पिछले कुछ समय से 'खाप' पंचायतें चर्चा में हैं। चर्चा में तो वे पहले भी रही हैं, प्रेमी-युगलों को मौत का फरमान जारी करने के कारण, पर ...
पिछले कुछ समय से 'खाप' पंचायतें चर्चा में हैं। चर्चा में तो वे पहले भी रही हैं, प्रेमी-युगलों को मौत का फरमान जारी करने के कारण, पर इस बार चर्चा का मुद्दा ज़रा गम्भीर है। इस बार उन्होंने जिस प्रकार से सगोत्र विवाह के खिलाफ अपना तालिबानी झण्डा बुलंद किया है और जिस प्रकार चौटाला से लेकर गडकरी तक अपनी छुद्र राजनीति के कारण उनके सुर में सुर मिला रहे हैं, उससे मामला ज्यादा गम्भीर हो गया है।
खाप पंचायतों का कहना है कि किसी गोत्र में जन्मे सभी व्यक्ति एक ही आदि पुरूष की संतानें हैं, इसलिए हिन्दू धर्म में समगोत्री विवाह को वर्जित माना गया है। लेकिन अगर गहराई से देखें, तो खाप पंचायतों के इस दावे में दम नहीं है। इसका प्रमाण 1950 में मुम्बई उच्च न्यायालय दे चुका है। उस दौरान उच्च न्यायालय में श्री हरीलाल कनिया (जोकि बाद में स्वतंत्र भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश भी बने) और श्री गजेंद्रगदकर (जो 1960 में भारत के मुख्य न्यायाधीश बने) की दो सदस्यीय पीठ ने अपने चर्चित फैसले में कहा था कि सगोत्र हिन्दु विवाह वैध है। अपने फैसले में जजों ने कहा था कि पुराणों, स्मृतियों और सूत्रों में गोत्र सम्बंधी इतने अंतर्विरोध भरे पड़े हैं कि उनसे कोई एक निश्चित निष्कर्ष निकालना असम्भव है। इस सम्बंध में जजों की दो सदस्यीय पीठ ने हिन्दु धर्मशास्त्र के प्रश्चात विद्वान पी0वी0 काणे और भारतीय संस्कृति के मर्मज्ञ मैक्समूलर के साथ मनु और याज्ञवल्क्य के ग्रंथों का भी अध्ययन किया था। इससे स्पष्ट है कि खाप पंचायतों की समान गोत्र में विवाह को अवैध घोषित करने सम्बंधी माँग में जरा भी दम नहीं है।
क्या है विरोध का वैज्ञानिक कारण?
पहले तो खाप पंचायतों ने अपनी माँग के समर्थन में प्राचीन परम्परा की दुहाई देती रही हैं, लेकिन जबसे उनका वादा कमजोर पड़ गया है, अब वे इस सम्बंध में वैज्ञानिक कारणों को गिनाने लगी हैं। उनका कहना है कि एक गोत्र में विवाह करने से कई तरह की आनुवाँशिक बीमारियों की सम्भावना रहती है।
आनुवाँशिक विज्ञान के अनुसार इनब्रीडिंग या एक समूह में शादी करने से हानिकारक जीनों के विकसित होने की सम्भावनाएँ ज्यादा होती है, जिससे आने वाली संतानों में कई प्रकार के रोग पनप सकते हैं। लेकिन अगर इस मत को और व्यापक रूप दिया जाए, तो एक जाति अथवा उपजाति में भी विवाह करने से ऐसी सम्भावनाएँ बनी रहती हैं। इसका कारण यह है कि जिस प्रकार हिन्दू समाज में एक गोत्र के लोग एक पिता के वंशज बताए गये हैं, ठीक उसी प्रकार एक जाति अथवा उपजाति के लोग भी एक आदिपुरूष की संतान माने गये हैं। इस हिसाब से देखा जाए तो अंतर्जातीय विवाह और अंतर्धार्मिक विवाह ज्यादा उचित हैं। लेकिन खाप पंचायतें अतर्जातीय विवाह और अंतर्धार्मिक विवाह की भी घोर विरोधी हैं।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि खाप पंचायतों की इस दलील में ज़रा भी दम नहीं है कि समगोत्री विवाह पर रोक लगाई जाए। उनकी यह माँग पुरातनपंथी मानसिकता की परिचायक है, जो नारीवादी उत्थान और अपने असीमित अधीकारों को मिलने वाली चुनौतियों से परेशान है। इसीलिए वह इस तरह की मध्युगीन मानसिकता का परिचय दे रही है। जाहिर सी बात है कि इस तरह की मानसिकता को जायज ठहराना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं कहा जा सकता।
खाप पंचायतों का असली चरित्र
