नृविज्ञान / एंथ्रपॉलजी यानी मनुष्य जाति के विज्ञान का सरल परिचय।
विभिन्न लोगों की त्वचा का रंग अलग-अलग गोरा, गहरा, सांवला होता है। हम भारतीयों के बाल सीधे, धुंधराले और लहरदार हैं। इसका कारण यह है कि यहां अफ्रीका से आने वाले आरंभिक जनसंख्या के बाद से ही विभिन्न प्रवासी लोगों के कई समूह एक के बाद एक आते रहे। यह बात तो सर्वमान्य है कि अफ्रीका से एशिया में मध्य लोगों का बिखराव या आगमन दस से बीस लाख वर्षों पहले हुआ लेकिन इसका आगमन किस रास्ते से हुआ इसको लेकर अनेक मत प्रचलित हैं। लेकिन यह सब एक दिन में घटित नहीं हुआ। ऐसा नहीं है कि सीधे अफ्रीका से एक ही यात्रा में यह सब घटित हुआ।
अनेकता में एकता से अवगत कराता नृविज्ञान
-नवनीत कुमार गुप्ता
विज्ञान यह मानता है कि सभी इंसान एक ही पूर्वज के वंशज हैं। सभी मानव एक बड़े परिवार से सम्बंधित हैं। इस प्रकार सभी इंसान आपस में भाई-बहन हुए। लेकिन यह मत सोचिए कि ऐसा होने पर भी सभी जैसे क्यों नहीं दिखाई देते। क्यों हमारे रंग व रूप अलग-अलग होते हैं। हमारी जड़ें यानी आधार एक ही हैं। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि हजारों-हजार साल गुजरने और मानव के गुफाओं से निकलकर भोजन और आश्रय की तलाश में यहां से वहां भटकने और बसने के बाद आप किस प्रकार इंसानों के आधार को पहचान पाए। मानवों की उत्पत्ति के अध्ययन को नृविज्ञान यानी एंथ्रपॉलजी (Anthropology) कहते हैं असल में यह मानव परिवार का अध्ययन है।
इसके लिए शरीर की बेहद गहराई से छानबीन की जाती हैं। हम जानते हैं कि कोशिका हमारे शरीर का आधार है। कोशिका की संरचना और उनकी कार्यशील इकाईयों से ही हमारा शरीर बनता है। कोशिका के अंदर उनका मुख्यालय या नाभिक, धागे जैसी संरचनाओं से मजबूती से बंधा होता है। इसे क्रोमोसोम कहते हैं जिसमें आनुवंशिकता या जीन समाहित होती है। मानव शरीर में क्रोमोसोम के 46 जोड़े होते हैं जो लगभग 30,000 जीन रखते हैं। हमें ये क्रोमोसोम हमारे माता-पिता से मिलते हैं प्रत्येक से 23-23। ऐसा इसलिए क्योंकि नर उत्पादक कोशिका और मादा उत्पादक कोशिका प्रत्येक 23-23 क्रोमोसोम रखते हैं। ये अगुणित संख्या मिलकर 23 जोड़े या द्विगुणित समुच्चय बनाते हैं जो हमारे शरीर में यानी कायिक कोशिकाओं में रहते हैं। हालांकि विभिन्न पौधों और जीव प्रजातियों में ये संख्या विभिन्न हो सकती है लेकिन उनमें क्रोमोसोम जोड़ों की संख्या विशिष्ट होती है।
अधिकतर जीनों में उनका पता क्रोमोसोम में समाहित होता है और वे डीएनए के वास्तविक अंश होते हैं। डीएनए यानी डी-ऑक्सी-राइबो-न्यूक्लिक एसिड। क्रोमोसोम और जीन हम, हमारे पूर्वजों से प्राप्त करते हैं और ये हमारे सभी क्रियाकलापों को नियंत्रित करते हैं और इनसे ही हम बनते हैं। जीन द्वारा ही हमारे पूर्वजों के गुण और विशेषताएं हम तक स्थानांतरित होती हैं।
