अंधविश्वास के विरूद्ध ‘ तस्लीम ’ द्वारा चलाई जाने वाली मुहिम को ज्यादातर ब्लॉगर्स पसंद नहीं करते...
अंधविश्वास के विरूद्ध ‘तस्लीम’ द्वारा चलाई जाने वाली मुहिम को ज्यादातर ब्लॉगर्स पसंद नहीं करते हैं। यही कारण है कि ऐसे लोग ‘संवाद समूह’ के अन्य ब्लॉग पर तो खूब कमेंटियाते रहते हैं, पर ‘तस्लीम’ की पोस्टों को देखकर कतरा के बगल से निकल जाते हैं। बहुत से पढ़े-लिखे आधुनिक ब्लॉगर्स तो ऐसे भी हैं, जो अक्सर धर्म की आड़ लेकर इसके विरूद्ध अनर्गल मोर्चा खोले रहते हैं। कई ‘विद्वतजन’ अक्सर ‘अंधविश्वास के फायदे’ बताकर हमारे ज्ञान में वृद्धि करते भी पाए जाते हैं, वहीं कई ‘महापुरूष’ तो यह पूछते रहते हैं कि ‘अंधविश्वास से आपको क्या दिक्कत है?’
ऐसे लोगों की सोच और समझ पर सिर्फ तरस खाया जाता है। क्योंकि यदि ईसा मसीह के शब्दों को उधार लिया जाए तो कहा जा सकता है कि उन्हें नहीं पता कि वे क्या कह रहे हैं। ऐसे ही तथाकथित समझदार लोगों की सेवा में प्रस्तुत है श्री अरविंद जयतिलक का आलेख ‘अंधविश्वासों की काली छाया’। ‘जनसंदेश टाइम्स’ से साभार प्रकाशित इस लेख में यह बताने का प्रयत्न किया गया है कि अंधविश्वास हमारे समाज के लिए कितना घातक है। इतनी गम्भीर स्थितियाँ होने के बावजूद हमारे प्रबुद्ध जनों का इसका विरोध न करना चौंकाने वाला है। इन आँकणों को देख कर जेहन में यह सवाल भी कौंधता है कि क्या अंधविश्वास के नाम पर महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाना कर और उनकी हत्या करना हमारी राष्ट्रीय परम्परा है?
तो पढि़ए अरविंद जयतिलक का लेख और ‘तस्लीम’ की ‘अंधविश्वास के विरूद्ध’ चलने वाली मुहिम का कारण जानिए:
अंधविश्वास और जादू-टोने की परम्परा ने हर काल में समाज को न केवल विद्रूप, दूषित और शर्मसार किया है बल्कि समाज को बड़े पैमाने पर विघटित भी किया है। हालाँकि समय-समय पर चिंतकों और धर्म सुधारकों द्वारा इस दकियानूस परम्परा पर प्रहार किया जाता रहा है, लेकिन उसकी जड़ को खोखला नहीं किया जा सका। सामाजिक जागरूकता और शिक्षा के प्रचार-प्रसार के बावजूद अभी भी हमारा समाज अंधविश्वास और जादू-टोने के दुष्प्रभाव से बाहर निकलता नहीं दिख रहा है। इसके शिकार आमतौर पर बच्चे और महिलाएँ ही होती हैं। आए दिन बच्चे-बच्चियों की बलि चढ़ाने और महिलाओं को डायन करार देकर बेरहमी से उनकी हत्या तक कर दी जाती है। स्वतंत्रता के बाद ऐसी कुप्रथाओं से निपटने के लिए कड़े कानूनों का सहारा लेने के साथ ही जागरूकता कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं, लेकिन जमीनीतौर पर आज भी अंधविश्वासी कुप्रथाओं के बीज यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं।
हाल ही में झारखण्ड राज्य के गिरिडीज हिले में एक महिला को उसके अपने भतीजों ने ही डायन बताकर मार डाला। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश राज्य के सीतापुर जिले के कुसेपा दहेली गाँव में एक दम्पत्ति ने अपनी बच्ची की बलि इसलिए दे डाली कि उनकी तमाम समस्याएँ एक झटके में समाप्त हो जाएँगीं। देश के कोने-कोने से ऐसी हजारों अंधविश्वास भरी घटनाएँ दिल को दहलाती रहती हैं। अभी पिछले दिनों ही यूपी केसोनभ्रद जिले में डायन होने के शक में एक महिला की जीभ काट दी गयी।
