हिन्दी में विज्ञान कथा की परम्परा यूं तो 100 साल से भी अधिक पुरानी है, किन्तु आज भी विज्ञान कथाकारों के नाम उंगलियों पर गिने...
हिन्दी में विज्ञान कथा की परम्परा यूं तो 100 साल से भी अधिक पुरानी है, किन्तु आज भी विज्ञान कथाकारों के नाम उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। जिस प्रकार हिन्दी की प्ररम्भिक विज्ञान कथाएं (आश्चर्य वृत्तांत-अम्बिका दत्त व्यास, 1884-88 एवं चंद्रलोक की यात्रा-केशव प्रसाद सिंह, 1900) पाश्चात्य विज्ञान कथाकारों की रचनाओं से प्रभावित रहीं और हिन्दी की मौलिक विज्ञान कथा (आश्चर्यजनक घण्टी- सत्यदेव परिव्राजक, सन 1908) के सामने आने में काफी समय लगा, उसी प्रकार आज भी विज्ञान कथाएं तो यत्र-तत्र देखने को मिल जाती हैं, किन्तु मौलिक और प्रभावी विज्ञान कथाओं को पढ़ने के लिए काफी इंतजार करना पड़ता है।
ऐसे परिप्रेक्ष्य में ‘कुंभ के मेले में मंगलवासी‘ नामक विज्ञान कथा संग्रह का सामने आना एक सुखद अनुभूति है। इस विज्ञान कथा संग्रह के लेखक डॉ0 अरविंद मिश्र विज्ञान कथा के चर्चित हस्ताक्षर हैं और सम्प्रति भारतीय विज्ञान कथा लेखक समिति के सचिव भी हैं। आलोच्य संग्रह नेशनल बुक ट्रस्ट जैसे प्रतिष्ठित संस्थान से प्रकाशित हुआ है, जो देश के कोने-कोने में अपनी पहुंच और पुस्तकों को कम दाम पर जन-जन तक पहुंचाने के लिए जाना जाता है।

इसके साथ ही मनुष्य की शैशवावस्था को शीघ्र पूरा करने की जुगत (अलविदा प्रोफेसर), अपने जातीय पहचान को अमर करने की ललक (अमरा वयम), वैज्ञानिक खोजों की सीमाओं (आगत अतीत) और जीन प्रौद्योगिकी के खतरों (अन्नदाता) सहित सामाजिक अपराधों और उनका निवारण (अन्तर्यामी) और मानव मन की जिज्ञासाओं (स्पप्नभंग) को भी रोचक कथानकों से कहानियों में पिरोया गया है।
इन कहानियों में जो चीज सबसे ज्यादा आकर्षित करती है, वह है सांस्कृतिक प्रतीकों और पौराणिक घटनाओं का कुशलतापूर्वक उपयोग। हो सकता है इस बिन्दु को लेकर लेखक पर यह आक्षेप भी लगाए जाएं कि कहीं यह विज्ञान पर धर्म की श्रेष्ठता को स्थापित करने का प्रयत्न तो नहीं, पर बावजूद इसके यह कहानियां पाठकों को बांधती हैं, उनका मनोरंजन करती हैं, उनका ज्ञानवर्द्धन करती हैं, उन्हें बेधती हैं और कई बार सोचने के लिए भी विवश करती हैं। यह डॉ0 मिश्र की अपनी विशिष्ट शैली है, जो अन्यत्र बहुत कम देखने को मिलती है।
इससे पूर्व भी डॉ0 मिश्र प्रणीत ‘एक और क्रौंचवध‘ तथा ‘राहुल की मंगल यात्रा‘ विज्ञान कथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं और विज्ञान कथा प्रेमियों में काफी सराहे गये हैं। आलोच्य विज्ञान कथा संग्रह उसी कड़ी की एक अभिनव प्रस्तुति है, जो लम्बे समय तक एक श्रेष्ठ प्रतिनिधि भारतीय विज्ञान कथा संग्रह के रूप में अपनी पहचान बनाए रखेगा .
नेशनल बुक ट्रस्ट ने अपनी ख्याति के अनुरूप पुस्तक को शानदार कलेवर में प्रस्तुत किया है और मात्र 55 रुपये में इसे उपलब्ध कराकर विज्ञान कथा प्रेमियों को एक शानदार तोहफा प्रदान किया है। इस रोचक कथा संग्रह के लिए लेखक और प्रकाशक दोनों ही बधाई के पात्र हैं।
पुस्तक- कुंभ के मेले में मंगलवासी
लेखक- डॉ. अरविंद मिश्र
प्रकाशक- नेशनल बुक ट्रस्ट, नेहरू भवन, 5, वसंत कुंज, इंस्टीट्यूशनल एरिया, फेज-2, नई दिल्ली-110070
पृष्ठ सं.- 69
मूल्य- रू. 55 मात्र।
वाह तीसरी किताब छपने की बधाई. मिसिरजी को.
जवाब देंहटाएंपरिचय अच्छा लिखा.
आभार शुकुल जी -इन दिनों कहाँ खोये हैं हुज़ूर ?
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जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन आठ साल का हुआ ट्विटर - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
इस सुंदर विज्ञान कथा संग्रह के लिए अरविंद मिश्र जी को हार्दिक बधाई।
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