ज्योतिष को विज्ञान सिद्ध करने वाले ज्योतिषियों को एक जोर का झटका और लगा है और यह झटका ऐसा है, जिसने उनके पैरों के नीचे की जमीन ही खिस...
ज्योतिष को विज्ञान सिद्ध करने वाले ज्योतिषियों को एक जोर का झटका और लगा है और यह झटका ऐसा है, जिसने उनके पैरों के नीचे की जमीन ही खिसक गयी है। कारण है शीर्ष अमेरिका ज्योतिष प्रोफेसर पार्क कंकल का वह अध्ययन, जो उन्होंने ग्रहों की गति के गहन अध्ययन के बाद निकाला है।
गौरतलब है कि ज्योतिष के महत्वपूर्ण जोड़-तोड़ राशियों के हिसाब से तय किये जाते हैं। मनुष्यों के लिए राशियों का निर्धारण आज से ढ़ाई हजार साल पहले बेबीलोन के निवासियों ने किया था, जो बाद में सारे विश्व में फैला। यह राशियां धरती के सापेक्ष ग्रहों की स्थितियों का अध्ययन करके तय की गयी थीं। हालांकि इन आकलनों में कुछ बुनियादी गलतियां भी थीं, जैसे कि चंद्रमा को भी ग्रह माना गया था और पृथ्वी को ग्रह के रूप में निग्लेक्ट किया गया था। लेकिन इसके बावजूद सारे विश्व में ज्योतिषी वेबीलोन वासियों द्वारा निर्धारित 12 राशियों को मानते रहे हैं और उनके अनुसार मनुष्य का भाग्य बताते रहे।
लेकिन ज्योतिषी और वैज्ञानिक कंकले ने जब ग्रहों की चाल का अध्ययन किया, तो पाया कि चंद्रमा के गुरूत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी की कक्षा में भी कुछ न कुछ फर्क आ जाता है। पिछले 2500 सालों में सूर्य के सापेक्ष पृथ्वी की गति इतनी बदल गयी है कि राशियां लगभग एक महीना खिसक गयी हैं। इस परिघटना को विज्ञान की परिभाषा में 'वॉबलिंग' कहा जाता है।
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गलत बतायी गयी आपकी राशि
इसका मतलब यह हुआ कि आज तक ज्योतिषी जिस व्यक्ति की राशि कन्या बताते हैं, वास्तव में वह तुला राशि का होता है। चूंकि ज्योतिषी पूर्व की धारणाओं पर ज्यादा यकीन रखते हैं, इसलिए न तो उन्होंने पिछले 2500 सालों में कभी ग्रहों की स्थितियों का अध्ययन किया और न ही उन राशियों के परीक्षण की आवश्यकता समझी। नतीजतन वे लगातार गलत राशियों के आधार पर भविष्वाणियां करते रहे और उन्हें 'पूर्ण वैज्ञानिक' भी मानते रहे।
प्रोफेसर कंकल ने अपने अध्ययन में पाया कि पृथ्वी के सापेक्ष ग्रहों की गति में काफी बदलाव आया है और राशि अपने पूर्व स्थान से लगभग एक महीने आगे खिसक गयी हैं। उन्होंने राशिचक्र में हुए बदलाव के कारण राशियों की स्टि में एक नई राशि जोड़ने का सुझाव भी दिया है। इस नई राशि का नाम उन्होंने 'ओफियुसच' अर्थात 'सर्पधारी' रखा है।
वास्तविक राशियां कौन सी हैं?
