जयंत विष्णु नार्लीकर और उनकी विज्ञान कथाएं।
भारतीय विज्ञान कथाओं के क्षेत्र में जो यश जयंत विष्णु नार्लीकर के हिस्से में आया है, उतना किसी और को नहीं मिला। बहुत से लोग इसकी मुख्य वजह उनका वैज्ञानिक होना मानते हैं, लेकिन मेरे विचार में यह बात पूरी तरह से सच नहीं है। हालांकि उनका वैज्ञानिक होना इसकी एक अहम वजह तो है, लेकिन उनकी लोकप्रियता का एक प्रमुख कारण है उनकी कहानियों की शानदार पृष्ठभूमि, जो पाठक को सम्मोहित सी कर देती है।
जयंत विष्णु नार्लीकर ने प्रभूत मात्रा में विज्ञान कथाएं लिखी हैं। हालांकि वे मूल रूप में मराठी में विज्ञान कथाएं लिखते हैं, उनकी रचनाओं के अनुवाद अंग्रेजी और हिन्दी में सहज रूप में उपलब्ध हैं। चाहे साहित्य अकादेमी से प्रकाशित उनकी पुस्तक 'विस्फोट' हो या फिर भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित 'यक्षोपहार', सभी बेहद चर्चित रही हैं। और इस कड़ी में एक नया नाम जुड़ गया है विज्ञान प्रसार से प्रकाशित पुस्तक 'कृष्ण विवर और अन्य विज्ञान कथाएं' के रूप में।
जयंत विष्णु नार्लीकर का जन्म 19 जुलाई 1938 को कोल्हापुर, महाराष्ट्र में हुआ था। उनके पिता विष्णु वासुदेव नारलीकर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में गणित विभाग के अध्यक्ष थे, इसलिए उनकी शिक्षा-दीक्षा भी वहीं से हुई। उन्होंने 1963 में गणित में पी-एच.डी. की डिग्री हासिल की। बाद में खगोल-भौतिकी में उनकी रूचि बढ़ी और उनहोंने उसमें प्रवीणता हासिल की। उन्हें 1962 में 'स्मिथ पुरस्कार', 1967 में 'एडम्स पुरस्कार' प्राप्त हुए। वे 1963 से 1972 तक किंग्स कॉलेज के फेलो रहे और 1966 से 1972 तक इंस्टीट्यूट ऑफ थिओरेटिकल एस्ट्रोनामी के संस्थापक सदस्य के रूप में जुड़ रहे। उन्हें कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले, जिनमें भटनागर पुरस्कार, एमपी बिड़ला पुरस्कार तथा कलिंग पुरस्कार प्रमुख हैं। इसके अलावा उन्हें भारत सरकार द्वारा 1965 में 'पद्मभूषण' तथा 2004 में 'पद्मविभूषण' से भी सम्मानित किया गया।
विज्ञान प्रसार द्वारा प्रकाशति उनके सद्य प्रकाशित संग्रह 'कृष्ण विवर और अन्य विज्ञान कथाएं' में उनकी 14 विज्ञान कथाओं को संग्रहीत किया गया है, जिसमें उनकी चर्चित कहानियां कृष्ण विवर, नौलखा हार और धूमकेतु भी शामिल हैं। इनके अतिरिक्त संग्रह में शामिल विज्ञान कथाएं हैं: अंतिम विकल्प, दाईं सूंड के गणेशजी, टाइमस मशीन का करिश्मा, पुत्रवती भव, अहंकार, वायरस, ताराश्म, ट्राय का घोड़ा, छिपा हुआ तारा, विस्फोट एवं यक्षों की देन। यद्यपि उनकी एक अन्य चर्चित विज्ञान कथा 'हिम प्रलय' इस संग्रह में शामिल नहीं है, तथापि इसे एक तरह से नारलीकर की प्रतिनिधि विज्ञान कथाओं का संग्रह कहा जा सकता है।
आलोच्य संग्रह में शामिल रचनाओं में नौलखा हार, दाई सूंड के गणेशजी, पुत्रवती भव एवं ट्राय का घोड़ा बेहद रोचक कहानियां हैं। इसके अतिरिक्त अन्य रचनाएं भी विषय के स्तर पर विविधता लिए हुए हैं और पहले ही पैराग्राफ से पाठक को बांधने में सक्षम हैं।
विज्ञान प्रसार ने पिछले कुछ समय में हिन्दी में उत्कृष्ट विज्ञान विषयक पुस्तकों का प्रकाशन किया है, जो बेहद चर्चित रही हैं। मुझे आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि विज्ञान प्रसार द्वारा प्रकाशित पुस्तक 'कृष्ण विवर और अन्य विज्ञान कथाएं' भी भी पाठकों को बेहद पसंद आएगी और हिन्दी विज्ञान कथा साहित्य के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करेगी।
पुस्तक: कृष्ण विवर और अन्य विज्ञान कथाएं (पेपर बैक)
लेखक: जयंत विष्णु नार्लीकर
प्रकाशक: विज्ञान प्रसार, ए-50, इंस्टीट्यूशनल एरिया, सेक्टर-62, नोएडा-201309, ईमेल-info@vigyanprasar.gov.in
पृष्ठ: 286
मूल्य: 110 रू0
Narlikar da jawab nahi.
जवाब देंहटाएंJorawar singh
मेरे लिये तो भारत के एच.जी.वेल्स यही हैं!! साइंस फ़िक्शन का पर्याय डॉ. जयंत रहे हैं बचपन से हमारे लिये!!
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