अक्सर यह सुनने में आता है कि कुछ लोग अकेले में अपने किसी प्रिय की आत्मा के दर्शन करते हैं। कुछ लोगों का दावा है कि उन्होंने देवताओं, फर...
अक्सर यह सुनने में आता है कि कुछ लोग अकेले में अपने किसी प्रिय की आत्मा के दर्शन करते हैं। कुछ लोगों का दावा है कि उन्होंने देवताओं, फरिश्तों और ईश्वर के भी दर्शन किए हैं। इसी के साथ ही साथ कुछ लोगों ने तो यहाँ तक दावा किया है कि उन्होंने अपनी आत्मा को अपने शरीर से बाहर निकलते हुए देखा है। क्या आपको पता है कि इस तरह के मानसिक अनुभवों की वजह क्या है? बता रहे हैं अब्राहम टी0 कोवूर:-
अनुभव या प्रयोग दो प्रकार के होते हैं- कल्पित व वास्तविक। बहिर्मुखी अनुभव सत्य व वास्तविक होते हैं क्योंकि इन्हें अन्य लोग परख सकते हैं। यथा, नंगी आँख से या दूरबीन से आकाश में तारे देखना। परन्तु अन्तर्मुखी अनुभव चाहे सत्य हो पर आवश्यक नहीं है कि वास्तविक भी हों। हर परिस्थिति में तर्क से इनकी जांच पड्ताल भी नहीं की जा सकती।
उदाहरणत: एक छोटे लड़के को नींद में बिस्तर पर मूत्र करने की बीमारी होती है। उसके नासमझ माता-पिता इस बात को लेकर प्रति सुबह उसे पीटते हैं। इस लड़के के केस में वास्तविकता क्या है? यही कि जब गुर्दों द्वारा बूँद-बूँद मूत्र भेजने से मसाना भर जाता है, तो यह समाचार नाड़ी सैल द्वारा दिमाग को पहुँचता है। यह मानसिक प्रेरणा बच्चे में एक सपना पैदा करती हैं। सपने में बच्चा अपनी चारपाई से उठ कर पेशाबघर तक जाता है और पेशाब करता है। सारी घटना स्वप्न मात्र होती है, परंतु सदा यह होता है कि बच्चा अपने बिस्पर पर ही मूत्र कर देता है।
यदि प्रात: लड़के के जगने से पूर्व ही घर का कोई सदस्य बच्चे को उठा कर गीले बिस्तर की जगह सूखा बिस्तर लगा दे और उस बच्चे को सुला दे, तो जागने पर बच्चा उत्सुकता से अपने बिस्तर को देखेगा और अपनी मम्मी से जाकर कहेगा- 'मम्मी, आज मैंने चारपाई पर पेशाब नहीं किया।'
यह बच्चा पूर्णतया सत्य बोल रहा है, परन्तु यह वास्तविकता नहीं है। यह सत्य इसलिए है कि क्योंकि यह बच्चे का कल्पित अनुभव है। पर वास्तविकता नहीं, क्योंकि जाँच करने पर सत्य उजागर हो जाएगा कि बच्चे ने बिस्तर पर ही मूत्र किया था। यह एक मायावी प्रयोग है, जिसपर विश्वास नहीं किया जाना चाहिए।
क्या होते हैं मायावी अनुभव?
