जैसे-जैसे हमारा समाज अधिक शीक्षित और प्रगतिशील होता जा रहा है, वैसे-वैसे ही समाज में महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मामले भी बढ़ते जा रहे है...
जैसे-जैसे हमारा समाज अधिक शीक्षित और प्रगतिशील होता जा रहा है, वैसे-वैसे ही समाज में महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं। यही कारण है कि केन्द्रीय सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए एक नया कानून बनाने का फैसला किया है। प्रस्तावित कानून को ज्यादा प्रभावी और परिणामकारण बनाया जा रहा है। लेकिन इसी के साथ ही साथ प्रस्तावित कानून का यह कहकर विरोध भी शुरू हो गया है कि इसके कड़े प्राविधान इसके मिसयूज़ को बढ़ा देंगे।
यौन उत्पीड़न क्या है?
अवांछित रूप से शारीरिक छुअन, अश्लील टिप्पडि़याँ, अश्लील इशारे करना, अश्लील बातें करना, अश्लील एस0एम0एस0 करना, अश्लील फिल्में दिखाना, अवांछित फोन करना, काम में बाधा उत्पन्न करने की धमकी देना, काम में वरीयता देने का प्रलोभन देना, काम की उपलब्धियों को प्रभावित करने की धमकी देना, कार्यस्थल को दखलंदाजी युक्त एवं डरावना बनाना, उपभोक्ताओं से गलत व्यवहार करना यौन उत्पीड़न के दायरे में आता है।
प्रस्तावित यौन उत्पीड़न कानून के प्रावधान
प्रस्तावित कानून में पीड़ित कर्मचारी के साथ रेप पीड़िता की तरह व्यवहार किया जाएगा। उसका नाम और शिकायत गोपनीय रखी जाएगी। यहाँ तक कि इस तरह की जानकारी सूचना के अधिकार के दायरे से भी मुक्त रखी जाएगी।
यौन उत्पीड़न के मामलों की जाँच के लिए अधिकतम 10 सदस्यों वाली आंतरिक जाँच कमेटी का गठन अनिवार्य होगा, जिसकी अध्यक्ष अनिवार्य रूप से महिला ही होगी। ऐसी सभी जाँच कमेटियों को 90 दिन के अंदर अपनी रिपोर्ट पेश करनी होगी।
जाँच के दौरान शिकायत करने वाली महिला को कार्यस्थल पर किसी तरह की समस्या नहीं आए, इसके लिए शिकायतकर्ती महिला का या तो स्थानान्तरण कर दिया जाएगा, अथवा उसे छुट्टी पर भेज दिया जाएगा।
कानून में यह भी शामिल है कि यदि कार्यस्थल का नियोक्ता यौन उत्पीड़न की शिकायत के जाँच के लिए जाँच कमेटी का गठन नहीं करता है अथवा जाँच कमेटी की सिफारिशों पर अमल नहीं करता है, अथवा झूठी शिकायत करने वाले कर्मचारी और गवाह के खिलाफ कार्यवाही नहीं करता है, या अपनी सालाना रिपोर्ट में यौन उत्पीड़न की रिपोर्ट प्रकाशित करता है, तो उस पर 50 हजार रूपयों का जुर्माना लगाया जा सकता है अथवा संस्था का लाइसेंस रद्द किया जा सकता है।
इस कानून की जद में सिर्फ सरकारी संगठन और निजी क्षेत्रों के अलावा, समस्त हास्पिटॉलिटी उद्योग, गैरकरकारी संस्थाएँ यहाँ तक उन समस्त संस्थाओं को दायरे में लिया गया है, जहाँ 10 से अधिक कर्मचारी काम करते हों। समस्त असंगठित क्षेत्रों की जाँच कमेटियों के लिए जिला अधिकारी को जवाबदेह बनाया गया है। लेकिन जिला अधिकारी की व्यस्तता को ध्यान में रखते हुए उसे प्रस्तावित कानून में उसे यह अधिकार दिया गया है कि वह इस तरह के मामलों की देखरेख के लिए स्थानीय अधिकारियों की देखरेख कमेटी भी बना सकता है।
क्यों हो रहा है प्रस्तावित यौन उत्पीड़न कानून का विरोध?
