अंधविश्वास की जब भी बात चलती है, उनमें सबसे पहले महिलाओं का नाम आता है। इसके पीछे क्या कारण है यह जानने के लिए दैनिक हिन्दुस्तान क...
अंधविश्वास की जब भी बात चलती है, उनमें सबसे पहले महिलाओं का नाम आता है। इसके पीछे क्या कारण है यह जानने के लिए दैनिक हिन्दुस्तान की मंजरी श्रीवास्तव ने कुछ लोगों से बातचीत की। उस बातचीत से कुछ महत्वपूर्ण बातें निकल कर आईं। आइए देखें इनमें कितना दम?
हिन्दू-उर्दू के प्रसिद्ध साहित्यकार दंपती मुशर्रफ आलम जौकी और उनकी पत्नी तबस्सुम फातिमा, जो प्रोड्यूसर-डायरेक्टर भी हैं, दोनों धर्म और ज्योतिष पर अलग-अलग राय रखते हैं। जौकी, अंधविश्वासी नहीं हैं पर तबस्सुम, सभी विश्वासों में यकीन करती हैं। जौकी साहब ने महिलाओं के अधिक अंधविश्वासी होने पर कहा, ‘दरअसल महिलाओं में घर-परिवार, पति-बच्चे की सुरक्षा को लेकर एक असुरक्षा की भावना रहती है और उनकी सलामती के लिए वे कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहती हैं। तबस्सुम का कहना था, ‘वैज्ञानिक एप्रोच के साथ ही विश्वास करना चाहिए। मैं ऐसा ही करती हूं।’
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युवा अधिवक्ता राजीव रंजन ने बताया, ‘यदि हम मां और दादी-नानी की तरफ देखें तो हमें लगता है कि वे अंधविश्वासी हैं। दोस्त के रूप में लड़कियां अंधविश्वासी नहीं लगतीं, समीकरण बदलते ही यानि गर्लफ्रेंड बनते ही वे थोड़ा अंधविश्वासी हो जाती हैं और पत्नी या मां बनते ही, आप उनमें अंधविश्वास का वही स्तर पाएंगे जो आपको अपनी मां में अब तक नजर आता होगा। इसकी भी एक बड़ी वजह है। महिलाएं सोचती हैं कि यदि इन मान्यताओं से किसी भी तरह से लाभान्वित और सुरक्षित हुआ जा सकता है तो इन्हें भी एक मौका देने में हर्ज ही क्या है? वे सभी परिवारजनों का हित चाहती हैं। यह मनोवृत्ति धीरे-धीरे अंधविश्वास में बदल जाती है।’
आदिवासियों/दलित महिलाओं के लिए काम करने वाली रमणिका गुप्ता का कहना है, ‘महिलाओं के अंधविश्वासी होने की सबसे बड़ी वजह है हमारे सामाजिक ढांचे का धर्म पर आधारित होना और अशिक्षा।’’ प्रसिद्ध कवियत्री अनामिका कहती हैं -‘‘समाज में विभिन्न प्रकार के भय और असुरक्षा की भावनाएं व्याप्त है। यही कारण है कि अंधविश्वास का वजूद कायम है। उदाहरण के लिए क्या ट्रक की सुरक्षा एक नींबू और चंद मिर्चे कर सकती हैं? दरअसल यह, उस ट्रक ड्राइवर के घर वालों या उसकी पत्नी द्वारा किया जाने वाला सुरक्षा उपाय है। उनका विश्वास है, जिसे हम अंधविश्वास कहते हैं।’’
युवा कवयित्री और पत्रकार अकांशा पारे का कहना है, ‘‘अंधविश्वास का कोई तयशुदा फार्मूला नहीं है। मैं मानती थी कि नीले रंग की स्याही से लिखने पर मेरे पेपर्स अच्छे नहीं होते। मैं परीक्षा के लिए काली स्याही का इस्तेमाल करती थी। पर कुछ दिन पहले मुझे काली स्याही वाला पेन नहीं मिला और मैंने नीली स्याही से पेपर दिया। तब मेरा अंधविश्वास दूर हुआ क्योंकि मेरे पेपर अच्छे गए थे।’’
युवा लेखिका विपिन चौधरी, फैशन डिजाइनर पूनम शर्मा और रेडियो एंकर रेणु वर्मा के अंधविश्वास पर अलग-अलग मत हैं। विपिन और पूनम का मानना है, ‘‘घरेलू औरतें अधिक अंधविश्वासी होती हैं। कामकाजी महिलाएं भी अंधविश्वासी होती हैं पर उनके पास समय का अभाव होता है इसलिए वे इस ओर ध्यान नहीं दे पातीं।’(हिन्दुस्तान से साभार)
वाकई. अंधविश्वास पर आधारित सुरक्षाकवच महिलाओं को पुरुषों की बनिस्बत अधिक आकर्षित करते ही देखने में आते हैं ।
जवाब देंहटाएंmahilayein in baaton mein jaldi biswaas kar leti hai ...ek achchi prastuti ke liye abhaar.
जवाब देंहटाएंचूंकिज्योतिषक्षेत्र में हूँ और मेरे अनुभव में पुरुष भी अधिक अंधविश्वासी आये हैं परन्तु वे गुपचुप रहते हैं और महिलायें प्रकट करने के कारण बदनाम होती हैं. मैं
जवाब देंहटाएंkuchh point mahilao ke bare me wajib bhi hai...kintu jo andh biswasi hai....wo to tippani karane ke baad bhi hai....?
जवाब देंहटाएंकोई कम नहीं है ...
जवाब देंहटाएंअब क्या कहा जाय.
जवाब देंहटाएंकुछ व्यक्तिगत मत इस पोस्ट का मूल आधार हैं सो मुझे लगता है कि अन्धविश्वास के मामले में बड़ी ही भेदभावपूर्ण प्रविष्टि है ! इस क्षेत्र में स्त्री लिंग का वर्चस्व अभी प्रमाणित नहीं हुआ है !
जवाब देंहटाएंअली जी, यह परिचर्चा दैनिक हिन्दुस्तान में प्रकाशित हुई थी। मैंन उस परिचर्चा को यहां ज्यों का त्यों प्रस्तुत भर कर दिया है।
जवाब देंहटाएंविपरीत परिस्थितियों में,अंधविश्वास की कमोबेश वृत्ति हम सब में होती है।
जवाब देंहटाएंसत्य है ....
जवाब देंहटाएंअशिक्षा शायद मूल कारण है ...मगर सच यही है ! अच्छी परिचर्चा !
एक विचित्र बात यह है कि अंधविश्वास का व्यक्ति की हैसियत से कोई लेना-देना नहीं है। मगर यह इस दृष्टि से अच्छा है कि जाने-अनजाने हम उस परम सत्ता को सर्वोपरि स्वीकार करते हैं।
जवाब देंहटाएंमेरे ख्याल में अन्धविश्वास है ही वो जिसका वैज्ञानिक आधार नहीं है.
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