खुशी क्या है, कहां रहती है, कैसे मिलती है और क्यों गायब हो जाती है, जैसे ढेरों सवालों के जवाब धर्म, दर्शन और आध्यात्म के जरिए वर्...
खुशी क्या है, कहां रहती है, कैसे मिलती है और क्यों गायब हो जाती है, जैसे ढेरों सवालों के जवाब धर्म, दर्शन और आध्यात्म के जरिए वर्षों से तलाशे जा रहे हैं। मौजूदा दौर में विज्ञान ने भी इस ओर कदम बढ़ाए हैं और काफी कुछ साबित कर दिखाया है।
दुनिया के चुनिंदा विश्वविद्यालयों में 'खुशी की खोज' के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान, प्रयोग और अध्ययन किये गये हैं। न्यू इंग्लैण्ड जनरल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित एक रिपोर्ट कहती है कि कॉलेज जाने वाले लगभग 45 प्रतिशत छात्रों से खुशी दूर रहती है, क्योंकि वे तनाव में जीते हैं। अपने भविष्य को लेकर गहरी चिंता और सोशल नेटवर्किंग का दबाव उन्हें अवसाद की ओर धकेल देता है। यही वजह है कि विकसित देशों में अवसाद का रोग महामारी की तरह फैल रहा है।
तमाम प्रयोगों ने यह भी सिद्ध किया है कि आमतौर पर खुशी का स्त्रोत माने जाने वाले धन-दौलत का खुशी से गहरा रिश्ता नहीं है। जाने-माने मनोवैज्ञानिक डेनियल गिलबर्ट का कहना है कि व्यक्ति की मूल जरूरतें पूरी हाने के बाद उसके लिए धन का कोई खास महत्व नहीं रह जाता। इसके बजाय उसे अपने सुखी परिवार से ज्यादा खुशी मिलती है। अनुसंधान से यह भी पता चला है कि आम धारणा के विपरीत शादी शुदा लोग ज्यादा खुश, स्वस्थ और दीर्घायु होते हैं। उन्हें पारिवारिक प्रसंगों में खुश होने का मौका बार-बार मिलता है।
खुशी एक ऐसी भावना है, जो आती-जाती रहती है। खुशी का लगातार बना रहना मुमकिन नहीं है। यही वजह है कि खुशी के लिए कभी कोई चमत्कारिक गोली नहीं बनायी जा सकती।
देखा गया है कि सबके लिए खुशी के पैमाने अलग-अलग होते हैं। नोबेल पुरस्कार विजेता मनोवैज्ञानिक और अर्थशास्त्री डेरियल कैनेमैन ने एक अध्ययन करके उन तमाम गतिविधियों को जानना चाहा जो हमारी जिंदगी में पल-पल की खुशी लाती हैं। पता लगा कि ज्यादातर लोग काम पर जाते समय खराब मूड में रहते हैं। रात भर की अच्छी नींद सुबह हमें खुशी देती है। टीवी देखने में कोई खास खुशी नहीं मिलती। बच्चों के साथ खेलना भी खुशी के पैमाने पर ज्यादा ऊंची जगह हासिल नहीं करता। हॉं, प्रगाढ़ और आत्मीय सम्बंध हमें सबसे अधिक खुशी देते हैं। यही वजह है कि आजकल व्यवहार विज्ञान आपसी मेलजोल और रिश्तों की मधुरता को ज्यादा महत्व दे रहे हैं।
यदि आपको कोई फूल भेंट करता है तो जब तक गुलदस्ता घर में रहता है, खुशी और ऊर्जा देता रहता है। यह भी पता चला है कि मन की खुशी और तन की दशा के बीच बहुत गहरा रिश्ता नहीं है। लकवा या किसी अन्य रोग से पूरी तरह से बिस्तर पर समय बिताने वाले लोग भी खुश रहते हैं। नेत्रहीन व्यक्ति भी खुशी के मामले में किसी से पीछे नहीं हैं। यह बात और है कि वे यह सोचकर दुखी हो जाते हैं कि लोग उन्हें दु:खी समझते हैं।
दुनिया भर में हुए इस प्रकार के अनुसंधानों को देखते हुए आजकल ऐसी तमाम किताबें आ गयी हैं, जो खुशी के नुस्खे बताती हैं। खुशी की तलाश में भटकते हुए लोग इन नुस्खों के जरिए खुशी ढ़ूढ़ने की कोशिश करते हैं, जबकि खुशी का राज़ उनके दिमाग में ही दिपा है।
-जगदीप सक्सेना
हिन्दुस्तान (2 जनवरी 2011) से साभार।
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Very Good.