प्रोफेसर कंकल ने राशियों का जो नया निर्धारण दिया है, वह निम्नानुसार है-
मकर (कैप्रिकॉर्न) 21 जनवरी से 16 फरवरी (पूर्व में 22 दिसम्बर से 19 जनवरी)
कुंभ (एक्वेरियस) 17 फरवीरी से 11 मार्च (पूर्व में 20 जनवरी से 18 फरवरी)
मीन (पाइसेज) 12 मार्च से 18 अप्रैल (पूर्व में 19 फरवरी से 20 मार्च)
मेष (एरीज) 19 अप्रैल से 13 मई (पूर्व में 21 मार्च से 20 अप्रैल)
वृषभ (टॉरस) 14 मई से 21 जून (पूर्व में 21 अप्रैल से 20 मई)
मिथुन (जेमिनी) 22 जून से 20 जुलाई (पूर्व में 21 मई से 21 जून)
कर्क (कैंसर) 21 जुलाई से 10 अगस्त (पूर्व में 22 जून से 23 जुलाई)
सिंह (लियो) 11 अगस्त से 16 सितम्बर (पूर्व में 24 जुलाई से 22 अगस्त)
कन्या (वर्गो) 17 सितम्बर से 30 अक्टूबर (पूर्व में 23 अगस्त से 22 सितम्बर)
तुला (लिब्रा) 17 सितम्बर से 20 अक्टूबर (पूर्व में 23 सितम्बर से 23 अक्टूबर)
वृश्चिक (स्कार्पियो) 31 अक्टूबर से 23 नवम्बर (पूर्व में 24 अक्टूबर से 21 नवम्बर)
धनु (सैगिटेरियस) 24 नवम्बर से 29 नवम्बर (पूर्व में 22 नवम्बर से 21 दिसम्बर)
सर्पधारी (ओफियुचस) 30 नवम्बर से 17 दिसम्बर।
अब सवाल यह भी है कि इनमें वास्तविक राशियां कौन सी हैं?
अब क्या करेंगे ज्योतिषी?
ज्योतिषियों के सामने अब इधर कुऑं उधर खाई वाली स्थिति हो गयी है। कारण अगर वे प्रोफेसर कंकल की इस गणना को स्वीकार कर लेते हैं, तो उन्हें अपनी तमाम गणनाओं को गलत मानना होगा, जिसके लिए वे भूतकाल में कितने दावे करते फिरते रहे हैं। और अगर वे राशियों के इस नए निर्धारण को नहीं मानते हैं, तो उनके सामने खुले रूप में अवैज्ञानिक होने का आरोप लगेगा, जिसके बचाव के लिए उनके पास कोई रास्ता नहीं होगा।
वैसे ज्योतिषी इस सम्बंध में चाहे जो निर्णय लें, समझदार जनता के सामने 'ज्योतिष की प्रामाणिकता' तो सामने आ ही गयी है।
आपका इस सम्बंध में क्या विचार है?
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भाई -जाकिर अली 'रजनीश'...एक बात बताओ ..की जब स्टीफेन हॉकिंग ने भी अपने जिंदगी भर के अध्ययन का निचौड़ यह बताया की खुदा या भगवान तो है ही नहीं ....तब आप किसकी बात सही मानोगे...आपके पुरातन ग्रन्थ कुरान को या हॉकिंग को ???...मैं यह मानता हूँ की ज्योतिष की आड़ में 99% लोग अपना उल्लू सीधा कर रहें हैं पर इसका मतलब यह तो नहीं है की कोई विज्ञानं ही गलत है ..इसलिए सिर्फ 'फलां ने यह लिखा वह लिखा' की नक़ल न कर अपना दिमाग इस्तेमाल किया करो ..क्यों की (विदेश)वहाँ तो रोज की कोई न कोई रिसर्च होती ही रहती ही ...जिसमे कभी क्या कहा जाता है कभी क्या ...
जवाब देंहटाएंअनामी राहुल, अपनी बात कहने का साहस तो रखो। जब इतना भी साहस नहीं है तुममें, तो फिर तुम्हारी बात का जवाब देनी की जहमत ही क्यों की जाए।
जवाब देंहटाएंज्योतिष किस तरह से विज्ञान हो गया है ये तो कोई नहीं जानता ... बस ज्योतिषी लोग इसे विज्ञान कहके प्रचार करने में लगे रहते हैं ...