मायावी अनुभव तीन प्रकार के होते हैं- ज्ञानेन्द्रियों से उत्पन्न हुए भ्रम, मानसिक भ्रम व झूठे विश्वास।
आइए सर्वप्रथम ज्ञानेन्द्रियों से उत्पन्न हुए भ्रम को लें। पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ होने के कारण यह भी पाँच तरह के होते हैं। दिखाई देने वाले भ्रम, स्वाद वाले भ्रम, सुनने वाले भ्रम, स्पर्श वाले भ्रम और सूँघने वाले भ्रम।
गर्मी के दिनों में तारकोल की सड़कों पर पानी का भ्रम होना, दृष्टि भ्रम है। दूर से तो पानी दिखाई देता है, परन्तु मृगतृष्णा का यह कपूर नजदीक जाकर दूर हो जाता है। ऐसा ही भ्रम रेगिस्तान में रहने वाले लोगों को भी होता है।
करौंदे के पत्ते खाने के उपरान्त यदि पानी पिया जाए, तो पानी मीठा लगता है। यह स्वाद का भ्रम है। इसकी जाँच दूसरे व्यक्ति को पानी पिलाकर की जा सकती है, जिन्होंने करौंदे के पत्ते न खाए हों।
बहुत से लोग जिन्हें भूत-प्रेत, देवी-देवता, परियों, फरिश्तों एवं देवों इत्यादि में दृढ़ विश्वास होता है, उनको यह सब कुछ अंधेरे में दृष्टि भ्रम के कारण ही दिखाई देते हैं। उस डर के कारण, जो बचपन में इनके मन में बैठा दिया जाता है, ये लोग नजदीक जाकर जाँच पड़ताल का साहस नहीं कर सकते। वे लोग जिन्होंने इन बातों की वैज्ञानिक ढ़ंग से जाँच की जोती है, जानते हैं कि यह सब बातें मात्र दृष्टि भ्रम ही हैं। जादूगर के तमाशे व धूर्तों के चमत्कार, सब दृष्टि भ्रम ही हैं। वे अपने पाखण्ड के नंगे होने के डर से कभी भी अपने शरीर या कपड़ों की तलाशी नहीं लेने देते।
आइए, अब हम अपना ध्यान मानसिक भ्रम पर केन्द्रित करें। जैसा कि पहले बताया जा चुका है मानसिक एक प्राकर के मानसिक अनुभव ही होते हैं। इनका एहसास भौतिक, रसायन व जीव विज्ञान एवं मानसिक कारण के फलस्वरूप होता है।
भौतिक उत्तेजनाएँ
स्विटजरलैण्ड के डॉक्टर हैस्स, येल विश्वविद्यालय के जे0 डीलगाडो एवं मिशीगन विश्वविद्यालय के जैम्ज ओल्डज़ इत्यादि ने मनुष्य में कृत्रिम भावनाएँ जैसे डर, भूख, दु:ख, नींद, प्रेम, उत्सुकता, दोस्ती, नफरत, खुशी आदि को उत्पन्न करने में सफलता प्राप्त की है। उन्होंने विद्युतीय तरंगों से दिमाग के नाड़ी सैलों में उत्सुकता पैदा करके, बिलकुल वैसी ही भावना उत्पन्न की, जैसी आम जिन्दगी में मनुष्य में होती है।
श्रृति भ्रम जैसे ढ़ोलक की आवाज, तालियों की आवाज, कविता सुनना और नाग गाना इत्यादि भी मानसिक भ्रम ही हैं। शैतानी ऩत्य, बैले नृत्य, क्वादि वे कोलम नृत्य, मन्दिरों में पूजा, चेतना प्राप्ति सभाएँ, आग पर चलना व पॉप संगीत इत्यादि एक लय में नाड़ी प्रबंध को उत्तेजित करते हैं। इसके बाद उत्तेजक रासायनिक पदार्थ आते हैं। पुरातन समय में हमारे पूर्वत अफीम, चरस, धतूरा इत्यादि खा कर मानसिक भ्रम पैदा करना जानते थे।
