Universe Facts in Hindi
विराट एवं प्रसारी ब्रह्माण्ड : एक परिचय
-प्रदीप कुमार
हम जानते हैं कि जिस पृथ्वी पर हम आवास एवं विचरण करते हैं, वह ब्रह्माण्ड तथा सौरमंडल का एक छोटा-सा भाग है। पृथ्वी सौर-परिवार का एक सदस्य हैं, जिसका मुखिया सूर्य हैं। सूर्य पृथ्वी पर जीवों की शक्ति का एक प्रमुख स्रोत है।
सौरमंडल का स्वामी होने के बावजूद सूर्य भी विशाल आकाशगंगा-दुग्धमेखला नाम की मंदाकिनी का एक साधारण और औसत तारा है। सूर्य 25 Km/S की गति से आकाशगंगा के केंद्र के चारों तरफ परिक्रमा करता है। आकाश-गंगा की एक परिक्रमा को पूरी करने में सूर्य को लगभग 25 करोड़ साल लगते हैं। 25 करोड़ साल की इस लम्बी अवधि को ब्रह्माण्ड-वर्ष या कॉस्मिक-इयर_Cosmic-Year के नाम से जाना जाता है।
पृथ्वी पर मनुष्य के सपूर्ण अस्तित्व-काल में सूर्य ने आकाश-गंगा की एक भी परिक्रमा पूरी नहीं की है। परन्तु कुछ चमकते पिंडो को ही देखकर मनुष्य की उत्कंठा शांत नही हुई। आज से सदियों पूर्व जब आज की तरह वैज्ञानिक तथा तकनीकी ज्ञान उपलब्ध नही था, फिर भी हमारे पूर्वजों ने उच्चस्तरीय वैज्ञानिक खोजें कीं। इनमें आर्यभट, टालेमी, अरस्तु, पाईथागोरस, भास्कर इत्यादि खगोल-विज्ञानियों के नाम अग्रणी हैं। इन खगोल-वैज्ञानिको ने सूर्य, पृथ्वी, चन्द्रमा, ग्रहों, उपग्रहों के गति का जो अध्ययन किया, वह आज भी तथ्यपरक एवं सटीक हैं। इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि खगोलशास्त्र विज्ञान की सबसे पुरानी शाखा है।
विज्ञान एवं तकनीकी विकास जितनी अधिक होता गया, उतनी ही मनुष्य की उत्सुकता बढ़ती चली गई। पहले इस शाखा को बहुत कम महत्व दिया जाता था क्योंकि ब्रह्माण्ड-विज्ञान के अध्ययन करने से न तो भौतिक लाभ होता था और न ही कोई आर्थिक मदद। लेकिन बीसवी सदी तक आते-आते यह शाखा अत्यंत उन्नत तथा मजबूत हो गई।
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जैसाकि हम जानते हैं कि ब्रह्माण्ड मन्दाकिनियो का अत्यंत विराट एवं विशाल समूह है। यहाँ पर यह प्रश्न उठना स्वाभाविक हैं कि इतना विराट ब्रह्माण्ड कब, कैसे और किससे उत्पन्न हुआ? ब्रह्माण्ड इतना विशाल क्यों है? यह कितना विशाल है? क्या यह गतिशील है या स्थिर? ब्रह्माण्ड में कुल कितना द्रव्यमान है? क्या इसका कुल द्रव्यमान सीमित है या अनंत? ब्रह्माण्ड कब तक फैलता रहेगा? ब्रह्माण्ड का भविष्य क्या होगा? इसका अंत कैसे होगा? वैगरह-वैगरह।
ब्रह्माण्ड से समन्धित उपर लिखित प्रश्नों के उत्तर पाना हमेशा से ही कठिन रहा है! कोई यह नहीं बता सकता कि ब्रह्माण्ड का पहले जन्म हुआ या फिर उसके जन्म देने वाला का? यदि पहले ब्रह्माण्ड का जन्म हुआ तो उसके जन्म से पहले उसका जन्म देने वाला कहाँ से आया? आपके समक्ष प्रस्तुत इस लेख में इन्ही मूल-प्रश्नों के उत्तर ढूढने की एक सामान्य तथा छोटी सी कोशिश की गई है।
ब्रह्माण्ड क्या है?