जवाब देंहटाएंबेवक़ूफ़ तो आम जनता है जो इसे सच मानके चलते हैं ...
ताज़ा अध्ययन कितने दिन क़ायम रहेगा,पहला प्रश्न तो यही है। मैं यह भी ध्यान दिलाना चाहूंगा कि आए दिन अखबारों में स्वास्थ्य संबंधी जो खबरें छपती हैं,उनमें से 99 प्रतिशत खबरें विदेशों में हुए अध्ययनों पर आधारित होती हैं और आपको यह भी ध्यान होगा कि एक बार खबर छपने के बरसों बाद तक उनका कुछ अता-पता नहीं चलता।
जवाब देंहटाएंऐसा प्रतीत होता है कि प्रो. कंकले के निष्कर्ष अगर सही हैं,तो वे ज्योतिष विधा की उन कमियों को दूर करने में सहायक हो सकते हैं जिनके बाद ज्योतिष को विज्ञान कहना संभव हो अथवा जिनके कारण तमाम मेहनत के बावजूद ज्योतिषियों के कई भविष्यकथन एकदम सटीक साबित नहीं होते।
अच्छी जानकारी दी आपने। वैसे मुझे नहीं लगता कि भारतीय ज्योतिषी इस खबर को कोई महत्व देंगे।
जवाब देंहटाएंजनाब ज़ाकिर अली,
जवाब देंहटाएंनमस्कार।
भाई मैं कभी भी ज्योतिष को लेकर बहस में नहीं पडता - क्योंकि मैं समझता हूँ कि सभी को अपनी निजी राय बनाने का अधिकार है और वे अपने निजी अनुभवों के आधार पर ऐसा करते हैं।
मैं तो यहाँ बस यह कहने के लिए रुक गया कि जो जानकारी आपने अपने लेख के माध्यम से दी - "बॉबलिंग" वाली, वह तो हम ज्योतिषियों के पास पहले ही से है और उसे भी हम अपनी गणनाओं में प्रयुक्त करते हैं।
स्वस्थ आलोचना करते रहें - यह भी एक प्रकार से ज्योतिष की मदद ही है।
धन्यवाद
सपेम
डॉ संजय गुलाटी मुसाफिर
www.SanjayGulatiMusafir.blogspot.com
व्यक्तिगत तौर पर ज्योतिषशास्त्र पहले भी मुझे आधा-अधुरा ही लगता था और आज भी नई शोध सामने आने के बाद भी लगता है कि अभी बहुत कुछ बाकी है!...इसमें ज्योतिषियों का कोई दोष नही है...सभी अपनी अपनी अलग पद्धति के अनुसार भविष्यवाणी करतें है...१००% तो आज तक किसी की सही बैठी नही है....फिर भी शोध जारी है यह बहुत अच्छा संकेत है!...वैसे नई शोध के बारे में जोतिषी जवाबदेह तो है ही!...बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने -जाकिर अली रजनीश जी! ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबड़ी विस्फोटक जानकारी.
जवाब देंहटाएं.ज्योतिष अमेरिकी प्रो.सा :का मोहताज नहीं है. जब अमेरिका की खोज भी नहीं हुयी थी तब से भारत में ज्योतिष एक विज्ञानं ही था ,पोंगा -पंथी चाहे जो गलत करें वह ज्योतिष नहीं है. राशियों का यह वर्गीकरण बेबीलोन का होगा.भारतीय ज्योतिष चंद्रमा की चाल पर निर्भर करता है.आज भी ब्रहम्मांड का मान ३६० डिग्री ही है.सूर्य की चाल ३० कला ही है और इस प्रकार १२ राशियाँ ही हैं. भारतीय वैज्ञानिक ज्योतिष को मानने वालों की जमीन कभी नहीं खिसकेगी.अमेरिकी और यूरोप के लोगों की ही जमीन खिसक सकती है क्योंकि वह पोल पर आधारित है.
