बाएं से दाएं: श्री प्रदीप श्रीवास्तव, श्री आई.डी. राम, श्री आर.डी. गौड़, श्री निमिष कपूर गणित हौवा नहीं जीवन का हिस्सा है बच्चों से ले...
बाएं से दाएं: श्री प्रदीप श्रीवास्तव, श्री आई.डी. राम, श्री आर.डी. गौड़, श्री निमिष कपूर |
गणित हौवा नहीं जीवन का हिस्सा है
बच्चों से लेकर वयस्कों तक गणित के प्रति एक उदासीनता है। स्कूली बच्चों में तो गणित का हौवा रहता ही है पर वयस्क भी गणित को दूर की कोड़ी समझकर उससे दूर भागते हैं। पर क्या गणित के बिना हम आधुनिक जिंदगी की कल्पना भी कर सकते हैं? और क्या गणित को समझना वाकई मुश्किल है। इन्हीं सब सवालों के जवाब मीडिया के द्वारा जनता तक पहुंचाने के लिए विज्ञान प्रसार व राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद (एनसीएसटीसी) द्वारा लखनऊ के प्रेस क्लब में मीडिया कर्मियों के लिए गणित और विज्ञान के प्रसार विषय पर एक सेमिनार/वर्कशाप आयोजित किया गया। सेमिनार में गणित के महत्व और उसे आम जनों, बच्चों तक आसान भाषा व रोचक उदाहरणों के साथ लिखने के तरीकों पर भी चर्चा की गई। महान गणितज्ञ रामानुजन की 125वीं वर्षगांठ को यादगार बनाने के लिए भारत सरकार ने 2012 को राष्ट्रीय गणितीय वर्ष घोषित किया है। इसके तहत विज्ञान प्रसार और एनएसटीसी द्वारा विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे है। इन्हीं कार्यक्रमों का हिस्सा है ये मीडिया वर्कशाप।
वर्कशॉप का उदघाटन करते हुए मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडे ने कहा कि हम गणित की पढ़ाई को जिंदगी से जुड़े उदाहरणों से नहीं जोड़ पाते। किसी भी विषय में मौलिक चीजों को समझना जरूरी होता है। गणित भी ऐसी ही मौलिक चीज है। गिनती का ज्ञान शिक्षा के पहले चरण से ही शुरु हो जाता है।
उत्तर प्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के संयुक्त निदेशक डा. आई. डी. राम ने कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए कहा कि गणित जैसे महत्वपूर्ण विषय पर यहां पहली बार बात हो रही है। किसी भी टेक्नॉलाजी की शुरुआत गणित से होती है। उन्होंने कहा कि हम हर बच्चे को गणित के महत्व की जानकारी देना चाहते हैं। इसके लिए हम तरह-तरह की प्रतियोगिताएं करवा रहे हैं। बच्चों को साइंस किट दे रहे हैं। उन्होंने मीडिया से अपील की कि मीडिया गणित-विज्ञान के प्रचार-प्रसार में अपना योगदान दे।
वैज्ञानिक डा. सी एम नौटियाल ने कहा कि विज्ञान और गणित बचपन से ही डराते हैं। मीडिया की जिम्मेदारी है कि वो इन विषयों की जानकारी आकर्षित तरीके से लोगों तक पहुंचाए ताकि लोग समझे और उनका डर दूर हो। उन्होंने कहा कि मीडिया की आंकडों संबंधित रिर्पोटिंग भी गणित के बगैर पूरी नहीं होती। सर्वें संबंधित जानकारी का इस्तेमाल करते वक्त मीडिया कर्मियों को आंकड़ों की तह तक जाना चाहिये। आंकड़ें कई बार सही सच्चाई बयान नहीं करते, भटकाते है। अपनी प्रेजेंटेशन दिखाते हुए उन्होनें संभावना के नियम पर बात की और महान गणितज्ञ रामानुजन की उपलब्धियों पर भी प्रकाश डाला।