इस कानून के विरोध की मुख्य वजह है यौन हिंसा को बलात्कार जैसे अपराध की श्रेणी में रखा जाना। अभी तक प्रचलित कानूनों में बलात्कार की परिभाषा के अन्तर्गत सिर्फ वही व्यवहार सम्मिलित था, जिसमें पुरूष लिंग द्वारा स्त्री योनि भेदन किया जाता था। लेकिन प्रस्तावित कानून में यौन हिंसा को भी बलात्कार का दर्जा दिया गया है। इसकी वजह से आशंका यह व्यक्त की जा रही है कि कोई भी महिलाएँ व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए इसका दुरूपयोग कर सकती हैं।
प्रस्तावित कानून के विरोध की दूसरी मुख्य वजह यह है कि अगर यदि यौन उत्पीड़न का कोई मामला फर्जी पाया गया, अथवा शिकायतकर्ता अपनी शिकायत प्रमाणित नहीं कर सका, तो शिकायतकर्ता को भी दंडित किया जाएगा। इस प्रावधान का यह कहकर विरोध किया जा रहा है कि शिकायत प्रमाणित न कर पाने के भय से बहुत सी महिलाएँ शिकायत के लिए आगे ही नहीं आएँगी।
क्या प्रस्तावित कानून वास्तव में यौन उत्पीड़न रोक पाएगा?
अगर कोई भी कानून बना देने मात्र से समाज में बदलाव आ गया होता, तो शायद हमारा देश एक विकसित राष्ट्र होता। जेंडर विभेद से जुड़े इस कानून में भले ही कई क्रान्तिकारी प्राविधान किए जा रहे हैं, लेकिन इसे लागू करने के लिए एक प्रभावी मेकेनिज्म की भी आवश्यकता होगी। यह कानून लोगों की जानकारी में आ सके, इसके लिए भी बड़े पैमाने पर प्रचार अभियान चलाए जाने की जरूरत होगी। क्योंकि कानून का डर तभी अपना असर दिखाता है, जब लोगों को उस कानून की जानकारी होती है।
दूसरी बात यह कि यौन उत्पीड़न जैसे मामलों को सिर्फ कानून बनाकर नहीं रोका जा सकता। इस तरह के मामलों के लिए हम सिर्फ कानून पर निर्भर नहीं हो सकते। ऐसे मामलों को मिटाने के लिए हमें पहले अपने परिवार के पक्षपातपूर्ण ढ़ाँचे को भी बदलना होगा, जहाँ लड़कों की हर बात को सही और लड़कियों के हर कदम को शंकापूर्ण नज़रों से देखा जाता है। साथ ही हमें इन सवालों से भी दो-चार होना होगा कि क्यों महिलाओं को समाज में भोग की वस्तु माना जाता है, क्यों लड़कों को छेड़खानी करने में आनंद का एहसास होता है और क्यों यौन अपराधियों में विजेता का भाव उत्पन्न हो जाता है? ज़ाहिर सी बात है कि सवाल बहुत गम्भीर हैं, लेकिन यदि हमें किसी नतीजे तक पहुंचना है, तो उसके रास्ते में पड़ने वाले सवालों से उलझना तो होगा ही।
विस्तृत और बढिया जानकारी देने के लिये आभार
जवाब देंहटाएंaapka kahanaa vaajib hai. mujhe lagta hai sahi kaanoon banaakar is samayaa se nidaan paayaa jaa saktaa hai.....sex yaa youn aakaankshaaon ko jab tak aparaadh maanaa jaayegaa aisa hota rahegaa...jaisi sthity hai usamebahut kuchh hona baakee hai...ohh.
जवाब देंहटाएंशुरू तो करो.. फिर देखा जाएया... बहुत जरुरी है ऐसे कड़े कानून होना....