वास्तविकता में ब्रह्माण्ड के विषय में वैज्ञानिकों को भी बहुत कम जानकारी है। ब्रह्माण्ड के बारे में बहुत कुछ अनुमानों के आधार पर वैज्ञानिकों ने अपने मत प्रस्तुत किये हैं। रात में आकाश की ओर देखे तो दूर-दूर तक हमे तारे ही तारे दिखाई देते हैं। दरअसल यही आसमान ब्रह्माण्ड का एक छोटा -सा भाग हैं । पूरा ब्रह्माण्ड हमें दिखाई नहीं देता, यह इतना असीम है कि हमारी नज़रे वहाँ तक पहुँच ही नहीं सकतीं।
विश्व-प्रसिद्ध खगोलशास्त्री फ्रेड-होयल के अनुसार ब्रह्मांड सब-कुछ है। अर्थात् अंतरिक्ष, पृथ्वी तथा उसमें उपस्थित सभी खगोलीय पिण्डों, आकाशगंगा, अणु और परमाणु आदि को समग्र रूप से ब्रह्माण्ड कहते हैं। सब-कुछ समेट लेना ब्रह्माण्ड का एक विशेष गुणधर्म है। ब्रह्मांड से समन्धित अध्ययन को ब्रह्माण्ड-विज्ञान (Cosmology) कहते हैं।
ब्रह्मांड इतना विशाल हैं कि इसकी हम कल्पना नहीं नही कर सकते, अरबो-खरबों किलोमीटर लम्बा-चौड़ा मालूम होता है। ब्रह्माण्ड की दूरियाँ इतनी अधिक होती हैं कि उसके लिए हमें एक विशेष पैमाना निर्धारित करना पड़ा- प्रकाश वर्ष (Light Year)। दरअसल प्रकाश की किरणें एक सेकेंड में लगभग तीन लाख किलोमीटर की दूरी तय करती हैं। इस वेग से प्रकाश-किरणें एक वर्ष में जितनी दूरी तय करती हैं, उसे एक प्रकाश-वर्ष कहते हैं। इसलिए एक प्रकाश-वर्ष 94 खरब, 60 अरब, 52 करोड़, 84 लाख, 05 हजार किलोमीटर के बराबर होता है।
सूर्य हमसे 08 मिनट और 18 प्रकाश सेकेंड दूर है। तारों, ग्रहों और आकाशगंगाओं की दूरियां नापने के लिये एक और पैमाने का इस्तेमाल होता है, जिसे पारसेक कहते हैं। एक पारसेक 3.26 प्रकाश-वर्षों के बराबर है। सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी को एस्ट्रोनोमीकल-यूनिट या खगोलीय इकाई कहते हैं।
आधुनिक खगोलशास्त्र की दो शुरुआती अवधारणाएं
आधुनिक खगोलशास्त्र के विकास में जिन दो शुरुआती ब्रह्मांडीय सिद्धांतों ने योगदान दिया है, उनका संक्षिप्त विवरण निम्न है-
पहला भूकेंद्री सिद्धांत_Geocentric theory:- सन् 140 ई0 में टालेमी ने ब्रह्माण्ड का अध्ययन किया और निष्कर्ष में उन्होंने भू-केंद्री सिद्धांत प्रतिपादित किया। इस सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी ब्रह्माण्ड के केंद्र में स्थित है एवं सूर्य तथा अन्य ग्रह उसकी परिक्रमा करते हैं।
दूसरा सूर्यकेंद्र सिद्धांत_Heliocentric theory:- सन् 1543 में पोलैंड के पादरी एवं खगोलशास्त्री निकोलस कोपरनिकस (1473-1543) ने सूर्यकेंद्री सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इस सिद्धांत के अनुसार सूर्य ब्रह्मांड के केंद्र में स्थित है तथा पृथ्वी सहित अन्य ग्रह उसकी परिक्रमा कर रहे हैं। जोकि हमारे सौर-मंडल के लिये सत्य हैं!