विज्ञान-गणित संबंधित कार्टून बनाने के लिए विख्यात प्रदीप श्रीवास्तव ने गणित के सवालों-समस्याओं को आसानी से समझाने वाले कार्टून दिखाए। उन्होंने कहा कि आकर्षक कार्टूनों के जरिये गणित को आसानी से समझाया जा सकता है। विज्ञान आधारित कार्टून की अपनी इस कला को उन्होंने सांइटून का नाम दिया है।
विज्ञान प्रसार के वैज्ञानिक निमिष कपूर ने कहा कि बच्चों को शुरु से ही गणित को रटवाने की बजाय उसे समझाकर सिखाना आवश्यक है। केवल मौखिक निर्देश काफी नहीं है। अध्यापक की जटिल भाषा बच्चों को समझ नहीं आती और डर से बच्चा कुछ पूछ नहीं पाता जिसका नतीजा होता है कि बच्चे के लिए गणित फोबिया बन जाता है। बच्चों को इस स्थित से निकालने के लिए उनके मानसिक स्तर के अनुसार उन्हें समझाया जाए। श्री निमिष ने बताया की अध्यापक अक्सर सोचते है कि बच्चों में समझने की छमता नहीं है। परिणामस्वरूप बच्चा गणित से डरने लगता है। अतः अघ्यापकों के पढ़ाने के तरीकों पर भी लिखा जाना चाहिये ताकि छात्र व अध्यापक के बीच के फासले को कम किया जा सके।
समाज सेविका डा. नूतन ठाकुर ने अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए कहा कि गणित संबंधित इस तरह की जानकारी जैसी कि आज दी जा रही है हमारे समय में होती तो आज मेरी स्थित अलग होती। उन्होंने कहा कि अभाव में पलने-पढ़ने वाले बच्चों में भी प्रतिभा होती है बस जरूरत है उन्हें मौका व सुविधाएं देने की।
सेवानिवृत आई ए एस अधिकारी आर पी शुक्ला ने विचार करते हुए कहा कि मुझे बचपन में जो गणित का डर था यदि वो निकल गया होता तो मैं आज ऐसा होता या नहीं होता या बेहतर जगह पर होता। उन्होंने कहा सिमिट्री मे होने से चीजों का सौंदर्य बढ़ता है। पेंटिंग, मूर्तिकला में गणित भरपूर तरीके से भरा हुआ है।
उत्तर प्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्यागिकी परिषद के वरिष्ठ वैज्ञानिक आर डी गौड़ ने कहा कि कोई भी विषय डरावना नहीं होता। जरूरत है हमें विषय को समझने की। यदि हम किसी विषय को खेल की तरह लेते हैं तो वह सरल हो जाता है।
विज्ञान संचारक डा. जाकिर अली रजनीश ने कहा कि गणित हमारे रोजमर्रा के जीवन से जुडा हुआ है। राजा एवं सेता की गणित संबंधित एक दिलचस्प कहानी का उदाहरण देते हुए उन्होंने गणित की आवश्यकता और उसके महत्व के बारे में बताया। उन्होंने अफवाहों के गणित को भी समझाया व कहा कि यदि हम व्यवहारिक होगें, तर्कशील होंगे और गणित को समझेगें तो ‘आदमी सोते हुए पत्थर बन जाएगा और गणेशजी की मूर्ति को दूध पिलाया जा सकता है’ जैसी अफवाहों से बच सकते हैं।
वर्कशॉप का उदघाटन करते हुए मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडे ने कहा कि हम गणित की पढ़ाई को जिंदगी से जुड़े उदाहरणों से नहीं जोड़ पाते। किसी भी विषय में मौलिक चीजों को समझना जरूरी होता है। गणित भी ऐसी ही मौलिक चीज है। गिनती का ज्ञान शिक्षा के पहले चरण से ही शुरु हो जाता है।