जवाब देंहटाएंKanoon banege to durupyog to hoga.
जवाब देंहटाएंSirf kanoon se kya hoga? Mansikta badalnee hogee.
जवाब देंहटाएंpeople { man } have to understand that
जवाब देंहटाएंwoman is not a toy to play with
woman body is not to be used to satisfy lust
woman is not just for giving sexual pleasure to man and give birth to children
above all
woman and man are born equal and they have been given equal rights by the court of law and constitution
sexual harassment is not just at work place but its in the mind of all those man who think woman are born to be mans slave
every unsavory comment that is given to a woman because she is a woman is GENDER BIAS
but people dont even understand what is gender bias because they feel woman have " no identity "
MAN SHOULD LEARN TO TAKE NO .
also in the coming time as woman will become moire educated she can make man pay in terms of "compensation monetary " for any kind of gender bias and sexual harassment
the sooner all this becomes equivalent to rape the better its
so that those who do it will at least pay the victim
इस कानून का दुरूपयोग ही होगा -भारत में अभी सामजिक स्तर पर चेतना का अभाव है -प्रकाश झा की फिल्म में एक महत्वाकांक्षी महिला खुद के यौन शोषण का झूंठा आरोप लगाती है ....इस कानून से महिला अनावश्यक रूप से सशक्त होगी और पुरुष लाचार -जबकि दोनों को बराबरी मिलनी चाहिए ...सरकारी नौकरी में महिलाओं से काम कराने के के पहले बॉस को सौ बार सोचना होगा -अधिकार तो सबको चाहिए मगर कर्तव्यबोध और काबिलियत ??
जवाब देंहटाएंजीन में समाई युगों की कुंठा साबित करती है कि हम भौतिक रूप से चाहे विकास का दहाई आंकड़ा छू लें मगर आत्मिक रूप से अभी पाशविकता बनी हुई है।
जवाब देंहटाएंअधिकार तो सबको चाहिए मगर कर्तव्यबोध और काबिलियत ??
जवाब देंहटाएंdoes this mean that only man are responsible and qualified ????
its an irresponsible way of saying things because its being implied that woman get jobs because they are woman and not because they are deserving candidate and this is the root cause of "gender bias " where a person is targeted just because she is a woman
सरकारी नौकरी में महिलाओं से काम कराने के के पहले बॉस को सौ बार सोचना होगा
जवाब देंहटाएंwhy ?? it has been proved time and again that woman are better workers , motivators
किसी भी कानून के प्रभावी होने के लिए सबसे जरूरी है उस संबंध में जागरुकता। जागरुकता के अभाव और व्यवस्थागत कमियों की वजह से कानून असरकारक नहीं हो पाता है। इसलिए कानून बना देने भर से महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचार कम नहीं होंगे। बदलते परिवेश के साथ मानसिकता में बदलाव बेहद जरूरी है। हर मां यदि अपने बच्चे में नारी के प्रति सम्मान वाली मानसिकता विकसित करने में बचपन से सहभागी बनें तो एक स्वस्थ मानसिक सि्थति वाली बड़ी आबादी तैयार हो जाएगी। यह बदलाव एक दिन या एक साल में नहीं आएगा, इसके लिए सतत प्रयास की आवश्यकता है और इस प्रयास की पहली शुरुआत घर से होनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंकानून का उलँघन तो अब भी हो रहा है जब कि कार्यस्थल पर महिलाओं से छेड छाड या भेद भाव करना जुर्म है अब आदमी कर रहा है कानून सख्त होने से ऊरतें करेंगी फर्क क्या है। इस पर कानून सख्त होना ही चाहिये स्कूलों मे छोटी छोटी बच्चियाँांउर कालेजों मे भी कैसे संताप झेलती हैं मर्द ांध्यापकों के हाथों। मगर होता कुछ नही सब कुछ उसी तरह चल रहा है--- अब भी आस पास देखते सुनते हैं तो रोंगटे खडे हो जाते हैं। कनून सख्त होना ही चाहिये। उसका पालन सही हो उसके लिये भी प्रावधान रखा जाना चाहिये। आभार।
जवाब देंहटाएं@मेरी कर्तव्यबोध और काबिलियत वाली बात जेंडर इम्यून हैं !
