भूतकाल की कड़वी तथा मीठी यादों वाले निर्बल इच्छाशक्ति वाले व्यक्ति तथा वर्तमान समय में तंगी भरा जीवन व्यतीत कर रहे अच्छे भविष्य की ...
भूतकाल की कड़वी तथा मीठी यादों वाले निर्बल इच्छाशक्ति वाले व्यक्ति तथा वर्तमान समय में तंगी भरा जीवन व्यतीत कर रहे अच्छे भविष्य की उम्मीद लेकर किस्मत बताने वाले के पास जाते हैं। वह किसी से अपनी इच्छाओं के पूरे हो जाने के बारे में दिल को तसल्ली देने वाले तथा धीरज बढ़ाने वाले शब्द सुनना चाहते हैं। कई व्यक्ति ऐसे ही मन बहलाने के लिए किस्मत बताने वाले के पास जाते हैं तथा उनकी किसी भी बात को गम्भीरता से नहीं लेते। बहुत से लोग उनके पास गम्भीर होकर तथा संजीदगी से किस्मत पूछने जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों का पूर्व लिखित किस्मतों तथा भले बुरे कर्मों के फल में विश्वास होता है।
जादूमयी चिन्ह, रहस्यमी टेवे, कठिनाई से समझ आने वाली गिनती, समझ से बाहर ज्योतिष के रीति रिवाज तथा छल से भरपूर हस्तरेखा विद्या की दलीलें बहुत से साधारण व्यक्तियों को तथा कई बार अच्छे बुद्धिमान व्यक्तियों को भी भ्रम में डाल लेती हैं।
रेडियो, टीवी, अखबारों तथा पत्रिकाओं में 'अपने मुंह मियां मिटठू बनने वाली बातें' किस्मत बताने के तरीकों के बारे में भोले-भाले लोगों के मन में यह विश्वास पैदा कर देती हैं कि इसमें जरूर ही कोई सच्चाई है। यह सच्चाई है कि प्रधानमंत्री, मंच अभिनेता, संगीतकार, विद्वान, बुद्धिजीवी तथा गैर वैज्ञानिक साईंसदान ऐसी बातों में विश्वास रखते हैं। कई अन्य इसपर इसलिए विश्वास करते हैं कि उसके दोस्त या सहयोगी किस्मत बताने वालों के पास जाते हैं।
किस्मत बताने वाले के पास कौन जाता है?
जब जी चाहे लोग किस्मत बताने वालों के पास चले जाते हैं पर मेरी खोज यह दर्शाती है कि उनके पास जाने का भी खास समय होता है। दो या तीन बार व्यापार में घाटा पड़ जाना, बेरोजगारी, गरीबी, विवाह तथा प्रेम सम्बंधों में गडबड़, औलाद न होना, लम्बी बीमारी, दफतरी या राजनीतिक तरक्की न होना तथा घरेलू झगड़े आदि ऐसे मुख्य अवसर हैं जब लोग किस्मत बताने वालों के पास जाते हैं। कई बार आकर्षित करने वाले समाचार या विज्ञापन भी बड़ी गिनती में लोगों को किस्मत बताने वालों की ओर खींचते लेते हैं। जैसे कि अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त बहुत ही ठीक किस्मत बताने वाला आपके शहर या इलाके में सार्वजनिक तौर पर आपके कष्ट दूर करने के लिए केवल दो दिन के लिए पहुंच रहा है, लाभ उठाइए। इसी प्रकार रेआ चाड़विन ने अपने लिजमोर के दौरे के समय किया था।
यदि स्पष्ट तथा सरल शब्दों में कहें तो किस्मत बताने वालों के पास अंधविश्वासी तथा मूर्ख व्यक्ति ही जाते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि कौन अन्धविश्वासी है तथा कौन मूर्ख है? यहां मैं डा0 कोवूर की परिभाषा उद्धृत करना चाहूँगा:-