उत्तर प्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के संयुक्त निदेशक डा. आई. डी. राम ने कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए कहा कि गणित जैसे महत्वपूर्ण विषय पर यहां पहली बार बात हो रही है। किसी भी टेक्नॉलाजी की शुरुआत गणित से होती है। उन्होंने कहा कि हम हर बच्चे को गणित के महत्व की जानकारी देना चाहते हैं। इसके लिए हम तरह-तरह की प्रतियोगिताएं करवा रहे हैं। बच्चों को साइंस किट दे रहे हैं। उन्होंने मीडिया से अपील की कि मीडिया गणित-विज्ञान के प्रचार-प्रसार में अपना योगदान दे।
वैज्ञानिक डा. सी एम नौटियाल ने कहा कि विज्ञान और गणित बचपन से ही डराते हैं। मीडिया की जिम्मेदारी है कि वो इन विषयों की जानकारी आकर्षित तरीके से लोगों तक पहुंचाए ताकि लोग समझे और उनका डर दूर हो। उन्होंने कहा कि मीडिया की आंकडों संबंधित रिर्पोटिंग भी गणित के बगैर पूरी नहीं होती। सर्वें संबंधित जानकारी का इस्तेमाल करते वक्त मीडिया कर्मियों को आंकड़ों की तह तक जाना चाहिये। आंकड़ें कई बार सही सच्चाई बयान नहीं करते, भटकाते है। अपनी प्रेजेंटेशन दिखाते हुए उन्होनें संभावना के नियम पर बात की और महान गणितज्ञ रामानुजन की उपलब्धियों पर भी प्रकाश डाला।
विज्ञान-गणित संबंधित कार्टून बनाने के लिए विख्यात प्रदीप श्रीवास्तव ने गणित के सवालों-समस्याओं को आसानी से समझाने वाले कार्टून दिखाए। उन्होंने कहा कि आकर्षक कार्टूनों के जरिये गणित को आसानी से समझाया जा सकता है। विज्ञान आधारित कार्टून की अपनी इस कला को उन्होंने सांइटून का नाम दिया है।
विज्ञान प्रसार के वैज्ञानिक निमिष कपूर ने कहा कि बच्चों को शुरु से ही गणित को रटवाने की बजाय उसे समझाकर सिखाना आवश्यक है। केवल मौखिक निर्देश काफी नहीं है। अध्यापक की जटिल भाषा बच्चों को समझ नहीं आती और डर से बच्चा कुछ पूछ नहीं पाता जिसका नतीजा होता है कि बच्चे के लिए गणित फोबिया बन जाता है। बच्चों को इस स्थित से निकालने के लिए उनके मानसिक स्तर के अनुसार उन्हें समझाया जाए। श्री निमिष ने बताया की अध्यापक अक्सर सोचते है कि बच्चों में समझने की छमता नहीं है। परिणामस्वरूप बच्चा गणित से डरने लगता है। अतः अघ्यापकों के पढ़ाने के तरीकों पर भी लिखा जाना चाहिये ताकि छात्र व अध्यापक के बीच के फासले को कम किया जा सके।
समाज सेविका डा. नूतन ठाकुर ने अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए कहा कि गणित संबंधित इस तरह की जानकारी जैसी कि आज दी जा रही है हमारे समय में होती तो आज मेरी स्थित अलग होती। उन्होंने कहा कि अभाव में पलने-पढ़ने वाले बच्चों में भी प्रतिभा होती है बस जरूरत है उन्हें मौका व सुविधाएं देने की।
सेवानिवृत आई ए एस अधिकारी आर पी शुक्ला ने विचार करते हुए कहा कि मुझे बचपन में जो गणित का डर था यदि वो निकल गया होता तो मैं आज ऐसा होता या नहीं होता या बेहतर जगह पर होता। उन्होंने कहा सिमिट्री मे होने से चीजों का सौंदर्य बढ़ता है। पेंटिंग, मूर्तिकला में गणित भरपूर तरीके से भरा हुआ है।
उत्तर प्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्यागिकी परिषद के वरिष्ठ वैज्ञानिक आर डी गौड़ ने कहा कि कोई भी विषय डरावना नहीं होता। जरूरत है हमें विषय को समझने की। यदि हम किसी विषय को खेल की तरह लेते हैं तो वह सरल हो जाता है।