मानसिक नशा देने वाली अनेक दवाएँ जैसे एल0 एस0 डी0, हीरोईन इत्यादि आजकल मानसिक उत्तेजक के रूप में प्रयोग में लाई जाती हैं। लार्जेकटिल, लिबरीयम, बैलीयम, मिलटाऊन और अमिटल सोडियम इत्यादि दवाएं मानसिक सुस्ती उत्पन्न करने के लिए हैं। डॉ0 अल्वर्ट हॉफमैन ने एल0 एस0 डी0 की थोड़ी मात्रा खाने के उपरान्त अपना अनुभव इस तरह लिखा है- 'मैंने अपनी आत्मा को आपने शरीर से बाहर निकलते देखा। इसके बाद यह आकाश में लटक गई। मैं अपने मृत शरीर को देख रहा था और चिल्ला रहा था।'
एल0 एस0 डी0 के एक ग्रेन का 1/10 लाखवाँ भाग, एक व्यक्ति में मानसिक उन्माद पैदा करने के काफी है। ऐसे रासायनिक पदार्थ धार्मिक उन्माद व विकार वाले लोगों के खून में पाए जाते हैं। डॉ0 कुआस्टल एवं डॉ0 विटले ने यह परिणाम निकाला है कि जो साधु-संत, ऋषि एवं अलौकिक शक्ति का दावा करने वाले व्यक्ति धार्मिक रस्मों में भाग लेते हैं, उन्हें मानसिक भ्रम होता है। यह मानसिक भ्रम उनके शरीर के रासायनिक परिवर्तन के कारण ही होता है।
उत्तेजना बढ़ाने वाले जैव वैज्ञानिक कारण
अब हम उत्तेजना बढ़ाने वाली तीसरे पदार्थ- जीव विज्ञान सम्बंधी कारणों पर विचार करेंगे। कैनेडा के प्रोफेसर आरलैंण्डों मिलर व ऐलन फिशर ने यह खोज की है कि कुछ मनुष्यों में मानसिक विकार उन शुक्राणुओं में विकार होने के फलस्वरूप पैदा होते हैं। ऐसे व्यक्ति जिनमें दूसरों को दु:ख देकर खुश होने की प्रवृत्ति होती है, उनमें XX क्रोमोसोम 22 युगल और एक XYY क्रोमोसोम होता है। जबकि साधारण व्यक्ति में XX के 22 व XY का एक क्रोमोसोम होता है।
शरीर में कुछ विटामिन व पाचक रसों की कमी भी मानसिक विकार पैदा करने का कारण बन सकती है। 'बेरी-बेरी' रोग विटामिन बी की कमी के कारण होता है। पागलों जैसा आचरण इसका महत्वपूर्ण चिन्ह विटामिन की ही कमी के कारण पैदा हुआ रोग पिलागरा मानसिक विकार का कारण बन सकता है। ऐसे व्यक्तियों में विटामिन पूरी मात्रा में देकर पूर्व स्थिति में लाया जा सकता है।
विटामिन की तरह ही, शरीर में कुछ उत्तेजक रसों का गलत संतुलन भी शरीर में मानसिक विकार पैदा कर सकता है। वे व्यक्ति जिनमें पैराथाईरायड ग्रन्थि द्वारा पैदा किए गए रस की कमी होती है भी गम्भीर मानसिक भ्रम का शिकार हो जाते हैं।
आसमान में मृत माँ की आत्मा के दर्शन
मेरी एक भतीजी जब भी ऊपर आकाश की तरफ देखती, तो उसे मेरी मृत माँ की आत्मा दिखाई देती थी। मैं उसे केरल के अपने पैतृक घर से लंका ले आया। पूरी तरह जाँच करने पर पता चला कि उसकी पैराथाईरायड ग्रन्थि में खराबी थी। इस खराबी को दूर करने के लिए कैल्शियम दिया गया और इसके साथ ही उसे आकाश में मेरी माता की आत्मा दिखाई देना बंद हो गई।
मायावी भ्रम और मनोवैज्ञानिक कारण
आइए, अब हम मनोवैज्ञानिक कारणों पर विचार करें। मनोविज्ञान में यह एक माना हुआ सत्य है कि मानव के मन पर सुझाव का प्रभाव होता है। यह सुझाव उसे नींद में या अर्द्धनींद में दिए जा सकते हैं। जैसे बहुत सारे मानसिक विकारों को हिप्नोटाइज से ठीक किया जा सकता है, वैसे ही नींद में भी सुझाव देकर बहुत से रोग ठीक किए जा सकते हैं।
