गणेशोत्सव हिन्दुओं का एक प्रमुख पर्व है, जो हिन्दू पंचाँग के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष चतुर्थी से चतुर्दशी तक मनाया जाता है। यूँ...
गणेशोत्सव हिन्दुओं का एक प्रमुख पर्व है, जो हिन्दू पंचाँग के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष चतुर्थी से चतुर्दशी तक मनाया जाता है। यूँ तो यह त्यौहार पूरे भारत में मनाया जाता है, लेकिन महाराष्ट्र का गणेशोत्सव विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
कहा जाता है गणेश पूजा की शुरूआत शिवाजी की माता जीजाबाई ने की थी। उन्होंने पुणे के कस्बा गणपति में सर्वप्रथम गणेश जी की मूर्ति की स्थापना करके उस उत्सव को धूमधाम से मनाया। इसे बढ़ावा देने में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने इस त्यौहार को सामाजिक रूप प्रदान किया, जिसके फलस्चरूप यह राष्ट्रीय कलेवर में मनाया जाने लगा।
हर वर्ष की तरह इस बार भी सम्पूर्ण भारत में गणेशोत्सव की तैयारियाँ चल रही हैं। इस पर्व की मुख्य शुरूआत 11 सितम्बर से होनी है, इसके लिए मूर्तिकार पूरे मन से मूर्तियों को सजाने और संवारने में लगे हुए हैं। विभिन्न पूजा समतियाँ भी अपने कार्यक्रम को भव्य बनाने के लिए तन मन धन से तैयारियों में लगी हुई हैं।
यदि आप भी इस तरह की तैयारियों में व्यस्त हैं, तो एक मिनट रूकिए। जब भी पूजा के लिए मूर्ति लेने जाएँ तो इस बात का ध्यान रखें कि वह मिट्टी की बनी और उसकी साज सज्जा के लिए कृत्रिम रंगों का प्रयोग न किया गया हो। क्योंकि मूर्तियां बनाने के लिए मिट्टी और प्लास्टर ऑफ पेरिस का प्रयोग किया जाता है। मूर्तियों में उपयोग में लाई गयी मिट्टी तो आसानी से नदी में घुल जाती है, किन्तु प्लास्टर ऑफ पेरिस देर से घुलता है, जिसकी वजह से मछलियों के मरने तक की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
इसके अलावा यह भी सत्य है कि मूर्तिकार मूर्तियों को रंगने/सजाने के लिए कृत्रिम रंग, सिंदूर, वार्निश, स्टेनर, थिनर और पेंट का प्रयोग करते हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि इन तत्वों से नदी का पानी प्रदूषित होता है। इसके अलावा नदी के पानी में आक्सीजन की मात्रा कम हो जाने के कारण अक्सर नदी की मछलियां मर जाती हैं। इसके अलावा वही पानी जब सरकारी सप्लाई द्वारा हमारे घरों में पहुंचता है, तो हमारी किडनी, फेफड़े, नर्वस सिस्टम और त्वचा को भी बुरी तरह से प्रभावित करता है।
इसके अलावा यह भी सत्य है कि मूर्तिकार मूर्तियों को रंगने/सजाने के लिए कृत्रिम रंग, सिंदूर, वार्निश, स्टेनर, थिनर और पेंट का प्रयोग करते हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि इन तत्वों से नदी का पानी प्रदूषित होता है। इसके अलावा नदी के पानी में आक्सीजन की मात्रा कम हो जाने के कारण अक्सर नदी की मछलियां मर जाती हैं। इसके अलावा वही पानी जब सरकारी सप्लाई द्वारा हमारे घरों में पहुंचता है, तो हमारी किडनी, फेफड़े, नर्वस सिस्टम और त्वचा को भी बुरी तरह से प्रभावित करता है।
मूर्ति विसर्जन से होने वाले इन दुष्प्रभावों को देखते हुए कई शहरों में मूर्ति निर्माण में जहां कृत्रिम रंगों के प्रयोग को प्रतिबंधित कर दिया गया है, वहीं कुछ जगहों पर मूर्ति के नदियों में विसर्जन के स्थान पर उसे मिटटी में दबाने के लिए पूजा समितियों को सलाह दी जा रही है।