माता-पिता को उनके क्रोमोसोम और जीन, उनके माता-पिता से मिली और उन्हें उनके पूर्वजों से। यानी ये हमें अतीत से जोड़े रखती हैं लेकिन आपको यह कैसे पता लगता है कि हमारी जो कोशिका या क्रोमोसोम या जीन है वो उन लोगों से सम्बंधित हैं जो मर चुके हैं और जिनका अस्तित्व अब नहीं है। जिस प्रकार पानी में पत्थर फेंकते हैं तो पत्थर तो थोड़ी देर में गायब हो जाता है लेकिन उसके द्वारा उत्पन्न तरंगे काफी देर तक देखी जा सकती है। वैज्ञानिकों ने इसी तरंगीय पद्धति के समान पूर्वजों द्वारा छोड़ी गई सूचनाओं का अध्ययन किया है।
नृविज्ञानी उन विशेषताओं का अध्ययन करते हैं जो बच्चों में आनुवंशिक हैं और इससे उन्हें पता चलता है कि उनके माता-पिता में क्या विशेषताएं थीं। जीन हमारी विशेषताओं को नियंत्रित करती हैं। लेकिन आप जीन का अध्ययन किस प्रकार करते हैं। असल में आनुवंशिकी अन्वेषक उसकी संरचना, कार्यविधि और जीन का स्थानांतरण से संबंधित है। इस प्रकार इसके अंतर्गत तीन मुख्य क्षेत्रों मॉलीक्यूलर जेनेट्क्सि (Molecular genetics) यानी आण्विक आनुवंशिकी, ट्रांसमिशन जेनेट्क्सि (Transmission genetics) यानी स्थानांतरित आनुवंशिकी और पॉपुलेशन जिनेट्क्सि (Population genetics) यानी जनसंख्या आनुवंशिकी का अध्ययन किया जाता है।
आणिवक आनुवंशिकी के अंतर्गत डीएनए की संरचना का अध्ययन किया जाता है। स्थानांतरित आनुवंशिकी, आनुवंशिकी के अध्ययन की परंपरागत पद्धति है। यह एक बहुत प्राथमिक तरीका है जब हम कहते हैं कि दो भाईयों के घुंघराले बाल इसलिए हैं क्योंकि उनके माता-पिता के भी घुंघराले बाल हैं तो हम स्थानांतरित आनुवंशिकी की बात कर रहे होते हैं। नृविज्ञानी जीन मैप (Gene map) बनाते हैं। उसके द्वारा वह अध्ययन करते हैं कि जीन कहां से और किस प्रकार क्रोमोसोम में व्यवस्थित रहता है। विश्व का नक्षा भी उन्हें कोई संकेत देता होगा। वैसे जनसंख्या आनुवंशिकी नाम से यह पता लगता है कि यह भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों के विशाल समूहों के अध्ययन से सम्बंधित होगा।
स्थानांतरित आनुवंशिकी इस बात पर केंद्रित होती है कि किसी जनसंख्या में समय बीतने के दौरान जीन में होने वाला परिवर्तन किस प्रकार से सापेक्षिक आवृत्ति से कैसे संबंधित होता है। कुछ जीन तो अक्सर अधिक आवृत्ति से मिल जाते हैं जबकि शेष सामान्य होते हैं तथा कुछ जीन जनसंख्या में बढ़ते हैं या खत्म हो जाते हैं। यदि व्यक्ति उन जीन को संवाहित करता है जो जनसंख्या में परे जीन स्थानांतरित होते हैं जबकि यदि जनसंख्या में कोई उस जीन को संवाहित नहीं करता तो वह जीन जनसंख्या से खत्म हो जाता है। जीन एक जनसंख्या से दूसरी जनसंख्या में स्थानांतरित कैसे होती है इसे जीन फ्लो (Gene flow) द्वारा समझा जा सकता है।
