ये आधुनिक युग है। कहने को आज हमारे पास सुपर कम्प्यूटर हैं, कहने को हमने अणु और परमाणु जैसे सूक्ष्म कणों को वश में करके अति विध्वंसकारी ब...
ये आधुनिक युग है। कहने को आज हमारे पास सुपर कम्प्यूटर हैं, कहने को हमने अणु और परमाणु जैसे सूक्ष्म कणों को वश में करके अति विध्वंसकारी बम बना डाले हैं, कहने को हम दूसरे ग्रहों पर जीवन की तलाश में अरबों-खरबों डॉलर के प्रोजेक्ट चला रहे हैं, पर आज भी हम सोलहवीं सदी की मानसिकता से नहीं उबर पाए हैं। यही कारण है कि यह मानसिकता जब-तब लोगों की जान लेती रहती है।
बीते दिनों निघासन, खीरी, उ0प्र0 में इस मानसिकता की शिकार एक औरत हुई। यूँ तो औरत को कोई बीमारी थी, पर अंधविश्वास के शिकार उसके पति ने उसे भूत-प्रेत का मामला मान लिया और नतीजतन उस महिला को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।
दरअसल हुआ यूँ कि निघासन थाना क्षेत्र के ग्राम दुबहा निवासी अमरीका प्रसाद प्रसाद की पत्नी पिछले 06 महीने से बीमार थी। गरीब अमरीका ने जब अपनी पत्नी रामरती को लेकर पलिया के एक डॉक्टर के पास पहुँचा, तो उसे पता चला कि लगभग 6 महीने इलाज चलेगा। एक तो आर्थिक संकट, ऊपर से अंधविश्वासों से भरा दिमाग। नतीजतन अमरीका डॉक्टर को छोड़ पहुँच गया तांत्रिक मोती लाल के पास। तांत्रिक ने देखते ही कहा कि एक दिन रामरती शौच के लिए जाते समय पीपल के पेड़ के नीचे से निकली थी। इसीलिए इस पर पीपल के पेड़ पर रहने वाले तीन भूत और चार चुड़ैलें सवार हो गयी हैं।
अमरीका को तांत्रिक की बातों पर सहज विश्वास हो गया। तांत्रिक ने इधर झाड़-फूँक शुरू की, उधर अमरीका जी जेब ढ़ीली होनी शुरू हो गयी। तांत्रिक के चक्कर में 6 महीने में अमरीका ने लगभग 5 हजार गंवा दिये, साथ ही गंवानी पड़ी उसे अपनी पत्नी की जान भी। हाँ अगर उसने डॉक्टर का कहना माना होता, तो शायद इतने रूपये खर्च करने के बाद उसकी पत्नी स्वस्थ हो गयी होती।
अपनी पत्नी रामरती को खो देने के बाद अमरीका को यह बात समझ में आ गयी है। पर हमारे रूढि़वादी समाज की दिक्कत यही है कि यहाँ पर बड़ा हादसा हो जाने के बाद ही लोगों को इस तरह की बातें समझ में आती हैं। वर्ना जाहिल तो छोडि़ए पढ़े-लिखे लोगों को भी हादसे के पहले तक यही लगता है कि तंत्र-मंत्र, दुआ-तावीज में बड़ी शक्ति होती है और उनसे कुछ भी किया जा सकता है।
लेकिन कुछ लोग हमारे समाज में ऐसे भी हैं, जो इस तरह के हादसे देखने के बाद भी सबक नहीं लेते। (शायद उन्हें स्वयं के साथ ऐसी दुर्घटनाओं के होने का इंतजार हो?) इसीलिए कुछ स्थानीय बड़े-बुजुर्ग लोग अब भी दबी जबान से कह रहे हैं कि इस तांत्रिक के पास सिद्धियाँ नहीं थीं, वर्ना रामरती पक्का ठीक हो जाती।
सोचिए, कितना सशक्त है अंधविश्वास का यह मकड़जाल? पता नहीं हम कब चेतेंगे और कब इस अंधविश्वास के मकड़जाल से बाहर निकल पाएँगे? आपको क्या लगता है, क्या हमारा समाज अंधविश्वास के इस चक्रव्यूह से बाहर निकल सकेगा? अगर हाँ, तो कैसे?
