वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा चेतना जगाने में संचार माध्यमों की भूमिका पर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन सुश्री मल्लिका साराभाई, डॉ0 सुब...
वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा चेतना जगाने में संचार माध्यमों की भूमिका पर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन
सुश्री मल्लिका साराभाई, डॉ0 सुबोध महंती, गौहर रजा, प्रो0 यशपाल, उज्जवला टिर्की, दीक्षा बिष्ट |
आज हमारे समाज के अजीबोगरीब हालात हैं। चारों ओर अवैज्ञानिक
और अंधविश्वासी धारणाओं का बोलबाला है। इन तमाम परिस्थितियों के बारे में सोचने
पर लगता है कि जैसे मुनष्य को जड़ और विचारहीन बनाने का षणयंत्र सा चल रहा है। इन
स्थितियों को रोकना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए हमें अपने घर से ही शुरूआत करनी
होगी। बच्चे इसके लिए सबसे उचित माध्यम हैं। वे बहुत जिज्ञासु होते हैं, हर बात
की तह तक जाना चाहते हैं। यदि हम उनकी जिज्ञासाओं को मरने न दें और उनके सवालों को
प्रोत्साहित करें, तो समाज में वैज्ञानिक मनोवृत्ति खुद-ब-खुद विकसित होती चली
जाएगी।
उक्त बातें देश के जाने-माने वैज्ञानिक एवँ
शिक्षाविद प्रो0 यशपाल ने दिनांक 29-30 मई, 2012 को नास्क कॉम्प्लेक्स, पूसा, नई दिल्ल्ली में आयोजित
‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा चेतना जगाने में संचार
माध्यमों की भूमिका’ विषयक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन के समापन सत्र में कहीं। इस अवसर पर बोलते हुए शास्त्रीय
नृत्याँगना मल्लिका साराभाई ने कहा कि हमें कभी भी अपने को सर्वज्ञानी मानने की
भूल नहीं करनी चाहिए और हर पल सीखने के लिए तैयार रहना चाहिए। क्योंकि यह दुनिया
बड़ी तेजी से प्रगति की सीढि़याँ चढ़ रही है। यदि हम एक सप्ताह भी सीखने की
प्रक्रिया से कट गये या पीछे हट गये, तो हमारे सामने आउटडेटेड होने का खतरा पैदा
हो सकता है।
विज्ञान संचार के लिए समर्पित देश की चार अग्रणी
संस्थाओं निस्केयर-सीएसआईआर, विज्ञान प्रसार, राष्ट्रीय विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं संचार परिषद् एवं
राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद् द्वारा आयोजित इस सम्मेलन में देश-विदेश से
आए लगभग 150 वक्ताओं एवँ प्रतिभागियों ने
हिस्सा लिया। दो दिन तक चलने वाले इस सम्मेलन में 12 तकनीकी सत्र आयोजित किए गये,
जिसमें वक्ताओं ने अपने विचार रखे। ये सत्र थे: शिक्षण संस्थाओं का विज्ञान संचार
में योगदान, भारतीय भाषाओं में विज्ञान संचार, विज्ञान कथाएँ और वैज्ञानिक
दृष्टिकोण, सम्पादन और प्रकाशन की चुनौतियाँ, विज्ञान पत्रकारिता एवँ विज्ञान
संचार, अंधविश्वास, समाज तथा वैज्ञानिक चेतना, विज्ञान संचार में संस्थाओं का
योगदान, विज्ञान संचार का नया स्वरूप, जनसंचार माध्यम और वैज्ञानिक चेतना,
विज्ञान संचार के नये साधन, विज्ञान संचार वैश्विक परिदृश्य एवं विज्ञान संचार
में नीतिगत मुद्दे।
कार्यक्रम के
उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि डा. लालजी सिंह, कुलपति, बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय ने विज्ञान को ग्रामीण
क्षेत्रों तक पहुँचाने पर ज़ोर दिया। उनके अनुसार वैज्ञानिक विकास गाँव तक नहीं
पहुँचा है, जहाँ देश की कुल आबादी का 60-70 फीसदी हिस्सा रहता है। उन्होंने कहा गाँवों में मूलभूत