विभक्त जनसंख्या अंतर-विवाह द्वारा संबंधित होती है। इसके परिणामस्वरूप जीनों के उपस्थित समूह में नई जीन प्रवेश करती है। इसे वैसे ही समझ सकते हैं जैसे कि दो नदियों मिलती हैं और अपना पानी एक-दूसरे से बांटती हैं। फिर यह पानी बाद में बहुत सी नहरों के रूप में बंट कर अलग-अलग राहों पर चल देता है। इसीलिए शादी समुदाय और परिवार में नई जीनों के आने का एक माध्यम है।
शादी नये जीनों को लाती हैं। यानी वधु जब दूसरे स्थान पर अपने ससुराल में जाती है जो वहां नए जीनों को प्रवेश कराती है। वैसे कुछ लोग लड़के को अधिक महत्व देते हैं क्योंकि उनके अनुसार लड़की तो शादी के बाद घर से चली जाएगी और लड़का तो परिवार में रहेगा जो वंश चलाएगा। लेकिन जीन के प्रसार से नृविज्ञान की दृष्टि से लड़कियों का महत्व किसी भी तरह लड़कों से कम नहीं है। शादी के बाद लड़की दूसरे घर का नाम ग्रहण करती है तो वह अपना डीएनए उन्हें देती है। वह अपने माता-पिता दोनों का डीएनए ग्रहण करती है और उसे साथ लिए होती है। उसके बच्चे चाहे लड़की हो या लड़का दोनों उसकी यह पैतृक डीएनए संपत्ति के अधिकारी होते हैं। शादी के बाद दूसरे परिवार का उपनाम ग्रहण करने के बाद भी उसके डीएनए खत्म नहीं हो जाते। यानी डीएनए सम्पत्ति कभी खत्म नहीं होती। यानी हमें डीएनए अपनी मां और उनकी मां से लेकर मेरी गुफाओं में रहने वाली पूर्वज मां से जोड़े हुए हैं।
हमारी प्रत्येक कोशिका हमारी मां से हमें मिली है जो उन्हें उनकी मां से मिली हुई हैं। इस प्रकार यह क्रम पूर्वजों तक जाता है। यानी हमें हमारे मातृपक्ष से विषिष्ट गुण मिले हैं। हमें हमारी मां से डीएनए मिले हैं। हमें उनसे क्रोमोसोम का अगुणित समुच्च मिला है। इसलिए हमारे आधे जीन हमें उनसे उपहार स्वरूप मिले हैं। लेकिन हमारी पर-पर-पर-मां यानी जो मेरी मातृपक्ष से सम्बंधित हैं हम उनका नाम तो जानते ही नहीं। जब शादी के बाद लड़की घर से चली जाती है तब हम भूल जाते हैं कि सभी महिलाएं उनके बच्चों को कुछ विशेषता प्रदान करती हैं जो अगुणित क्रोमोसोम समुच्चय से अलग होती हैं। यह उपहार केवल मातृपक्ष की तरफ से आता है। जोकि मां से लड़कों और लड़कियों में बराबर रूप से आता है। इस प्रकार हमारी मां से यह उपहार हमें और हमारे भाई-बहनों को बराबर रूप से मिला और उन्हें यह उपहार केवल अपनी मां से मिला यानी उनकी नानी से न कि मेरे नाना या दादाजी से।