जवाब देंहटाएं@..कार्यालयों में ऐसी ऐसी महिलायें भी हैं (सभी नहीं,और हाँ पुरुष भी कम नालायक नहीं ) कि क्या बताएं ? एक पोस्ट इस पर भी लिखेगें ..
@काशी के एक प्रसिद्द मंदिर में गर्भ गृह की ड्यूटी जो बहुत कठिन होती है ..में कई महिला पुलिस पीरियड का बहाना बता कर अधिकारी को निःशब्द कर देती थीं ..मैं साक्षी रहा उस घटना का ....(पीरियड का मतलब अशुद्ध ! )
जवाब देंहटाएंदुरुपयोग किस कानून का नहीं होता? तो क्या कानून होने ही नहीं चाहिए? कानून तो चाहिए ही। परन्तु कानूनी कार्यवाही करने वाली पुलिस, जज, वकील आदि के मन में जब तक यह भाव नहीं आएगा कि स्त्री उनके समान सम्मान से जीने का अधिकार रखती है तब तक कानूनी प्रक्रिया भी ढंग से नहीं होगी। समाज के मूल्यों को बदलना होगा।
जवाब देंहटाएंयह बराबरी का भाव केवल स्त्री के लिए ही नहीं अपितु हर उस व्यक्ति के लि!ए चाहिए जिसे इससे वंचित रखा गया है। दलित, बच्चे, विशेषकर बच्चियों, स्त्रियों, सबके लिए जब तक समाज के मन में सम्मान नहीं होगा तब तक कानून के डर से कुछ किया जा सकता है।
घुघूती बासूती
अरे उलटे सीधे कानुन बना कर यह सरकार कया करेगी. पहले बाढ ओर दुसरी मुसिबतो से तो राहत पहुचाये आम आदमी को, ६२ सालो से अरबो डकार गई बाढ के नाम से, शिक्षा के नाम से, इस कानुन से क्या होगा सिर्फ़ दुरूपयोग के सिवा, अगर कुछ अच्छा करना ही तो पुलिस तंत्र को अच्छा करे, इन गुंडे नेताओ को पहले हटाये, क्यो लोगो का ध्यान बकवास बातो पर लगाते है, पुरुष कम नही तो नारी भी कम नही...काम की बाते करे सरकार... बेकार के कानुन बाद मै बनाये
जवाब देंहटाएंकाम की बाते करे सरकार... बेकार के कानुन बाद मै बनाये
जवाब देंहटाएंoh never knew that this was a bekar kaa kanun
my god what a attitude towards naari sashktikaran
Arvind mishra ji se kaphi had tak sahmat hun. Halat tab sudhrenge jab hum apne astar se khud sochen aur samjhe, kanun matra bana dene se kuch nahi jata
जवाब देंहटाएंमेरे ख्याल से यौन उत्पीडन का दायरा बढ़ाया जाना बुरी बात नहीं है किसी भी अपराध की नई सीमा रेखायें तय करने का उद्देश्य अपराध की शून्यता / न्यूनता सुनिश्चित करना हुआ करता है इसलिए उद्देश्यपरकता के हिसाब से यौन उत्पीडन की पुनर्परिभाषा वाजिब है ! आगे मुद्दा ये है कि क्या इसका दुरूपयोग हो सकता है ! निसंदेह हो सकता है , पर प्रश्न दूसरा भी है कि क्या इस कानून का कोई तोड़ नहीं होगा ? ध्यान रहे कि हम भारतीय 'बंधन' से पहले उसके 'तोड़' का जुगाड़ करने में माहिर हैं !