सुविधाओं के साथ आधुनिक तकनीक भी उपलब्ध कराई जाएँ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को
बढ़ावा देने के लिए मौखिक शिक्षा की बजाए प्रयोगात्मक ज्ञान का सहारा लिया जाए।
इस
अवसर पर डॉ. जी.एस. रौतेला, महानिदेशक, राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद् (एनसीएसएम), प्रोफेसर
एस.के. जोशी, पूर्व महानिदेशक, सीएसआईआर, डा. सुबोध महंती, निदेशक, विज्ञान प्रसार, डा. गंगन प्रताप, निदेशक, निस्केयर, श्री गौहर रजा, प्रमुख
वैज्ञानिक, निस्केयर, श्रीमती दीक्षा बिष्ट, प्रमुख वैज्ञानिक, निस्केयर आदि
ने विस्तार से कार्यक्रम के सम्बंध में अपने विचार रखे।
ब्लॉग लेखन के द्वारा वैज्ञानिक मनोवृत्ति का विकास : प्रस्तुति जाकिर अली रजनीश |
देश में वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा चेतना जगाने के
उद्देश्य से आयोजित इस सम्मेलन में जिन प्रमुख वक्ताओं ने भाग लिया, उनमें डॉ0
ओम विकास, सुभाष लखेड़ा, पंकज बिष्ट, रमेश उपाध्याय, देवेन्द्र मेवाड़ी, चक्रेश जैन, सुरजीत सिंह, हरिकृष्ण आर्य,
लक्ष्मण सिंह बटरोही, विनीता सिंघल, जाकिर अली रजनीश, जीशान हैदर जैदी, विष्णु
प्रसाद चतुर्वेदी, निमिष कपूर, एम0एम0 गोरे, के0के0 मिश्रा, किंकिणी दास गुप्ता,
इरफान ह्यूमन आदि के नाम प्रमुख हैं। सम्मेलन में सर्वसम्मति से निम्न प्रस्ताव
भी पारित किये गये:
1. विज्ञान संचार, विज्ञान जनचेतना, वैज्ञानिक समझ और
विज्ञान नीतियों पर काम करने वाले विशेषज्ञों को अवधारणात्मक मॉडल तैयार करना
चाहिए, जो एक ओर तो संस्कृति आधारित मॉडल विकसित करेगा, ताकि वह संस्कृति विशेष
के अनुरूप वैज्ञानिक दृष्टिकोण की धारणा को समझने में मदद करे और दूसरी ओर विज्ञान
संचारकों को इस धारणा को समाज के सभी वर्गों तक पहुंचाने में मदद करे।
2. समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास को परखने
के लिए उपयुक्त मापन सूचक (इंडिकेटर) तैयार कने पडेंगे। यह काम आसान नहीं है,
इसलिए इस कार्य में रूचि रखने वाली सभी संस्थाओं को एकजुट होकर प्रयास करना होगा।
3. वर्तमान में भारतीय भाषाओं में प्रशिक्षित विज्ञान
संचारकों का काफी अभाव है। इसलिए समाज की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए नये
तथा अधिक कारगर प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करने की आवश्यकता है।
4. स्कूली विज्ञान शिक्षा पर अधिक ध्यान देना होगा।
साथ ही प्रोयोगिक शिक्षा पर अधिक जोर दिया जाए, ताकि बचपन में ही वैज्ञानिक
दृष्टिकोण का बीजारोपण किया जा सके। साथ ही साथ कॉलेज, विश्वविद्यालयों की
शिक्षा, पाठ्यक्रम में ऐसी सामग्री विषय शामिल किये जाएं, जिससे वैज्ञानिक समझ और
चेतना का विकास हो।
5. आज सबसे बड़ी जरूरत इस बात की है कि वैज्ञानिक सोच
के अनुरूप शिक्षा को गाँव-गाँव तक पहुँचाया जाए। इसलिए संचार के मौजूदा ढ़ाँचे के
बेहतर उपयोग के साथ ही संचार के नए ढ़ाँचे तैयार करने होंगे।
6. विज्ञान संचार की नई प्रौद्योगिकियों पर आधारित
माध्यमों को पूरी ताकत से अपनाना पड़ेगा।
7. वैज्ञानिक दृष्टिकोण के राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक
प्रचार-प्रसार के लिए सम्बंधित क्षेत्रीय व राष्ट्रीय संस्थाओं को मिल जुल कर
काम करना पड़ेगा, ताकि इस दिशा में वैज्ञानिक चेतना जगाने के लिए समय-समय पर राष्ट्रीय
व क्षेत्रीय अभियान चलाए जा सकें।
8. भारत के प्रत्येक नागरिक का संवैधानिक कर्तव्य
