बाएं से डॉ0 धु्वसेन सिंह, डॉ0 जाकिर अली रजनीश एवं प्रो0 नदीम हसनैन सम्भावनाओं से भरा हुआ है हिन्दी विज्ञान लेखन का क्षेत्र यह आश...
बाएं से डॉ0 धु्वसेन सिंह, डॉ0 जाकिर अली रजनीश एवं प्रो0 नदीम हसनैन |
सम्भावनाओं से भरा हुआ है हिन्दी विज्ञान लेखन का क्षेत्र
यह आश्चर्य का विषय है कि इस देश की 90 प्रतिशत जनता हिन्दी समझती है, लेकिन जब विज्ञान लेखन की बात आती है, वैज्ञानिक शोधों की बात आती है, तो उसके लिए अंग्रेजी का चुनाव कर लिया जाता है। अंग्रेजी इस देश के लोगों की मातृभाषा नहीं है, वह जबरदस्ती ओढ़ी और अपनाई गयी है। और यह एक प्रमाणिक तथ्य है कि व्यक्ति जब किसी विषय में मौलिक चिंतन करता है, तो वह अपनी मातृभाषा में ही करता है। बाद में उसका मस्तिष्क उन विचारों का अनुवाद अंग्रेजी में करता है। यही कारण है कि उसमें वह प्रवाह नहीं आ पाता है। इसलिए इस देश में विज्ञान संचार के लिए हिन्दी भाषा को अपनाया जाना जरूरी है। क्योंकि तभी हम अपनी बात देश की अधिसंख्य जनता तक अपनी बात प्रभावी तरीके से रख सकते हैं और तभी अपने विचारों को देश के कोने-कोने तक पहुंचा सकते हैं।
आमतौर से यह देखने में आता है कि हिन्दी में विज्ञान लेखन के नाम पर लोग नाक-भौं सिकोड़ सिकोड़ लेते हैं और यह भाव प्रदर्शित करते हैं कि हिन्दी में विज्ञान लेखन हो ही नहीं सकता। लेकिन यह बात सच्चाई के बिलकुल विपरीत है। वास्तव में आज हिन्दी में विज्ञान लेखन की बेहद आवश्यकता है। न सिर्फ मीडिया में इसके लिए काफी स्पेस है, वरन भारत सरकार भी इसके प्रोत्सहान के लिए काफी प्रयास कर रही है। इसके लिए युवाओं को आगे आना चाहिए और इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए।
लेकिन इसी के साथ ही साथ हिन्दी में विज्ञान लेखन करते समय हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि हम ऐसा करते समय लोक प्रचलित शब्दों का प्रयोग करें और जबरदस्ती के गढ़े गये शब्दों से बचें। तभी हम अपनी बात आम आदमी तक पहुंचा सकते हैं और तभी अपनी विज्ञान संचार की मुहिम को सार्थक बना सकते हैं।
उपरोक्त विचार दिनांक 01 एवं 02 सितम्बर, 2012 को लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ के ए0पी0 सेन सभागार में आयोजित ‘हिन्दी में विज्ञान लेखन’ कार्यशाला में वक्ताओं ने रखे। यह कार्यशाला हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ ने उच्च शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश शासन की ‘उत्कृष्ट केन्द्र योजना’ के तहत आयोजित की गयी। कार्यशाला में लगभग 60 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम में उद्घाटन एवं समापन सत्र के अतिरिक्त निम्न चार तकनीकी सत्रों में विभिन्न विषय विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे:
आमतौर से यह देखने में आता है कि हिन्दी में विज्ञान लेखन के नाम पर लोग नाक-भौं सिकोड़ सिकोड़ लेते हैं और यह भाव प्रदर्शित करते हैं कि हिन्दी में विज्ञान लेखन हो ही नहीं सकता। लेकिन यह बात सच्चाई के बिलकुल विपरीत है। वास्तव में आज हिन्दी में विज्ञान लेखन की बेहद आवश्यकता है। न सिर्फ मीडिया में इसके लिए काफी स्पेस है, वरन भारत सरकार भी इसके प्रोत्सहान के लिए काफी प्रयास कर रही है। इसके लिए युवाओं को आगे आना चाहिए और इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए।
लेकिन इसी के साथ ही साथ हिन्दी में विज्ञान लेखन करते समय हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि हम ऐसा करते समय लोक प्रचलित शब्दों का प्रयोग करें और जबरदस्ती के गढ़े गये शब्दों से बचें। तभी हम अपनी बात आम आदमी तक पहुंचा सकते हैं और तभी अपनी विज्ञान संचार की मुहिम को सार्थक बना सकते हैं।
उपरोक्त विचार दिनांक 01 एवं 02 सितम्बर, 2012 को लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ के ए0पी0 सेन सभागार में आयोजित ‘हिन्दी में विज्ञान लेखन’ कार्यशाला में वक्ताओं ने रखे। यह कार्यशाला हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ ने उच्च शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश शासन की ‘उत्कृष्ट केन्द्र योजना’ के तहत आयोजित की गयी। कार्यशाला में लगभग 60 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम में उद्घाटन एवं समापन सत्र के अतिरिक्त निम्न चार तकनीकी सत्रों में विभिन्न विषय विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे:
