'तस्लीम' पर प्रकाशित मेरे पिछले लेख ' नारीवादः पुरूषों के शरीर में मौजूद श्रेष्ठता के जींस से कैसे निपटेगा? ' पर यूँ तो म...
'तस्लीम' पर प्रकाशित मेरे पिछले लेख 'नारीवादः पुरूषों के शरीर में मौजूद श्रेष्ठता के जींस से कैसे निपटेगा?' पर यूँ तो मैंने सारी बातें स्पष्ट रूप से कह दी थीं, पर कुछ सवाल ऐसे आए हैं, जिनपर अलग से जवाब देना जरूरी हो गया था।
यूँ तो इस तरह के गम्भीर आलेखों से महिलाएँ दूर ही रहती हैं, पर फिरभी इस बार जिन महिलाओं ने आलेख को पढ़ने के बाद कमेंट करने की जहमत उठाई है, उनमें सभी लोगों का कथन है कि महिलाएँ इसलिए परिवार में नहीं दबती कि वह कमजोर है, बल्कि वह इसलिए दबती है क्योंकि उसे परिवार देखना होता है, उसे समाज देखना होता है। इस तरह से देखा जाए तो यह महिला की महानता है। इसी आशय के कमेंट संगीता पुरी जी, वर्षा जी और अनामिका जी ने किये हैं।
अब आते हैं इसके उत्तर पर। यहाँ पर मैं आप सभी लोगों को गलत नहीं कहूँगा। पर मेरी नजर में विनम्रता की परिभाषा दूसरी है। जो लोग कमजोर होने के कारण जुल्म बर्दाश्त करते हैं, वे महान नहीं होते। महान वे लोग होते हैं, जो विरोध करने की शक्ति अपने भीतर रखते हैं और उसके बावजूद बवाल टालने के लिए चुप रहते हैं। और अगर इसे मेरा दुर्भाग्य न माना जाए तो मैं कहूँगा कि मैंने आज तक ऐसी एक भी ऐसी स्त्री अथवा पुरूष नहीं देखा, जो शक्तिशाली होने के बावजूद महानता के लिए दूसरों के जुल्म बर्दाश्त करता हो। ऐसा कहीं नहीं होता।
मैं क्षमा चाहूँगा, पर जो पुरूष भी पत्नि के सामने बोल नहीं पाते, उनमें भी वास्तव में हक बात कहने का जज्बा नहीं होता। वर्ना ऐसे जज्बे वाला व्यक्ति चुप रह ही नहीं सकता। कभी न कभी किसी न किसी मौके पर वह फट ही पड़ता है, फिर चाहे उसका नुकसान ही क्यों न हो जाए। क्योंकि जिसमें यह गुण/जींस होता है, ऐसे मौकों में न तो उसका दिमाग काम करता है और न ही उसकी नैतिकता। वहाँ पर उसका वह जींस काम करता है, और जींस की कोई नैतिकता, कोई आदर्श नहीं होता। यही कारण है कि ऐसे लोगों के परिवार खंडित हो जाते हैं उनकी गृहस्थी छिन्न भिन्न हो जाती है और वे अकेले रहने के लिए विवश होते हैं। समाज में ऐसे तमाम उदाहरण बिखरे हुए हैं।
दिनेदशराय द्विवेदी जी का कथान था कि जब पता लग ही गया है कि श्रेष्ठता का कोई जीन है तो उस से निपटने का मार्ग भी तलाश लिया जाएगा। वैंसे जीन्स क्या स्थाई संरचना है? यदि नहीं तो उस में भी परिवर्तन होते ही होंगे। परिवर्तनकारी कारण क्या हैं, उन्हें खोजा जा सकता है। वैसे मानव नरों में अन्य चौपाया नरों जैसी आक्रामकता तो नहीं ही है। अब तक वह जीन बहुत कुछ बदल भी चुका होगा?