विज्ञान संचारक डा. जाकिर अली रजनीश ने कहा कि गणित हमारे रोजमर्रा के जीवन से जुडा हुआ है। राजा एवं सेता की गणित संबंधित एक दिलचस्प कहानी का उदाहरण देते हुए उन्होंने गणित की आवश्यकता और उसके महत्व के बारे में बताया। उन्होंने अफवाहों के गणित को भी समझाया व कहा कि यदि हम व्यवहारिक होगें, तर्कशील होंगे और गणित को समझेगें तो ‘आदमी सोते हुए पत्थर बन जाएगा और गणेशजी की मूर्ति को दूध पिलाया जा सकता है’ जैसी अफवाहों से बच सकते हैं।
रिपोर्ट: श्री वाई.एस. गिल
keywords: Mathematics and Science Communication, magical maths, magical mathematics, ganit ka hauwwa, math workshop
यह अच्छा और समसामयिक कार्यक्रम...गणित तर्क से जुड़ा विषय है, उसकी सिद्धि ज्ञान की व्यापकता के बगैर संभव नहीं. आधुनिक दर्शन की कई शाखाएं जो स्वयं को विज्ञानवादी कहती हैं, गणित से प्रेरित हैं. भारत में न्याय और वैशेषिक दर्शनों को गणित के बोध के बगैर समझ पाना बड़ा कठिन है. इस बहस सभी ने गणित के आरंभिक अध्ययन को रुचिकर बनाए जाने की बात कही है. ऐसा होना चाहिए...परंतु केवल यही पर्याप्त नहीं. हमें अपने सोच और जीवनदृष्टि को भी तर्कप्रधान बनाना होगा.
जवाब देंहटाएंकृपया, गणित से सम्बंधित कोई ऐसी पुस्तक अथवा रिसोर्स बताएं जिसमें रोचक तरीके से पढ़ाया गया हो, जिस साइंस किट की आप बात कर रहे हैं, उसमें क्या-क्या है और कैसे हमें मिल सकती है?
जवाब देंहटाएंक्या इस तरह की वर्कशॉप हम अपने शहर में करवा सकते हैं, उसके लिए क्या-क्या रिसोर्स चाहिए? धन्यवाद
योगेन्द्र जी, ये किट Council of Science & Technology U.P. उपलब्ध कराती है, उसके लिए आप यहां से सम्पर्क कर सकते हैं: http://cstup.gov.in/index.htm
हटाएंजहां तक गणित पर रोचक पुस्तकों की बात है, इस विषय पर मीर प्रकाशन मास्को से या0इ0 पेरेलमान की पुस्तक का हिन्दी अनुवाद 'सरस गणित' के नाम से तथा या0 पेरेलमान की पुस्तक का हिन्दी अनुमवाद 'मनोरंजक बीजगणित' के नाम से छपा है। ये बहुत ही उपयोगी पुस्तकें हैं। इस प्रकाशन में सहयोग पीलुल्स पब्लिशिंग हाउस प्रा0 लि0, 5 ई, रानी झांसी रोड, नई दिल्ली-110055 तथा राजस्थान पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस प्रा0 लि0 चमेलीवाला मार्केट, एम0आई0 रोड, जयपुर-302001 का भी रहा था। हालांकि ये पुस्तकें 1982 में छपी थीं, (इनके द्वितीय संस्करण 1990 की प्रतियां मेरे पास हैं) शायद ये अब भी उपलब्ध हो जाएं।
हटाएंइनके अतिरिक्त प्रवीण कुमार बंद्रवाल की दो पुस्तकें 'गणित संख्याओं का खेल' एवं 'गणित के मौलिक रूप' ब्लू वेल पब्लिकेशन्स, 50, चाहचंद, जीरो रोड, इलाहाबाद-211003 से छपी हैं। आप उनसे भी सम्पर्क कर सकते हैं।