हम जानते हैं कि निषेचन के दौरान केवल शुक्राणु नाभिक का डीएनए अण्डाणु नाभिक को भेदता है। यह शुक्राणु बहुत ही छोटा होता है जो वास्तव में अगली जनसंख्या तक अगुणित डीएनए को छोड़कर और कुछ स्थानांतरित नहीं करता। अण्डाणु जैवरासायनिक अभिक्रिया के लिए आवष्यक ऊर्जा उपलब्ध कराता है। यह ऐसा करने के लिए माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondria) यानी सूत्रकणिका का उपयोग करता है। माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिका का पावर हाउस यानी ऊर्जा घर भी कहा जाता है। अधिकतर डीएनए क्रोमोसोम में उनके नाभिकों में समाजित होते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया में उसके स्वयं के डीएनए की बहुत कम मात्रा भी होती है। आनुवंशिक सामग्री को माइटोकॉन्ड्रिया डीएनए के रूप में जाना जाता है। माइटोकॉन्ड्रिया डीएनए मातृपक्ष से आता है। समय के साथ डीएनए में आए परिवर्तन के अध्ययन के लिए इसका अवलोकन किया जाता होगा क्योंकि यह मादा-विशिष्ट डीएनए होता है जिसके समान कोई नर- विशिष्ट डीएनए नहीं होता है।
सामान्य तौर पर ‘वाय’ क्रोमोसोम पिता से पुत्र में स्थानांतरित होता है। ‘वाय’ क्रोमोसोम के जीन नर-विशिष्ट होते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया डीएनए और ‘वाय’ क्रोमोसोम के जीन लिंग आधारित संबंधों के अध्ययन को आसान बनाते हैं। सबसे अच्छा हिस्सा यह है कि ‘वाय’ क्रोमोसोम और माइटोकॉन्ड्रिया डीएनए दोनों में होने वाले परिवर्तन डीएनए में एक स्थान पर नियत होते हैं। इस प्रकार हम डीएनए का उपयोग एक घड़ी की भांति कर सकते हैं।
एक उदाहरण से हम यह समझने का प्रयास करते हैं। मान लो हम दस विभिन्न लोगों से लिए दस ‘वाय’ क्रोमोसोम का अध्ययन करते हैं फिर यदि हम कहते हैं कि सभी नमूनें ‘ए’ नाम के म्यूटेशन यानी उत्परिवर्तन रखते हैं। उनमें से केवल पांच क्रोमोसोम दूसरा उत्परिवर्तन ‘बी’ रखते हैं। तब हम कह सकते हैं कि उत्परिवर्तन ‘ए’ पहले देखा गया और उत्परिवर्तन ‘बी’ बाद में देखा गया। इसके साथ ही हम यह कह सकते हैं कि सभी दस व्यक्ति जो उत्परिवर्तन ‘ए’ के साथ क्रोमोसोम रखते हैं वो सीधे नर पूर्वजों से संबंधित हैं।
इसी प्रकार तार्किक दृष्टिकोण से, पहला व्यक्ति उत्परिवर्तन ‘बी’ का संवाहक होता है जो सीधे नर वंशज से नर के पूर्वजों से संबंधित था। लेकिन वह नर पूर्वजों से भी सीधे संबंधित था जो सभी नर उत्परिवर्तन ‘बी’ के संवाहक हैं। उत्परविर्तन की श्रृंखला इसी प्रकार होती है जो आणविक वंश परम्परा का निर्माण करती है जिसका हम अध्ययन करते हैं।
व्यक्तियों का अध्ययन करने के बाद हम परिवार का अध्ययन करते हैं फिर आप परिवार के समूहों या जनसंख्या का अध्ययन करते हैं। क्या आप राष्ट्रों के बाहर की जनसंख्या या समुदायों का भी अध्ययन करते हैं? क्या आपने भारत का भी अध्ययन किया है।
विभिन्न लोगों की त्वचा का रंग अलग-अलग गोरा, गहरा, सांवला होता है। हम भारतीयों के बाल सीधे, धुंधराले और लहरदार हैं। इसका कारण यह है कि यहां अफ्रीका से आने वाले आरंभिक जनसंख्या के बाद से ही विभिन्न प्रवासी लोगों के कई समूह एक के बाद एक आते रहे। यह बात तो सर्वमान्य है कि अफ्रीका से एशिया में मध्य लोगों का बिखराव या आगमन दस से बीस लाख वर्षों पहले हुआ लेकिन इसका आगमन किस रास्ते से हुआ इसको लेकर अनेक मत प्रचलित हैं। लेकिन यह सब एक दिन में घटित नहीं हुआ। ऐसा नहीं है कि सीधे अफ्रीका से एक ही यात्रा में यह सब घटित हुआ।