जवाब देंहटाएंRAHUL ne sahi kaha, --bevakoofee ki baton/adhyayan men ye log to lage hi rahate hain---us videshee ko ham kyon manen, apana chhodakar...
जवाब देंहटाएं1--yahi galat hai ki 2500 varsh pahale Bebilone men JOTISH ka janm hua---bharat men 10hazar varsh pahale hi jyotish ka janm hogaya thaa---AKHIR videshi chashma jo laga hai...
2-BaBLING ab kaha rahe hain----yah to jyotishiyon ko sada se he pataa hai..is sabaka dhyan rakhakar hi jyotish padhi jati hai.....jara koee gahan adhyayan to kare...
---12 rashiyan koi vastavik nahin apitu aasaman ko 12/27 bhagon men bant kar kalpana ki gai hai...aap chahe 13 -14-15 kuchh bhi kar sakate hain koi fark nahin...
---yah jyotish yoon hi chalati rahegi & tab tak prof kankale...KANKAAL ban jaayenge...
RAHUL ne sahi kaha, --bevakoofee ki baton/adhyayan men ye log to lage hi rahate hain---us videshee ko ham kyon manen, apana chhodakar...
जवाब देंहटाएं1--yahi galat hai ki 2500 varsh pahale Bebilone men JOTISH ka janm hua---bharat men 10hazar varsh pahale hi jyotish ka janm hogaya thaa---AKHIR videshi chashma jo laga hai...
2-BaBLING ab kaha rahe hain----yah to jyotishiyon ko sada se he pataa hai..is sabaka dhyan rakhakar hi jyotish padhi jati hai.....jara koee gahan adhyayan to kare...
---12 rashiyan koi vastavik nahin apitu aasaman ko 12/27 bhagon men bant kar kalpana ki gai hai...aap chahe 13 -14-15 kuchh bhi kar sakate hain koi fark nahin...
---yah jyotish yoon hi chalati rahegi & tab tak prof kankale...KANKAAL ban jaayenge...
जाकिर साहेब , मुबारक हो एक अच्छी जानकारी के लिए. लेकिन शायद कंकाल महोदय ने भारितीय ज्योतिष पढ़ी होती तो ये गलती नहीं होती. लेकिन एक बात में आपको बता दू कि आप खुद भी भारतीय ज्ञान को चुनौती नहीं दे सकते.
जवाब देंहटाएंएक बात और अगर आप ज्योतिष को नहीं मानते तो इसका मतलब आप किसी भी धर्म को नहीं मानते तो क्या आप कुरान या इस्लाम का विरोध करने कि ताकत रखते हैं.
आप के जबाब का इंतजार रहेगा मेरे आपने मेल पर. .
भाई -जाकिर अली 'रजनीश'...पहले तो यह तय करो की मैं बेनामी हूँ या राहुल हूँ l क्यों की मैं या तो बेनामी हो सकता हूँ या राहुल …या आपको कोई खास जानकारी चाहिए मेरे बारे में …….???