है कि वह वैज्ञानिक मानसिकता अपनाए और इसके समुचित विकास में अपना हर संभव योगदान
दे। इस बात को जन-जन तक पहुँचाने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम का एक अन्य सत्र : बाएं से दूसरे श्री विष्णु प्रसाद चतुर्वेदी, सबसे दाएं दर्शन लाल बवेजा |
9. वैज्ञानिकों और सभी बुद्धिजीवियों को कर्तव्य
मानकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रसार करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देना होगा।
10. आज मीडिया जिस प्रकार अंधविश्वासों और पुरानी
रूढि़यों का प्रचार-प्रसार कर रहा है, उस पर सदन ने चिन्ता व्यक्त करते हुए
प्रस्ताव पारित किया कि न्यूज ब्रॉडकास्टिंग एसोसिएशन प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया
और प्रशासन की ओर से इस पर अंकुश लगाने के लिए अविलम्ब कारगर कदम उठाए जाएं।
11. इस बात पर भी चिन्ता जताई गयी कि देश का मीडिया
जहाँ अति आधुनिक प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल अपने हित साधन के लिए करता है, वह
अंधविश्वासों को बढ़ावा देकर आमजन को दिगभ्रमित कर रहा है।
12. भारतीय विज्ञान की उपलब्धियों और वैज्ञानिकों के
वर्तमान कार्य को आमजन तक पहुँचाने की पुरजोर कोशिश की जानी चाहिए।
13. देश में विज्ञान विरोधी बातें जनता में एक अज्ञात
भय फैला रही हैं। विज्ञान संचारकों और अन्य लोगों को एकजुट होकर ऐसे प्रचार के
खिलाफ कड़े कानून बनाने के लिए भरपूर दबाव बनाना चाहिए।
14. सदन ने इस बात पर भारी चिन्ता व्यक्त की गयी
कि देश के कई टीवी चैनल दकियानूसी और विज्ञान विरोधी हैं। ऐसे चैनल पाखंड को
प्रोत्साहित कर रहे हैं, जबकि विज्ञान को समर्पित कोई भी चैनल नहीं है। आमजन में
वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास के लिए देश में पूरी तरह विज्ञान को समर्पित टीवी
चैनल होना चाहिए, जो केवल विज्ञान का संचार करे और जिसमें आईपीआर नियंत्रणों के
बिना संसाधनों को साझा किया जा सके।
15. विज्ञान संचार गतिविधियों के दस्तावेजीकरण के
लिए वेब आधरित डेटाबेस बनाया जाए, जिसमें सफल और असफल दोनों प्रकार के अनुभव एवं
गतिविधियाँ दर्ज हों। सफल विज्ञान संचारकों को प्रोत्साहित और सम्मानित करने के
लिए समुचित संस्थागत व्यवस्था की जाए।
16. वैज्ञानिक दृष्टिकोण की आवधारण का सम्बंध केवल
प्राकृतिक विज्ञान की विधाओं से नहीं अपितु कला, दर्शन और साहित्य से भी है।
वैज्ञज्ञनिक दृष्टिकोण् के व्यापक विकास के लिए सभी विषयों की परस्पर सहभागिता
की जरूरत है।
17. देशभर में वैज्ञानिक चेतना के प्रचार-प्रसार को अंजाम
देने के लिए विज्ञान संचारकों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाए जाएँ। साथ ही इस काम
में संलग्न संस्थाओं के प्रोत्साहन के लिए अनुदान की शुरूआत की जाए।
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बहुत अच्छी रिपोर्ट
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सार्थक रिपोर्टिंग ... आज की जरूरत है ये ...
जवाब देंहटाएंअच्छी विचारनीय रिपोर्ट ....बधाई
जवाब देंहटाएंNice report.
जवाब देंहटाएंऐसे साकारात्मक सम्मेलन होने ही चाहिए!!
जवाब देंहटाएंजागृति के लिए आवश्यक है।
बस भावनाओं और नैतिकताओं पर विज्ञान की साकात्मक सोच विकसित हो।
ऐसे सम्मेलनों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर से कहीं ज़्यादा,गांव-गांव ले जाने की ज़रूरत है।
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