खाप पंचायतें दरअसल प्राचीन समाज का वह रूढिवादी हिस्सा है, जो आधुनिक समाज और बदलती हुई विचारधारा से सामंजस्य नहीं बैठा पा रहा है। इसका साक्षात प्रमाण पंचायतों के वर्तमान स्वरूप में देखा जा सकता है, जिसमें महिलाओं और युवाओं का प्रतिनिधित्व न के बराबर है। यदि इन पंचायतों की मनोवृत्ति और इनके सामाजिक ढ़ाँचे का अध्ययन किया जाए, तो आंकणे सामने आते हैं, वे काफी चिंताजनक हैं। जैसे कि सम्पूर्ण खाप पंचायतों के एरिया (हरियाणा, दिल्ली, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश) में महिला-पुरूष का लिंग अनुपात सबसे खराब है, जबकि इन इलाकों में कन्या भ्रूण हत्या का औसत राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक है। इससे साफ जाहिर होता है कि खाप पंचायतों का मूल चरित्र नारी विरोधी है। यही कारण है कि पढ़-लिख कर आत्मनिर्भर होती महिलाएँ और उनकी मनमर्जी से होने वाली शादियाँ हमेशा से इनकी आँख का काँटा रही हैं। खाप पंचायतों का कहना है कि किसी गोत्र में जन्मे सभी व्यक्ति एक ही आदि पुरूष की संतानें हैं, इसलिए हिन्दू धर्म में समगोत्री विवाह को वर्जित माना गया है। लेकिन अगर गहराई से देखें, तो खाप पंचायतों के इस दावे में दम नहीं है। इसका प्रमाण 1950 में मुम्बई उच्च न्यायालय दे चुका है। उस दौरान उच्च न्यायालय में श्री हरीलाल कनिया (जोकि बाद में स्वतंत्र भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश भी बने) और श्री गजेंद्रगदकर (जो 1960 में भारत के मुख्य न्यायाधीश बने) की दो सदस्यीय पीठ ने अपने चर्चित फैसले में कहा था कि सगोत्र हिन्दु विवाह वैध है। अपने फैसले में जजों ने कहा था कि पुराणों, स्मृतियों और सूत्रों में गोत्र सम्बंधी इतने अंतर्विरोध भरे पड़े हैं कि उनसे कोई एक निश्चित निष्कर्ष निकालना असम्भव है। इस सम्बंध में जजों की दो सदस्यीय पीठ ने हिन्दु धर्मशास्त्र के प्रश्चात विद्वान पी0वी0 काणे और भारतीय संस्कृति के मर्मज्ञ मैक्समूलर के साथ मनु और याज्ञवल्क्य के ग्रंथों का भी अध्ययन किया था। इससे स्पष्ट है कि खाप पंचायतों की समान गोत्र में विवाह को अवैध घोषित करने सम्बंधी माँग में जरा भी दम नहीं है।
क्या है विरोध का वैज्ञानिक कारण?
पहले तो खाप पंचायतों ने अपनी माँग के समर्थन में प्राचीन परम्परा की दुहाई देती रही हैं, लेकिन जबसे उनका वादा कमजोर पड़ गया है, अब वे इस सम्बंध में वैज्ञानिक कारणों को गिनाने लगी हैं। उनका कहना है कि एक गोत्र में विवाह करने से कई तरह की आनुवाँशिक बीमारियों की सम्भावना रहती है।
आनुवाँशिक विज्ञान के अनुसार इनब्रीडिंग या एक समूह में शादी करने से हानिकारक जीनों के विकसित होने की सम्भावनाएँ ज्यादा होती है, जिससे आने वाली संतानों में कई प्रकार के रोग पनप सकते हैं। लेकिन अगर इस मत को और व्यापक रूप दिया जाए, तो एक जाति अथवा उपजाति में भी विवाह करने से ऐसी सम्भावनाएँ बनी रहती हैं। इसका कारण यह है कि जिस प्रकार हिन्दू समाज में एक गोत्र के लोग एक पिता के वंशज बताए गये हैं, ठीक उसी प्रकार एक जाति अथवा उपजाति के लोग भी एक आदिपुरूष की संतान माने गये हैं। इस हिसाब से देखा जाए तो अंतर्जातीय विवाह और अंतर्धार्मिक विवाह ज्यादा उचित हैं। लेकिन खाप पंचायतें अतर्जातीय विवाह और अंतर्धार्मिक विवाह की भी घोर विरोधी हैं।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि खाप पंचायतों की इस दलील में ज़रा भी दम नहीं है कि समगोत्री विवाह पर रोक लगाई जाए। उनकी यह माँग पुरातनपंथी मानसिकता की परिचायक है, जो नारीवादी उत्थान और अपने असीमित अधीकारों को मिलने वाली चुनौतियों से परेशान है। इसीलिए वह इस तरह की मध्युगीन मानसिकता का परिचय दे रही है। जाहिर सी बात है कि इस तरह की मानसिकता को जायज ठहराना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं कहा जा सकता।
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Khap Panchaayton par kanooni rok lagayi jaani chahiye.