'वह व्यक्ति जो अपने चमत्कारों की पड़ताल करने की आज्ञा नहीं देता धोखेबाज है। जिसमें चमत्कारों की पड़ताल करने का हौसला नहीं होता, वह अंधविश्वासी होता है। जो बिना पड़ताल किए विश्वास करता है वह मूर्ख होता है।' अब कोई यह पूछ सकता है कि उसका सम्बंध उपरोक्त में किसके साथ जुड़ता है।
यद्यपि मैं एक वैज्ञानिक तो नहीं हूं, पर मेरा तर्कशील मन मुझे किसी विश्वास को अंधश्रद्धा से स्वीकार करने की इजाजत नहीं देता। किसी बात पर अंतरिक्ष यात्री एडगर माइकिल, डा0 जे0बी0 रीने, हिटलर, नेपोलियन, मोरारजी देसाई, युगांडा के पूर्व प्रधानमंत्री ईदी अमीन या पोप जॉन पॉल विश्वास करें यह बात मुझे बिलकुल प्रभावित नहीं करती। मैं यद्यपि वैटी मिडलर, लिज टाइलर, सरले मैकलेन या रेखा की एक्टिंग पसंद करता हूँ तथा बीटल्ज तथा लता मंगेशकर के गीत बहुत अच्छे लगते हैं फिरभी मैं उन बातों की पूरी पड़ताल करने के बाद ही स्वीकार करूंगा जिनमें इनका विश्वास है। लोगों को यह बात अच्छी तरह अनुभव कर लेनी चाहिए कि कोई भी झूठा संकल्प या बहाना केवल इसलिए सच्चा नहीं बत जाएगा क्योंकि बहुसंख्य लोग उसमें विश्वास करते हैं या क्योंकि यह प्रथा में विश्वास बहुत प्राचीन समय से चला आ रहा है या क्योंकि बहुत प्रसिद्ध वैज्ञानिक भी उसमें विश्वास करते हैं।
इस क्षेत्र में विशेषज्ञ या विख्चात व्यक्ति आवश्यक नहीं कि जीवन के दूसरे क्षेत्रों में भी निपुण हों। किस्मत बताने की विद्या में अंधविश्वास इसलिए करना कि कोई प्रसिद्ध वैज्ञानिक, अभिनेता या संगीतकार इसमें विश्वास करता है उतना ही अतार्किक तथा भद्दा है, जितना कि यह मानना कि शरीर तथा आत्मा की शुद्धि के लिए गाय का मूत्र पीना, क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री मूत्रपान करते थे। इस प्रकार यह भी अतर्कशील विश्वास है कि मनुष्य का मांस खाने से काई व्यक्ति 'सुपरमैन' बन जाएगा जैसे कि युगांडा के प्रधानमंत्र ईदी अमीन भरोसा करता था।
शैक्षिक योग्यता तथा समझदारी को अंधविश्वास से मुक्त होने की निशानी नहीं समझ लेना चाहिए। वास्तव में ऊंचे पदों पर सुशोभित अधिक पढे लिखे व्यक्ति भी बेहद अंधविश्वासी होते हैं। यहां तक कि भारत में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तथा लंका में श्रीमती भंडारनायके ने ज्योतिषियों द्वार ाबताए गये समय पर ही अपने पद की की शपथ ली। इस प्रकार के अंधविश्वासों से केवल तर्कशील विचार वाले व्यक्ति ही मुक्त हो सकते हैं।
अंधविश्वासी व्यक्ति अधिक पढ़े लिखे तथा समझदार होने के बावजूद दिमागी तौर पर अंधे ही होते हैं। एक शाम को मैं क्लब में बैठा अपने एक डॉ0 मित्र से गपशप कर रहा था तो मैंने उसे बताया कि ज्योतिष की पोल खोलने तथा इसे एक धोखा साबित करने के लिए मेरा एक पुस्तक लिखने का इरादा है। मेरे दोस्त ने मुझे सलाह दी कि यदि मैं लोगों को प्रभावित करना चाहता हूँ तो पुस्तक लिखने से पहले मुझे