जवाब देंहटाएंआपकी खुशी, हमारी खुशी, सबकी खुशी.
जवाब देंहटाएंसही बात कही है.
जवाब देंहटाएंबेहतर ख्याल है जिसको जहाँ से मिल जाए 'खुशी' :)
जवाब देंहटाएं@
जवाब देंहटाएं''खुशी एक ऐसी भावना है, जो आती-जाती रहती है। खुशी का लगातार बना रहना मुमकिन नहीं है। यही वजह है कि खुशी के लिए कभी कोई चमत्कारिक गोली नहीं बनायी जा सकती।''
बिल्कुल सही तथ्य...खु़शियों का राज़ हमारे दिमाग में ही है।
उपयोगी और ज्ञानवर्धक आलेख के लिए आभार।
खुशी किस बात से होती है यह तो अभी शोध का विषय है ... पर हम खुशी का हमारे मस्तिष्क पर असर का शोध कर सकते हैं ...
जवाब देंहटाएंखुशी की तलाश में नुस्खे पाने लोग किताबें छाना करते हैं. जबकि यह तो अपने दिलो दिमाग में ही कहीं छुपी होती है .जगदीप जी का अच्छा लेख.
जवाब देंहटाएंपोस्ट प्रस्तुति विषयानुसार सुन्दर और मनभावन है .
[[आजकल खुशी की तलाश हाई टेक है ,,,अंतर्जाल पर भी [जैसे ब्लॉग्गिंग]में भी होती है इस पर भी कोई शोध / किताब छप चुकी हो शायद?]]
हमें अपने है और नहीं है के बीच एक संतुलन बिठाने की जरूरत है। यानि संतोष और असंतोष के बीच संतुलन। इससे हमारी ख़ुशी और ख़ुश होने में फर्क पड़ेगा।
जवाब देंहटाएंख़ुशी तलाशने से सम्बंधित लेख बड़ा वैज्ञानिक, बड़ा ही रुचिकर और ज्ञानवर्धक लगा.
जवाब देंहटाएं''खुशी एक ऐसी भावना है, जो आती-जाती रहती है। खुशी का लगातार बना रहना मुमकिन नहीं है। यही वजह है कि खुशी के लिए कभी कोई चमत्कारिक गोली नहीं बनायी जा सकती।''
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही
bahut achchhi jaankaari dee hai aapne!.....dhanyawaad!
जवाब देंहटाएंखुशियाँ जहाँ से मिल जाए दोनों हाथ बटोर लें. पहले लोग खुशियाँ बेचकर आंसू खरीदते थे अब खुशियों की खरीदारी करने लगे है लोग जो शाश्वत नहीं हो सकता . सुन्दर आलेख .
जवाब देंहटाएंअभी चार दिन पहले मैंने टीवी पर भ्रम्कुमारी का (प्रवचन/भाषण/discussion) सुना,
जवाब देंहटाएंवहाँ भी बिलकुल यही बात कही गयी थी, कि खुशी का हमेशा बना रहना मुमकिन नहीं है
२) खुशी आपके दिमाग की उपज है, इस लिए जैसे आप अपने आपको ट्रेन करेंगे वैसे ही वो रेअक्ट करेगा
बहुत सुन्दर आलेख. लिखते रहिये.
कस्तूरी कुण्डल बसै,मृग ढूंढै वन माहीं। जो चीज़ कहीं हमारे भीतर ही है,जो चीज़ हमारी ग़लत प्रोग्रामिंग के कारण हमसे छिन गई है,बाहर की कोई तलाश उसकी पूर्ति नहीं कर सकती।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति से २ सीख मुझे मिली। पहला- वैवाहिक जीवन खुशी देता है, इस पर गंभीर हुआ जाए। दूसरा- गुलदस्ता भी गिफ्ट में दें (जैसा कि मेरी पत्नी कहती हैं और मैं इसे फिजूलखर्ची समझता हूं)।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी और ज्ञानवर्धक प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसच कहा खुशी न खरीदी जा सकती है न कृतिम तरीके से पायी जा सकती है...खुश रहना एक कला जो बहुत अभ्यास से आती है...
जवाब देंहटाएंनीरज
jakir ji, aapka kahna bilkul sahi hai... sunder evam vicharniya post.
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