भारत में सांप्रदायिक सदभाव की प्रतीक अजमेर की दरगाह में हर रोज़ चढ़ने वाले अकीदत के फूल अब यूँ ही ज़ायाँ नहीं होंगे. अब इन फूलों से...
भारत में सांप्रदायिक सदभाव की प्रतीक अजमेर की दरगाह में हर रोज़ चढ़ने वाले अकीदत के फूल अब यूँ ही ज़ायाँ नहीं होंगे. अब इन फूलों से गुलाब का अर्क़ और खाद बनाई जाएगी. ये फूल तीर्थराज पुष्कर के निकट खेतो में उगाए जाते हैं और इस पवित्र दरगाह में नज़र किए जाते हैं.
दरगाह में हर रोज़ हज़ारों श्रद्धालु दुनिया भर से आते हैं. वहां अज़ान की आवाज़ फ़िज़ा में पाकीज़गी घोलती है और क़व्वालियों से माहौल सूफ़ियाना हो जाता है. दरगाह में चारों तरफ़ अकीदत के फूलों की मौजूदगी ऐसा एहसास देती है गोया किसी ने जन्नत को तस्वीर में उतार दिया हो. दरगाह प्रबंधन के मुताबिक अनुमान है कि हर रोज़ हज़ारो ज़ायरीन इबादत के लिए आते हैं और कोई छह टन से ज़्यादा फूलों का नज़राना पेश करते हैं.
लेकिन कुछ ख़ास पवित्र दिनों पर श्रद्वालुओं की तादाद और चढ़ाए जाने वाले फूलों की मात्रा बढ़ जाती है.
दरगाह में अंजुमन के एक सदस्य सैयद इकबाल कहते है, "फूल साहिबे मज़ार होते हैं. उनके मज़ार पर खुशबू पेश की जाती है. इन फूलों के कुछ धार्मिक मायने हैं. ख्वाजा साहिब को तो गुलाब के फूल बहुत पसंद थे. ये फूल हिन्दू मुस्लिम एकता की मिसाल हैं. मेरे ख्याल में ये दुनिया में सबसे अच्छी किस्म का गुलाब है.”
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दरगाह में चढ़ावे के बाद इन फूलों के इस्तेमाल की योजना को अहमद रज़ा ने बढ़ावा दिया. वो अभी चंद दिन पहले तक इस दरगह के नाज़िम थे. वो इस परियोजना के बारे में बताते हैं कि ये फूल उन खेतो में पैदा होते है जो ब्रह्मा के मंदिर वाले पुष्कर के इर्द-गिर्द फैले हुए है. वे बताते हैं, ''फूल वहां पैदा होता है और मज़ार शरीफ़ पर चढ़ता है. अल्लाह हमें ये बताना चाहता है कि बन्दों तुम चाहे धर्मनिपेक्ष हो या नहीं, मैं सेकुलर हूँ. अब तक ये फूल बहुत ही आदर के साथ दफ़न किए जाते थे और इस पर हर साल सवा दो लाख से तीन लाख तक खर्च होते थे. हमने चाहा कि इन पाक फूलों को मिट्टी में मिलाने की बजाए आँखों से लगाया जाए.”
आस्था के फूल
दरगाह के नाज़िम रहे रज़ा ने बीबीसी को बताया कि तकनीकी मंत्रालय और कुछ गैर सरकारी संगठनों की मदद से योजना बना ली गई है.
अल्लाह हमें ये बताना चाहता है कि बन्दों तुम चाहे धर्मनिपेक्ष हो या नहीं मैं सेकुलर हूँ.अब तक ये फूल बहुत ही आदर के साथ दफ़न किए जाते थे और इस पर हर साल सवा दो लाख से तीन लाख तक खर्च होते थे. हमने चाहा कि इन पाक फूलों को मिट्टी में मिलाने की बजाए आँखों से लगाया जाए. -अहमद रज़ा
अब इन फूलों से गुलाब का अर्क़ बनेगा, अगरबत्ती बनेगी और फिर भी जो कुछ बचेगा उससे खाद बनेगी. इससे कुछ लोगों को काम भी मिलेगा. ग़रीब नवाज़ की बंदगी गंदरबल के गुलाम मोहम्मद को वादी ऐ कश्मीर से अजमेर खींच लाई .