पी-एच0डी0 कर लेना चाहिए। मैं तर्कशील मानसिकता वाला व्यक्ति होने के कारण उससे पूछे बिना न रह सका, ''क्या उसे किसी एक किस्मत बताने वाले का पता है, जिसने पी-एच0डी0 की हो। क्या यह आवश्यक है कि लेखक बनने से पहले डॉक्टोरेट की डिग्री ही हासिल की हो। शेक्सपियर, अरस्तु, नानक सिंह तथा जसवंत सिंह कंवल जैसे लेखक जिनकी पुस्तकों पर रिसर्च करके बहुत से विद्यार्थी पी-एच0डी0 कर रहे हैं स्वयं पी-एच0डी0 नहीं हैं।
मेरा अपना इरादा अपने आपको इन महान हस्तियों के बराबर का समझने या अपने दोस्त का अपमान करने का कत्तई नहीं है। मैं तो अध्यापकों का ध्यान हमारी बातचीत में पैदा हुए तर्क की ओर दिलाने की कोशिश कर रहा हूँ।
यह एक करूणाजनक सच्चाई है कि वैज्ञानिकों के संसार में बहुत ही अन्धविश्वासी तथा मूर्ख लोग हैं। असलियत यह है कि बहुत से विद्यार्थी जो विज्ञान या टेक्नोलॉजी विषय लेते हैं, वह इसलिए नहीं कि उनका दृष्टिकोण वैज्ञानिक होता है या उसमें यह कोई प्राक़तिक प्रवृत्ति होती है। वह तो केवल इसलिए लेते हैं ताकि बढिया पैसे वाली नौकरी प्राप्त हो सके। जो वैज्ञानिक बिना पड़ताल के ही विश्वास करता है वह गैर वैज्ञानिक होता है। कोई भी असली वैज्ञानिक किसी व्यक्ति, स्थान, पुस्तक या फिलासफी की पवित्रता के डर से खोज या छानबीन करने से झिझकेगा नहीं। वह डॉक्टर वैज्ञानिक कैसे कललवा सकता है, जो मरीज की बेमारी के इलाज के लिए दवाई की परची लिख कर कहता है- 'मैंने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया है, अब बाकी तो ईश्वर के हाथों में ही है।'
कई ऐसे नकली वैज्ञानिक भी मिलते हैं, जो प्राकृतिक विज्ञान के साथ हिन्दु विज्ञान, ईसाई विज्ञान या इस्लामी विज्ञान शब्द जोड़ लेते हैं। यह बहुत ही कमीनी तथा सोची समझी साजिश है धर्म पर वैज्ञानिक मुलम्मा चढ़ाने की। ऐसे अवैज्ञानिक साइंसदान 'धार्मिक जुनून' या 'धार्मिक पागलपन' के मरीज ही होते हैं या फिर आर्थिक लाभ लेने की शरारत होती है।
* 'ज्योतिष झूठ बोलता है:Mind Pollution of Fortune Telling,' पुस्तक (तर्कभारती प्रकाशन-तर्कशील निवास, के0सी0 रोड, बरनाला-148101 पंजाब) से साभार।
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मनजीत सिंह बोपाराय आस्ट्रेलिया के लिजमोर शहर के निवासी हैं और पंजाब की तर्कशील सोसाइटी से सक्रिय रूप से जुड़े रहे हैं तथा ज्योतिषियों के लिए 10 हजार आस्ट्रेलियन डॉलर की चुनौती रख चुके हैं। लेकिन उनकी इस चुनौती को स्वीकार करने का साहस कोई भी व्यक्ति नहीं जुटा सका है।
ज्योतिष के बारे में अन्य सामग्री के लिए कृपया इन्हें भी देखें:
'वह व्यक्ति जो अपने चमत्कारों की पड़ताल करने की आज्ञा नहीं देता धोखेबाज है। जिसमें चमत्कारों की पड़ताल करने का हौसला नहीं होता, वह अंधविश्वासी होता है। जो बिना पड़ताल किए विश्वास करता है वह मूर्ख होता है।'bilkul sahi definition.....aabhaar.