जवाब देंहटाएंदूसरी बात जैसा की श्री मान “कुमार राधारमण” जी ने कहा की “ताज़ा अध्ययन कितने दिन क़ायम रहेगा,पहला प्रश्न तो यही है।”……मुख्य बात यही है - की वहाँ पर रोज इस तरह के अध्ययन या रिसर्च होते रहतें हैं और कुछ दिनों के बाद या तो उनका पता ही नहीं चलता है या उन्ही के द्वारा की गयी कोई दूसरी रिसर्च उसका खंडन कर देती है और ऐसा सिर्फ स्वास्थ्य संबंधी मामलों में ही नहीं होता है सभी क्षेत्रों में यही देखने में आया है l साथ ही यह भी ध्यान में रखने वाली बात है की 99% रिसर्च के लिए धन बड़ी कम्पनियाँ ही देती है तो इसलिए 99% रिसर्च बाजार को ध्यान में रख कर ही की जाती है, और वह भी सिर्फ कंपनियों के फायदे के लिए ना की आम जन के फायदे के लिए
..एक बात और यह सभी रिसर्च कितनी सही है या कितनी ईमानदारी से की गयी है यह जानने का भी कोई पैमाना नहीं है हमारे पास ..इसलिए इनकी सत्यता पर तो संदेह होना लाजमी ही है ……तो जब आप एक सार्वजनिक मंच पर यह बचकाना लेख लिख लिखते हैं तो मुझे आपकी योग्यता पर भी संदेह होता है की आप इस बचकाने लेख के द्वारा क्या सिद्ध करना चाहतें है
@Indranil Bhattacharjee ........."सैल" …जी ने कहा की “
जवाब देंहटाएंज्योतिष किस तरह से विज्ञान हो गया है ये तो कोई नहीं जानता ... बस ज्योतिषी लोग इसे विज्ञान कहके प्रचार करने में लगे रहते हैं ...
बेवक़ूफ़ तो आम जनता है जो इसे सच मानके चलते हैं” ......तो इनकी बात पर मुझे फिल्म 3-इडियट का एक सीन याद आ गया जिसमे प्रोफ़ेसर द्वारा पूछी गयी मशीन की परिभाषा को आमिर खान साधारण शब्दों में समझाता है और प्रोफ़ेसर द्वारा अपमानित किया जाता है और जब वही परिभाषा एक पुस्तक से पढ़ कर बताई जाती है तो प्रोफ़ेसर साहब बड़े खुश हो जाते है
तो इन IIT से पढ़े साहब को भी लगता है की विज्ञान का मतलब सिर्फ उतना ही पता है जितना की किसी पुस्तक में उसका अर्थ बताया गया है ….विज्ञान की परिधि का दायरा शायद इनको अभी तक पता ही नहीं चला है …
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जवाब देंहटाएंशाश्वत बहस है. पता नहीं किसी परिणति पर पहुंचेगी
जवाब देंहटाएंभी या नहीं !
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जवाब देंहटाएंबेहतरीन जानकारी
जवाब देंहटाएंदरअसल भारत में तो सत्ताईस नक्षत्र और एक हाडे गाढे गणनाओं को दुरुस्त करने हेतु अट्ठाइस्वां 'अभिजित ' नक्षत्र भी है -भारतीय गणितग्य ज्योतिषी ज्यादा दूरदर्शी और प्रकांड विद्वान् थे ..उनकी काल गणना में कोई सानी नहीं थी -तो यहाँ तो एक दृष्टि से सताईस राशियाँ पहले से ही हैं ....दरअसल आकाश का बारह स्थूल क्षेत्रों में विभाजन - राशियों की मान्यता भारतीय नहीं है -यह पहले से ही मूर्खतापूर्ण रही है अब वे उसे तेरह करें या चौदह यहाँ भारतीय मूल ज्योतिष पर कोई असर नहीं पड़ने वाला ०हम तो पहले से सत्ताईस लिए बैठे हैं जो ज्यादा सूक्ष्म और वैज्ञानिक है !
जवाब देंहटाएंहमारी विडम्बना यह है कि हमें न तो अपने देशज ज्ञान की अच्छी समझ है और न ही अधुनातन विज्ञान के साथ उसके तारकिक समन्वय की सूझ -परिणामतः ऐसी सनसनी पोस्टे हमारा समय और ऊर्जा दोनों जाया करती हैं ....और महामूर्ख फलित ज्योतिषियों को भी श्रृंगाल रुदन का मौका दे देती हैं -अब संगीता जी जो हिन्दी ब्लॉग जगत में भारतीय ज्योतिष की झंडाबरदार हैं ठीक तरह से इस बिंदु का प्रतिकार नहीं कर पा रही है -मैं तो रजनीश और उन्हें एक ही धरातल पर पा रहा हूँ -तार्किक सक्रियता का स्वागत है मगर स्वाध्याय की न्यूनता पर नहीं -यह विमर्श के मुद्दों को और भी हास्यास्पद बना देती है !