गणेश जी के भक्तजनों को चाहिए कि वे आज की आवश्यकताओं को समझें और मूर्ति खरीदते समय मिट्टी की मूर्तियों का ही चयन करें। साथ ही साथ मूर्ति विसर्जन के लिए कृत्रिम तालाब बनाकर उसमें प्रतिमा का विसर्जन करें। इसका एक फायदा यह भी होगा कि अवशेष के रूप में प्लास्टर ऑफ पेरिस को रिसाइकिल कर पुन उपयोग में लाया जा सकेगा। यदि पूजा कमेटियों को कृत्रिम तालाब बनाने में दिक्कत हो, तो वे लखनऊ नगर निगम के प्रयास से सीख लेते हुए प्रतिमाओं को मिटटी में दबाकर एक नई परम्परा की शुरूआत भी कर सकते हैं। यह प्रयास न सिर्फ मछलियों, जलीय जीवों और मनुष्यों के लिए भी लाभकारी होगा बल्कि इससे भक्ति की एक नई मिसाल भी कायम हो सकेगी। आशा है गणेशोत्सव पूजा कमेटियां इस बारे में गम्भीरता से विचार करेंगी और सच्ची आस्था की मिसाल कायम करते हुए सबके कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेंगी।
गणेश जी के भक्तजनों को चाहिए कि वे आज की आवश्यकताओं को समझें और मूर्ति खरीदते समय मिट्टी की मूर्तियों का ही चयन करें। साथ ही साथ मूर्ति विसर्जन के लिए कृत्रिम तालाब बनाकर उसमें प्रतिमा का विसर्जन करें। इसका एक फायदा यह भी होगा कि अवशेष के रूप में प्लास्टर ऑफ पेरिस को रिसाइकिल कर पुन उपयोग में लाया जा सकेगा। यदि पूजा कमेटियों को कृत्रिम तालाब बनाने में दिक्कत हो, तो वे लखनऊ नगर निगम के प्रयास से सीख लेते हुए प्रतिमाओं को मिटटी में दबाकर एक नई परम्परा की शुरूआत भी कर सकते हैं। यह प्रयास न सिर्फ मछलियों, जलीय जीवों और मनुष्यों के लिए भी लाभकारी होगा बल्कि इससे भक्ति की एक नई मिसाल भी कायम हो सकेगी। आशा है गणेशोत्सव पूजा कमेटियां इस बारे में गम्भीरता से विचार करेंगी और सच्ची आस्था की मिसाल कायम करते हुए सबके कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेंगी।
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मूर्ति विसर्जन के लिए कृत्रिम तालाब बनाकर उसमें प्रतिमा का विसर्जन करें। इसका एक फायदा यह भी होगा कि अवशेष के रूप में प्लास्टर ऑफ पेरिस को रिसाइकिल कर पुन उपयोग में लाया जा सकेगा।
जवाब देंहटाएंयह विकल्प अच्छा रहेगा !!
सही समय पर सही सलाह।
जवाब देंहटाएंसही समय पर सही सलाह।
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंहमारे परिवार में जब भी को पूजा सम्बन्धित वस्तु क उपयोग खत्म हो जाता था तो उसे तुलसी के पौधों या केले के पेड़ों की जड़ में डाल दिया जाता था। फ़ूल आदि की खाद बन जाती थी और पैर पड़ने क भय भी नहीं रहता था।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
बहोत ही अच्छी जानकारी दी आपने धन्यवाद
जवाब देंहटाएंमैं भी देखता हूं कौन मानता है आपकी बात !
जवाब देंहटाएंganeshotasav ke awasar par jagrukta bhara saarthak sandesh prasuti ke liye aabhar
जवाब देंहटाएंसुंदर पोस्ट!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सामयिक सुझाव.
जवाब देंहटाएंमूर्ती-विसर्जन हो या अस्थि विसर्जन ,हमें कोई हक नहीं बनता खुद के लिए जल आदि को प्रदूषित करने का
जवाब देंहटाएंगणेशोत्सव के बारे में जानकारी देने के लिए आभार आपका
महक
ऐसे आह्वाहन की आवश्यकता थी... बहुत अच्छा लेख लिखा आपने..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।
हिन्दी का विस्तार-मशीनी अनुवाद प्रक्रिया, राजभाषा हिन्दी पर रेखा श्रीवास्तव की प्रस्तुति, पधारें
POP se bani murtiyo kaa bahishkar karke hum apne bhagwan , desh aur jeev jantuo ko khush kar sakte hain
जवाब देंहटाएंSahi salah.
जवाब देंहटाएंगणेशोत्सव के बारे में जानकारी देने के लिए आभार आपका!
जवाब देंहटाएंKaash aisa hota.
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंगणेशोत्सव के बारे में अच्छी जानकारी देने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंregards
सुंदर सामयिक चर्चा.
जवाब देंहटाएंगणेशोत्सव के बारे में जानकारी देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद तथा ईद की मुबारकबाद !
जवाब देंहटाएंजाकिर भाई , ईद मुबारक ।
जवाब देंहटाएंगणेश-उत्सव के लिये आपकी राय अनुकरणीय है ।