बिच्छूदंश के उपचार में कारगर
औषधीय वनस्पतियों को कैसे संरक्षण प्रदान किया जाय?
गंगा के उपजाऊ मैदानी भागों से औषधीय पौधों की निरन्तर घटती जनसंख्या चिन्ता का विषय है क्योंकि यह पौधे हमारे पारम्परिक चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के रीढ़ हैं। इसलिए यह समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है कि इन औषधीय पौधों के संरक्षण के लिए सरकारी एवं गैर-सरकारी संगठनों के सहयोग से जन-जागरण अभियान चलाया जाये जिसमें इन औषधीय पौधों के औषधीय गुणों के महत्व के साथ-साथ इनके बहिःस्थल संरक्षण (प्राकृतिक आवास के बाहर किसी सुरक्षित स्थान पर संरक्षण) एवं यथास्थल संरक्षण (प्राकृतिक आवास में) विधियों से अवगत कराया जाये। इसके अतिरिक्त, किसानों को शतावर, सर्पगंधा, कालमेघ, पुनर्नवा, पीत्तपापरा आदि जैसे औषधीय पौधों जिनकी आयुर्वेदिक औषधि निर्माता कम्पनियों द्वारा बाजार में मांग है की खेती के लिए प्रेरित एवं प्रोत्साहित किया जाये, जिससे न सिर्फ इन पौधों को संरक्षण मिलेगा बल्कि इससे किसानों के आय में भी वृद्धि होगी।
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लेखक परिचय:


सही कहा आपने। एलोपैथी ने एक तरह से आयुर्वेद को लील ही लिया है।
जवाब देंहटाएंnice article.
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