धार्मिक विश्वास एक धीमे व अनवरत चलने वाले हिप्नोटोसिस है। भूत से प्रभावित व्यक्तियों की तरह व्यवहार और बदली आवाज में बातें करने को मनोविज्ञान में ग्लोसोलेलीया कहा जाता है। पूजा और शैतानी नृत्य के दौरान मोहक मूर्छा, विश्वास, पूजा, प्रार्थना, धार्मिक यात्रा, आशीर्वाद, बलि, टोना, पवित पानी पीना या स्नान करना इत्यादि सब बातें मात्र हिप्नोटिज्म से किसी व्यक्ति के मन पर सुझावों के अतिरिक्त कोई प्रभाव नहीं डालतीं।
गहन समाधि या स्तम्भनित करना अपने आप पर हिप्नोटिज्म का प्रभाव ही है। किसी व्यक्ति का गहन समाधि में बोलना कुछ भी नहीं सिर्फ मानविक विकार वाले व्यक्तियों का भ्रम है। इसको अलौकिक शक्ति से बोलना या आकाशवाणी नहीं समझना चाहिए। एल0 एस0 डी0 और गाँजा भी ऐसे प्रभाव पैदा कर सकते हैं। दिमागी या मानसिक विकास वाले ऐसे व्यकित, जो दावा करते हैं कि आकाशवाणी हुई है या ज्ञान प्राप्त हुआ है, ऐसे व्यक्ति जो अपने पास अलौकिक शक्ति का दावा करते हैं वे व्यक्ति जिनका दावा है कि वे सभी रहस्य जानते हैं, इस प्रकार के व्यक्ति मनोचिकित्सक की कुर्सी पर तो बैठने के योग्य हैं, परन्तु साधु या संत बनकर पूरा करवाने या आशीर्वाद देने योग्य नहीं हैं। धर्मों में जो अन्तर हैं, वह धर्मों के पैदा करने वालों के मानसिक भ्रमों में अन्तर के फलस्वरूप ही हैं।
आइए अंत में हम तीसरे मायावी अनुभव- झूठे विश्वास के विषय में सोंचें। यह बचपन में धर्म के प्रति विश्वास पैदा करने के कारण होता है। भूत, प्रेत, शैतान, देवी-देवता, परियाँ, फरिश्ते, ज्योतिषी, पाण्डे, नम्बरों का ज्ञान, श्राप, कोप, रोशनी पढ़ना, कार्डों से बताना, बोलता ग्लॉस, स्टोव देवता, पवित्र आदमी, पवित्र जल, शुभ स्थान, शुभ समय, शुभ वस्तुएँ, शगुन, अपशगुन, स्वर्ग इत्यादि झूठे विश्वास हैं।
कुछ व्यक्ति अपने मन की शान्ति की प्रसन्नता दूसरे अन्धविश्वास से प्राप्त करते हैं, ठीक ऐसे ही परिणाम एल0 एस0 डी0, गाँजा, अफीम या पोस्ता का उपभोग करके भी प्राप्त किए जा सकते हैं। परन्तु प्रश्न यह नहीं है कि किस तरह का प्रयोग शान्ति या प्रसन्नता प्रदान करता है, बल्कि प्रश्न तो यह है कि क्या यह सत्य है?
'और देव पुरूष हार गये' पुस्तक से साभार, चित्र- साभार गूगल सर्च
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अब्राहम थॉमस कोवूर श्रीलंका के प्रख्यात विज्ञानवेत्ता और विश्व के प्रमुख रेशनलिस्ट के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने अंधविश्वास को मिटाने के लिए अथक प्रयास किये। उनका कहना था कि जो व्यक्ति चमत्कारी शक्तियों का दावा करते हैं, केवल पाखंडी या दिमागी तौर पर पागल व्यक्ति हैं। उनके जीवन की कुछ प्रमुख घटनाओं को आप यहॉं क्लिक करके पढ़ सकते हैं।
7.5/10
जवाब देंहटाएंसामाजिक सरोकार से जुडी प्रशंसनीय प्रस्तुति
isme likha hai....