गौरतलब है कि ये अंधविश्वासी घटनाएँ प्राय: उन क्षेत्रों में देखी जाती है, जहाँ विकास की रोशनी अभी पूरी तरह पहुँच नहीं पायी है। जहाँ रहने वाले लोग शैक्षिक रूप से तो पिछड़े हैं ही साथ ही यहाँ स्वास्थ्य सेवाएँ भी नदारद हैं। इन क्षेत्रों में रहने वाले लोग अपनी बीमारी और गरीबी तथा ताम समस्याओं का मूल कारण भूत-प्रेत और डायनों में ही टटोलते देखे जाते हैं। अक्सर वे तांत्रिकों और ओझा-गुनियों के बहकावे में आकर जघन्यतम अपराध करने से भी गुरेज नहीं करते हैं। आधुनिकता और टेक्नालॉजी सेलैस होने के बावजूद भी हमारा समाज कितना पिछड़ा और अंधविश्वास से ग्रसित है, आँकड़ों के आधार पर इसे आसानी से समझा जा सकता है।
देहरादून की एक गैरसरकारी संस्था की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में तकरीबन हर साल दो सैकड़ा से अधिक महिलाओं को डायन बताकर मार दिया जाता है। ऐसे नृशंस अपराध झारखण्ड राज्य में सर्वाधिक देखने को मिलते हैं। राष्ट्रीय अपराध ब्युरो के आँकणों पर भी गौर फरमाएँ तो झारखण्ड राज्य में ही हर साल पाँच दर्जन से अधिक महिलाओं को डायन बताकर मार डाला जाता है। कमोबेश यही स्थिति विकसित कहे जाने वाले राज्य आंध्र प्रदेश की भी है, जहाँ तकरीबन 30 से अधिक महिलाओं की बलि हर साल डायन बताकर दे दी जाती है।
रूरल लिटिगेशन एण्ड एनटाइटिलमेंट केन्द्र के अनुसार डायन बताकर महिलाओं की हत्या के मामले में हरियाणा और उड़ीसा राज्य भी कम नहीं हैं। इन दोनों राज्यों में भी हर साल क्रमश: 25-30 और 24-28 महिलाओं की हत्या सिर्फ अंधविश्वास और जादू-टोने के नाम पर की जाती है। विगत पिछले डेढ़ दशक में देश में डायन के नाम पर लगभग 2500 से अधिक महिलाओं की हत्या की जा चुकी है।
याद होगा कि अभी ठीक एक साल पहले झारखण्ड के देवघर जिले के पाथरघटिया गाँव में पाँच महिलाओं को डायन के नाम पर निर्वस्त्र करके घुमाया गया था। झारखण्ड राज्य के ही मिसडेगा जिले के सिकरियातंद गाँव में भी एक अधेड़ महिला को उकसी पड़ोसी महिलाओं ने पीटकर मार डाला। जहाँ एक ओर देश में महिलाएँ पंचायतों में अहम भागीदारी निभा रही हैं, नित नई बुलंदियों को चूम रही हैं, संसद में भी अपना लोहा मनवा रही हैं, ऐसे में महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाना और अंधविश्वास के नाम पर उन्हें डायन करार देकर मार डालना हमारे संवेदनहीन समाज की कड़ुवी सच्चाई को ही उद्घाटित करता है।
ऐसी घटनाएँ कानून और प्रशासन को भी मुँह चिढ़ा रही हैं। प्रशासन इन घटनाओं को तब गम्भीरता से लेता है, जब मीडिया या स्वयंसेवी संस्थाएँ गुहार लगाती हैं। हालात तो तब और गम्भीर हो जाती है, जब पिछड़े और आदिवासी क्षेत्रों में लगने वाली पंचायतें बेखौफ होकर अपने फैसले सुनाते हुए किसी भी महिला को डायन करार दे देती हैं और समाज का एक पढ़ा-लिखा तबका इनका विरोध करने के बजाए इनसमाज विरोधी पंचायतदारों को अपना मौन समर्थन देता नज़र आता है।
लेख बहुत ही गंभीर चिंतन प्रस्तुत करता है.
