माइक्रो सिस्टम्स के सह-संस्थापक एवं वैज्ञानिक बिल जॉय ने अपने एक चर्चित लेख ‘ व्हॉय द फ्यूचर इज नॉट नीड अस ’ ( Why the Future is...
माइक्रो सिस्टम्स के सह-संस्थापक एवं वैज्ञानिक बिल जॉय ने अपने एक चर्चित लेख ‘व्हॉय द फ्यूचर इज नॉट नीड अस’ (Why the Future is Not Need Us?) में लिखा था कि रोबोटिकी, आनुवंशिक इंजीनियरी तथ नैनो प्रौद्योगिकी मनुष्यों के अस्तित्व को घोर संकट में डाल देगी। ‘वायर्ड’ (Wired) नामक पत्रिका में प्रकाशित इस लेख में बिल जॉय ने एक ऐसे संसार का चित्र खींचा, जिसमें धरती के समस्त क्रियाकलापों पर इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियों का नियंत्रण हो जाएगा। ऐसे में एक छोटी सी त्रुटि भी मानव के भविष्य के लिए संकट का कारण बन जाएगी।

पर वह एक सिर्फ सांइस फंतासी थी।
जहाँ तक हकीकत की बात है, तो हमें पता है कि मनुष्य के शरीर में लगभग 40 हजार जीन पाए जाते हैं। यदि नैनो रोबोट उनपर अपना अधिकार कर भी लें, तो भी उनके द्वारा मनुष्य के शरीर में मौजूद लगभग 10 हजार खरब सूत्रयुग्मनों (सिनेप्सेज) को निर्दिष्ट कर पाना सम्भव नहीं है। इसका तात्पर्य यह है कि आनुवंशिक रूप से मानव व्यवहार को नियंत्रित अथवा प्रोग्रामित करना असम्भव है। इन रचनाओं मे भले ही अपनी कल्पनाओं के द्वारा खतरे को बढ़ा-चढ़ा कर चित्रित किया गया हो, पर इन्हें पढ़ने के बाद नैनो टेक्नोलॉजी की संभवनाओं का एक खाका तो दिमाग में उभरता ही है।
वास्तव में नैनो टेक्नोलॉजी कमाल की चीज है। इसमें असीम सम्भावनाएँ छिपी हुई हैं। इसके द्वारा उपभोक्ता वस्तुओं, पदार्थ विज्ञान, इलेक्ट्रानिकी से लेकर चिकित्सा विज्ञान तक सम्भावनाओं के ऐसे द्वारा खुलते हैं, जो किसी चमत्कार सरीखे प्रतीत होते हैं। नैनो टेक्नोलॉजी की इसी स्वप्निल दुनिया की सैर करा रहे हैं डॉ0 पी0के0 मुखर्जी अपनी सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘नैनो टेक्नोलॉजी’ के द्वारा। यह पुस्तक आइसेक्ट, भोपाल द्वारा मध्य प्रदेश विज्ञान एवं तकनीकी परिषद की अनुसृजन परियोजना के तहत प्रकाशित की गयी है।
नैनो शब्द ग्रीम भाषा के ‘नेनोज’ से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ होता है बौना। यदि मापन के सदंर्भ में इसका अर्थ निकाला जाए, तो यह मीटर के अरबवें हिस्से को निरूपित करता है। लेकिन सम्भवत: इससे इसकी सूक्ष्मता का स्पष्ट ज्ञान नहीं होता। इसलिए यहाँ पर एक अन्य उदाहरण देना समीचीन होगा। यदि हम मनुष्य के बाल का उदाहरण लें, तो कह सकते हैं कि इसकी मोटाई 90 हजार नैनोमीटर के बराबर होती है। अर्थात किसी बाल की मोटाई के यदि 90 हजार समान टुकड़े किए जाएं, तो उसमें से प्रत्येक हिस्सा एक नैनो मीटर के बराबर होगा। डॉ0 मुखर्जी ने अपनी इस पुस्तक में ऐसे ही तमाम रोचक तथ्यों का समावेश करते हुए इस प्रस्तक की रचना की है।
डॉ0 मुखर्जी दिल्ली विश्वविद्यालय के देशबंधु कॉलेज में भौतिकी के एसोसिएट प्रोफेसर हैं और चर्चित विज्ञान लेखक के रूप में जाने जाते हैं। विज्ञान लोकप्रियकरण के तहत उनके विभिन्न संचार के माध्यमों में अब तक 900 से अधिक लेखन आदि प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त अन्तर्राष्ट्रीय शोध जर्नलों में भी उनके 2 दर्जन शोध प्रकाशित हैं। वे टीव तथा रेडियों के अनेक लोकप्रिय विज्ञान आधारित कार्यक्रमों से जुड़े रहे हैं तथ विज्ञान परिषद, प्रयाग, हिन्दी अकादमी, दिल्ली एवं ‘इलेक्ट्रानिकी आपके लिए’, भोपाल द्वारा विज्ञान लेखन के द्वारा सम्मानित किये जा चुके हैं।
नैनो टेक्नोलॉजी की असीम सम्भावनाओं से भरी दुनिया को डॉ0 मुखर्जी की आलोच्य पुस्तक में विस्तार से देखा जा सकता है। इसमें उन्होंने इस टेक्नोलॉजी के सकारात्मक पक्षों पर ही नहीं नकारात्मक पक्षों पर भी गहराई से चिंतन किया है। यही कारण है कि पुस्तक रोचक एवं उपयोगी बन पड़ी है। पुस्तक सरल भाषा में लिखी गयी है। इसका कलेवर आकर्षक है तथा मूल्य पाठकों की पहुँच के भीतर। इस सुंदर एवं उपयोगी पुस्तक के लिए लेखक एवं प्रकाशक दोनों ही लोग बधाई के पात्र हैं।
पुस्तक: नैनो टेक्नोलॉजी
लेखक: डॉ0 पी0के0 मुखर्जी
श्रृंखला संपादक: संतोष चौबे
प्रकाशक: आईसेक्ट, स्कोप कैम्पस, एन0एच0-12, होशंगाबाद रोड, भोपाल-26, फोन-0755-2499657, 3293214, ईमेल-aisect_bpl@sancharnet.in
मूल्य: 80 रूपये
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अच्छी जानकारी मिली ..
जवाब देंहटाएंनैनो-टेक्नोलोजी नए युग का कांसेप्ट है,लोगों को अभी ज़्यादा इसके बारे में पता नहीं है,आपके द्वारा संदर्भित पुस्तक शायद अधिक जानकारी दे सकेगी !
जवाब देंहटाएंजिज्ञासा जगाती हुई पुस्तक समीक्षा...
जवाब देंहटाएंइस विषय पर जानकारी अल्प ही थी। आपकी समीक्षा से तो इज़ाफ़ा हुआ ही, पुस्तक पढ़कर और होगा।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति. मुझे बचपन में स्कूलों में होने वाले वाद विवाद "विज्ञानं वरदान है या अभिशाप" की ताज़ी हो गयी.
जवाब देंहटाएंthanks yaar
जवाब देंहटाएंनेनो तकनीक पर अच्छी जानकारी, अब पुस्तक पढ़ने का दिल कर रहा है,कैसे उपलब्ध होगी?
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