'गणित संख्याओं का खेल' पुस्तक में प्रकृति का आधार: गणित, तीव्र गणितय तर्क, संख्याओं के बने शब्द, गणितीय संख्याओं का शब्द संयोजन, संख्या को चिन्हित रूप देना, द्वि-आधारीय संख्या प्रणाली, शून्य की स्थापना, अनन्त की विशालता, प्राकृतिक संख्याओं की गहनता, प्राकृतिक संख्याएं, त्रिभुजीय संख्याएं, परिपूर्ण संखएं एवं स्वयंभू संख्याएं, विभाजन संख्याएं, अभाज्य संख्याएं, भाग की जांच, माया वर्ग और उसकी सम्पूर्णता, माया कृतियां, आरेखों की भिन्नता अध्याय समाहित हैं,
जबकि 'गणित के मौलिक रूप' पुस्तक में श्रेष्ठ बीजगणितज्ञ : आर्यभट प्रथम, आर्यभट की अंक बताने की प्रणाली, आर्यभटीय में ज्यामिति और त्रिकोणमिति, पाइथगोरस प्रमेय का निरूपण, आर्यभट द्वारा वर्ग समीकरण के हल, गणित की श्रेढि का हल, आर्यभट प्रथम और कुटटकार की धारणा, भाजक में भाज्य अधिक होने पर कुटटकार, वर्ग समीकरण का हल, वर्ष के किसी दिन की लम्बाई निकालने का नियम, ज्यामितिक संक्रियाएं, वृत्त को बांटना, भुजा पर वर्ग बनाना, भुजाओं का आयत बनाना, समद्वबाहु समलंब चतुर्भुज बनाना, क्षेत्रों का मिलाया जाना, आयत को वर्ग में बदलना, 108 वर्ग पद क्षेत्रफल वाला वर्ग बनाना, 324 वर्ग पद क्षेत्रफल वाला समद्वबाहु समलंब चतुर्भुज बनाना, बोधायन का प्रमेय, वृत्त को वर्ग मं बदलना, अंडररूट 2 का मूल्य, संख्या का गणित, धातांक, करणी, बीजीय व्यंजक और बहुपद, बीजीय व्यंजक और संक्रियाएं, गुणनफल तथा गुणनखंड, रेखिक समीकरण, द्विघात समीकरण और संख्या प्रतिरूप अध्याय समाहित हैं।
सार्थक पोस्ट जानकारी सहित आभार
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट जानकारी सहित आभार
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रयास।
जवाब देंहटाएंPoori report padhi...ganit vastutah humare dainik jeevan ka hissa hai..ganit ke bina jeevan ka koi bhi adhyaay poorn nahi hai...yah humare jeevan ki avashyakta hai.. Bachpan main ginti se lekar bade hone par dinik jeevan ke prtyek hisse mai
जवाब देंहटाएंn ganit ka samavesh hai..
Jeevan ka jo 'ank-ganit' hai...
Usme sukh-dukh ka lekha...
Ek baant kar badhta, dooja....
Kam hote maine dekha...
Saadar...
Deepak Shukla
माशाअल्लाह, ज़ाकिर भाई आप इतना सब कुछ कैसे कर पाते हैं? आप की सक्रियता मुझे प्रेरणा देती है.
जवाब देंहटाएं(वाया फेसबुक)
गणित से डर बचपन में हो जाता है विद्यार्थियों को ... और चलता रहता है साथ ही ... जबकि ये रोज मर्रा का हिस्सा है ...
जवाब देंहटाएंगणित को लोकप्रिय बनाना भी शिक्षकों के हाथ में है .कथा सुनिए हमारी आप बीती .नौंवी दसवी कक्षा पास की मुस्लिम हाई स्कूल बुलंदशहर से .गणित के कोई शिक्षक ही नहीं थे स्कूल में .जीवविज्ञान का भी यही हाल था .हमें गणित में चार अंकों का ग्रेस मार्क मिला .थर्ड डिविजन में पास हो गए .
जवाब देंहटाएंइंटर साइंस की डी ए वी इंटर कोलिज बुलंद -शहर से ,एक से एक आला टीचर थे ,केमिस्ट्री के ,हिंदी के अंग्रेजी के उनके चेहरे अभी भी याद हैं जस के तस लेकिन गणित में ज्या और कोज्या,स्पर्शज्या ,कोटाज्या ही याद है और कुछ नहीं ,कोई याददाश्त नहीं उस शख्श की .फिर हमारी उम्र भी कम थी .हिंदी साहित्य से अनुराग था ,अंग्रेजी से प्यार था और रसायन विज्ञान में दीवानगी .गणित में हाथ तंग था .