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आपने सही लिखा है ज़ाकिर जी, लोग तब तक नहीं सुधरते जब तक ठोकर नहीं खाते ... कुछ लोग तो फिर भी नहीं सुधरते ....
जवाब देंहटाएंहमारे देश में शिक्षा का अभाव एक मुख्या कारण है ऐसी स्थिति उत्पन्न करने के लिए ... कितनी शर्म की बात है कि आज़ादी के इतने साल बाद भी केवल २० % लोग शिक्षित हो पाए हैं ...
हम कब चेतेंगे और कब इस अंधविश्वास के मकड़जाल से बाहर निकल पाएँगे?
जवाब देंहटाएंquetion is stilllllll
अज्ञात भय से होता है जन्म भूत का
जवाब देंहटाएंएक बहुत सही बात उठाई है आपने इस आलेख के मध्यम से
जवाब देंहटाएंसादर
नहीं, कोई इलाज नहीं है अंधविश्वास का।
जवाब देंहटाएंAndhvishvas hatana hi hoga or aapne shi kkha hai Ki insan thokar lgti hai na to vo shi taste par aajata hai
हटाएंसार्थक पोस्ट,आभार ............
जवाब देंहटाएंमुझे नहीं लगता कि केवल शिक्षित होने से व्यक्ति अंधविश्वासों से छुटकारा पा सकता है.बल्कि पढे लिखे ज्यादा अंधविश्वासी होते है और अपनी बात पर कहीं ज्यादा दृढ होते है.इनके पास अपने अंधे विश्वास को सही साबित करने के लिए (कु)तर्कों की कोई कमी नहीं होती जो कि एक अनपढ नहीं कर सकता.शिक्षित और सुशिक्षित होने में फर्क है.
जवाब देंहटाएंपढ़ा लिखा होने और समझदार होने में बहुत फर्क है । इस तरह के तांत्रिकों और बाबाओं द्वारा सैंकड़ो लोग ठगी का शिकार होते हैं जिसकी वे शिकायत नहीं करते इनमें से गिने चुने को मनोवैज्ञानिक रूप से ही सही बीमारी में फायदा होने पर वे इसका ढ़ोल बजा बजा कर प्रचार करते हैं और इसी से इन ढ़ोंगीयों की दुकान चलती है ।
जवाब देंहटाएंMy Blog- www.skeptic-thinkers.blogspot.com
इस मकड़जाल को तोड़ने की जरूरत है।
जवाब देंहटाएंश्रद्धा और अंधविश्वास के अंतर को तो समझना ही होगा !
जवाब देंहटाएंशौच सुविधा घर में होती,
जवाब देंहटाएंरामरती बाहर क्यूँ जाती,
भूत तीन और चार चुड़ैले ,
पीपल छोड़ ; कीचड़ क्यों खाती !
-mansoor ali hashmi
http://aatm-manthan.com
अंध विश्वास के मकड़जाल से तभी छुटकारा मिलेगा जब आंख खुलेगी। आप यही काम तो कर रहे हैं..
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बहुत सुन्दर लिखा आपने. बधाई.
जवाब देंहटाएंरजनीश भाई
जवाब देंहटाएंमैं दिल्ली के सिविक सेन्टर में अठारवी मंजिल पर कार्य करता हूं, यहां छ्ब्बीसवी मंजिल पर भी भूत की चर्चाए है कया करे ऐसे लोगो का,
आखिर इतनी गहरी जड़ें कैसे जमा लेता है अन्धविश्वास !
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