द्विवेदी जी, जींस वह इकाई है, जो व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक संरचना को निर्धारित करती है। किस व्यक्ति में कौन सा जींस विकसित होगा, कौन सा नहीं, यह नहीं कहा जा सकता। यह सिर्फ एक संयोग होता है। इसके उदाहरण स्वरूप आप किसी सभ्य और बेहद विनम्र परिवार में जन्में किसी उद्दंड बच्चे को देखकर अथवा किसी बेहद गंवार परिवार में पैदा हुए बेहद विनम्र और सुशील बच्चे को देखकर लगा सकते हैं। और हाँ, कोई बहुत बड़ी घटना हो जाए, तो नहीं कहा जा सकता, वर्ना आमतौर में इनमें कोई बहुत ज्यादा परिवर्तन नहीं होते, वर्ना आज के शेर मांस की जगह घास फूस खा रहे होते। यह अलग बात है कि किसी व्यक्ति में कोई जींस ज्यादा विकसित हो जाता है तो किसी में कोई। इसके पीछे क्या कारण हैं, यह अभी तक खोजा नहीं जा सका।
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि लोगों को सही ट्रेनिंग देकर उनके व्यवहार को नियंत्रित किया जा सकता है। मेरे विचार से ऐसे लोग कत्तई सही नहीं है। इसके लिए मेरी समझ से एक ही उदाहरण काफी होगा। किसी मांसाहारी जीव जैसे कुत्ता अथवा बिल्ली या अन्य कोई आप पालिए और उसे मांस मछली से सौ कोस दूर रखिए। ऐसे में उनकी पूरी एक नहीं चाहे दस पीढ़ी आप गुजार दीजिए, लेकिन जैसे ही ग्यारहवीं पीढ़ी के उस जीव को मांस, मछली की गंध मिलेगी, वह आपकी सारी ट्रेनिंग, सारी सभ्यता छोड़ कर उसकी ओर दौड़ पड़ेगा। निष्कर्ष- जींस के व्यवहार को दिखावटी तौर पर दबाया तो जा सकता है, लेकिन जैसे ही उसे उचित माहौल मिलता है, वह ज्वालामुखी की तरह मिट्टी की सैकड़ों मीटर पर्तों को भेदकर बाहर निकल पड़ता है। सैकड़ों बार सजा पाए अपराधी, महिलाओं से छेड़खानी के कारण तमाम बार बेइज्जत हुए पुरूष और माता-पिता की डांट के बावजूद शैतानी करने वाले बच्चे इसके आसान उदाहरण हैं।
अब आते हैं इस मुद्दे पर कि क्या वास्तव में जींस को रिपेयर किया जा सकता है? मेरी समझ से यह व्यवहारिक रूप से न तो संभव है और न ही इतना बड़ा रिस्क कोई लेना चाहेगा। क्योंकि कोई पर्टिकुलर जींस सिर्फ एक व्यवहार के लिए जिम्मेदार हो, ऐसा भी नहीं है। अगर ऐसा होता, तो बी0टी0 बैंगन पर इतना बवाल न मच रहा होता। करोणों के प्रोजेक्ट से बीटी बैंगन बनाए गये और नतीजा आप सबके सामने है। इस सम्बंध में एक मजेदार टिप्पणी भी आपके साथ शेयर करना चाहूँगा। परसों सत्येन्द्र कुमार जी से इस सम्बंध पर बात हो रही थी। जैसे ही इस मुद्दे पर बात आई वो बोले- कैसे आप पुरूष के जींस को चेंज कर दोगे? फिर वो पुरूष कहाँ रहेगा? किन्नर नहीं हो जाएगा?
अरविंद जी ने पूछा था- यह कैसे हो सकता है की एक ही काल खंड में दीगर महिलाओं में जींस बदल गए हों। क्या मनुष्य की भी कई अलग-अलग उप प्रजातियाँ विकसित हुयी हैं क्या? मनुष्य प्रजाति मात्र में जींस बदलेगें तो यह बदलाव सभी जीवित नारी पुरुषों में तो सामान ही होना चाहिए न?