हम व्यक्तियों के प्रवास, उनकी पहचान और पौधों व जीवों की घरेलू उत्पत्ति को समझने के लिए डीएनए का उपयोग कर सकते हैं। कोशिकीय एवं आण्विक जीवविज्ञान केन्द्र यानी सेन्ट्रल ऑफ सेल्युलर एंड मॉल्युकुलर बॉयलोजी (Center of cellular and molecular biology) जिसे सीसीएमबी (CCMB) के नाम से भी जाना जाता है के वैज्ञानिकों ने अनुसार वर्तमान में भारत की जनसंख्या दो पूर्वज जनसंख्या ‘एएनआई’ और ‘एएसआई’ का मिश्रित मॉडल है। ‘एएनआई’ या ऐन्सिस्ट्रॅल नार्थ इंडियन (Ancestral north indian) यानी उत्तर भारतीय पूर्वज। उत्तर भारतीय पूर्वज आनुवाशिक रूप से मध्य पूर्वी, मध्य एशियाई और यूरोपियन से अधिक निकट हैं। और ‘एएसआई’ या ऐन्सिस्ट्रॅल साउथ इंडियन (Ancestral south indian) यानी दक्षिण भारतीय पूर्वज।
आज हम जानते हैं कि भारतीय जनसंख्या यूरोपियन, एशियन और अफ्रीकन जीनोम को रखती है। यह सब इसलिए संभव हो सका क्योंकि यहां लगातार मानव प्रवास होता रहा है। प्रत्येक नयी जनसंख्या अपने साथ नयी आनुवांशिक विविधता को लाई। जो समय बीतने पर उपस्थित जनसंख्या से मिल गई। इसके परिणामस्वरूप वर्तमान में भारत मानवीय विविधता का विशाल स्थान बन गया है।
यानी यह सब विभिन्न जनसंख्या के संकरण के कारण हुआ है और सभी लहरों को हम वर्तमान में उपस्थित भारतीयों के जीनों में पढ़ सकते हैं यानी हममें से प्रत्येक एक अदृश्य सूत्र में बंधा है जिससे हम एक विशाल परिवार का हिस्सा हैं। हाल ही में समाप्त हुए इंडियन जीनोम वेरिएशन प्रोजेक्ट (Indian genome variation project) यानी भारतीय जीनोम रूपान्तरण परियोजना के अध्ययन से भारत के आनुवंशिक विविधता का प्रतिनिधित्व करने वाली जनसंख्या में चिकित्सा के लिहाज से महत्वपूर्ण कई जीनों का अध्ययन किया गया।
इस अध्ययन से हमें इस बारे में एक संकेत मिलेगा कि हमारी कौन सी जीन असुरक्षित है। आशा है कि ऐसे अध्ययन से भविष्य में बीमारी की रोकथाम में मदद मिलेगी। आगे चलकर हम किसी विशिष्ट दवा की प्रभाव क्षमता को इस प्रकार से परिवर्तित कर सकेंगे जो हमारे शरीर में उस जीन के प्रति दवा के असर की निगरानी कर सके। असल में हम काफी दूर से जीन सहित प्रवास करते हुए आए हैं। हमारा आनुवंशिक पथ हमारे पीछे-पीछे उभरता गया है। चाहे जनसंख्या आनुवंशिक रूप से अलग-अलग हों लेकिन हमारा आधार और हमारी जड़ें हमें एक दूसरे से बांधे हुए हैं।
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ज्ञानवर्धक आलेख !!
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