मैं डॉ दिनेश राय द्विवेदी जी से इस बिंदु पर उनके विचार जानना चाहता हूँ और उन्मुक्त जी तथा प्रवीण शाह भी यदि कुछ कहना चाहें तो स्वागत है !
इन वैज्ञानिक तथ्यों से ज्योतिषियों को कोई फर्क पडने वाला नहीं है । उनका धंधा यदि सदियों पूर्व से चलता चला आ रहा है तो सदियों बाद तक भी निर्बाध चलता ही रहेगा । अनेकों समस्याओं से जूझती दुःखों की मारी, आबादी बेचारी. जाएगी तो इन्हीं की शरण में.
जवाब देंहटाएंनई जानकारी से अवगत कराने का शुक्रिया ..ज्योतिष और हस्तरेखा विश्लेषण को मैं निराधार नहीं मानती हूँ , हाँ सही पढना आना चाहिए , जन्म लग्न और गोचर के ग्रहों के अनुसार मैंने कितनी ही बातों को घटते हुए देखा है , इसके साथ ही सात्विक कर्मों के साथ शुभता को फलते देखा है , इसलिए ज्योतिष को हमें अपनी ताकत बनाना चाहिए न कि वहम और कमजोरी । ये लालकिताब वाले उपाय और लालकिताब पर विश्वास रखने वाले मेरी समझ से बाहर हैं । मैनें खुद इस पर बहुत पढ़ा है , बचपन से समझा है , और किया वही है जो मेरे खुदा को रास आए ....
जवाब देंहटाएं@ राहुल जी, आपको अनामी राहुल मैंने इसीलिए लिखा था, क्योंकि आपने अपनी प्रोफाइल का जो लिंक दिया है, वह गलत है। और यह गलती अनजाने में नहीं हुई है, क्योंकि दूसरे कमेंट में दिये लिंक से भी आपका प्रोफाइल नहीं खुल रहा है। इससे स्वयं सिद्ध होता है कि आप राहुल न होकर कोई अन्य व्यक्ति हैं और अपने नाम से सामने आकर अपनी बात कहने से डर रहे हैं।
जवाब देंहटाएं@ विजय माथुर जी, विज्ञान उसी सिद्धांत को स्वीकार करता है, जो किसी भी स्थान पर समान परिस्थितियों में किये गये परीक्षण के बाद समान परिणाम देता है। दुर्भाग्यवश फलित ज्योतिष इस कसौटी पर कभी भी खरा नहीं उतरता है।
जवाब देंहटाएं@ तारकेश्वर गिरी जी, आपने लिखा है कि 'एक बात और अगर आप ज्योतिष को नहीं मानते तो इसका मतलब आप किसी भी धर्म को नहीं मानते तो क्या आप कुरान या इस्लाम का विरोध करने कि ताकत रखते हैं।'
जवाब देंहटाएंगिरी जी, मेरी समझ से ज्योतिष का धर्म से कोई लेना देना नहीं है। ज्योतिष स्वयं को विज्ञान कहता है लेकिन न तो उसमें कुछ भी वैज्ञानिक दिखता है और न ही वह स्वयं को वैज्ञानिक प्रमाणित कर पाता है, इसलिए उसकी आलोचना की जाती है।
दूसरी बात यह है कि 'तस्लीम' किसी धर्म का दुश्मन नहीं है, लेकिन जो बातें अंधविश्वास फैलाती हैं, 'तस्लीम' उनकी आलोचना करता है और उसकी असलियत लोगों को बताने का प्रयत्न करता है फिर चाहे वह किसी भी धर्म से सम्बंध क्यों न रखती हों।
मुझे कुछ नहीं कहना , जानकारी ही नही है मुझे इस बारे में ।