जवाब देंहटाएंजागरूक करने वाली पोस्ट ...असल में विश्वास के आगे कोई तर्क नहीं होता ...बस विश्वास होता है ...लेकिन फिर भी अंधविश्वासी नहीं होना चाहिए यह मैं मानती हूँ ...
जवाब देंहटाएंbahut sateek paribhashayien.. :)
जवाब देंहटाएंअच्छी चीजें ढूंढ़ कर लाते हैं आप। बधाई...
जवाब देंहटाएं@Sangeeta swarup ji ka comment padha, to ek baar to main hairaan ho gaya, ki aaj Sangeeta ji ko kya ho gay...
जवाब देंहटाएंfir jab dhyaaan se yaad kiya, to yaad aaya, unka naam to Sangeeta puri thi, :)
She believes very strongly in Jyotish and all.. :)
Well.. A nice post... couldn't read it fully being in office.. will give it a read again, while at homee..
आपके इस महायज्ञ (लोगों को जागरूक) करने के अदम्य प्रयास को नमन। बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअभी कुछ दिन पहले ही एक तांत्रिक को गिरफ्तार किया गया है। यह तांत्रिक एक ही परिवार से सम्बन्धित 7 लडकियों से पिछले 4 वर्ष से बलात्कार करता आ रहा था। सबसे बडी लडकी की उम्र 21 वर्ष है और वह पोस्ट ग्रैजुएट है। ये खबरें देख-जानकर बहुत क्षोभ होता है ऐसे पढे-लिखे लोगों की मानसिकता पर।
जवाब देंहटाएंप्रणाम
ऐसा लगता है शिक्षा भी असमर्थ है मूर्खों के अंधविश्वास के दूर करने में
जवाब देंहटाएं... behad prasanshaneey post !!!
जवाब देंहटाएं"लोगों को यह बात अच्छी तरह अनुभव कर लेनी चाहिए कि कोई भी झूठा संकल्प या बहाना केवल इसलिए सच्चा नहीं बत जाएगा क्योंकि बहुसंख्य लोग उसमें विश्वास करते हैं या क्योंकि यह प्रथा में विश्वास बहुत प्राचीन समय से चला आ रहा है या क्योंकि बहुत प्रसिद्ध वैज्ञानिक भी उसमें विश्वास करते हैं।"
जवाब देंहटाएंAisi bahut-si mahatvpurn bateN aapne bahut aasan lafzoN me kah diN haiN.
Shaayad ham aisi shiksha vyavastha bana hi nahiN paaye jiska pahla uddeshya logoN ki soch ko tarkpurn banaanaa ho.
Abhi kal hi mere pass ek aisa email aaya hai jis tarah ke parche bachpan me padhne ko mil jaayaa karte the aur kai baar unheN padhke hum dar jaayaa karte the. hamaaraa dar to khatm ho gaya par samaaj ki maansikta me bahut zyada farq aaya nahiN lagta. Hairani kai baar is baat par bhi hoti hai ki vaigyaanik uplabdhiyoN ka taatlaak faayda uthaane me sabse aage andh-vishvaasi aur dhoNgi log hote haiN.
बहुत महत्वपूर्ण आलेख है।
जवाब देंहटाएंmaine aapka follower banne ki koshish kai baar ki par aapka link kaam nahiN karta !?