५२ %अंक मिले गणित में .रसायन में ६९ % ,अंग्रेजी साहित्य में ५६ % ,साहित्य हिंदी में ६२ % .
एम. एससी (फिजिक्स )करनी पड़ी ऐसा आदेश मामा का था जिनकी परवरिश में हमें सागर विश्व -विद्यालय में चार बरस पढने का सौभाग्य मिला .यहाँ भी एक से बढ़के एक वन्दनीय शिक्षक थे .गणित में वही ५२ % अभी भी ,कोर्डिनेटज्योमेट्री कभी समझ न आई .अलबत्ता डिफ़रेंशियल केलकुलस ने लाज बचाई .पी एल श्रीवास्तव साहब की बहुत याद आई .इनफिनिटी इज ए डेविल ,डोंट प्ले विद इनफिनिटी .
समझाया उन्होंने एक होटल में इनफाईनाईट कमरे हैं .सब के सब भरें हैं .एक आता है -साहब कमरा चाहिए .ज़वाब मिलता है कोई कमरा खाली नहीं .इसके बाद आता है एक वीआईपी .कमरा उसे मिलता है अनन्त की अवधारणा की बदौलत .अब होटल में अनंत कमरे तो थे ही सो ज़नाब कमरा नम्बर १ को दो में भेज कमरा नम्बर वीआईपी को दे दिया गया .दो वाले को तीन में ,तीन वाले को चार में ,चार वाले को पांच में एंड सो आन अपटू इनफिनिटी .
गणित में जब तक अवधारणायें स्पस्ट नहीं होंगी रूचि बनेगी नहीं .Indeterminate क्या है किसी ने नहीं समझाया 0.00 या फिर यह कह देने से कैसे काम चले कि o/o या infinity /infinity intdeterminant /indeterminate हैं .
अरे भई समझाओ जो कार्य -कारण सम्बन्ध /काज एंड इफेक्ट ,से परे है जिसकी प्रागुक्ति नहीं की जा सकती ,भविष्य कथन से जो परे है ,जिसकी सीमा और संभावनाओं का बोध न हो जैसे इस पौधे पर तब तक फूल आते रहेंगे जब तक की फसल को पाला ही न मार जाए .ये बीज फलता ही रहेगा जब तक सत्यानाशी का बीज न हो (Terminator seed ) न हो .
बहुत दुःख के साथ लिख रहा हूँ गणित के शिक्षण में आज भी कमियाँ हैं .दो और दो हमेशा चार नहीं होते .
c+c =c
c is the speed of light in vacuum .Light travels as fast as it travels .If two Einstinian trains cross each other with speed c there relative speed will be still c .Nothing can be added to the speed of light .It is the natural speed limit .But why ?what is an hypothesis when it becomes a law or theory ?Explain it .Why c is constant .ये गणित है मानस का पाठ नहीं जो आँख मीच के सुन लो कंठस्थ कर लो :होहिये वही जो राम रचि राखा ,कोकरी तर्क बढ़ावे साखा .
ram ram bhai
सोमवार, 10 सितम्बर 2012
आलमी हो गई है रहीमा शेख की तपेदिक व्यथा -कथा (आखिरी से पहली किस्त )
ये आपका लेख बहुत ही काम का है । काश ऐसे प्रयास तब भी होते जब हम स्कूल में थे । सरकारी स्कूलों में ऐसे किट बच्चों के बडे काम आयेंगे ।
जवाब देंहटाएंगणित को लोकप्रिय बनाना भी शिक्षकों के हाथ में है .कथा सुनिए हमारी आप बीती .नौंवी दसवी कक्षा पास की मुस्लिम हाई स्कूल बुलंदशहर से .गणित के कोई शिक्षक ही नहीं थे स्कूल में .जीवविज्ञान का भी यही हाल था .हमें गणित में चार अंकों का ग्रेस मार्क मिला .थर्ड डिविजन में पास हो गए .