जवाब देंहटाएंसगोत्री शादियाँ -मतलब उनके बीच शादियाँ जिनकी विरासत/वंशावली का मूल एक ही हो -मुझे लगता है की सगे सम्बन्धों में विवाह वर्जित होना चाहिए ...गोत्र तो फिर भी थोड़ा दूर की बात है !
जवाब देंहटाएंनारीवादी चेतना और खाप पंच्यात के फैसले दो नो को एक सुर मे लिखना गलत हैं । खाप पंचायत के फैसले पुरुष और स्त्री दोनों के लिये होते हैं सो इस मे नारीवाद को लाना कितना सही हैं
जवाब देंहटाएंवैसे आप नारीवाद से समझते क्या हैं ये कभी साफ़ नहीं होता हैं
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जवाब देंहटाएंरचना जी, खाप पंचायतों का समूल चरित्र पुरूष की सत्ता को बनाए रखने और स्त्रियों के अधिकारों को कुचलने की दास्तान है। यह उनके सांगठनिक ढांचे से लेकर उनके तमाम फैसलों तक में परिलक्षित होता है।
जवाब देंहटाएंजाटलैण्ड में हाल के वर्षों में प्रेमविवाह में अचानक बढोत्तरी हो गयी है। क्यों? क्या पहले जाट युवक युवतियाँ प्रेम नहीं करते थे? करते थे। पहले भी करते थे, पर पहले वहाँ की स्त्रियों में इतना साहस नहीं था कि वे पंचायतों के विरूद्ध जाने का साहस जुटा सकें और प्रेम विवाह कर सकें, इसलिए उनका प्रेम रस्मों की चहारदीवारी के भीतर ही दम तोड़ देता था। लेकिन हाल के वर्षों में शिक्षा के कारण नारीवादी चेतना का विकास हुआ है, जिससे अब स्त्रियां पंचायतों के विरूद्ध खड़ी होने का साहस जुटा रही हैं। यही कारण है कि पंचायतों को अपना सिंहासन डोलता हुआ नजर आने लगा है। वे देख्चा रही हैं कि युवाओं में अब उनका डर नहीं रहा है। साथ ही साथ आजके युवा विशेषकर युवतियां भी उनके भय से पार जा रही हैं। ऐसे में उन्हें अपनी सत्ता बचाने के लिए एकमात्र रास्ता समानगोत्र में विवाह पर रोक के रूप में नजर आ रहा है। और आश्चर्य का विषय है कि भाजपा जैसी पार्टियां भी उनका साथ दे रही हैं।
जवाब देंहटाएंमुझे तो लगता है कि खाप पंचायतों पर ही प्रतिबंध लगा देना चाहिए, ये अनावश्य रूप से सामाजिक समरसता को छिन्न-भिन्न कर रही हैं।
जवाब देंहटाएंSarkar ko ab inka upaay nikalna chahiye, bahut ati kar di hai.
जवाब देंहटाएंखाप पंचायतों की दलीलें बेसिरपैर की हैं, असली मुद्दा है वहाँ की जनता और विशेष कर महिलाओं के सर से उतरता उनका डर। पर अब जमाना बदल गया है, अब 19वीं सदी की परम्पराएं नहीं चलने वालीं।
जवाब देंहटाएंखाप पंचायतों की दलीलें बेसिरपैर की हैं, असली मुद्दा है वहाँ की जनता और विशेष कर महिलाओं के सर से उतरता उनका डर। पर अब जमाना बदल गया है, अब 19वीं सदी की परम्पराएं नहीं चलने वालीं।
जवाब देंहटाएंखाप पंचायतों की यह एक घिनौनी साजिश है, इसका हर बौद्धिक व्यक्ति को विरोध करना चाहिए।
जवाब देंहटाएंखाप पंचायतों को तालिबानी पंचायतें कहना अधिक सही जान पड़ता है। इनकी जितनी निंदा की जाए कम है।
जवाब देंहटाएंखाप पंचायतों को तालिबानी पंचायतें कहना अधिक सही जान पड़ता है। इनकी जितनी निंदा की जाए कम है।
जवाब देंहटाएंयह भी अजीब पंचायत है जो नये-नये आदेश सुनाती रहती है.
जवाब देंहटाएंYeah, we too had a discussion on this topic in our office.
जवाब देंहटाएंAnd the final conclusion was,
Intercaste marriage should be promoted by govt, if intra-gotra is to be banned.
More over
intra-gotra marriage should be discouraged, both groom and bride should be made well aware about the scientific consequences, but it should not be made a law.
And nothing should bound the free-will of the two, if they want to marry each other. Let them do.
@ डाक्टर अरविन्द मिश्र
जवाब देंहटाएंमैंने सगोत्रता का सबसे पहला छोर पकड़ने की कल्पना की ? क्यों ना विवाह ही वर्जित कर दिये जायें ?
Are waah, Itni jaldi Vews Paper men bhi aa gayaa lekh. Kya baat hai.
जवाब देंहटाएंइनके लिये कुछ भी कहना कम होगा।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
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