जवाब देंहटाएंवैज्ञानिक लेखों के माध्यम से आप लोगों को जागरूक करने का पुनीत एवं सार्थक प्रयास कर रहे हैं
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसंजय जी, इस फॉलोअर लिंक सम्बंधी त्रुटि की ओर ध्यान दिलाने का शुक्रिया। वैसे फॉलोअर विजेट ब्लॉग की साइड पटटी में ऊपर की ओर भी लगा है।
जवाब देंहटाएंजाकिर सा:
जवाब देंहटाएंप्रस्तुत लेख से मैं सहमत हूँ,मैं खुद ज्योतिष की प्रेक्टिस करते हुए लोगों को ढोंग और पाखण्ड से बचने हेतु krantiswar .blogspot .com पर सचेत करता रहता हूँ.आप जानते हैं-सच्चे साधक धक्के खाते ,फरेबी मज़े उड़ाते हैं.मेरे पास वे ही आते हैं जो दूसरी जगहों से धोखे खाए होते है.फर्स्ट ग्लेन्स में लोग फरेबियों को ही पसंद करते हैं.आप भी जागरूक करते रहिये, मैं भी कर ही रहा हूँ,लेकिन लोग सच्च स्वीकार लें तभी हमारे प्रयास सार्थक होंगें
अंधविश्वासी, मूर्ख और धोखेबाज की बिल्कुल सटीक परिभाषाएं दी हैं कोवूर साहब ने।
जवाब देंहटाएंसच्चे ज्ञान की शर्तें ये हैं कि वह विश्वसनीय हो, तर्क की कसौटी पर खरा उतरता हो और प्रमाणित करने योग्य हो। शेष सब अज्ञान हैं।
जो अज्ञान को ज्ञान समझ लेते हैं वे अंधविश्वासी और मूर्ख दोनों होते हैं।
उत्तम आलेख।
जाकिर जी बहुत ही विचारणीय प्रस्तुति जागरूक करते हुए .........
जवाब देंहटाएंमैं समझ रहा हूँ, कि आप अंधविश्वास किसको कह रहे हैं.. लेकिन... मेरे इस argument का जवाब दीजिए
जवाब देंहटाएंवैसे हो सकता है मेरी टिपण्णी आपको फ़ालतू लगे
आज मैं पढता हूँ कि electron है, और मैं उसे बिना पड़ताल के मान लेता हूँ.
क्या इसे आप अन्धविश्वास कहेंगे ?
यदि नहीं, तो फिर क्यों?
और यदि हाँ, तो मैं ये कहूँगा, कि मैं हर चीज़ को तो टेस्ट नहीं कर सकता, मुझे कहीं न कहीं तो यकीन करना ही पड़ेगा और उसे मानना पड़ेगा, बिना पड़ताल किये
For example, FACTS... facts are truths which do not have proofs, but which has not been found false in the entire history. Hope u r getting my point.
बहुत ही विचारणीय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसंगीता जी की बात ही दुबारा कहूँगी ...
जवाब देंहटाएंश्रद्धा के आगे तर्क नहीं चलते , मगर अन्धविश्वासी होने से बचना चाहिए ...
उपयोगी और ज्ञानवर्धक पोस्ट!
जवाब देंहटाएंउस पुस्तक,उसे लिखने वाले,उसे छापने वाले और पुनर्प्रस्तुति करने वाले आपका बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंयोगेश भाई, आप भी कभी-कभी बचपने में पहुंच जाते हैं।
जवाब देंहटाएं:)
वैज्ञानिक जो बात कहते हैं, वह किसी भी प्रयोगशाला में प्रमाणित की जा सकती है। आप चाहें, तो आप भी वह साजो सामान जुटा कर उसे देख सकते हैं। और हॉं, जब तक एक सिद्धांत को अनेक बार प्रमाणित नहीं कर लिया जाता, विज्ञान में वह सर्वमान्य नहीं होता। यानी की इलेक्ट्रान की मौजूदगी की अनेक बार पडताल की जा चुकी है। और यदि आप चाहें, तो भी आप उसकी पड़ताल कर सकते हैं।
लेकिन मैंने तो सुना है, के electron को किसी ने नहीं देखा आज तक..
जवाब देंहटाएंवैसे आपके जवाब से मैं काफी हद तक संतुष्ट हूँ.
चलिए अब इसको टटोलिए
ये हम सब जानते हैं के विज्ञान में ऐसी बहुत सी चीज़ें हैं, जिनकी पड़ताल करना नामुमकिन सा है...
क्या आप सहमत हैं?