जवाब देंहटाएंberi beri vitamin c kii kami se hota hai.
mujhe lagta hai ki wah vitamin b ki kami se hota hai.
संदीप भाई शुक्रिया, टाइपिंग मिस्टेक की ओर ध्यान दिलाने का।
जवाब देंहटाएंज़ाक़िर भाई ,
जवाब देंहटाएंइतना अच्छा अच्छा लिखियेगा / लिखते रहियेगा तो तारीफ के लफ्ज़ों की क़िल्लत हो जायेगी ! हमारा शब्द भंडार बहुत छोटा है खुदारा रहम कीजिये :)
अली जी, तारीफ के शब्द कम पड़ें, तो कोई बात नहीं। अपने पास पूरा गोदाम है। कहिए तो भिजवा दें दो चार ट्रक।
जवाब देंहटाएंवैसे ये लेख मेरा लिखा नहीं है, मैंने तो सिर्फ इसे यहाँ पर प्रस्तुत किया है।
ओह, तो ये है इस सब का मायाजाल। सचमुच विश्वास ही नहीं होता।
जवाब देंहटाएंबढ़िया जानकारी !
जवाब देंहटाएंAwesome post.. I just loved it!
जवाब देंहटाएंBelieve it or not.. but truth is truth and truth is science... :)
pachaane me mushkil zaroor hoti hai.. ;)
उम्दा और सराहनीय जानकारी के साथ-साथ सुन्दर प्रस्तुती ...
जवाब देंहटाएंआज जरूरत इसी बात की है की हम इन बातों को आम लोगों को समझा पाए ....इसके लिए विज्ञानं शिक्षा को बढ़ावा देना आवय्श्यक है ....अच्छा लेखन !!!बधाई !!!!
जवाब देंहटाएंrajneesh bhai,
जवाब देंहटाएंyah ek aisa vishay hai jisako tark ki kasauti par nahin kasa ja sakata hai. isako ham vaigyanik tarkon par nahin le sakate hain. isake liye anubhav hi praman hota hai.
कल्पित व वास्तविक भ्रम.....अच्छा लगा इस विषय पर पढ़ना. आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी जानकारी देती पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंशानदार काम है।
जवाब देंहटाएंकुरआन में नींद और मौत में कोई फर्क नहीं. ऐसा बताया गया है. और मौत केवल आत्मा की इस शरीर के मुक्ति भर है. क्या आप यह बता सकते हैं की डॉ0 अल्वर्ट हॉफमैन ने आत्मा शब्द का उपयोग क्यों किया? सत्य यह है की यह दुनिया ही भ्रम है. हमको जो रंग लाल दिखता है सभी जानवरों को यह लाल नहीं दिखता.
जवाब देंहटाएंमन खुश हो गया ये अंधविश्वास विरोधी आलेख पढ़ के..
जवाब देंहटाएं---पूरी तरह से असत्य व कन्फ़्यूज़्ड आलेख है।कुछ बानगी देखिये--
जवाब देंहटाएं१,----परन्तु अन्तर्मुखी अनुभव चाहे सत्य हो पर आवश्यक नहीं है कि वास्तविक भी हों। हर परिस्थिति में तर्क से इनकी जांच पड्ताल भी नहीं की जा सकती।---क्या लेखक समझता है कि सत्य वास्तविकता नहीं होती, तो सत्य क्या होता है?
२,---अनुभव या प्रयोग दो प्रकार के होते हैं कल्पित व वास्तविक--कल्पित को अनुभव कैसे कहा जासकता है? क्या प्रयोग भी काल्पनिक होते हैं? वाह...!