जवाब देंहटाएंइंटर साइंस की डी ए वी इंटर कोलिज बुलंद -शहर से ,एक से एक आला टीचर थे ,केमिस्ट्री के ,हिंदी के अंग्रेजी के उनके चेहरे अभी भी याद हैं जस के तस लेकिन गणित में ज्या और कोज्या,स्पर्शज्या ,कोटाज्या ही याद है और कुछ नहीं ,कोई याददाश्त नहीं उस शख्श की .फिर हमारी उम्र भी कम थी .हिंदी साहित्य से अनुराग था ,अंग्रेजी से प्यार था और रसायन विज्ञान में दीवानगी .गणित में हाथ तंग था .
५२ %अंक मिले गणित में .रसायन में ६९ % ,अंग्रेजी साहित्य में ५६ % ,साहित्य हिंदी में ६२ % .
एम. एससी (फिजिक्स )करनी पड़ी ऐसा आदेश मामा का था जिनकी परवरिश में हमें सागर विश्व -विद्यालय में चार बरस पढने का सौभाग्य मिला .यहाँ भी एक से बढ़के एक वन्दनीय शिक्षक थे .गणित में वही ५२ % अभी भी ,कोर्डिनेटज्योमेट्री कभी समझ न आई .अलबत्ता डिफ़रेंशियल केलकुलस ने लाज बचाई .पी एल श्रीवास्तव साहब की बहुत याद आई .इनफिनिटी इज ए डेविल ,डोंट प्ले विद इनफिनिटी .
समझाया उन्होंने एक होटल में इनफाईनाईट कमरे हैं .सब के सब भरें हैं .एक आता है -साहब कमरा चाहिए .ज़वाब मिलता है कोई कमरा खाली नहीं .इसके बाद आता है एक वीआईपी .कमरा उसे मिलता है अनन्त की अवधारणा की बदौलत .अब होटल में अनंत कमरे तो थे ही सो ज़नाब कमरा नम्बर १ को दो में भेज कमरा नम्बर वीआईपी को दे दिया गया .दो वाले को तीन में ,तीन वाले को चार में ,चार वाले को पांच में एंड सो आन अपटू इनफिनिटी .
गणित में जब तक अवधारणायें स्पस्ट नहीं होंगी रूचि बनेगी नहीं .Indeterminate क्या है किसी ने नहीं समझाया 0.00 या फिर यह कह देने से कैसे काम चले कि o/o या infinity /infinity intdeterminant /indeterminate हैं .
अरे भई समझाओ जो कार्य -कारण सम्बन्ध /काज एंड इफेक्ट ,से परे है जिसकी प्रागुक्ति नहीं की जा सकती ,भविष्य कथन से जो परे है ,जिसकी सीमा और संभावनाओं का बोध न हो जैसे इस पौधे पर तब तक फूल आते रहेंगे जब तक की फसल को पाला ही न मार जाए .ये बीज फलता ही रहेगा जब तक सत्यानाशी का बीज न हो (Terminator seed ) न हो .
बहुत दुःख के साथ लिख रहा हूँ गणित के शिक्षण में आज भी कमियाँ हैं .दो और दो हमेशा चार नहीं होते .
c+c =c
c is the speed of light in vacuum .Light travels as fast as it travels .If two Einstinian trains cross each other with speed c there relative speed will be still c .Nothing can be added to the speed of light .It is the natural speed limit .But why ?what is an hypothesis when it becomes a law or theory ?Explain it .Why c is constant .ये गणित है मानस का पाठ नहीं जो आँख मीच के सुन लो कंठस्थ कर लो :होहिये वही जो राम रचि राखा ,कोकरी तर्क बढ़ावे साखा .
ram ram bhai
सोमवार, 10 सितम्बर 2012
आलमी हो गई है रहीमा शेख की तपेदिक व्यथा -कथा (आखिरी से पहली किस्त )
गणित को लोकप्रिय बनाना भी शिक्षकों के हाथ में है .कथा सुनिए हमारी आप बीती .नौंवी दसवी कक्षा पास की मुस्लिम हाई स्कूल बुलंदशहर से .गणित के कोई शिक्षक ही नहीं थे स्कूल में .जीवविज्ञान का भी यही हाल था .हमें गणित में चार अंकों का ग्रेस मार्क मिला .थर्ड डिविजन में पास हो गए .