जवाब देंहटाएंइसलिए आशंकाओं के आधार पर किसी पहल को बाधित करने से पहले सोच जरुर लें कि संभावनायें द्विपक्षीय हैं ! मेरे ख्याल से कानून बनाने से अगर समाज के बड़े तबके की मोराल बूस्टिंग भी हो सके तो बेहतर ही होगा !
सिर्फ कानून बना देने से अपराध काम नहीं हो जायेगा. बहुत से कौन पहले ही हमारे हिंदुस्तान मैं हैं मगर किस अपराध मैं कमी आई है. आप सब लोग खुद देख ले. रोज नए नए तरीके खोजे जाते हैं अपराध के लिए .
जवाब देंहटाएंजरुरत है तो एक ऐसे समाज कि जंहा पर अपराध न हो, जरुरत है लोगो को जागरूक करने कि, जरुरत पढाई पर ध्यान देने कि. जरुरत है अपने इन्द्रियों को वश मैं करने कि.
कानून में कायम छेद और कतिपय पुरूषों के द्वारा फैलाई गई विकृति के कारण ही यौन शोषण बढ़ता है.
जवाब देंहटाएंस्त्री को बराबर का दर्जा देने की बात केवल ढोंग बनकर रह गई है.
आपने एक सही मुद्दा उठाया है
हम लोग अपने अखबार में कई बार इस तरह की परिचर्चा आयोजित कर चुके हैं
लेकिन यह बहस जिन्दा रहनी चाहिए.
यह एक सार्थक चिंतन है ...यह ठीक है की कानून का दुरूपयोग भी होता है ...मगर किस कानून का नहीं हो रहा ...हमारे देश में कानून लागू होने से पहले लागू नहीं किये जा सकने के तरीके ढूंढ लिए जाते हैं...
जवाब देंहटाएंकानून के साथ सामाजिक चेतना भी आवश्यक है ..!
विचारणीय लेख ।
जवाब देंहटाएंसीधे सीधे कहा जाए तो इस समस्या के कई कारण हैं जो आपस में परोक्ष प्रत्यक्ष रूप से जुडे हुए हैं । ये भी सच है कि , सिर्फ़ कानून भर बना देने से इस समस्या का हल होने वाला नहीं है , इस क्या , किसी भी समस्या का हल नहीं होने वाला , मगर ये कोई कारण नहीं है कि इस वजह से कानून ही न बनाए जाएं । इससे बेहतर तो ये है कि उन बातों की तरफ़ ध्यान दिया जाए , या कि वैसा तंत्र विकसित किया जाए जो ये तय कर सके कि कानून का दुरूपयोग न हो । ्हमें ध्यान रखना चाहिए कि ये समस्या आज उन देशों में भी है जो हर लिहाज़ से आधुनिक और विकसित मानते/बताते हैं ...
जवाब देंहटाएंनारी जाति के वर्तमान उपलब्धियां- शिक्षा, उन्नति, आज़ादी, प्रगति और आर्थिक व राजनैतिक सशक्तिकरण आदि यक़ीनन संतोषजनक, गर्वपूर्ण, प्रशंसनीय और सराहनीय है. लेकिन नारी स्वयं देखे कि इन उपलब्धियों के एवज़ में नारी ने अपनी अस्मिता, मर्यादा, गौरव, गरिमा, सम्मान व नैतिकता के सुनहरे और मूल्यवान सिक्कों से कितनी बड़ी कीमत चुकाई है. जो कुछ कितना कुछ उसने पाया उसके बदले में उसने कितना गंवाया है. नई तहजीब की जिस राह पर वह बड़े जोश और ख़रोश से चल पड़ी- बल्कि दौड़ पड़ी है- उस पर कितने कांटे, कितने विषैले और हिंसक जीव-जंतु, कितने गड्ढे, कितने दलदल, कितने खतरे, कितने लूटेरे, कितने राहजन और कितने धूर्त मौजूद हैं.
