कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में दीप प्रज्जवन एवं सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण करते सर्वश्री अनिल मेनन, हेमंत कुमार, सीएम नौटियाल ए...
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कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में दीप प्रज्जवन एवं सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण करते सर्वश्री अनिल मेनन, हेमंत कुमार, सीएम नौटियाल एवं डॉ0 अरविंद मिश्र |
विज्ञान प्रसार, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार, नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली एवं ‘टीम फॉर साइंटिफिक अवेयरनेस ऑन लोकल इश्यूज इन इंडियन मॉसेस’ (तस्लीम) के संयुक्त तत्वाधान में “क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान कथा लेखन” विषयक दो दिवसीय कार्यशिविर का आयोजन लखनऊ स्थित नेशनल पी0जी0 कालेज के सभागार में दिनांक 26 एवं 27 दिसम्बर, 2011 को किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन दिनांक 26 दिसम्बर, 2011 को अपराह्न 2.00 बजे हुआ। उद्घाटन सत्र में अपना बीज वक्तव्य देते हुए भारतीय विज्ञान कथा लेखक समिति के सचिव डॉ0 अरविंद मिश्र ने कहा कि विज्ञान कथा साहित्य की एक ऐसी विधा है, जिसकी एक परिभाषा देना सम्भव नहीं है। यही कारण है कि इसकी अनेकानेक परिभाषाएँ दी गयी हैं। यह एक तरह से विज्ञान कथा की विराटता को उद्घाटित करता है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अंग्रेजी साइंस फिक्शन के विश्वविख्यात हस्ताक्षर श्री अनिल मेनन ने कहा कि हिन्दी लेखकों में भी रोचक विज्ञान कथाएँ लिखने का माद्दा है और वह लिख भी रहे हैं, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कम भागीदारी के चलते कथाकार विज्ञान लेखन को भविष्य के रूप में नहीं देख रहे। इस अवसर पर उन्होंने अपने जीवन के अनुभव को बताते हुए कहा कि वे इंजीनियरिंग के छात्र रहे हैं। लेकिन पी-एच0डी0 के दौरान उन्हें सिएटल में एक विज्ञान कथा लेखन वर्कशाप में भाग लेने का अवसर मिला, जिसने मेरा जीवन बदल दिया। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की “विज्ञान-कथा-लेखन” कार्यशाला पूरे देश में समय-समय पर होनी चाहिए और कार्यशाला 2-3 दिनों के बजाए 1-2 हफ्तों की होनी चाहिए ताकि प्रतिभागियों को सीखने का पूरा मौका मिल सके।
वरिष्ठ विज्ञान-कथाकार श्री देवेन्द्र मेवाड़ी ने अपने उद्बोधन में कहा कि चीन ने सन 2002 में ‘साइंस-फिक्शन’ लेखन की शताब्दी मनाई। जबकि अपने भारत में हिन्दी ‘साइंस-फिक्शन’ लेखन का इतिहास सौ वर्षों से भी पुराना है और इतना पीछे चल रहा है। उन्होंने बताया कि राहुल संकृत्यायान, हरिवंश राय बच्चन और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित रविन्द्र नाथ ठाकुर जैसे साहित्यकार का सहयोग इस विधा को मिलने के पश्च्यात भी ‘हिन्दी विज्ञान-कथा लेखन’ को अभी बहुत दूरी तय करनी है, जिसमें हमारा-आपका सहयोग बहुत आवश्यक है। प्रशासनिक अधिकारी श्री हेमंत कुमार ने युवा कथाकारों को ‘विज्ञान-कथा’ कैसे लिखें इसकी सलाह दी। उन्होंने बताया कि ‘साइंस-फिक्शन’ में कविताएँ और ‘हाईकू’ भी लिखी जा रही हैं और इस क्षेत्र में इसकी बहुत सम्भावना है।
अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉ0 सी0एम0 नौटियाल ने बताया कि विज्ञान-कथा में साहित्य की साथ-साथ ‘विज्ञान’ का तथ्य बेहद आवश्यक है। उन्होंने “फिक्शन” और “फेंतासी” में भी अंतर बताया और कहा कि ‘विज्ञान-कथा’ में फंतासी नहीं बल्कि साइंस फिक्शन होना चाहिए। सत्र में “साइंस फिक्शन इन इंडिया” (डॉ0 अरविंद मिश्र) और “बुढ्ढा फ्यूचर” (जीशान जैदी) पुस्तकों का लोकार्पण भी किया गया। द्वितीय सत्र में आमंत्रित वक्ताओं ने प्रतिभागियों के साथ विज्ञान कथा पर चर्चा की और उन्हें विज्ञान कथा लेखन के लिए प्रोत्साहित किया |
मंचासीन सर्वश्री शुकदेव प्रसाद, जीशान जैदी, चंदन सरकार |
