समुद्र से 3,892 मीटर ऊंचाई पर स्थित गौमुख गंगोत्री ग्लेश्यिर का मुहाना है, जहाँ से गंगा (भगीरथी) का उद्गम होता है। ग्लेश्यिर वायुमण्डल द्व...
समुद्र से 3,892 मीटर ऊंचाई पर स्थित गौमुख गंगोत्री ग्लेश्यिर का मुहाना है, जहाँ से गंगा (भगीरथी) का उद्गम होता है। ग्लेश्यिर वायुमण्डल द्वारा आर्द्रता सोख कर बर्फ अथवा हिम के रूप में बरसने से बनते हैं। ग्लेश्यिर पर जमा बर्फ वसंत व ग्रीष्म ऋतु में जल में परिवर्तित होकर नदी का रूप धारण करती है, जिससे संसार के अनेकानेक महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न होते हैं।

पर्वत हमेशा से मनुष्यों के आकर्षण का विषय रहे हैं। पर्वतीय पर्यटन किसी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाता है। वैश्विक पर्यटन उद्योग का लगभग 15-20 प्रतिशत 70-90 अरब अमेरिकी डॉलर पर्वतीय पर्यटन से सम्बंधित होता है। अगर हम सिर्फ शीत खेलों में रूचि रखने वाले लोगों की बात करें तो संसार में लगभग 7 करोड़ लोग शीत खेलों को देखने में रूचि रखते हैं। और विश्व पर्यटन संस्थान की मानें तो सन 2010 तक यह संख्या लगभग 01 अरब तक पहुंचने वाली है। और अगर इससे होने वाली कमाई का हिसाब किताब लगाया जाए, तो इससे लगभग 1,500.00 अरब अमेरिकी डॉलर का राजस्व प्राप्त होने की संभावना है।
दुनिया की लगभग 22 प्रतिशत मानव आबादी को आश्रय देने वाले पर्वत अनेक दुर्लभ प्रजातियों के भी आश्रयदाता है। उदाहरण के रूप में रवांडा तथा युगांडा के ज्वालामुखी पर्वतों पर संसार के कुछ बचे हुए लगभग 300 पर्वतीय गौरिल्ला पाए जाते हैं। इनके अलावा विलुम्पप्राय हिम तेंदुए, सनहरे बाज, गिद्ध, एल्पायन स्विफट, दाढ़ी वाला गिद्ध, पीका, मारमोट आदि जीव वहाँ पाए जाते हैं। इसके अतिक्ति अनेक प्रकार के महत्वपूर्ण वृक्ष, अनेक दुर्ल्रभ जड़ी बूटियाँ और तमाम तरह के पक्षी पर्वतों में ही निवास करते हैं।
लेकिन दुख की बात यह है कि मानवों के लिए इतने महत्वपूर्ण पर्वत संकट में हैं। इनमें से कुछ संकट तो प्राकृतिक हैं, जैसे कि धरती की आंतरिक हलचलें, आकाशीय विद्युत, भूस्खलन, बादल फटना, हिमधाव अर्थात एवेलांश, बर्फ की चटटानों मे पड़ने वाली दरारें, वृक्षों में लगने वाली आग तो ऐसे हैं, जिनपर मानव का वश नहीं है। लेकिन इसके अतिरिक्त पेड़ों की अंधाधुंध कटान, पर्वतारोहड़ के बहाने पर्वतों पर जमा होता टनों कचरे के द्वारा मानव इनके लिए लगातार मुसीबतें पैदा करता जा रहा है। और इन सबके साथ ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ता हुआ तापमान तो एक सिरदर्द है ही।
अगर हम पर्वतों पर आ रहे इस संकट को सिर्फ ग्लेशियरों से जोड़ कर देखें, तो हम इसकी भयावहता का अंदाजा सहज ही लगा सकते हैं। जब ग्लेशियर ही नहीं रहेंगे, तो नदियाँ कहाँ होंगी और जब नदिया नहीं होंगी, तो उसके कारण धरती की कितनी जनता प्रभावित होगी, इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है।
चर्चित विज्ञान लेखक और विज्ञान पत्रिका “साइंस रिपोर्टर” के संपादक श्री हसन जावेद खान द्वारा लिखित पुस्तक “पर्वतों पर संकट” इन्हीं संकटों और चिंताओं को लेकर हमारे सामने हाजिर हुई है। विज्ञान प्रसार द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक न सिर्फ पर्वतों पर आसन्न तमाम संकटों को बयान करती है, वरन उसपर पलने वाली पूरी एक संस्कृति का लेखा-जोखा भी हमारे सामने रखती है।
अत्यंत सरस एवं रोचक शैली में लिखी यह पुस्तक हर उस व्यक्ति के लिए उपयोगी है, जिसे पहाड़ों से प्यार है, जो पहाड़ों के बारे में जानना चाहता है, जो पहाड़ों के संकटों को समझना चाहता है और जो पहाड़ों के लिए कुछ करना चाहता है। इस लोकोपयोगी प्रकाशन के लिए विज्ञान प्रसार निश्चय ही बधाई का पात्र है।
पुस्तक- पर्वतों पर संकट
लेखक- हसन जावेद खान
अनुवादक- एस0एन0 शर्मा
अनुवादक- एस0एन0 शर्मा
प्रकाशक- विज्ञान प्रसार, ए-50, इंस्टीटयूशनल एरिया, सेक्टर-62, नोएडा-201307 फोन- 0120-2404430/35
मूल्य- 90 रूपये।
Keywords: Science books, science books in hindi, scientific books, scientific books in hindi, Vigyan Prasar Books, Hasan Javed Khan, Science Reporter, mountains in india, disaster management in mountains
Keywords: Science books, science books in hindi, scientific books, scientific books in hindi, Vigyan Prasar Books, Hasan Javed Khan, Science Reporter, mountains in india, disaster management in mountains
COMMENTS