जवाब देंहटाएंनारी कि उपरोक्त दशा हमें सोचने पर मजबूर करती है और आत्म-ग्लानी होती है कि हम मूक-दर्शक बने बैठे हैं. यह ग्लानिपूर्ण दुखद चर्चा हमारे भारतीय समाज और आधुनिक तहज़ीब को अपनी अक्ल से तौलने के लिए तो है ही साथ ही नारी को स्वयं यह चुनना होगा कि गरीमा पूर्ण जीवन जीना है या जिल्लत से.
जवाब देंहटाएंनारी जाति की उपरोक्त दयनीय, शोचनीय, दर्दनाक व भयावह स्थिति के किसी सफल समाधान तथा मौजूदा संस्कृति सभ्यता की मूलभूत कमजोरियों के निवारण पर गंभीरता, सूझबूझ और इमानदारी के साथ सोच-विचार और अमल करने के आव्हान के भूमिका-स्वरुप है.
पहले संक्षेप में यह देखते चले कि नारी दुर्गति, नारी-अपमान, नारी-शोषण के समाधान अब तक किये जा रहे हैं वे क्या हैं? मौजूदा भौतिकवादी, विलास्वादी, सेकुलर (धर्म-उदासीन व ईश्वर विमुख) जीवन-व्यवस्था ने उन्हें सफल होने दिया है या असफल. क्या वास्तव में इस तहज़ीब के मूल-तत्वों में इतना दम, सामर्थ्य व सक्षमता है कि चमकते उजालों और रंग-बिरंगी तेज़ रोशनियों की बारीक परतों में लिपटे गहरे, भयावह, व्यापक और जालिम अंधेरों से नारी जाति को मुक्त करा सकें???
जवाब देंहटाएंभाई ! अधूरा क्यों छेड़ते हो ?
जवाब देंहटाएं@ अवांछित रूप से शारीरिक छुअन, अश्लील टिप्पडि़याँ, अश्लील इशारे करना, अश्लील बातें करना, अश्लील एस0एम0एस0 करना, अश्लील फिल्में दिखाना, अवांछित फोन करना, काम में बाधा उत्पन्न करने की धमकी देना, काम में वरीयता देने का प्रलोभन देना, काम की उपलब्धियों को प्रभावित करने की धमकी देना, कार्यस्थल को दखलंदाजी युक्त एवं डरावना बनाना, उपभोक्ताओं से गलत व्यवहार करना
ऐसा पुरुष के साथ हो तो क्या क़ानून हैं, बताइए।
@ गिरिजेश जी
जवाब देंहटाएंसुझाव अच्छा है हालात ऐसे हों तो जरुर बनाया जाये ऐसा कानून :)
sriman ji,
जवाब देंहटाएंukt sabhi cheejein biological sanrachna ka ek hissa hai kanoon dvara ye cheejein niyantrit nahi ki ja sakti hain jyada tar kanoon black mailing karne ka ek sabse badhiya sadhan hoti hai jo rajy dvara pradatt hoti hain. aatm saiyam se sabhy samaaj ki racha kark inko niyantrit kiya ja sakta hai lekin biological jigyasa tab bhi bani rahegi
बहुत अच्छी बहस। दरअसल समस्या यह है कि लोग हर कानून का कोई न कोई छेद खोज ही लेते हैं और फिर उसके दुरुपयोग का रास्ता खुल जाता है। लोगों का मन नैतिक कैसे, इस पर विचार करने की आवश्यकता है
जवाब देंहटाएंकानून बना है, ठीक है. प्रत्येक मानव में एक आदिमानव छुपा होता है जो समय-समय पर अपने से बलहीन को पीड़ित कर प्रसन्नता की अनुभूति करता है.चाहे वो किसी नौकर पर अत्याचार हो या नारी (गृहलक्ष्मी से लेकर बस में कोई अनजान लड़की तक)या सड़क का कोई निरीह कुत्ता.इस सोच को बदलने की आवश्यकता है.
जवाब देंहटाएंkuch had tak nari ishke liye khud jimedar karan ..ek damse kahi ka privesh aur soch nahi badli ja sakti kyo ki soch to vatavaran k hisab se vikshit hoti hain ..
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