प्रथम तकनीकी सत्र
हिन्दी में विज्ञान लेखन का विकास - डॉ0 दिनेश मणि
जैविक नियंत्रण और पर्यावरण हितैषी विधि - डॉ0 जे0के0 जौहरी
स्वास्थ्य और प्रसन्नता - डॉ0 आनन्द कुमार अखिला
द्वितीय तकनीकी सत्र
हिन्दी में विज्ञान लेखन का स्वरूप - प्रो0 सूर्यप्रसाद दीक्षित
हिन्दी में पर्यावरण लेखन - डॉ0 महेन्द्र प्रताप सिंह
पर्यावरण बदलाव और ग्लोबल वार्मिंग - डॉ0 प्रदीप श्रीवास्तव
तृतीय तकनीकी सत्र
हिन्दी में वैज्ञानिक शोध लेखक तकनीक - प्रो0 कृष्ण गोपाल दुबे
मीडिया में विज्ञान लेखन प्रविधि - डॉ0 सी0एम0 नौटियाल
हिन्दी की वैज्ञानिक शब्दावली - प्रो0 ए0के0 शर्मा
चतुर्थ तकनीकी सत्र
सर्जनात्मक साहित्य में विज्ञान लेखन - डॉ0 जाकिर अली रजनीश
जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक या मानवजनित - डॉ0 ध्रुवसेन सिंह
स्वास्थ्य और प्रसन्नता - डॉ0 आनन्द कुमार अखिला
द्वितीय तकनीकी सत्र
हिन्दी में विज्ञान लेखन का स्वरूप - प्रो0 सूर्यप्रसाद दीक्षित
हिन्दी में पर्यावरण लेखन - डॉ0 महेन्द्र प्रताप सिंह
पर्यावरण बदलाव और ग्लोबल वार्मिंग - डॉ0 प्रदीप श्रीवास्तव
तृतीय तकनीकी सत्र
हिन्दी में वैज्ञानिक शोध लेखक तकनीक - प्रो0 कृष्ण गोपाल दुबे
मीडिया में विज्ञान लेखन प्रविधि - डॉ0 सी0एम0 नौटियाल
हिन्दी की वैज्ञानिक शब्दावली - प्रो0 ए0के0 शर्मा
चतुर्थ तकनीकी सत्र
सर्जनात्मक साहित्य में विज्ञान लेखन - डॉ0 जाकिर अली रजनीश
जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक या मानवजनित - डॉ0 ध्रुवसेन सिंह
हिन्दी में मानव विज्ञान लेखन की समस्याएं - प्रो0 नदीम हसनैन
उक्त विद्वतजनों के अतिरिक्त कार्यक्रम को प्रो0 महेन्द्र सिंह सोढ़ा (पूर्व कुलपति- देव अहिल्याबाई विश्वविद्यालय, इंदौर एवं बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल), प्रो0 मनोज कुमार मिश्र (कुलपति- लखनऊ विश्वविद्यालय), प्रो0 भूमित्र देव (पूर्व कुलपति-गोरखपुर, रूहेलखण्ड, आगरा और मंगलायतन विश्वविद्यालय), प्रो0 यू0एन0 द्विवेदी (प्रतिकुलपति, लखनऊ विश्वविद्यालय), प्रो0 कैलाश देवी सिंह (अध्यक्ष-हिन्दी विभाग, ल0 वि0वि0), प्रो0 पवन अग्रवाल (हिन्दी विभाग, ल0वि0वि0), डॉ0 रमेशचंद्र त्रिपाठी (हिन्दी विभाग, ल0वि0वि0) ने भी सम्बोधित किया और प्रतिभागियों को सरल विज्ञान लेखन के सूत्र समझाए।
(इस कार्यक्रम में जाना मेरे लिए इस नजरिए से बेहद खास रहा क्योंकि मेरी शिक्षा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में ही सम्पन्न हुआ है। जिन गुरूजनों से मैंने शिक्षा प्राप्त की, उन्हीं के सामने अतिथि वक्ता के रूप में छात्रों को सम्बोधित करना मेरे भीतर एक अनोखी खुशी को जन्म दे गया। ऐसे लगा जैसे किसी वृक्ष को वह धरती ही सम्मानित कर रही हो, जहां पर उसने जन्म लिया है। यह गौरवपूर्ण क्षण मेरी स्मृतियों में सदैव संरक्षित रहेंगे।)
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निश्चित ही मातृभाषा किसी भी विषय के अध्ययन तथा शिक्षण के लिये सर्वश्रेष्ठ माध्यम है। मातृभाषा में विज्ञान की बदौलत ही जापान, रूस, फ्राँस जैसे देशों ने विज्ञान में यह मुकाम हासिल किया है।
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हिन्दी साहित्य की आम ख्याति विज्ञान विरोधी रही है, ऐसे में लखनउ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा हिन्दी में विज्ञान लेखन के प्रोत्साहन के लिए की गयी यह कार्यशाला निश्चय ही प्रशंसनीय है।
जवाब देंहटाएंजो हमारी देन नहीं है,उसके लिए गढ़े गए शब्द कृत्रिमता का आभास देंगे ही। आधुनिक विज्ञान की अधिकतर उपलब्धियां पश्चिम की हैं। इसलिए,उन्हें हिंदी में समझाने का जो प्रयास विभिन्न हिंदी अकादमियों ने किया है,वे ग्राह्य नहीं हो सके। यह ठीक वैसा ही है,जैसे अध्यात्म के कई शब्दों का अंग्रेज़ी अनुवाद हू-ब-हू वही भाव नहीं देता। फिर भी,प्रयास जारी रहे।
जवाब देंहटाएंहिंदी में विज्ञानं लेखन निस्संदेह एक सकारात्मक कदम है समाज में जागृति फ़ैलाने का ..
जवाब देंहटाएंजब कोई शिष्य गुरू से ज्यादा गुणवान ज्ञानी हो जाय तो उसका सम्मान होना ही चाहिए,,,,,
जवाब देंहटाएंफालोवर का लिंक नही मिल रही है,,,,,
बहुत बढ़िया बेहतरीन प्रस्तुति,,,,
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