जिस समय कोपरनिकस ने उपरोक्त सिद्धांत (सूर्य-केंद्री) दिया था, उस समय शायद पूरे विश्व (भारत तथा कुछ अन्य देशों को छोड़कर) में टालेमी और अरस्तु के सिद्धांत का बोलबाला था। टालेमी के सिद्धांत को धार्मिक रूप से भी अपना लिया गया था। अत: धार्मिक-प्रताड़ना के डर से कोपरनिकस ने अपने इस सिद्धांत को अपने अंतिम दिनों में पुस्तक के रूप में प्रकाशित करवाया। बाद में चर्च ने इस पुस्तक को जब्त कर लिया तथा इन विचारों को प्रचारित तथा प्रसारित करने से मनाकर दिया गया। बाद में किसी तरह से एक रोमन प्रचारक ज्योदार्न ब्रूनो को कोपरनिकस की पुस्तक हाथ लग गयी। उसने कॉपरनिकस के सिद्धांत का अध्ययन किया और समर्थन भी। ब्रूनो ने इस सिद्धांत का प्रचार पूरे रोम में कर दिया। कट्टरपंथी एवं धार्मिक रुढ़िवादियों के लिए यह असहनीय था। उन्होंने ब्रूनो को रोम में जिन्दा जला दिया!
आइन्स्टाइन ने अंतरिक्षीय अवधारणा को बदला
आइन्स्टीन से पहले समय को 'निरपेक्ष' माना जाता था। आइन्स्टाइन ने निरपेक्ष समय की अवधारणा को भी अस्वीकार कर दिया। उनका तर्क यह था की सभी प्रेक्षकों का अपना 'अब' होता है। समय निरपेक्ष है जिस समय प्रेक्षक 'अब' कहता है वह सारे ब्रह्मांड के लिए लागू नही होता है। एक ही ग्रह पर स्थित दो प्रेक्षक घड़ी मिलाकर या संकेत द्वारा अपनी निर्देश-पद्धति में समानता ला सकते हैं, लेकिन यह बात उनके सापेक्ष एक गतिशील प्रेक्षक के विषय में लागू नहीं हो सकती।
यदि आप एक अंतरिक्ष-यात्री हैं और आप पृथ्वी की घड़ियों के मुताबिक 50 साल की अंतरिक्ष-यात्रा पर जायें और इतनी तेज़ गति से यात्रा करें कि अंतरिक्ष-यान की घड़ियों के अनुसार केवल एक महीना ही लगे, तो जब आप अंतरिक्ष यात्रा से वापस लौटकर आओगे तब आप एक महीना ही ज्यादा बड़े लगेंगे। लेकिन पृथ्वी के लोग 50 साल बड़े हो जायेंगे। कल्पना कीजिये कि स्पेस-ट्रेवल पर जाते वक्त आप 30 साल के हो और आप छोटा बच्चा छोड़कर जायें तो लौटने पर सापेक्षता-सिद्धांत के मुताबिक आपका पुत्र (बच्चा) आपसे उम्र में 20 साल बड़ा होगा। यह बात हमें बहुत अजीब लगती है क्योंकि यह सामान्य-बुद्धि के विपरीत है।
स्थैतिक-ब्रह्माण्ड की अवधारणा
हम देखते हैं कि आकाश में न तो फैलाव होता और न ही संकुचन तो हम आकाश को स्थिर आकाश कहते हैं जोकि पूरे ब्रह्माण्ड के लिए लागू है। क्या सचमुच में यह पूरे ब्रह्माण्ड के लिए लागू है? परन्तु इसका अर्थ है कि ब्रह्माण्ड का आकार सीमित है तथा इसका कुल द्रव्यमान निश्चित एवं सीमित है। इस आधार पर कोई व्यक्ति यह मानेगा कि ब्रह्माण्ड का आकार बड़ा है इसलिए इसका द्रव्यमान अनंत हैं।
न्यूटन ने आकाश में साफ़-साफ़ अपने जगह पर स्थिर देखकर स्थिर ब्रह्माण्ड की परिकल्पना की, लेकिन तारों को अपनी जगह स्थिर रहने का कारण वे खोज नहीं पाए। लेकिन ठहरिये! यदि हम ब्रह्माण्ड को स्थिर (सीमित) मान लें, तो ब्रह्माण्ड के सीमा का अंत कहाँ पर है? इसके सीमा के अंत के पार क्या है? तो ब्रह्माण्ड के परिभाषा के अनुसार ''सबकुछ समेट लेना ब्रह्माण्ड का गुणधर्म हैं'' इसके हिसाब से इसके सीमा के अंत के पार को भी हमे ब्रह्माण्ड में शामिल कर लेना चाहिए?