गुलाम मोहम्मद ने फूलों को अपने ख्वाजा की अकीदत में पेश किया और जी भर कर अमन की दुआ मांगी. वे कहते हैं, “दरगाह पर फूल और चादर चढ़ाने से हमारा दिल भी खुश होता है और गरीब नवाज़ भी खुश होते हैं. मेरा ख्वाजा बहुत बढ़िया है, उसके दरबार में कोई कमी नहीं है.वो फूलों से मोहब्बत करता है.”
दरगाह के एक खादिम बदरू मियाँ कहते है, “फूलों की यहाँ बड़ी अहमियत है. जितने भी ज़ायरीन आते हैं वो ख्वाजा को फूल चढ़ाते हैं. ये प्रसाद है. ये सिलसिला आज का नहीं है, सैंकडों सालों से ये ही चल रहा है. लोग मन्नत पूरी होने पर यहाँ हाज़री देते है और फूल और चादर चढ़ाते हैं.”
दरगाह में अंजुमन के एक सदस्य मक़सूद अहमद कहते हैं कि मज़ार पर चढ़ने के बाद फूलों की अहमियत और बढ़ जाती है. उनका कहना है, हर मज़हब और आस्था के लोग होते हैं, वे फूल चढ़ाते हैं और चूमते हैं, इसे प्रसाद के रूप में लेते हैं.
फूल इन्सान के हाथों गुज़रते हैं मगर वो आस्था में फर्क़ नहीं करते. फूल बहुत निर्मल होते है. कहीं वो मज़ार और दरगाह में इबादत का हिस्सा है तो कहीं देवालय और पूजा की थाली में श्रद्धा का सबब.
- नारायण बारेठ
साभार: बीबीसी
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सार्थक सोच और सार्थक प्रयास दोनो साथ साथ चलें तो दुनिया खुशहाल हो जाये। बधाई।
जवाब देंहटाएंसार्थक सोच और सार्थक प्रयास दोनो साथ साथ चलें तो दुनिया खुशहाल हो जाये। बधाई।
जवाब देंहटाएंसार्थक और जानकारी से भरा आलेख .
जवाब देंहटाएंयूपी खबर
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बहुत ही सुन्दर कदम....खुदा के हर चीज की क़द्र होनी ही चाहिए.
जवाब देंहटाएंसुन्दर कदम..सार्थक सोच और सार्थक प्रयास .
जवाब देंहटाएंyadi koi apke lekh padh kar naastik ban jaye aur uske atmvishwaas kam hokar mansik paresaani bahut badh jaye to kya karein. kripya avashya jawaab dein. dhanyawaad.
जवाब देंहटाएंआम के आम गुठलियों के दाम
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंयह सकारात्मक सोच का ही परिणाम है. जान कर अच्छा लगा .
जवाब देंहटाएंऐसे प्रयास जारी रहने चाहिए .
अच्छा है, अब फूल भी बेकार नहीं होंगे...
जवाब देंहटाएंवैसे इतने महान और सादगी पसंद सूफी संत ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर फूलों को चढाने का दिखावा होता ही क्यों है??? इस पर रोक लग सके तो असल बात बने...
aaj ki taza khabar
जवाब देंहटाएंhttp://khabar.ibnlive.in.com/news/49274/3/21?xml
@Shah Nawaz bhai kya aapko kabro par phool dalne ki ahmiyat nahi pata jo ye baat kah rahe ho
जवाब देंहटाएंshah ji.. abhi aap ko maloom nahi ki phool paida krne se kitne privaro ki roti chalti hai....ye idia achaa hai ki enko bekar na fenk kar.. prfum yo khad banaai jaye... thats great....
जवाब देंहटाएंयहां कुछ लोग कब्र पर फूल डालने के लाभ बता रहे हैं कृपया वे अवश्य बताएँ ताकि उनपर भी वैज्ञानिक टिप्पणीयाँ की जा सकें।
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