कार्यक्रम के अगले सत्र में भारतीय भाषाओं में लिखी जा रही विज्ञान कथाओं पर चर्चा की गयी, जिसमें श्री चंदन सरकार ने बंगला की विज्ञान कथाओं का समृद्ध परम्परा को रेखांकित किया। इसी क्रम में जीशान हैदर जैदी ने उर्दू की विज्ञान कथाओं का परिचय देते हुए कहा कि उर्दू के पहले विज्ञान कथाकार लखनऊ से रहे हैं। चर्चा के इस क्रम में अमित कुमार ओम ने मराठी विज्ञान कथाओं के बारे में बताते हुए इस बात पर जोर दिया किया कि यदि विज्ञान कथाकार स्वयं को स्थानीय मुद्दों, मान्यताओं और बिम्बों का प्रयोग करें, तो वे अपनी बात को ज्यादा प्रभावी बना सकते हैं। इस सत्र की चर्चा के दौरान यह बात भी निकल कर सामने आई कि हिन्दी की तुलना में मराठी और बंगला का विज्ञान कथा साहित्य काफी सम्पन्न है। यदि इन भाषाओं में रची गयी विज्ञान कथाओं को हिन्दी में अनुदित करके प्रस्तुत किया जाए, तो इससे जहाँ एक ओर हिन्दी विज्ञान कथा साहित्य समृद्ध होगा, वहीं उसे पढ़कर नए रचनाकार विज्ञान कथा लिखने के लिए भी प्रेरित हो सकेंगे।
भारतीय विज्ञान कथाएं किस तरह से जन-जन के बीच स्थापित हो सकती हैं, किस प्रकार से वे आम पाठकों को अपने से जोड़ सकती हैं, इस बारे में ‘विज्ञान कथाओं के वैश्विक घटक और अनुवाद कार्य’ सत्र में श्री विष्णु प्रसाद चतुर्वेदी ने विस्तार से चर्चा की। इसी क्रम में हरीश गोयल ने वैश्विक विज्ञान कथाओं के बारे में बताते हुए हिन्दी विज्ञान कथाओं पर उनके प्रभाव को रेखांकित किया। कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए युवा पत्रकार डॉ0 मुकुल श्रीवास्तव ने साहित्य और विज्ञान के अन्तर्सम्बंध की चर्चा करते हुए कहा कि हमें विज्ञान कथाओं के आलोचनात्मक पहलू को भी ध्यान में रखा होगा और विज्ञान कथाओं को इससे जूझना होगा। इस क्रम में बुशरा अलवेरा ने विज्ञान कथाओं के अनुवाद में आने वाली समस्याओं तथा संभावनाओं की बात की और शब्द की जगह अर्थ के महत्व पर बल दिया।
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सर्वश्री मुकुल श्रीवास्तव, बुशरा अलवेरा, सुभाष राय, विष्णुप्रसाद चतुर्वेदी, हरीश गोयल एवं कार्यक्रम के प्रतिभागी छात्र-छात्राएं |
कार्यक्रम के दौरान शामिल प्रतिभागियों ने विज्ञान कथाओं के सम्बंध में अपनी जिज्ञासाओं और शंकाओं को विज्ञान कथाकारों के समक्ष रखा। उन्होंने इस दौरान रची गयी अपनी रचनाओं का पाठ भी किया। विषय विशेषज्ञों ने उन रचनाओं का आकलन करके उसमें से 6 क्षेष्ठ विज्ञान कथाओं का चयन किया गया। इन चुने गये रचनाकारों को डॉ0 अपर्णा सिंह ने विज्ञान प्रसार द्वारा प्रकाशित पुस्तकें पुरस्कार स्वरूप प्रदान कीं।
इस अवसर पर कार्यक्रम के संयोजक एवं तस्लीम के महामंत्री डॉ0 ज़ाकिर अली रजनीश ने कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथियों को अंगवस्त्रम पहना कर सम्मानित किया। उन्होंने कहा कि हिन्दी विज्ञान कथा की शुरूआत हुए 100 साल से अधिक हो गये हैं, लेकिन इसके बावजूद यह विधा अपनी पहचान के संकट से ग्रस्त है। इसलिए यह आवश्यक हो गया है कि विज्ञान कथाकार अपना भी अवलोकन करें और यह जानने का प्रयत्न करें कि आखिर वे कौन से कारक हैं, जो इन स्थितियों के लिए जिम्मेदार हैं।
Keywords: Vigyan Prasar, National Book Trust, Science Fiction Workshop, Science Fiction in India, science fiction stories, science fiction books, science fiction authors, indian science fiction writers, Anil Menon, Shukdev Prasad
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Another feather in yourcap. Congrats. R.T.
जवाब देंहटाएंबधाई हो जी। बधाई!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन .....
जवाब देंहटाएंCONGRATULATION'S
जवाब देंहटाएंCONGRATULATION'S
जवाब देंहटाएंअब पूरी रपट मिली !
जवाब देंहटाएंनववर्ष की शुभकामनाओं के साथ !
rajnish ji aap sutradhar hai phir bhi chupe rahte hai kyoin kisi me aap apni surat ke saath nazar nahi aate maajra kya hai/kya king maker banna chahte hai-shubhchintk
जवाब देंहटाएंबेनामी भाई, काम में रूचि रखने वाले लोग अपने चेहरे नहीं चमकाया करते।
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