जवाब देंहटाएंआलेख और टिप्पणियां पढकर वापसी कर रहा हूं ! वैज्ञानिक दृष्टिकोण के सम्बन्ध में मित्रों की संस्थिति
जवाब देंहटाएं(स्टेंड) समझ लूं ? तो कुछ कहूं :)
वत्स जी, प्रोफेसर पार्क कंकल ने वॉबलिंग के कारण पृथ्वी की गति में हुए बदलाव को दृष्टिगत रखते हुए तेरहवीं राशि भी सुझाई है।
जवाब देंहटाएंजाकिर जी, एक बात कहना चाहूँगा कि इन्सान को किसी विषय पर सवाल उठाने या उसपर विचारमिवर्श करने से पहले कम से कम उस विषय की सामान्य जानकारी जरूर एकत्रित कर लेनी चाहिए वर्ना बाद में ऎसा व्यक्ति हंसी का पात्र ही बनता है, जैसी कि इस समय आपकी स्थिति है. जो सवाल आप उठा रहे हैं वो भारतीय ज्योतिष पर कहीं, किसी भी तरह से लागू नहीं होता. भारतीय ज्योतिष चलता है "चन्द्रराशि" पर न कि सूर्यराशि से. सूर्यराशि पर पाश्चात्य ज्योतिष टिका है न कि भारतीय ज्योतिष.
जवाब देंहटाएंरही बात वाबलिंग की तो भारतीय तो आरम्भ से ही इस अनुरूप गणना करते आ रहे हैं. ये आप जैसे लोगों के लिए बेशक नई जानकारी हो सकती है, हम तो सदियों से इसे व्यवहार में लाते आ रहे हैं.
आप जरा "मेन्टोस" खाया कीजिए ताकि थोडी दिमाग की बत्ती जले वर्ना कब तक यूँ अन्धेरे में बैठे रहेंगें :)
वत्स जी, जब चंद्रमा के गुरूत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी की कक्षा में परिवर्तन हो रहा है, तो फिर राशियों की तिथियों में परिवर्तन तो आएगा ही, भले ही आप सूर्य के अनुसार गणना करो अथवा चंद्रमा के अनुसार। और जहां तक ज्योतिष पढ़ने की बात है, मैं उनकी बातें पढ़ लेता हूँ, जिन्होंने ज्योतिष पढ़ा है। और हॉं, इसके लिए मेन्टोस का मुफ्त में प्रचार करने की भी जरूरत नहीं होती।
जवाब देंहटाएंमेरे लेख में न समझ में आने वाली कोई बात ही नहीं .. मैने स्पष्ट लिखा है कि भारतीय ज्योतिष के हिसाब से आसमान के 360 डिग्री को 12 भागों में बांटने से 30-30 डिग्री की एक राशि निकलती है .. भले ही उसका नामकरण करते वक्त तारामंडल के नामों का सहारा लिया गया हो .. जबकि पाश्चात्य ज्योतिषी मेष , वृष आदि नाम के तारामंडलों को ही राशि मानते हैं .. अब एक नए तारामंडल के दिखाई पडने से बारह की जगह तेरह राशि मानने की पाश्चात्य ज्योतिषियों की मजबूरी हो सकती है .. पर भारतीय ज्योतिषीयों को इससे कोई मतलब नहीं है .. क्यूंकि 30-30 डिग्री का उसका राशि का वर्गीकरण परिवर्तित नहीं हो सकता .. अरविंद मिश्र जी के अनुरोध पर मैने विस्तार में एक लेख कल के लिए शिड्यूल किया है .. पर उसमें बातों का दुहराव ही हुआ है .. क्यूंकि अधिकांश बाते तो मैं पहले लेख में कह ही चुकी थी।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंयह तो केवल एक शिगूफा है। वस्तुतः धनु राशि के क्षेत्र में ही स्थित एक और तारामंडल को नाम दिया गया है। ऐसे तारामंडल तो प्रत्येक राशि क्षेत्र में एकाधिक मिल जाएंगे।
