एक समय था जब धरती पर विशाल ऊनी मैमथ विचरण किया करते थे। लेकिन परिवर्तन का चक्र ऐसा चला कि देखते ही देखते उनका धरती से सफाया हो गया। मै...
एक समय था जब धरती पर विशाल ऊनी मैमथ विचरण किया करते थे। लेकिन परिवर्तन का चक्र ऐसा चला कि देखते ही देखते उनका धरती से सफाया हो गया। मैमथ की ही तरह धरती से अन्य बहुत से जीव विलुप्त हो चुके हैं। ऐसे प्राणियों में सीरियाई हाथी, भारतीय जंगली बैल, उत्तरी सुमात्रावासी गैंडा, केस्पियन बाघ, समुद्री गाय, लंबी नाक वाला चूहा, जापानवासी समुद्री शेर, अरेबियन शुतुरमुर्ग, गुलाबी सिर वाली बत्तख, यूनन बॉक्स कछुआ, श्रीलंकाई मेढ़क, चीन की स्वच्छजलीय मछली आदि प्रमुख हैं। वैज्ञानिकों ने धरती से अब तक विलुप्त हो चुके ऐसे प्राणियों की संख्या 37 बताई है। इनकी विलुप्ति में जिस चीज से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, वह है जैव विविधता ह्रास।
जैव विविधता जीव विज्ञान और विविधता से सम्बंधित एक नया शब्द है, जिसका पहले पहल प्रयोग 1985 में वैज्ञानिक डब्लू0जी0 रोजेन ने किया था। आमतौर से जैव विविधता किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र के जीव वर्गीकरण की समृद्धि को दर्शाता है। इसका आशय है ‘जैविक संगठन के सभी स्तरों पर जीवन की विविधता।’
हम सभी जानते हैं कि किसी भी जन्तु या पौधे का समूह, जो स्वयं के समान जीव उत्पन्न कर सकता है, प्रजाति के नाम से जाना जाता है। जैसे कि शेर, चीता, भालू, हाथी, घोड़ा आदि। ये सभी जन्तु जगत की अलग-अलग प्रजातियाँ हैं। इसी प्रकार, गेहूँ, धान, जामुन, गुलाब, सेब आदि वनस्पति जगत की अलग-अलग प्रजातियाँ हैं। जन्तु एवं वनस्पति की विभिन्न प्रजातियों के असंख्य समूह आपस में मिलकर जैव विविधता का निर्माण करते हैं।
एक स्थान पर पाए जाने वाले समस्त जीवधारियों और आस-पास के पर्यावरण के बीच एक प्रकार का सामंजस्य बना रहता है। लेकिन जब किसी बाहरी हस्तक्षेप के कारण इस सामंजस्य की कोई एक कड़ी प्रभावित होती है, तो उस क्षेत्र में पाए जाने वाली प्रजातियों के विलुप्त होने अथवा अत्यधिक बढ़ जाने का खतरा उत्पन्न हो जाता है। यही कारण है कि धरती से तेजी से बहुत से प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं और बहुत सी ऐसी प्रजातियाँ हैं, जो विलुप्तिकी कगार पर खड़ी हैं। भारत में पाए जाने वाले जीवों में आज उड़न गिलहरी, सुमात्रा का गेंडा, जेनकिन्स छछूंदर, बौना सुअर, सालिम अली फ्रूट चमगादड़ और राटन्स स्वतंत्र-पुच्छ चमगादड़ के समक्ष यह खतरा मंडरा रहा है। यह हमारी पृथ्वी की समृद्ध जैव विविधता का ह्रास है, जिसके लिए प्रमुख रूप से हम मनुष्य जिम्मेदार हैं।
इन तमाम या ऐसी ही अन्य संकटग्रस्त प्रजातियों को बचाने के लिए आज जैव-विविधता संरक्षण की आवश्यकता है। इसी आवश्यकता को महसूस करते हुए आईसेक्ट द्वारा मध्य प्रदेश विज्ञान एवं तकनीकी परिषद के सहयोग से ‘जैव विविधता संरक्षण’ पुस्तक का प्रकाशन किया है। इस उपयोगी पुस्तक के लेखक हैं श्री मनीष मोहन गोरे, जोकि विगत एक दशक से लोक विज्ञान लेखन में सक्रिय हैं। देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उनके 250 से अधिक लेख एवं विज्ञान कथाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। साथ ही वे शोधपरक पुस्तक ‘विज्ञान कथा का सफर’ एवं विज्ञान कथा संग्रह ‘325 साल का आदमी’ के लेखक के रूप में भी जाने जाते हैं। उन्होंने आलोच्य पुस्तक के माध्यम से जैव विविधता के संरक्षण के महत्व एवं उसके ह्रास होने की दशा में प्रकट होने वाले खतरों के बारे में काफी विस्तार से प्रकाश डाला है। पुस्तक पठनीय ही नहीं संग्रहणीय भी है और पाठकों में जैव विविधता संरक्षण के प्रति चेतना जगाने में सक्षम है। इस सार्थक पुस्तक के लिए लेखक एवं प्रकाशक बधाई के पात्र हैं।
लेखक: मनीष मोहन गोरे,
श्रृंखला सम्पादक: संतोष चौबे,
प्रकाशक: आईसेक्ट, स्कोप कैंपस, एन.एच.12, मिसरोद के पास, होशंगाबाद रोड, भोपाल-26, फोन: 0755-3293214-16, ईमेल: aisect_bpl@sancharnet.in, बेबसाईट: www.aisect.org
मूल्य: 50 रूपये।
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