इन सबके बावजूद सर्वकालीन महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टीन_Albert Einstein ने स्थिर तथा सीमित ब्रह्माण्ड की परिकल्पना को नहीं नकारा और उन्होंने इस बात पर यह तर्क दिया कि ब्रह्माण्ड का द्रव्यमान समयानुसार अपरिवर्तित मिनट रहता है। आइन्स्टीन को अपने गुरुत्व-क्षेत्र सिद्धांत में स्थिर ब्रह्माण्ड का कोई संकेत न मिलने के बावजूद उसके समर्थन में उन्होंने अपने ही समीकरण को संसोधित कर डाला। उन्होंने समीकरण में ब्रह्माण्डीय-नियतांक जोड़कर उसे परिवर्तित कर दिया ताकि उनके द्वारा जोड़ा गया ब्रह्माण्डीय नियतांक आकर्षण बल के विपरीत प्रतिकर्षण का काम करके ब्रह्माण्ड को स्थिर रख सके। बाद में उन्होंने स्वयं इसे गलत माना।
प्रसारी ब्रह्माण्ड
सन् 1922 में रुसी खगोलशास्त्री और गणितज्ञ अल्कजेण्डर फ्रीडमैन_Alexander Freedman ने अपने सैद्धांतिक खोजों के आधार पर पता लगाया कि आइन्स्टीन का स्थिर ब्रह्माण्ड की अवधारणा आस्वीकार्य है, परन्तु उन्होंने ब्रह्माण्ड के गतिशील होने की बात रखी और उन्होंने तर्क दिया कि ब्रह्माण्ड का स्थैतिक अवस्था में रहना नामुमकिन है। उन्होंने पाया कि आइन्स्टीन के समीकरणों के अनुसार ब्रह्माण्ड का द्रव्यमान बढ़ना चाहिये या घटना चाहिये पर यह समयानुसार सुनिश्चित नहीं रह सकता। उन्होंने पाया कि आइन्स्टीन का समीकरण स्थिर-ब्रह्माण्ड के समर्थन में कोई भी संकेत नही देता है। अत: फ्रीडमैन ने यह निष्कर्ष निकाला कि हमारा ब्रह्माण्ड स्थिर नहीं, गतिशील है।
फ्रीडमैन की खोज के लगभग 07 वर्ष बाद एडविन पी० हब्बल_Edwin P Hubble ने 1929 में ब्रह्माण्ड के विस्तारित होने के पक्ष में प्रभावी तथा रोचक सिद्धांत रखा। हब्बल ने ही हमें बताया कि ब्रह्माण्ड में हमारी आकाशगंगा की तरह लाखोँ अन्य आकाशगंगाएं भी हैं। उन्होंने अपने प्रेक्षणों से यह निष्कर्ष निकाला कि आकाशगंगाएं ब्रह्माण्ड में स्थिर नही हैं, जैसे-जैसे उनकी दूरी बढ़ती जाती हैं वैसे ही उनके दूर भागने की गति तेज़ होती जाती है।
इस तथ्य को एक ही तरह समझाया जा सकता है- यह मानकर कि आकाशगंगाएं बहुत बड़े वेग यहाँ तक प्रकाश तुल्य वेग के साथ हमसे दूर होती जा रही हैं। आकाशगंगाएं दूर होती जा रही हैं तथा ब्रह्माण्ड फ़ैल रहा हैं। यह डॉप्लर प्रभाव द्वारा ज्ञात किया गया हैं। सभी आकाशगंगाओं के वर्ण-क्रम की रेखाएँ लाल सिरे की तरफ सरक रही हैं यानी वे पृथ्वी से दूर होती जा रही हैं, यदि आकाशगंगाएं पृथ्वी के समीप आ रही होती हैं, तो बैगनी-विस्थापन होता है। अत: आज अनेकों तथ्य यह इंगित कर रहे हैं कि ब्रह्माण्ड प्रकाशीय-वेग के तुल्य विस्तारमान हैं ठीक उसी प्रकार जिस तरह हम गुब्बारे को फुलाते हैं तो उसके बिंदियो के बीच दूरियों को हम बढ़ते देखते हैं।