जैसा मैंने पहले कहा कि किस व्यक्ति में कौन सा जींस विकसित हो जाएगा, इसका कोई पैमाना नहीं है। हो सकता है कि इसके पीछे मनुष्य की अलग अलग उप प्रजातियों वाला चक्कर भी हो।
और अंत में अंतर सोहिल जी के सवाल कि ''लेकिन पशु नर तो अधिकतर प्रतिद्वंदी नर के लिये ही हिंसक होते हैं।'' पर आना चाहूँगा। सोहिल जी, नर पशु, नर के लिए प्रतिद्वन्द्वी क्यों होते हैं, इतना तो आपको भी पता है। और क्या वही प्रतिद्वद्विता किन्ही अर्थों में मनुष्यों में नहीं दिखाई देती?
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बात विज्ञानं की है और इसमें अपना हाथ तंग है ! सलीम भाई ने नारी पर जो दृष्टिकोण व्यक्त किया है वो भी आप की पोस्ट की तरह विचारणीय है !
जवाब देंहटाएंनवल धवल सुरज से आलोकित,हो घर आंगन परिवार।
जवाब देंहटाएंनुतन वर्ष 2010 की आपको अशेष शुभकामनाएं अपार॥
हम कमज़ोर हैं...
जवाब देंहटाएंशरीर से(पिटने से बचने के लिये चुप हो जाते हैं),
मन से(पिटने का डर हावी हो जाता है),
दिमाग़ से( पुरुष की ताक़त को न मानने के लिये परिवार की शांति का बहाना बनाते हैं),
भावनाओं से (पिटकर भी हम पुचकारने पर कुत्ते की तरह दुम हिलाते आ जाते हैं),
पॉवर...करप्ट्स
और हम करप्शन के नतीजे हैं जिसके सूत्र हमारे जींस में निवास करते हैं।
अच्छा आलेख। बहुत-बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
आप के उत्तर ने संतुष्टी नहीं दी। लगता है मुझे फिर से जीवविज्ञान पढ़ना पड़ेगा।
जवाब देंहटाएंनववर्ष पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
आप को ओर आप के परिवार को नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंदुनिया में अमन की उम्मीद और दुवाओं के साथ फिलहाल.....
जवाब देंहटाएंइस वैमनष्यकारी/विषमतामूलक जींस पर कोई टिप्पणी नहीं !
वर्ष नव-हर्ष नव-उत्कर्ष नव
जवाब देंहटाएं-नव वर्ष, २०१० के लिए अभिमंत्रित शुभकामनाओं सहित ,
डॉ मनोज मिश्र
आप और आपके परिवार को नववर्ष की सादर बधाई
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की नई सुबह
नए साल की तसलीम से जुड़े सभी लोगों को बधाई. आप सब का ज्ञान खूब बढे. आपकी सेहत शानदार रहे. हमारी यही दुआ है.
जवाब देंहटाएंnaye saal ki shubh kaamnaae!!!
जवाब देंहटाएंअली जी से पूर्ण सहमत
जवाब देंहटाएंदिनेश जी ने सही कहा, जानकारी अधूरी व भ्रमित है, हर, गुण के लिये अलग-अलग जीन्स होतीं हैं, अतः सत्येन्द्र जी न डरें, एक जीन्स को हटाने से कोई किन्नर नहीं बनेगा। उसके लिये विशेष जीन हटानी पडेगी, यदि कोई चाहे तो...। जीन्स भी युगों तक के पीढी दर पीढी आदतें, व्यवहार,परिस्थिति,आवश्यकता कार्य प्रणाली या नेचुरल सेलेक्सन आदि से बनते हैं, वे हट भी सकते हैं। भविष्य में चिकित्सा विग्यान द्वारा जीन्स को परिवर्धित, परिवर्तित व हटा कर आनुवन्सिक रोगों, आदतों को हटाने का प्लान है ।
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