जवाब देंहटाएंजाकिर भाई एक ईमानदार सलाह है कि केएस कृष्णामूर्ति की कास्टिंग द होरोस्कोप किताब पढ़ लें। डेढ़ सौ पेज से अधिक नहीं है। शुद्ध गणित है और आपको आसानी से समझ में भी आ जाएगी। इन दिनों उसका रिप्रिंट एडीशन बाजार में है तो आसानी से मिल भी जाएगी।
जवाब देंहटाएंमेरे कहने से पढ़ लें, ताकि आप अधिक सार्थक और सटीक आलोचना कर सकें।
अभी तो ऐसा लग रहा है कि आपने चौथी कक्षा का ज्ञान है और आप पीएचडी स्तर की समीक्षा कर रहे हैं।
मैं ज्योतिष की आलोचना के खिलाफ नहीं हुं, लेकिन ऐसा कहना कि मैं इस विषय से घृणा करता हूं, इसे पढ़ूंगा नहीं और आलोचना करूंगा। तो आपके पल्ले कुछ नहीं पड़ना। जैसे पंडित वत्सजी ने कहा आप ज्योतिषियों के बीच उपहास का पात्र बन रहे हैं।
इसे अन्यथा न लें, मैं चाहता हूं कि आप जैसे लोग इस विषय को पढ़ें ताकि यह और समृद्ध हो...
आलोचना से यह विषय धराशायी हो जाता है तो मुझे खुशी होगी, लेकिन अलोचना सार्थक तो हो..
ज्योतिष के बारे में बिस्तृत जानकारी......... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत पुरानी बात है, हम जब बच्चे थे मुझसे उम्र में २-३ वर्ष बड़ा मेरा एक रिश्तेदार था, जो मित्र अधिक था,,,उसके साथ एक दिन सिनेमा हॉल में एक हिंदी पिक्चर देखने गया तो उसे रुमाल से छिप छिप के आंसू पोछते देखा...पिक्चर समाप्त होने पर हॉल के बाहर निकल जब मैंने उससे पूछा कि जानते हुए भी कि वो केवल किसी झूटी कहानी पर आधारित फिल्म देख रहा था, वो क्यूँ रोया? तो उसका कहना था कि वो चाहता थोड़ी है कि वो रोये, किन्तु उसके न चाहते हुए भी अनायास ही उसके आंसू निकल आते हैं !!!
जवाब देंहटाएंऔर अब तो 'विज्ञान' इतनी तरक्की कर चुका है कि एनिमाशन के माध्यम से जानवरों को भी अंग्रेजी बोलते दिखा देता है (माया के प्रभाव से?),,,किन्तु ३० करोड़ के लगभग भारतीय को भोजन उबलब्ध कराने में किसी भी तकनीक को असंभव पाता है,,,पिछले १३ वर्ष में ही लगभग २ लाख किसान महाराष्ट्र में ही आत्महत्या कर बैठे हैं...इसे 'प्रभु कि माया' कहा प्राचीन ज्ञानियों ने, जिसे समझने के लिए हम सब को अभी कई जन्म लेने होंगे शायद, यदि हम 'वर्तमान वैज्ञानिकों' पर निर्भर करें,,,योगियों ने सत्य जानने के लिए प्रत्येक को अंतर्मुखी होना सुझाया (जबकि मानव को रचयिता का प्रतिरूप होते हुए भी बहिर्मुखी होने के कारण कस्तूरी मृग के सुगंध के स्रोत को इधर उधर ढूँढने समान भटकता जाना)...