सन् 2011 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित तीन खगोल वैज्ञानिकों साउल पर्लमुटर_Saul Perlmutter, एडम रीज_Adam G. Riess और ब्रायन स्कमिड्ट_Brian P. Schmidt ने निष्कर्ष निकाला कि ब्रह्माण्ड के विस्तार की गति में त्वरण आ रहा है। यानी ब्रह्माण्ड समान नहीं बल्कि त्वरित गति से फ़ैल रहा है। इसके त्वरित होने का मुख्य कारण श्याम ऊर्जा है। यानी श्याम ऊर्जा ब्रह्माण्ड के विस्तार को गति प्रदान कर रही है।
हब्बल के निष्कर्ष के अनुसार किसी आकाशगंगा का वेग निम्न सूत्र द्वारा निकाला जा सकता है-
आकाशगंगा का वेग = ह्ब्बल-स्थिरांक x दूरी (V=Hxd)
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति कैसे हुई? इस प्रश्न के उत्तर स्वरूप वैज्ञानिको की अनोखी मान्यता है (यह ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का सबसे ज्यादा माना जाने वाला सिद्धांत है)। इस सिद्धांत को महाविस्फोट का सिधांत या बिग-बैंग के नाम से जाना जाता है। इस सिद्धांत का प्रतिपादन जार्ज लेमितरे (Georges Lemitre) नामक एक खगोलशास्त्री ने किया था।
सिद्धांत के अनुसार, प्रारम्भिक रूप से एक सेंटीमीटर के आकार की एक अत्यंत ठोस और गर्म गोली थी। अचानक एक विस्फोट के कारण यह सम्पूर्ण तक विस्फोटित होती चली गई। यह हमारा ब्रह्माण्ड उसी गोली में निहित था। इस महाविस्फोट से अत्याधिक गर्मी और सघनता फैलती चली गई। कुछ वैज्ञानिक मानते हैं यह महाविस्फोट 15 अरब वर्ष पूर्व हुआ था। इसी से सारे मूलभूत कणों (इलेक्ट्रान, प्रोटान, फोटान इत्यादि), उर्जा की उत्पत्ति हुई थी।
यह मत भी प्रकट किया गया कि मात्र एक सेकेंड के दस लाखवें भाग में इतना बड़ा विस्फोट हुआ और अरबों किलोमीटर तक फैलता चला गया। उसके बाद से इसका निरन्तर विस्तार होता रहा और इसका विस्तार कहाँ तक हुआ यह अनुमान लगाना सम्भव नहीं है।
ब्रह्माण्ड में सर्वप्रथम हीलियम तथा हाइड्रोजन तत्वों का निर्माण हुआ। यही कारण हैं कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में 90 प्रतिशत हाइड्रोजन तथा 08 प्रतिशत हीलियम पाया जाता है। शेष 02 प्रतिशत में अन्य सभी तत्व आते हैं।
लेकिन हमारे पास बिग-बैंग को मानने के क्या सबूत हैं? इसका सबसे बड़ा सबूत है हब्बल का नियम यानी सभी आकाशगंगाए हमसे दूर होती जा रही हैं, इसलिए अतीत में पूरे ब्रह्माण्ड का समस्त द्रव्य एक ही जगह पर एकत्रित रहा होगा।
बिग-बैंग हमें यह नहीं समझाता कि आकाशगंगाओं, ग्रहों तथा विशाल आकर के खगोलीय पिंडो की उत्पत्ति कैसे हुई? खगोल-विज्ञानियों के अनुसार आकाशगंगाओं, तारों, उल्कापिंडो इत्यादि की उत्पत्ति बिग-बैंग के लगभग एक करोड़ वर्ष बाद हुई। बिग-बैंग हमें यह भी नहीं समझाता कि यह महाविस्फोट आखिर क्यों हुआ?