जवाब देंहटाएंसादर
यह सब स्वार्थी और भयभीत मानसिकता का द्योतक है वास्तव में चीजे बड़ी जटिल है जिनको जानने का दावा हर ऐरू गैरू नत्थू खैरू करता/करती है यहाँ ब्लॉग जगत में की बोर्ड पर उंगलिया चलाने वाला या वाली भली मानसिकता का ढोल भले पीटे पर असलियत में वो उन्ही कुचक्रों में लिपटे रहते है.
जवाब देंहटाएंजब गधा अपने को घोडा समझने लगता है तो वह भाँती भाँती के तौर तरीके अपनाता है ताकि सभी उसे घोडा समझे इस चक्कर में वह खच्चर बन जाता है और तब वह अपने को हाथी समझने लगता है.
आप किसी को समझा नही सकते है.
सहमत हूं...आपने बिलकुल सही फरमाया है!
जवाब देंहटाएंआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (30.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
लेख बहुत ही गंभीर चिंतन प्रस्तुत करता है| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंसहमत हूँ आपसे.स्त्री विरोधी मानसिकता इसके लिये जिम्मेदार है.कई बार किसी विधवा की संपत्ति हडपने या किसी महिला द्वारा छेडछाड का विरोध करने पर भी उसे सबक सिखाने के लिये डायन घोषित कर दिया जाता है.गाँवो में कहा जाता है कि डायन बच्चों को खा जाती है ये ही सोचकर महिलाएँ भी डायन बताई गई महिला को प्रताडित करने में पीछे नहीं रहती.ये सोच तब से चली आ रही है जब किसी बाच्चों की माँ को भी विधवा होने पर सती करने का प्रयास किया जाता था लेकिन वह किसी तरह बचकर भाग जाती थी.इस महिला को डायन घोषित कर दिया जाता था.लेकिन ये महिला अपनी ममता व सहज वात्सल्य भाव के चलते किसी बच्चे से निकटता चाहती थी.और उसे अपना दूध पिलाना चाहती थी क्योंकि इन आवेगों पर नियंत्रण रखना माँ के लिये संभव नही होता. तब से ही ये मिथ्या धारणा बना दी गई कि डायन बच्चे को अपना दूध पिलाकर मार डलती है.मेरे ब्लॉग पर आने के लिये धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंThese practices are staining our humanity, society and our country on the whole. I wish for a day when our country will be free from such evil practices. amen!!
जवाब देंहटाएंYou are doing nice work through this website. All the best for that.
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shilpa
शायद इन सबका मूल कारण अशिक्षा ही है ।
जवाब देंहटाएंजहां विकास की रौशनी पूरी तरह पहुंच चुकी है वहां लड़की को आधुनिक यंत्रों की सहायता से गर्भ में ही मार डाला जाता है। इस सेवा के एवज़ में मोटी रक़म वे डाक्टर वसूलते हैं जो ईश्वर, आत्मा, भूत, जादू और दुआ किसी भी चीज़ में अंधविश्वास नहीं रखते।
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट अच्छी लगी लेकिन सच्चा समाधान कुछ और है।
मां के गर्भ में बच्चियों का क़त्ल शिक्षित घरानों में कहीं ज़्यादा
बात को गंभीरता से ले नही सकते ,
जवाब देंहटाएंटिप्पणी तस्लीम करके दे नही सकते ,
अंधे का विशवास ही है जब धरम अपना ,
Risk ऐसे में कोई हम ले नही सकते.