उदहारण के तौर पर, मृत्यु के बाद का जीवन...
कोई आप से आ कर कहे कि, मरने के बाद आत्मा वगैरा निकलती है, वो इस बात को साबित करने में असमर्थ होगा, लेकिन ऐसे दावे करेगा.
हालांकि आप भी इस बात को साबित नहीं कर सकते, के वो गलत कह रहा है...
ऐसे में उस बात को मानना चाहिए या नहीं ?
वैसे बचपन ही बहुत अच्छा होता है ज़ाकिर भाई,
जवाब देंहटाएंजो मन में सवाल आता है, बच्चा पूछ लेता है
लेकिन जैसे जैसे वो बड़ा होता जाता है, उसके मन में शर्म आ जाती है, कि कहीं मेरा सवाल मूर्खता पूर्ण ना हो और मेरी बेईज्ज़ती न हो जाये :)
क्यों, सही कहा न ?
"...यह एक करूणाजनक सच्चाई है कि वैज्ञानिकों के संसार में बहुत ही अन्धविश्वासी तथा मूर्ख लोग हैं।..."
जवाब देंहटाएंसही कहा. इनमें बहुतेरे घोर धार्मिक किस्म के लोग भी शामिल हैं.
बहुत अच्छी एनालिसिस है ज़ाकिर जी.शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंयोगेश भाई, विज्ञान ये कभी दावा नहीं करता कि उसने हर चीज को समझ लिया है और उसकी समझ अन्तिम है। विज्ञान चीजों को समझने का एक व्यवहारिक नजरिया है, जो परखने और बदलने के लिए हर पल हर क्षण तैयार रहता है। वह कभी 'अन्तिम सत्य' की मुहर नहीं लगाता, हमेशा प्रेक्षण और परीक्षण के लिए तैयार रहता है।
जवाब देंहटाएंएक बार और, जिस बात को फिलहाल गलत नहीं साबित किया जा सकता, वह जरूरी नहीं कि सही ही हो। विज्ञान ने प्रकृति की अनेक जिज्ञासाओं और प्रश्नों को हल कर लिया है और यह विश्वास किया जाता है कि जो अभी तक हल नहीं हुए हैं, वे आने वाले दिनों में हल कर लिये जाएंगे।
एक दम सही लिखा है!आपने
जवाब देंहटाएंअंध विश्वासी और मूर्ख ही ज्योतिषियों के पास जाते है...ऐसा नहीं है!... किसी न किसी गंभीर समस्या से ग्रस्त व्यक्ति भी जाते है..यही सोच कर कि शायद समस्या के समाधान का मार्ग शायद ज्योतिषी ही बता दे!...और नकली ज्योतिषी बनकर ठगने वाले उनकी इसी मानसिकता का फायदा उठा कर पैसे ऐठ्ते है!..आप का लेख महत्वपूर्ण है!...नया साल बहुत बहुत मुबारक!
जवाब देंहटाएंअन्धविश्वासी और मुर्ख होने के बीच में महीन सी रेखा है . बहुत से पढ़े लिखे लोग अन्धविश्वास से प्रेरित होकर मुर्खता पर मुर्खता किये जाते है . बड़ी हो रोचक और समाज के लिए उपयोगी आलेख .
जवाब देंहटाएंजागरूक करने वाली पोस्ट.
जवाब देंहटाएं---योगेश के तर्क का कोई भी जबाव नहीं है, आप हर वस्तु, विचार,तथ्य को स्वयं परीक्षण नहीं कर सक्ते, कोई भी इलेच्ट्रोन को नहीं देख सकता सिवाय वहुत अत्याधुनिक प्रयोगशाला के वैग्यानिक के तो हम क्यों मानें कि वह है---
जवाब देंहटाएं---क्या ज़ाकिर भाई ने अमेरिकी यान चन्द्रमा पर उतरता हुआ स्वयं देखा है जो हम मानलें--टीवी व चित्र में तो झूठा भी होसकता है टेकनिक से बनाया हुआ....