ब्रह्माण्ड कब तक फैलता रहेगा? उसका फैलाव उसे कहाँ तक ले जायेगा?
वर्तमान में ब्रह्माण्ड के फैलाव तथा अंत के विषय में चार प्रमुख सम्भावनाएं व्यक्त की गई हैं।
1) महा-विच्छेद_The Big Rip:-
इस सम्भावना के अनुसार ब्रह्माण्ड तब तक विस्तारित होता रहेगा जब तक प्रत्येक परमाणु टूट कर इधर-उधर फ़ैल नही जायेगा। यह ब्रह्माण्ड के अंत का सबसे भयानक घटना होगी लेकिन ब्रह्मांड को इस अवस्था में देखने के लियें हम जीवित नही रहेंगे क्योंकि इस अवस्था तक पहुचने से पहले से हमारी आकाशगंगा, ग्रह और हम नष्ट हो चुके होंगे। वैज्ञानिकों के अनुसार यह घटना आज से लगभग 23 अरब बाद होगी।
2) महा-शीतलन_The Big Freeze:-
इस सम्भावना के अनुसार ब्रह्माण्ड के विस्तार के कारण सभी आकाशगंगाएँ एक दूसरे से दूर चले जायेंगी तथा उनके बीच कोई भी सम्बंध नहीं रहेगा। इससे नये तारों के निर्माण के लिये गैस उपलब्ध नहीं होगा। इसका परिणाम यह होगा कि ब्रह्माण्ड में उष्मा के उत्पादन में अत्याधिक कमी आयेगी और समस्त ब्रह्माण्ड का तापमान परम-शून्य_Absolute Zero तक पहुँच जायेगा। और महा-शीतलन के अंतर्गत हमारे ब्रह्माण्ड का अंत हो जायेगा। वैज्ञानिकों के अनुसार यह ब्रह्माण्ड के अंत की सबसे अधिक सम्भावित अवस्था है। कुछ भी हों लेकिन यह भी पूरी तरह से निश्चितता से नहीं कहा जा सकता कि इसी अवस्था से ब्रह्माण्ड का अंत होगा।
3) महा-संकुचन_The Big Crunch:- इस सम्भावना के अनुसार एक निश्चित अवधि के पश्चात् इसके फैलाव का क्रम रुक जायेगा और इसके विपरीत ब्रह्माण्ड संकुचन करने लगेगा अर्थात् सिकुड़ने लगेगा और अंत में सारे पदार्थ बिग-क्रंच की स्थिति में आ जायेगा। उसके बाद एक और बिग-बैंग होगा और दूबारा ब्रह्माण्ड का जन्म होगा। क्या पता कि हमारा ब्रह्माण्ड किसी अन्य ब्रह्माण्ड के अंत के पश्चात् अस्तित्व में आया हो?