'जल जो जीवन है'; उसे दूषित करेंगे हम,
डायनो को उसमे प्रवाहित करेंगे हम .
-mansoor ali hashmi
http://aatm-manthan.com
तस्लीम हमारे विरुद्ध मुहिम चलायें और हम पसंद भी करें ? :)
जवाब देंहटाएंमंसूर अली साहब की टिप्पणी को हमारी भी मानिये :)
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जवाब देंहटाएं.
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अंधविश्वास के विरूद्ध ‘तस्लीम’ द्वारा चलाई जाने वाली मुहिम को ज्यादातर ब्लॉगर्स पसंद नहीं करते हैं। यही कारण है कि ऐसे लोग ‘संवाद समूह’ के अन्य ब्लॉग पर तो खूब कमेंटियाते रहते हैं, पर ‘तस्लीम’ की पोस्टों को देखकर कतरा के बगल से निकल जाते हैं। बहुत से पढ़े-लिखे आधुनिक ब्लॉगर्स तो ऐसे भी हैं, जो अक्सर धर्म की आड़ लेकर इसके विरूद्ध अनर्गल मोर्चा खोले रहते हैं। कई ‘विद्वतजन’ अक्सर ‘अंधविश्वास के फायदे’ बताकर हमारे ज्ञान में वृद्धि करते भी पाए जाते हैं, वहीं कई ‘महापुरूष’ तो यह पूछते रहते हैं कि ‘अंधविश्वास से आपको क्या दिक्कत है?’
ऐसे लोगों की सोच और समझ पर सिर्फ तरस खाया जाता है।
प्रिय जाकिर अली 'रजनीश' जी,
आपकी उपरोक्त बातें अपनी जगह पर सही हैं पर आप यह क्यों मानकर चल रहे हैं कि कोई शख्स यदि ब्लॉगर होगा तो अंधविश्वासी नहीं होगा... भाई सीधी सी बात है कि जिसके पास इंटरनेट-कंप्यूटर है वह ब्लॉगर बन सकता है... जब हाल ही में स्वर्ग सिधारे टुच्ची हाथ की सफाई दिखाने वाले एक बाबा को साक्षात भगवान मानने वालों में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, पूर्व सीवीसी, बड़े नौकरशाह व आईपीएस हो सकते हैं तो अधिकतर ब्लॉगर यदि अंधविश्वासी, पोगांपंथी, तार्किक परिणामों तक पहुंचने की क्षमता से विहीन, विभिन्न अंधविश्वासों में जकड़े हुऐ व उनसे भयभीत हैं तो इसमें आश्चर्य कैसा... हमारे समाज में ही आज भी वैज्ञानिक, तार्किक तौर पर चीजों को उनकी समग्रता में देखने व उपलब्ध ज्ञान/जानकारी के आधार पर सही निष्कर्षों तक पहुंचने की क्षमता रखने वालों का नितांत अभाव है... ब्लॉगवुड भी ऐसा ही है...
मैं तो व्यक्तिगत अनुभव से जानता हूँ कि कई ब्लॉगर तो तस्लीम के कुछ आलेखों को यदि भूलवश पढ़ भी लें तो कान पकड़ कर अपने ईश्वर से माफी भी साथ-साथ मांगते हैं इस पापकर्म की... :)
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"हालाँकि समय-समय पर चिंतकों और धर्म सुधारकों द्वारा इस दकियानूस परम्परा पर प्रहार किया जाता रहा है, लेकिन उसकी जड़ को खोखला नहीं किया जा सका। सामाजिक जागरूकता और शिक्षा के प्रचार-प्रसार के बावजूद अभी भी हमारा समाज अंधविश्वास और जादू-टोने के दुष्प्रभाव से बाहर निकलता नहीं दिख रहा है। "----
जवाब देंहटाएंलेख के उपरोक्त --तथ्य से ही पता चलता है कि.. यह समस्या अन्धविश्वास की नही अपितु मानवीय लालच/ अपराध प्रव्रत्ति की है..इसीलिये अन्ध्विश्वास--अन्ध्विश्वास चिल्लाने से भी युगों से खत्म नहीं हो पारही...न यह समस्या का निदान है...