३,---- विकार, उन शुक्राणुओं में विकार होने के फलस्वरूप पैदा होते हैं। ऐसे व्यक्ति जिनमें दूसरों को दु:ख देकर खुश होने की प्रवृत्ति होती है, उनमें XX क्रोमोसोम 22 युगल और एक XYY क्रोमोसोम होता है। जबकि साधारण व्यक्ति में XX के 22 व XY का एक क्रोमोसोम होता है।-----इस तरह के क्रोमोसोम अनियमितताओं मे शारीरिक, मानसिक व लेंगिक अक्षमताएं होती हैं जन्मजात, सिर्फ़ शुक्राणुओं का विकार नहीं। प्रायःदूसरों को दु:ख देकर खुश होने की प्रवृत्ति वाले लोग शारीरिक रूप से ठीक पर मानसिक अस्वस्थ होते हैं।
--४.नींद में पेशाब की बताई गई जैविक प्रक्रिया एक नार्मल विधि है, रात में बिस्तर गीला करने वाला बच्चा मूलतः नार्मल नहीं तनाव से ग्रस्त होता है, जागने पर बोला हुआ, सत्य नहीं,अनुभव नहीं,और न मायावी अनुभव- अग्यान है।
---५. इसी तरह - भ्रम- माया नहीं है। भ्रम में कुछ होता है, माया में कुछ भी नहीं होता।
---पूरी तरह से असत्य व कन्फ़्यूज़्ड आलेख है।कुछ बानगी देखिये--
जवाब देंहटाएं१,----परन्तु अन्तर्मुखी अनुभव चाहे सत्य हो पर आवश्यक नहीं है कि वास्तविक भी हों। ---क्या लेखक समझता है कि सत्य वास्तविकता नहीं होती, तो सत्य क्या होता है?
२,---अनुभव या प्रयोग दो प्रकार के होते हैं कल्पित व वास्तविक--कल्पित को अनुभव कैसे कहा जासकता है? क्या प्रयोग भी काल्पनिक होते हैं? वाह...!
३,---- XX क्रोमोसोम 22 युगल और एक XYY क्रोमोसोम होता है। जबकि साधारण व्यक्ति में XX के 22 व XY का एक क्रोमोसोम होता है।-----इस तरह के क्रोमोसोम अनियमितताओं मे शारीरिक, मानसिक व लेंगिक अक्षमताएं होती हैं जन्मजात, सिर्फ़ शुक्राणुओं का विकार नहीं। एसी प्रवृत्ति वाले लोग शारीरिक रूप से ठीक पर मानसिक अस्वस्थ होते हैं।
४.- रात में बिस्तर गीला करने वाला बच्चा मूलतः नार्मल नहीं तनाव से ग्रस्त होता है, जागने पर बोला हुआ, सत्य नहीं,अनुभव नहीं,और न मायावी अनुभव- अग्यान है।
---५. इसी तरह - भ्रम- माया नहीं है।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं@किसी व्यक्ति का गहन समाधि में बोलना कुछ भी नहीं सिर्फ मानविक विकार वाले व्यक्तियों का भ्रम है। इसको अलौकिक शक्ति से बोलना या आकाशवाणी नहीं समझना चाहिए। एल0 एस0 डी0 और गाँजा भी ऐसे प्रभाव पैदा कर सकते हैं। दिमागी या मानसिक विकास वाले ऐसे व्यकित, जो दावा करते हैं कि आकाशवाणी हुई है या ज्ञान प्राप्त हुआ है, ऐसे व्यक्ति जो अपने पास अलौकिक शक्ति का दावा करते हैं वे व्यक्ति जिनका दावा है कि वे सभी रहस्य जानते हैं, इस प्रकार के व्यक्ति मनोचिकित्सक की कुर्सी पर तो बैठने के योग्य हैं, परन्तु साधु या संत बनकर पूरा करवाने या आशीर्वाद देने योग्य नहीं हैं। धर्मों में जो अन्तर हैं, वह धर्मों के पैदा करने वालों के मानसिक भ्रमों में अन्तर के फलस्वरूप ही हैं। @
जवाब देंहटाएंऐसे में हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई धर्मों के पीर पैगम्बर अवतार पुरूषो को किस श्रैणी मे रखना चाहिए???
बहुत ही अच्छी जानकारी देती पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंरोचक विषय पर रोचक आलेख
जवाब देंहटाएंregards