---डा.कोबूर( हम स्वयं परीक्षण किये बिना उस डा की बात क्यों मानें भाई, क्योंकि वह अन्ग्रेज़ है, यह तो अन्ध्विश्वास है) की परिभाषा पूर्णतः मूर्खतापूर्ण है, अपितु यह कोई परिभाषा ही नहीं है...
श्याम जी, शुक्रिया
जवाब देंहटाएंलगता है आप समझ पाएं हैं कि मैं क्या कहना चाहता हूँ.
हालाँकि आपको correct करना चाहूँगा, आपने कहा कि इलेक्ट्रोन को अत्याधुनिक लैब में देखा जा सकता है, परन्तु मेरे ज्ञान के अनुसार आज तक कोई भी इलेक्ट्रोन को देख नहीं पाया है, क्योंकि वो इतना हल्का होता है, कि प्रकाश जैसे ही उस पर डाला जाता है, उसकी जगह बदल जाती है, प्रकाश की उर्जा से -- ऐसा मैंने पढ़ा है :)
PS: मैं ये तर्क सिर्फ फलसफे के लिए दे रहा हूँ, मैं ज़ाकिर भाई से पूरी तरह से सहमत हूँ, कि अंधविश्वास के खिलाफ हम सब को एक जुट होना चाहिए.
मेरी नज़र में अंधविश्वास वो है, जैसे कि, किसी ज़रूरी काम पर जाने से पहले मीठा खाना, बिल्ली का रास्ता काटना, ग्रहों का मनुष्य के जीवन पर असर, मांगलिक और अमांगलिक की शादी न करवाना वगैरा वगैरा
बहुत बढ़िया सिलसिला चल रहा है
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रियाएं आनंद दायक हैं
जागो भारत---जागो
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वैसे मैं मंगल के दिन ऐसे गंभीर विषय पढता नहीं हूँ ... पंडित जी ने जन्म-कुंडली देखकर परामर्श दिया था !
अच्छी प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंआपको मै पिछले कई सालो से पढता चला आ रहा हूँ नि: संदेह इस दुनिया को आप जैसे लोगो की जरूरत है जो अंधविश्वासियो और मूर्खो के बारे में सचेत करे
जवाब देंहटाएंजाकिर भाई हर अक्षर से सहमत और साथ में हूँ
जागरूक करती विचारणीय प्रस्तुति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर
डोरोथी.
योगेश धन्यवाद, correction ke लिये क्योंकि मैं कोई एटोमिक-विग्यानी नहीं हूं..यद्यपि अनुमान प्रमाण से भी यदि देखा है तभी तो उसका वर्णन किया गया...खैर यह तो तर्क है...
जवाब देंहटाएं---- मैं भी यही सोचता हूं अन्ध्विश्वास के बारे में...परन्तु मैं किसी भी बात को ..मूलतः वास्तविक धर्म..दर्शन..तत्व व्याख्या व शास्त्रीय तथ्यों आदि...को बिना सोचे समझे अन्धविश्वास कहने के खिलाफ़ हूं और इसे अन्धविश्वास कहता हू...
आप जैसे लोगो की जरूरत है जो अंधविश्वासियो और मूर्खो के बारे में सचेत करे
जवाब देंहटाएंजागरूक करती विचारणीय प्रस्तुति. आभार.
"कोई आप से आ कर कहे कि, मरने के बाद आत्मा वगैरा निकलती है, वो इस बात को साबित करने में असमर्थ होगा, लेकिन ऐसे दावे करेगा.
जवाब देंहटाएंहालांकि आप भी इस बात को साबित नहीं कर सकते, के वो गलत कह रहा है...
ऐसे में उस बात को मानना चाहिए या नहीं"
बहुत बढियां विमर्श हुआ!योगेश की तार्किक दृष्टि अच्छी लगती है .