जवाब देंहटाएंइंटर साइंस की डी ए वी इंटर कोलिज बुलंद -शहर से ,एक से एक आला टीचर थे ,केमिस्ट्री के ,हिंदी के अंग्रेजी के उनके चेहरे अभी भी याद हैं जस के तस लेकिन गणित में ज्या और कोज्या,स्पर्शज्या ,कोटाज्या ही याद है और कुछ नहीं ,कोई याददाश्त नहीं उस शख्श की .फिर हमारी उम्र भी कम थी .हिंदी साहित्य से अनुराग था ,अंग्रेजी से प्यार था और रसायन विज्ञान में दीवानगी .गणित में हाथ तंग था .
५२ %अंक मिले गणित में .रसायन में ६९ % ,अंग्रेजी साहित्य में ५६ % ,साहित्य हिंदी में ६२ % .
एम. एससी (फिजिक्स )करनी पड़ी ऐसा आदेश मामा का था जिनकी परवरिश में हमें सागर विश्व -विद्यालय में चार बरस पढने का सौभाग्य मिला .यहाँ भी एक से बढ़के एक वन्दनीय शिक्षक थे .गणित में वही ५२ % अभी भी ,कोर्डिनेटज्योमेट्री कभी समझ न आई .अलबत्ता डिफ़रेंशियल केलकुलस ने लाज बचाई .पी एल श्रीवास्तव साहब की बहुत याद आई .इनफिनिटी इज ए डेविल ,डोंट प्ले विद इनफिनिटी .
समझाया उन्होंने एक होटल में इनफाईनाईट कमरे हैं .सब के सब भरें हैं .एक आता है -साहब कमरा चाहिए .ज़वाब मिलता है कोई कमरा खाली नहीं .इसके बाद आता है एक वीआईपी .कमरा उसे मिलता है अनन्त की अवधारणा की बदौलत .अब होटल में अनंत कमरे तो थे ही सो ज़नाब कमरा नम्बर १ को दो में भेज कमरा नम्बर वीआईपी को दे दिया गया .दो वाले को तीन में ,तीन वाले को चार में ,चार वाले को पांच में एंड सो आन अपटू इनफिनिटी .
गणित में जब तक अवधारणायें स्पस्ट नहीं होंगी रूचि बनेगी नहीं .Indeterminate क्या है किसी ने नहीं समझाया 0.00 या फिर यह कह देने से कैसे काम चले कि o/o या infinity /infinity intdeterminant /indeterminate हैं .
अरे भई समझाओ जो कार्य -कारण सम्बन्ध /काज एंड इफेक्ट ,से परे है जिसकी प्रागुक्ति नहीं की जा सकती ,भविष्य कथन से जो परे है ,जिसकी सीमा और संभावनाओं का बोध न हो जैसे इस पौधे पर तब तक फूल आते रहेंगे जब तक की फसल को पाला ही न मार जाए .ये बीज फलता ही रहेगा जब तक सत्यानाशी का बीज न हो (Terminator seed ) न हो .
बहुत दुःख के साथ लिख रहा हूँ गणित के शिक्षण में आज भी कमियाँ हैं .दो और दो हमेशा चार नहीं होते .
c+c =c
c is the speed of light in vacuum .Light travels as fast as it travels .If two Einstinian trains cross each other with speed c there relative speed will be still c .Nothing can be added to the speed of light .It is the natural speed limit .But why ?what is an hypothesis when it becomes a law or theory ?Explain it .Why c is constant .ये गणित है मानस का पाठ नहीं जो आँख मीच के सुन लो कंठस्थ कर लो :होहिये वही जो राम रचि राखा ,कोकरी तर्क बढ़ावे साखा .
ram ram bhai
मंगलवार, 11 सितम्बर 2012
देश की तो अवधारणा ही खत्म कर दी है इस सरकार ने
Vigyan Prasar also developed 13 part video serial on Maths. DVDa are available at Vigyan Prasar, Noida office. for more information - info@vigyanprasar.gov.in
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