4) महाद्रव-अवस्था_The Big Slurp:- इस सम्भावना के अनुसार ब्रह्माण्ड स्थिर अवस्था में नही है। और हिग्स-बोसॉन ने ब्रह्माण्ड को द्रव्यमान देने का काम किया है। जिससे यह सम्भावना है कि हमारे ब्रह्माण्ड के अंदर एक अन्य ब्रह्माण्ड का जन्म हो और नया ब्रह्माण्ड हमारे ब्रह्माण्ड को नष्ट कर देगा।
अब सवाल यह उठता है कि क्या हमने उपरलिखित सभी प्रश्नों के उत्तर पा लिया है? नहीं! हम किसी भी प्रश्न का संतोषजनक उत्तर नहीं ढ़ूंढ़ पाये हैं। इससे यह साबित होता है कि ब्रह्माण्ड के बारे मे कोई भी सिद्धांत संपूर्ण नहीं हैं। हब्बल के मत से खगोलशास्त्री आइजक असिमोव सहमत नहीं हैं। साथ-ही-साथ फ्रेड-होयल और भारतीय खगोलशास्त्री जयंत विष्णु नार्लीकर ने बिग़-बैंग तथा ब्रह्माण्ड के अंत से सम्बंधित कोई भी सिद्धांत सही नहीं माना है और इस पर उन्होंने अपना नया सिद्धांत प्रस्तुत किया है। शायद यही विज्ञान है, जो प्रश्नों के जवाब तो देता है किन्तु साथ ही नये प्रश्न भी खड़े कर देता है।
अधिक जानकारी के लिये पढ़ें:
1) A Brief History of Time, Stephen Hawking
2) विज्ञान-प्रगति, नवम्बर 2013 अंक
3) Cosmos, Carl Sagan
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लेखक परिचय: श्री प्रदीप कुमार यूं तो अभी दिल्ली के जी.बी.एस.एस. स्कूल में दसवीं के विद्यार्थी हैं, किन्तु विज्ञान संचार को लेकर उनके भीतर अपार उत्साह है। आपकी ब्रह्मांड विज्ञान में गहरी रूचि है और भविष्य में विज्ञान की इसी शाखा में कार्य करना चाहते हैं। वे इस छोटी सी उम्र में न सिर्फ 'विज्ञान के अद्भुत चमत्कार' नामक ब्लॉग का संचालन कर रहे हैं, वरन फेसबुक पर भी इसी नाम का सक्रिय समूह संचालित कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त आप 'साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन' के भी सक्रिय सदस्य के रूप में जाने जाते हैं।
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लेख को प्रकाशित करने के लियें धन्यवाद् :)
जवाब देंहटाएंलेखन शैली प्रभावी है प्रदीप। अच्छा लेख भी है।
जवाब देंहटाएंप्रदीप, (h)
जवाब देंहटाएंइतनी कम उम्र में इतना अच्छा लेख ! शाबाश !! बधाई और शुभकामनाएं। अपने हिन्दी भाषा-ज्ञान में थोड़ा-सा सुधार कर सको तो सोने पर सुहागा हो जाये।
जवाब देंहटाएंप्रदीप जी, आपने इस गूढ विषय को जितनी आसानी से सरल शब्दों में पिरो दिया है, वह अत्यंत प्रशंसनीय है। इस महत्वपूर्ण लेख के लिए ढ़ेरों बधाईयां। (h)
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंPradeep aapke dwara prakasit yah jankari bahut hi prabhavi hai.
जवाब देंहटाएंMjhe ye bhut zyada pasand aae h isse padne ke bad mere man me astrology ke liye aur bhi ruchi badh gai h
जवाब देंहटाएंyeh jankari mere bhut kam aae h thanks pradeep isse astrology me aur bhi zyada ruchi paida ho gai h mere ander
जवाब देंहटाएंmujhe kisi ne kaha antarichh (space) ek brahmand anek hai her brahmand me galaxi hai mandakini me akash ganga . unka khna hai jitane brahmand utani he pirthavi hai , ap ke is lekh se mai unko jabab de paunga
जवाब देंहटाएंआपका यह अदभुत्त लेख पढकर मजा आ गया. ऐसे ही लिखते रहें. बहुत बहुत शुभकामनाएं.
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