--पवन मिश्रा व अनवर ज़माल ने भी इसी तथ्य पर इशारा किया है....
वो लोग तसलीमा को कभी माफ़ नहीं कर सकते जो चाहते तो हैं कि औरत लिखे लेकिन ...नज्म लिखे किस्सी कहानी लिखे...बस वो सच ना लिखे...
जवाब देंहटाएंऐसे कि नज़र में तस्लिमान कांता है...क्योंकि वो सच लिखती है....
सच उजागर करता है बाप ददावों के उन जुल्मों को जो परदे के पीछे अपने ही बेटी और पोतियों पर ढाते हैं...तमाम रिश्तों को कि बदसूरती को उजागर करती है...
ये लोग तसलीमा को कभी माफ़ नहीं करेंगे सीधे फंसी पर चढ़ाएंगे...
आभार इस जानकारी के लिये।
जवाब देंहटाएंअपने समाज में न जाने ऐसी कितनी कुरीतियाँ है जिनको दूर करना चाहिए .... पर ये समाज आज भी बिखरा हुवा है ... आपस में कट मर रहा है ....
जवाब देंहटाएंआपका प्रस्तुत आलेख पूरा पढ़ा है, जिससे लगता है कि आप किसी धर्म के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि अधर्मियों, दुष्टों और बहरूपियों के कुकर्मों को सबके सामने लाने का पुनीत कार्य कर रहे हैं|
जवाब देंहटाएंजहाँ तक इस बात का सवाल है कि आपका यह प्रयास कितना सही है? जल्दबाजी में कुछ भी कहना ठीक नहीं, लेकिन ये बात सही है कि आपका प्रयास नकारात्मक दीखते हुए भी सकारात्मक है|
इस प्रयास को सार्थक बनाने के लिए, आपके साथ साथ, इसमें बिना पूर्वाग्रह के शामिल होने वाले पाठकों को भी योगदान करना होगा और उन कारणों को ढूंढकर सामने लाना होगा, जिनके कारण ऐसे अवैज्ञानिक विश्वास या अन्धविश्वास पैदा हुए और साथ ही साथ आज के समय में इनको जिन्दा रखने वालों को भी सामने लाना होगा| बेशक हम कुछ कर पायें या न कर पायें, लेकिन समाज को पता तो चलाना ही चाहिए कि इस सबके लिए असली कौन दोषी हैं?
शानदार प्रस्तुति और शानदार प्रयास के लिए धन्यवाद!
अंद्विश्वासों पर लेखे जोखे के साथ सीदा प्रहार .अभी तो इतना ही लिखूं जाने ये टिपण्णी भी हो के नहीं. कल से ५ बार कोशिश कर चूका हूँ हर बार ब्लोगर एरर कर देता है .इतना ही कहूँ आपके आभार के साथ के इस टिपण्णी का भी खुदा हाफिज
जवाब देंहटाएं" समाज का एक पढ़ा-लिखा तबका इनका विरोध करने के बजाए इनसमाज विरोधी पंचायतदारों को अपना मौन समर्थन देता नज़र आता है"
जवाब देंहटाएंसत्ता के खेल में ऐसा होता आया है और होता रहेगा..
बहुत ही बढ़िया पोस्ट .... मेरा आग्रह है कि आप दकियानुसी मानसिकता वाले लोगों की न सुने और अपना कर्तव्य करते जाए ...
जवाब देंहटाएंअक्सर संपत्ति या शोषण ही कारण होता है 'डायन' के मुखौटे के पीछे अपनी कुत्सित मंशा पूरी करने का.
जवाब देंहटाएंnice post.
जवाब देंहटाएंअगर आप बड़ा ब्लॉगर बनना चाहते हैं तो आपको भी अपने अंदर निरालापन ज़रूर लाना होगा Be a unique blogger