योगेश के ऊपर के वक्तव्य पर मुझे भी कुछ कहना है -
विज्ञान सम्मत होने के लिए किसी भी विचार ,प्रेक्षण ,वक्तव्य को झूंठा भी साबित होना चाहिए ,इसे प्रिंसपल आफ फाल्सिबियेलिटी कहते है -मजे की बात यह है की जिस बात को झूठा साबित करना संभव नहीं हो वह विज्ञान सम्मत भी नहीं हो सकता -जैसे ईश्वर हैं -इस वक्तव्य को झूंठा साबित नहीं किया जा सकता -इसलिए यह वैज्ञानिक सत्य भी नहीं है .....मरने के बाद आत्मा वगैरा का मामला भी इसी कसौटी का है !
शुक्रिया अरविन्द जी, तारीफ़ के लिए.
जवाब देंहटाएंइतनी शुद्ध हिंदी यार, समझ नहीं आती
कुछ शब्द मुझे अंदाजा लगा कर समझने पड़े, और कुछ का तो अंदाजा ही नहीं लगा पाया
१) सम्मत -- agreeable
2) प्रेक्षण -- experiement
3) वक्तव्य -- statement
योगेश जी ,हिन्दी भारत की जन भाषा है बोले तो लिंगुआ फ्रैन्का ,तो समझने का निरंतर अभ्यास करते रहिये ..
जवाब देंहटाएंमहज इस बात की कैजुअल स्वीकारोक्ति नहीं की जानी चाहिए ...यह एक बेपरवाह नजरिया है ! ऐसा कहकर किसी के सर में सुरखाब के पर नहीं लग जाते ... :)
हाँ अब शब्दों की बात -
प्रेक्षण का मतलब है आब्जर्वेशन ,प्रयोग-एक्सपेरिमेंट नहीं ..सम्मत और वक्तव्य का आपका समझा अर्थ बिलकुल दुरुस्त है!
@Yogesh
जवाब देंहटाएंPlease read this also-
http://www.experiment-resources.com/falsifiability.html
@Mr. Arvind and all..
जवाब देंहटाएंCan someone tell me the meaning of the following line.. I found it on the link given by Mr. Arvind.
The idea is that no theory is completely correct, but if not falsified, it can be accepted as truth.
So, doesn't that mean, GOD is also truth, SOUL is also truth?
@Yogesh,
जवाब देंहटाएंoh yes if something can not get falsified it would be quite logically assumed as truth -but mind it ,not a scientific truth-truths as a matter of fact of various kinds-poetic truth for instance!
@Arvind,
जवाब देंहटाएंI disagree.
We are talking about truth or false. Its no where mentioned poetic or scientific. Truth means truth. Isn't it?
Well, I also believe there is something wrong in our understand. Since GOD can't be proved, he can't be assumed to be true. And if that is the case, why there are more dis-believers of GOD than there ar believers?
@Yogesh,
जवाब देंहटाएंYou have every right to disagree!
"truth is truth" -a poetic truth can not be a scientific truth!
God is not a scientific truth ...
A scientific truth could only be accepted when it is according to the method of science....
Then what is method of science? I have paucity of time to discuss all these here so you are suggested to read the articles on method of science ,philosophy of science and then raise your doubts on the forum...raising questions is good but informed skepticism is more welcome!Plz consult Wikipedia!
Agreed Mr. Arvind..
जवाब देंहटाएंउपयोगी प्रविष्टि
जवाब देंहटाएंactually andhwishwas ka education se kuch bhi lena dena nahi, dar(fear), insecurity insan ko bhaybheet banati hai, bhay(fear) kuch kho jaane ka, dekhne me yeh aata hai ki jiske paas khone ke liye jitna jyada hai, woh utna hi andhwishwasi hai. andhwishwas ka mukhya karan sirf or sirf bhay hota hai.
जवाब देंहटाएंbhay se hi bhagati n bhagwan ko manyata milta hai.is bhay se sabko mukti dilane men n to vigyan samarth hai n jyotish.is se kewal n kewal karm ke dwara hi chhutkara mil sakata hai. karm ki paribhasha gita men srikrishn dwara sthapit kiya gaya hai.
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